गाँव की कुसुम और उसकी आपबीती-2

(Gaanv Ki Kusum Aur Uski Aapbeeti- Part 2)

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कहानी का पिछ्ला भाग: गाँव की कुसुम और उसकी आपबीती-1

मुकेश बोले- कुसुम, तुम मेरा ईमान ख़राब कर रही हो, तुमने मुझे नंगा देख लिया और मुझे भी तुमको देखना है।

जब मैं नहाने गई तो अपना जिस्म देख कर शर्मा सी गई, मुकेश जी के बारे में सोचने लगी और मेरी जांघों के बीच से पानी निकलने लगा।
मेरे हाथ खुदबखुद वहाँ पहुँच गए, मेरे मुख से सिसकारी ‘आह्ह’ निकल गई।

मैं खुद हैरान थी कि इतनी उम्रदराज़ इंसान के साथ मैं इतना फ्री कैसे हो गई।

पर मुकेश जी मुझको अच्छे लगने लगे थे, मैं भूल गई कि वो मेरे पिता के उम्र के हैं.. बस मेरी आँखों के सामने बिना कपड़ों का उनका जिस्म नज़र आ रहा था, मन बेचैन हो गया था, मुझे लगने लगा था कि मुझे उनकी जरूरत है।

तभी मुझे मुकेश जी के आने की आहट मिली…

मैं बिना कपड़ों के बाहर निकल कर अपनी रूम में आ गई.. मैं जानती थी कि मुकेश जी जरूर आएंगे।
और वैसा ही हुआ… वो आये.. मेरे दिल की धड़कन तेज हो गई… शर्म भी आ रही थी अपनी बेशर्मी पर!

यह पहली बार था कि कोई पुरुष मेरे बदन को बिना कपड़ों के देख रहा था।

मैंने दरवाज़े की तरफ अपनी पीठ कर ली… और बदन को तौलिये से सुखाने लगी।
मैं जानती थी मुकेश जी कमरे में है और वो मेरे नितम्ब देख रहे हैं… पर मैं अनजान बनी रही।

मेरे कान उनकी हरकतों पर ही थे, धीरे धीरे उनकी कदमों की आहट आने लगी।
मैं कांपने लगी, घबराने लगी…

तभी… अपने कूल्हे पर उनका हाथ महसूस हुआ, मैं घबरा कर मुड़ी तो उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में ले लिया।

उफ़्फ़ वो स्पर्श पहले पुरुष का… मेरी उन्नत उभरी चूची उनकी छाती पर दब गई।
‘आअह आह्ह’ मेरी योनि से पानी बह निकला।

उनकी गर्म सांसें.. मेरी घबराहट… उनका पास आना.. मेरी आँखें बंद हो जाना, खुद को भूल जाना!

मेरे लरज़ते होंटों पर उनकी गर्म होटों का स्पर्श…
मैं कांप गई और उनकी मर्दाना बाहों से निकलने की कोशिश करने लगी।
लेकिन मुकेश जी की मज़बूत पकड़ और मेरा प्रथम चुम्बन!

उफ्फ्फ!
होंटों पर ऐसा अहसास जिसका बरसों से इंतज़ार था।
और मैंने निढाल होकर उनके सीने पर अपना सर रख कर समर्पण कर दिया।

मेरे हाथ खुदबखुद उनकी कमर पर चले गए, अपना निर्वस्त्र जिस्म उनके बदन से जोड़ लिया, अपने होंटों से उनके होंटों को जोड़ लिया।

एक प्रगाढ़ चुम्बन.. उनकी जीभ का स्वागत मैंने मुँह खोल कर किया, उनकी गर्म जीभ को मैं चूसने लगी… दूसरे हाथ से उनके टी शर्ट को उतारने लगी।

मैं बहक गई उनके जिस्म से की आग से!

मुकेश जी अनुभवी थे, वो समझ गए कि मैं क्या चाहती हूँ, उन्होंने भी मेरा सहयोग किया।
कुछ पल में वो भी निर्वस्त्र थे, उन्होंने मुझे फूल की तरह उठा लिया, मेरी बाहें उनकी गर्दन से लिपट गई।

मैं निर्वस्त्र नर्म बिस्तर पर लेटी थी.. आँखें भारी थी… मेरी आँखों में निमंत्रण था!

मुकेश जी ने मेरे नंगे जिस्म पर एक भरपूर नज़र डाली.. मेरी नज़र उनके लंड पर थी, वो अभी भी अर्ध सुप्त अवस्था में था, गहरे काले रंग का लंबा मोटा लंड उसकी नीचे भारी से लटकते अंडकोष!
मेरी चूत बुरी तरह शर्मा कर आंसू छोड़ रही थी।

एक उतेज़ना सी मेरे जिस्म में दौड़ गई, पैरो में कंपकपाहट होने लगी, चूत में कुछ रेंगता सा महसूस हुआ।

मुकेश जी मेरे बगल में आ गए, मेरे उन्नत उभारों पर उनका हाथ, फिर उनका मेरी चूची को दबाना अच्छा लगने लगा, मैं मदहोश हो कर लिपट गई… उनको अपनी ऊपर खींच लिया, उनके बालों को पकड़ कर उनके होंटों को चूसने लगी।

मेरे होंठों ने उसके होंठों को अपना बना लिया और हमने एक लम्बा चुम्बन किया!

