लागी लंड की लगन, मैं चुदी सभी के संग-14
(Lagi Lund Ki Lagan Mai Chudi Sabhi Ke Sang- Part 14)
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घर पहुँची तो सभी लोग मेरा इंतजार कर रहे थे।
आज मैं काफी थकी हुई लग रही थी।
अमित और नमिता मेरे पास आये, आते ही अमित ने कहा- भाभी बहुत थकी हुई लग रही हो, कहो तो मालिश कर दूँ?
मैंने नमिता की तरफ देखा और बोली- अगर नमिता को ऐतराज न हो तो… और केवल मालिश, सेक्स नहीं करूँगी।
नमिता बोली- भाभी, मैं भी देखना चाहती हूँ कि अमित कैसी मालिश करता है। मैं भी जब कभी थकी हूँगी तो अमित मेरी भी मालिश कर दिया करेगा।
तभी ससुर जी की आवाज आई- क्या बात है, आज तुम काफी थकी सी लग रही हो?
‘हाँ बाबू जी, आज ऑफिस में काम ज्यादा था इसीलिये!’
‘कोई बात नहीं, जाओ एक-दो घण्टे तुम आराम कर लो। तुम्हें कोई परेशान नहीं करेगा।’
कहकर वो चले गये और मैं ऊपर अपने कमरे में आ गई।
मेरे पीछे-पीछे अमित और नमिता भी आ गये।
कमरे में पहुँच कर मैंने रितेश को फोन लगाया तो उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा था।
एक दो बार ट्राई करने के बाद मैंने वही नमिता और अमित के सामने ही अपने कपड़े बदल कर गाउन पहन लिया और अमित से बोली- जीजू, आप तैयारी करो, मैं जरा फ्रेश होकर आ रही हूँ, तब आप मालिश करना।
इतना कहने के साथ मैं फ्रेश होने नीचे आई और फ्रेश होने के लिये लैट्रिन का दरवाजा खोलने ही जा रही थी कि अन्दर से ‘आह उह… आह उह…’ की आवाज आ रही थी।
मैं आवाज तो सुन पा रही थी लेकिन देखने के लिये मैं कोई सुराख खोज रही थी कि देखा छोटा देवर जिसका नाम सूरज था, वो मेरा नाम ले लेकर मुठ मार रहा था, बोल रहा था- भाभी तुम कितनी अच्छी हो। तुम्हारी चूत क्या कहना… आ आ मेरी जान, मेरे लंड को अपनी चूत में ले लो। क्या गोल गोल है तुम्हारी चूची, इसका दूध मुझे पिला दो।
इसी तरह वो मेरी चूत, चूची और गांड के कसीदे पढ़ रहा था। बड़बड़ाते हुए उसका हाथ भी बड़े तेजी से चल रहा था और फिर अचानक उसके लंड से पिचकारी छूटी और उसकी पूरी हथेली में उसका रस लगा था।
फिर वो उसी अवस्था में अपने हाथ धोने के लिये खड़ा हुआ।
मुरझाने के बाद भी उसका लंड लंड नहीं मूसल लग रहा था।
हाथ धोने के बाद उसने अपनी चड्डी पहनी और मैं जल्दी से वहाँ से दूर हो गई।
जब सूरज बाहर आया तो मैं उसको गौर से देखने लगी, जो अब मुझे काफी सेक्सी दिख रहा था।
खैर मैं फिर फारिग होने के लिये चली गई और लेट्रिन में जितनी देर बैठी रही, सूरज के बारे में सोचती रही कि सूरज ने मुझे कब और कैसे नग्न देख लिया कि उसे मेरे अंग अंग के बारे में मालूम था या फिर वो कोरी कल्पना में मुझे पाना चाहता था।
तभी अचानक वो सुराख मुझे याद आया, जैसे अभी अभी मैंने सूरज को वो सब करते देखा, हो सकता है कि सूरज ने मुझे देखने के लिये सूराख किया है।
तभी मेरी नजर उस सुराख में एक बार फिर पड़ी और मुझे लगा कि किसी की आँख अन्दर की तरफ झांक रही है।
फिर मेरे अन्दर का क्रीड़ा एक बार फिर जाग गया और मैंने अपने आपको झुकाते हुए अपनी चूचियों को और लटका कर खुला छोड़ दिया ताकि जो देख रहा है, अच्छी तरह देख सके।
और फारिग होने के बाद मैं नंगी ही अपने हाथ धोने उठी।
उसके बाद मैं अपने कमरे में आ गई जहाँ अमित मेरा इंतजार कर रहा था।
पहुँचने के बाद मैंने अपनी गाउन उतारी और जमीन पर लेट गई।
