पुश्तैनी गाँव में चुदाई का मजा- 1
(Pure Desi Indian Chut)
प्योर देसी इंडियन चूत मुझे मिली हमारे गाँव में हमारे खेतों में काम करने वाली एक गर्म जवान भाभी की. उसका पति शहर गया हुआ था पैसा कमाने!
नमस्कार दोस्तो,
मैं आपका दोस्त आज़ फ़िर से आपसे मिलने आया हूँ मेरे एक नयी कहानी के साथ!
मुझे आशा है कि मेरे पिछली कहानी
दूसरी अम्मी ने अब्बू की गांड मारी
की तरह आप इस बार भी मेरी कहानी को पसंद करोगे.
यह बात उस समय की है जब मैं भारत में अपने गाँव कोल्हापुर में था.
20-21 साल की उम्र थी और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते करते मैं हमारे खेतों का काम भी करता था.
वैसे तो हम कई पीढ़ियों से ख़ेती करते आ रहे थे पर गाँव के मुख़िया का पद मेरे बाबा ने अपने व्यक्तित्व से कमाया था.
चूँकि हम ज़मीनदार भी थे और मुख़िया भी तो ज़ाहिर से हमारा रूतबा था गाँव में!
और जैसे जैसे मैं बड़ा होने लगा, मुझे इस बात का बड़ा फ़ायदा मिलता चला गया.
सभी लोग मेरे बाबा को ‘मालिक़’ के नाम से बुलाते और मुझे ‘छोटे मालिक़’.
मुखिया का पद मिलने के कारण पिताजी को खेतों की तरफ ध्यान देना कठिन होने लगा तो उनकी आज्ञा से मैंने पढ़ाई के साथ साथ खेती के काम पर भी ध्यान देना चालू किया.
जैसे जैसे दिन बीतते गए, सारे खेत मजदूरों से अच्छे से मेरी दोस्ती हो चुकी थी पर उस दोस्ती में भी एक अदब था.
उनको पता था कि मैं कितना भी खुले दिल से उनके साथ व्यवहार करूँ … पर हूँ तो मालिक ही.
खेती में काम करने गांव की कई सारी महिलाएं भी आती थी.
अपनी पढ़ाई करते करते मैं उनसे बातें भी कर लेता और इसी दौरान मुझे पता चला की दामू की लुगाई सक्कू बाई कुछ मुझे में ज़्यादा ही रूचि ले रही है.
दामू भी पहले हमारे खेतों में ही काम करता था पर ज़्यादा पैसे कमाने के चक्कर में अब वह शहर जाकर वहाँ नौकरी करने लगा था.
मुझे सक्कू के चाल-चलन से साफ़ पता चल रहा था कि वह अपने पति के दूर होने के कारण वासना की आग से झुलस रही है.
सक्कू शादीशुदा और 2 बच्चों की माँ थी तो इस कारण उसका शरीर भरा हुआ था.
खेतों में काम करते हुए कई बार मैंने देखा है कि उसके मांसल चूचे उसका ब्लाउज फाड़ कर बाहर आने के लिए तैयार रहते थे.
सक्कू के चूतड़ इतने बड़े नहीं थे.
पर जब भी वह चलती तो साली उसकी मटकती गांड देख कर मेरे लौड़े में एक अजीब सी आग लगती थी.
सब मिलजुल कर हाल यह था कि सक्कू एक भरे हुए बदन वाली औरत थी जिससे सम्भोग करने के लिए कोई भी मर्द आसानी से तैयार हो जाता.
सक्कू का मेरे प्रति व्यवहार देख कर मुझे समझ आ चुका था कि उसने मेरे जैसे जवान लड़के से अपनी प्योर देसी इंडियन चूत चुदवाने का मन बना लिया है.
तो मैंने सोचा कि क्यों ना मैं ही इस बहती गंगा में डुबकी लगा लूँ?
जब भी मौका मिलता … सक्कू जानबूझकर अपना पल्लू मेरे सामने ढलका देती, उसके गुब्बारे जैसे फूले चूचे दिखाकर वह मुझे अपने तरफ आकर्षित करने का प्रयास करती.