वाआह… क्या गर्म और रसीले होंठ थे मुकेश जी के… वो साथ दे रहे थे पर संयम के साथ!
एक लंबा चुम्बन, एक दूसरे की जीभ को चूसना, उनके हाथों का मेरे बदन पर फिरना… उफ्फ… वो पल मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूलूंगी।

उनके लंड को अपनी चूत के पास महसूस कर रही थी जो हर पल अपना आकार बदल रहा था… बड़ा, फिर और बड़ा, फिर और बड़ा सख्त सा…
मेरे हाथ खुदबखुद उनके लंड पर चले गए, मुकेश जी ने मेरे स्पर्श से सिसकारी भर कर अपनी ख़ुशी जाहिर की- ऊऊ ऊऊम्म्म!

‘म्म्म्म्माआह्ह…’ की सिसकारी मेरे मुख से निकली जब उनके हाथ मेरी चूत पर आये!
मेरा सांवला सा गदराया बदन इतना कामुक था कि मुकेश जी पागल हो उठे।

मैंने भी उचक के उनके लंड को अपनी चूत के संपर्क में आने दिया।

तभी वो झुके और मेरी अक्षत चूत पर अपने होंटों का स्पर्श दे दिया।

‘आआह्ह्ह… क्याआ आह्ह कर रहे ईईईई ऐ हो ओ!’ मैं कुनमुनाई… और सिसकारियाँ भरने लगी- आअह्हह ह्हह ऊम्म्म आआऊच्च्च ऊओह्ह!

‘आअह्ह ह्हह्हह जान्नन आआह्ह आअह्ह हह्हह…’ मैं आवाज़ कर रही थी और वो मेरी चूत को मुख में ले कर चूस रहे थे।
मैं पागल सी हो गई थी मेरी आवाज़ों से कमरा गूंजने लगा था।

मेरी चूत की ऊपरी हिस्से पर जो दाना था, उसे चाटा, सहलाया और हल्का काटने लगे तो मैं बहुत ज्यादा सिसकारियाँ भरने लगी ‘आह्ह ह्ह्ह्ह आआह्ह ऊम्मह्ह ह्ह्ह्ह ऊऊइई इइइस्स स्स्साआआह्ह्ह आह्ह!’

मेरे अंदर की कामनाएँ, अन्तर्वासना जग गई, बदन में चीटियाँ से दौड़ने लगी, होश में मैं नहीं थी, दिल कह रहा था कि उनका लंड मेरी चूत में समा जाये!

मेरा हाथ उनके सिर को अपनी चूत के अंदर दबा रहा था!
मैं ‘आअह ह्हह… आह्ह अह ह्हह…’ कराह रही थी आनन्द भरी सिसकारी भर रही थी।

मैं कांप सी गई, मेरे अंदर का लावा अचानक बाहर आ गया.. उनके सिर को मैंने अपने पैरों से जकड़ लिया कि वो साँस भी न ले सके।
उनके लिंग को मैंने हाथों से जोर से दबा दिया कुछ पल वैसे ही…
मुझे जिन्दगी का पहला आनन्द, परम आनन्द मिल गया!

मुकेश जी मेरे ऊपर आकर मेरे उभारों को मुख में भर कर चूसने लगे.. मेरे हाथ उनके लंड को सहला रहे थे।

अचानक उन्होंने मुझे बैठा दिया और खुद खड़े होकर मेरे होंटों पे लंड को दबा दिया।
मेरा मुख उस दबाव से खुल गया उनका लंबा और मोटा लंड मेरे मुख में घुसता चला गया।

मुकेश जी ने जोर सिसकारी भरी ‘आआह्ह आह्ह आअह्ह ह्हहह…’ मैं समझ गई कि बहुत आनन्द आया उनको!
वे मेरे सिर को पकड़ कर लंड को आगे पीछे करने लगे।

मेरे मुख की गर्माहट और गीलेपन ने उनके लंड को सख्त बना दिया था और गीला भी!

मैं उनके लंड को लॉलीपोप की तरह चूस रही थी, कभी लंड को मुख से निकाल कर पूरी जीभ से लंड चाट लेती!
कभी उनके लटकते अंडकोष को दबा कर मुख में भर कर चूसती।

मुकेश जी की सिसकारी.. उनके हाथों का कसाव मेरे बदन पर सब कुछ अच्छा लग रहा था।

तभी मुकेश जी ने लंड मेरे मुंह से निकाल लिया, मुँह की लार से चमकता लंड से बहती लार…

कहानी जारी रहेगी।
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कहानी का अगला भाग: गाँव की कुसुम और उसकी आपबीती-3

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