अमित और नमिता भी नंगे हो चुके थे।
अमित अब मेरी मालिश करने लगा। वो बहुत ही अच्छे से मेरी मालिश कर रहा था, हालाँकि बीच बीच में अमित मेरी चूत और गांड में उंगली कर रहा था।
मेरी मालिश और अंगो की छेड़छाड़ करने की वजह से अमित का लंड तन कर टाईट हो चुका था और मेरी जिस्म के हर हिस्से से रगड़ खा रहा था।
मेरी मालिश करने के बाद अमित लेट गया और नमिता उसके लंड पर बैठ गई, फिर धीरे-धीरे वो सवारी करने लगी। उन दोनों की काम क्रीड़ा देखने के बाद भी मेरी इच्छा नहीं हो रही थी।
उधर थोड़ी देर तक उन दोनों के बीच भी युद्ध चलता रहा और फिर अपने मुकाम पर पहुँच कर शान्त हो गया।
एक बार फिर अमित मुझे धन्यवाद देते हुए बोला- भाभी, आपके ही कारण नमिता की चूत मुझे मिलने लगी है।
इस पर नमिता हंस दी।
उसके बाद अमित मेरे बगल में और नमिता अमित के बगल में लेट गये।
मुझे पता नहीं कब नींद आ गई और मैं अमित से चिपक कर सो गई।
एक घंटे के बाद मैं उठी और नहाने के लिये नीचे आ गई। नहा धोकर फ्री होने के बाद मैंने और नमिता ने मिल कर घर के काम को खत्म किया।
इस दौरान मेरी नजर सूरज पर भी रहने लगी और रह रहकर मेरी नजर के सामने उसका लम्बा मूसल लंड आने लगा। और न चाहते हुए भी मेरा मन उसके लंड को अपनी चूत में लेने का कर रहा था।
लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था कि जो मैं चाह रही थी वो पूरा नहीं हो पायेगा क्योंकि सूरज और नीतेश, मेरा छोटा देवर सास और ससुर के कमरे में ही सोते थे इसलिये मुझे मौका तो इतनी आसानी से नहीं मिलने वाला था।
खैर काम निपटा कर मैं अपने कमरे में आ गई और अमित और नमिता अपने कमरे में चले गये।
सुबह के चार या पाँच के आस पास रितेश का फोन आया। जैसे ही मैंने फोन पिक किया रितेश सॉरी बोलने लगा।
मैंने कारण जानना चाहा तो उसने अपनी आप बीती सुनाई:
आज मेरी बॉस सुहाना ने मेरे मोबाईल का स्विच ऑफ कर दिया था, वो कह रही थी कि आज कुछ ज्यादा ही ओवर टाईम ड्यूटी होगी, वो कोई डिस्टरबेन्स पसंद नहीं करेगी।
और बोली कि आज वो मुझे मेरे ओवर टाईम का ईनाम भी देगी।
उसके बाद हम दोनों प्रोजेक्ट पूरा करते रहे और यहां तक कि ऑफिस का एक-एक एम्पलाई कब अपने घर जा चुका था, हम दोनों को पता भी नहीं चला।
जब लॉस्ट में चपरासी छुट्टी मांगने आया तो सुहाना उससे बोली- अभी थोड़ी देर और रूको, जब काम खत्म हो जायेगा तो जाना।
बहुत गिड़गिड़ाने पर उसने चपरासी को छुट्टी दी।
चपरासी के जाते ही सुहाना ने अन्दर से ऑफिस लॉक कर दिया।
मैं अपने काम में व्यस्त ही था कि मुझे मेरे सीने पर हाथ चलते हुआ सा महसूस हुआ तो मैंने मुड़ कर देखा तो सुहाना मेरे पीछे खड़ी थी और उसका हाथ मेरे सीने पर धीरे-धीरे रेंग रहा था।
मैं उसे देखता ही रहा तो वो बोली- तुम अपना प्रोजेक्ट करते रहो और मैं तुम्हें ईनाम भी साथ साथ देती हूँ।
कहकर उसने मुझे मेरे काम पर ध्यान देने के लिये कहा तो मैं बोला- अगर आप ऐसे करते रहोगी तो मैं काम कैसे करूँगा, द्स-पंद्रह मिनट का और वर्क है निपटा लेने दीजिए तो ये बन्दा आपका ईनाम खुद ही ले लेगा।
तो सुहाना बोली- मजा तो तभी है प्यारे, काम के साथ-साथ ईनाम भी लो।
उसकी बातों को सुनकर मैं अपने काम पर ध्यान लगाने की कोशिश करने लगा, पर जब एक औरत का हाथ अन्दर हो और मन में खलबली मची हो तो काम में कैसे मन लगता!