कभी मेरी छाती सहलाकर तो कभी मेरा हाथ पकड़ कर वह मुझे बिल्कुल चिपक कर बैठ जाती ताकि उसके गदराये बदन के गर्मी से वह मुझे अपने तरफ खींच सके.
मैं भी कभी उसकी पीठ सहला देता, कभी उसका हाथ अपने हाथ में लेकर प्यार से चूम लेता तो कभी उसकी कमर पर हल्की से चुटकी काट लेता.
चूँकि मैं जमीनदार का बेटा था तो मुझे ये सब काम ऐसे समय पर करने पड़ते जब कोई हमारे आस-पास ना हो, क्यूंकि अगर इसकी भनक मेरे पिताजी को चलती तो वह मुझे जिंदा कुचल देते.
सक्कू को भी अपने इज्ज़त की चिंता थी इसिलए वह भी मेरे साथ तभी मज़ाक-मस्ती करती जब सारे मजदूर दोपहर का खाना खाने अपने अपने घर चले जाते.
धीरे धीरे हम दोनों की शरारत बढ़ने लगी.
अब तो सक्कू सीधा आकर मेरे गले लगती और मेरे गालों को छूकर चूम लेती.
और उसकी इस हरकत का असर मेरे जवान हो रहे शरीर पर पड़ने लगा था.
मैं भी अब ख़ुल कर अपने लौड़े को उसके सामने मसल देता.
जब भी वह मेरे करीब बैठती तो मैं उसकी जांघों को सहला देता और कभी मेरा हाथ जान बूझकर उसके चूचियों की तरफ ले जाकर उनको हल्के से मसल देता.
कुछ दिन तक तो हमारा ये बदन से बदन रगड़ने का खेल चलता रहा.
पर एक दिन वह अपने आप पर काबू नहीं कर सकी.
जब सारे मजदूर खाना खाने अपने घर चले गए तो सक्कू मेरे कमरे में आयी और हर रोज की तरह मेरे गले लगते हुए सीधा मुझे चूमने लगी.
माफ़ करना, मैं बताना भूल गया किहमारे खेतों में पिताजी ने एक मक़ान बना रखा है जो कभी वे इस्तेमाल करते थे.
पर अब चूँकि मैं खेतों के काम के साथ साथ पढ़ाई भी करता था उन्होंने वह मक़ान का ताबा (अधिकार) मुझे दे दिया था.
सक्कू के इस अचानक हुए हमले से मैं एक बार तो मैं हैरान हो गया.
पर अगले ही पल मैंने अपने आप को सम्भालते हुए सक्कू को अपने आगोश में ले लिया.
सक्कू जैसे शायद आज सब कुछ करने की मन में ठान के आयी थी, उसने आव देखा ना ताव और सीधा अपना हाथ मेरे पतलून के ऊपर ले जाते हुए मेरा लौड़ा सहलाने लगी.
मैं भी अपने दोनों हाथ उसके गर्दन पर ले जाते हुए उसके ओंठ चूमने लगा.
उसका गदराया हुआ देसी बदन अपने हाथों से मसलते हुए मैंने भी उसकी गांड को उसके साड़ी के ऊपर से ही दबाना चालू किया.
हम दोनों बिना कोई बात किये एक दूसरे को सहलाते जा रहे थे.
हमारी जीभ एक दूसरे से लड़ने लगी और इस कामक्रीड़ा के परिणाम स्वरूप अब मेरे लंड ने धीरे धीरे खड़ा होना चालू किया.
सक्कू भी मेरे आगोश में आकर आहें भरने लगी थी.
उसके बदन से निकलती गर्मी से साफ़ पता चल चुका था की उसके वासना ने आज अपनी साऱी सीमाएं लाँघ दी है.
सक्कू को अपने पति दामू से अब वह सुख नहीं मिल रहा था जो हर औरत अपने पति से चाहती है.
वह है सम्भोगसुख!