लेकिन मैं अपनी कोशिश करता रहा, अब मुझे यह देखना था कि जीत किसकी होती है।
सुहाना का हाथ मेरे सीने पर तो चल ही रहा था साथ में उसके होंठ भी मेरे गालों पर जगह-जगह अपनी छाप छोड़ रहे थे।
मैं कसमसा भी रहा था और काम भी कर रहा था।
जब सुहाना का मन इससे भी नहीं माना तो उसने अपना हाथ मेरे लंड के ऊपर रख दिया और उसे टटोल रही थी। इससे वो कभी मेरे अंडों को दबा देती तो कभी वो मेरे सोए हुए लंड को छेड़ देती थी।
आखिर मेरा कंट्रोल अब खत्म हो चुका था और लंड महराज फुफकारने लगे थे। वो एक कुटिल मुस्कान के साथ बोली- रितेश, तुमने अगर अपना ध्यान अपने प्रोजेक्ट पर नहीं लगाया तो प्रोजेक्ट अधूरा रह जायेगा और तुम्हारा ईनाम भी।
मेरी मजबूरी यह थी कि काफी दिनों बाद मुझे आज भरपेट खाना मिल रहा था और उसे छोड़ना नहीं चाह रहा था।
अजीब बात यह थी कि अगला कह रहा है कि खाना तो तुम्हारे लिये ही है लेकिन उसे बिना हाथ लगाये खाओ।
मेरी बॉस सुहाना की हरकतों में कमी भी नहीं आ रही थी, वो लगातार मुझे उत्तेजित करने के लिये कुछ न कुछ किये जा रही थी। उसने एक बार फिर अपने हाथ को मेरे सीने के पास पहुँचाया और नाखून से मेरे निप्पल को कचोटने लगी।
इससे मुझे मीठी सी पीड़ा हो रही थी और मेरा ध्यान भी भटक रहा था लेकिन सुहाना मेरी कोई बात मानने को तैयार नहीं थी।
कभी उसके हाथ मेरे सीने पर और निप्पल पर तो कभी मेरी पीठ को सहला रही थी।
मेरा जो काम पंद्रह मिनट का था, सुहाना की इन उत्तेजना भरी हरकतों के कारण वो पंद्रह मिनट कब के बीत चुके थे।
गजब तो तब हो गया जब सुहाना मेरी पीठ सहलाते हुए पता नहीं कब अपने हाथ मेरे कमर के नीचे ले गई और मेरी गांड की दरार के बीच अपनी उंगली रगड़ने लगी।
मैं, आकांक्षा ने अपने पति रितेश से पूछा- यार, यह तो बताओ तुम्हारी बॉस कैसी है।
रितेश फ़िर बताने लगा- यार, कल तक तो वो बहुत खड़ूस नजर आ रही थी लेकिन आज वो बड़ी गांड, बड़ी बड़ी चूचियों और बड़ी बड़ी आँख की मलकिन नजर आ रही थी। आज वो किसी परी से कम नहीं लग रही थी। जैसी हरकतें वो मेरे साथ कर रही थी, मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरी आकांक्षा मुझ पर तरस खाकर मेरे पास मेरी प्यास मिटाने आ गई है।
रितेश के मुंह से मेरे लिये ये तारीफ के शब्द सुनकर मुझे अपने आप पर बड़ा नाज हुआ।
उधर रितेश बोले जा रहा था:
मेरी बॉस सुहाना अपनी उंगली मेरी गांड से निकाली और फिर मेरे ही सामने अपनी उंगली को चाटने लगी।
उंगली चाटते हुए वो बोली- रितेश, यह है तुम्हारा पहला ईनाम… अब दूसरा ईनाम ये देखो।
कहकर सुहाना ने अपने टॉप को उतार दिया।
मेरी नजर जब उसकी बड़ी-बड़ी चूचियों पर पड़ी तो मेरी नजर वहां से हट ही नहीं रही थी।
सुहाना ने अपने बड़ी-बड़ी चूचियो को एक छोटी लेकिन बड़ी ही सेक्सी ब्रा में छुपा कर रखी हुई थी।
अपने दोनों हाथो से अपने स्तन को वो दबा रही थी और मेरे होंठों से रगड़ रही थी।
मेरी उंगलियाँ कीबोर्ड पर थी और होंठ उसके ब्रा के बीच छिपी हुई चूचियों में थे।
मेरा काम खत्म होने पर था ही कि सुहाना ने अपनी ब्रा को निकाल फेंका और निप्पल को मेरे मुंह में लगा दिया।
अब मैं उसके निप्पल को चूस रहा था और अपना काम कर रहा था।
सुहाना का ध्यान मेरे ऊपर से हट चुका था और वो मस्ती में आ चुकी थी।
तभी मैं आकांक्षा फिर उसकी बात को काटते हुए बोली- तो क्या तुम दोनों ने चुदाई का खेल ऑफिस में ही खेला?
‘नहीं यार सुनो तो, सुहाना तो बहुत ही वाईल्ड है।’
मैंने पूछा- कैसे?
तो रितेश बताने लगा कि वो बहुत मस्ती में आ चुकी थी और आहें भरने लगी थी कि मैंने उसे झकझोरते हुए बोला- मैम प्रोजेक्ट ओवर हो गया है।
‘अरे वाह, मैं तो सोच रही थी कि तुमको काम करते करते पूरा मजा दे दूंगी, लेकिन तुम बहुत तेज निकले!’ कहकर मेरे गोदी में बैठ गई और प्रोजेक्ट चेक करने लगी।
अब मुझे मौका मिल गया था, मैंने पीछे से उसकी दूध जैसी चूचियों के साथ खेल शुरू कर दिया और लगातार मैं उसकी पीठ पर चुम्बन देता जा रहा था और वो बड़े मजे से आहें भरती हुई प्रोजेक्ट चेक कर रही थी।
मेरा टाईट लंड शायद उसके पिछवाड़े चुभ रहा होगा, तभी तो वो जितनी देर मेरे ऊपर बैठी रही उतनी देर तक वो अपनी गांड को इधर-उधर हिलाती रही।
प्रोजेक्ट चेक करने के बाद उसने कम्प्यूटर ऑफ किया और फिर अपनी टॉप पहनने के बाद उसने मुझे अपनी ब्रा मुझे दी और ब्रा को मुझे मेरी जेब में रखने को बोली।
उसके बाद हम दोनों ने ऑफिस को पूरी तरह लॉक क्या।
फ़िर सुहाना मुझसे बोली- तुम्हारा ईनाम अभी भी मेरे पास है, तुम कहाँ लोगे?
मैं बोला- बॉस…
सुहाना टोकते हुए बोली- बॉस नहीं, सुहाना बोलो।
‘ठीक है सुहाना, लेकिन मैं तो इस शहर में नया हूँ। अपने होटल का रूम और ऑफिस के अलावा कुछ जानता नहीं हूँ। अब आप जहाँ ईनाम देना चाहो दे दो।’
‘ठीक है, फिर मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे होटल चलती हूँ क्योंकि घर पर मैं तुमको ले नहीं जा सकती हूँ।’
इतना कहकर उसने अपने घर रात में न आने की सूचना दे दी।
कहानी जारी रहेगी।
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