आज वह इस सुख को अपने तरीके से पाना चाह रही थी.
मेरी जीभ को अपने मुँह में भरते हुए अब सक्कू ने अपना एक हाथ मेरे पतलून के अंदर घुसा दिया, मेरे कच्छे की बाधा पार करके उसके झट से मेरे लंड को अपने मुट्ठी में लिया.
आप ही सोचो दोस्तो, अगर एक 35-37 साल की औरत एक 20 साल के लड़के का लौड़ा खुद अपने हाथों में लेकर सहला दे तो उस लड़के की हालत क्या हो सकती है.
सक्कू ने जैसे ही मेरे लौड़े को सहलाना चालू किया … मैं अपने होश खो बैठा, मैं उसका पल्लू नीचे खींचते हुए अपने दोनों हाथों से उसका ब्लाउज खोलने लगा.
गांव में ज़्यादातर महिलायें ब्रा या कच्छी का कम ही इस्तेमाल करती है और अगर गरीब घर से हो तो नामुमकिन के बराबर ही था.
सक्कू ने भी ब्रा न पहनने के कारण अगले ही पल उसके भरे हुए पपीते मेरे सामने नंगे हो चुके थे.
थोड़े से ढीले थे पर उनकी गोलाई बड़ी ही मनमोहक थी.
बड़े होने की वजह से वे थोड़े झूल रहे थे पर उनकी मादकता में कोई कमी नहीं थी.
मैंने सक्कू को चूमना बंद करते हुए थोड़ा पीछे किया और झुकते हुए उसके दोनों आमों को हल्के हल्के चूमने लगा.
बड़े दिनों बाद मिल रहे मज़े से अब सक्कू सिसकने लगी और उसके हाथ मेरे बालों में आकर मेरा मुँह उन पपीतों के ऊपर दबाने लगे.
उसका दायां चूचा हाथ से मसलते हुए बायां चूचा मैंने अपने मुँह में भर लिया और धीरे धीरे उसको चूसने लगा.
इस वजह से उसके चूचुक मुझे मेरे मुँह में फूलते हुए अनुभव हो रहे थे.
कभी दायां तो कभी बायां चूचा चूसते हुए मैं सक्कू को मेरे दूसरे कमरे में रखे बिस्तर की तरफ़ ले गया.
एक दूसरे के कपड़े उतारने में हम दोनों में झटपट होने लगी.
सक्कू की साड़ी उसके बदन से अलग करते हुए मैंने उसके चूचे सहलाता रहा तो उसने भी मेरी कमीज़ निकालते हुए मेरे लौड़े को पतलून से आजाद कर दिया.
उसको आधी नंगी करके मैंने बिस्तर पर धकेल दिया.
आधे खुले ब्लाउज से आजाद उसकी नंगी चूचियाँ मेरे मर्दानगी को ललकार रही थी.
मैंने अपनी पतलून उतार दी और झट से उसके ऊपर कूद पड़ा.
फिर से मैं उन दो मनमोहक चूचियों को चूसते हुए सक्कू को अपने नीचे दबाता चला गया.
अबकी बार मैं पूरे जोश से उन दुधारू कलशों को अपने मुँह में लेकर पीने लगा तो सक्कू मज़े के मारे और ज़्यादा सिसकारने लगी.
सक्कू का सीना चूसते हुए अब मैंने उसके साये की डोरी एक हाथ से खोल दी.
तब सक्कू ने खुद अपनी गांड ऊपर करते हुए अपना साया नीचे खिसका दिया.
मेरा अंदाजा इस बार भी सही साबित हुआ.
वासना में जलती सक्कू ने ना तो ब्रा पहनी थी और ना ही कच्छी.
जितने आवेश में आकर उसने अपना साया नीचे सरकाया, उतने ही जोश से उसने मेरे कच्छे को भी नीचे खींच कर मेरा लौड़ा नंगा कर दिया.
मेरे लौड़े को आश्चर्य से घूरते हुए उसने मेरे आँखों में देख कर कहा- वाह छोटे मालिक, आप तो अभी से मर्द बने घूम रहे हो? लगता है आज सच में मुझ अभागन के भाग खुलने वाले हैं.
मैंने भी सक्कू के बाल पकड़ते हुए उसका मुँह मेरे लौड़े की तरफ़ करके कहा- आज सिर्फ तेरे भाग ही नहीं सक्कू, आज तेरे चूत का धागा धागा खुलने वाला है रंडी, चल चूस अच्छे से से कुतिया! बहुत दिनों से देख रहा हूँ तुझे साली चुदने के लिए मरी जा रही है तू मादरचोद!
बिस्तर पर नंगी बैठ कर सक्कू ने बिना कोई शिकवे के मेरे लौड़े को अपने हाथों से सहलाया, धीरे से एक चुंबन लेते हुए वह अब मेरे लौड़े पर अपनी जीभ घुमाने लगी.
मेरे सुपारे को अपनी जीभ से चाटते हुए धीरे धीरे वह पूरा लौड़ा निगलती गयी.
उसके गर्म गर्म मुँह की मालिश से लौड़े ने भी फूलना चालू किया.
कभी मेरा लौड़ा तो कभी मेरे गोटे अपने मुँह में भरती हुई सक्कू भुकी कुतिया की तरफ मेरे लौड़े पर टूट पड़ी.
मैंने भी अपने हाथ नीचे ले जाते हुए सक्कू की चूचियों और उनकी घुंडियों को मसलना चालू कर दिया.
उसकी पीठ को सहलाते हुए बिस्तर से नीचे आकर खड़ा हुआ तो वह बिस्तर पर कुतिया की तरफ़ झुकते हुए मेरा लौड़ा चूसने लगी.
उसके गदराये हुए पीठ और गांड पर हाथ फेरते हुए मैंने कहा- आआअह साली रंडी सक्कू, क्या मस्त चूसती है तू माँ की लौड़ी, पूरा ले मुँह में छिनाल!
आंखें बंद करके मैं अपना लौड़ा सक्कू के मुँह में पेलने लगा.
मुझे अनुभव हो रहा था कि लौड़ा लगभग पूरा ही सक्कू के मुँह में घुसकर उसे गले तक चोट कर रहा है.
पर हम दोनों की आग इस कदर बढ़ चुकी थी कि ना तो उसने इस बात का ज़िक्र किया और ना ही मुझे उसकी पीड़ा दिखाई दी.
मैं तो सिर्फ अपनी हवस मिटाने के चक्कर में था.
कुछ देर तक मैंने इसी तरह उसका मुँह चोदना चालू रखा … पर आखिरकार उसकी हिम्मत ने जवाब दे दिया और खांसते हुए उसने मेरा लौड़ा मुँह से बाहर निकाला.
आंखें खोलकर जब मैंने उसको देखा तो उस बेचारी की आँखों से पानी निकल रहा था, उसके थूक से मेरा लौड़ा बिल्कुल गीला होकर चमक रहा था और मुझे उसकी इस हालत पर बड़ी दया आयी.
मैं झट से सक्कू के सामने बैठा और बोला- माफ़ करना सक्कू, जोश जोश में कुछ ज़्यादा ही तकलीफ दी मैंने तुझे!
सक्कू ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा- अरे छोटे मालिक, आप क्यों माफ़ी मांग रहे हो. मुझे तो ऐसे ही मर्द पसंद हैं जो औरत को रौंद कर चोदें … वरना एक नपुंसक है मेरे घर में … भोसड़ी का किसी काम के लायक नहीं!
मुझे इस बात की भनक पहले ही हो चुकी थी कि शहर में गया उसका मर्द दामू अब सक्कू की हवस शांत नहीं कर पा रहा था और इसीलिए आज वह मेरे सामने ऐसे रंडियो की तरफ नंगी हुई थी.
अपने पति की नामर्दगी से परेशान सक्कू ने आज अपना यौवन एक पराये मर्द के सामने न्यौछावर कर दिया था.
अपने बदन की गर्मी को ठंडा करने का ज़िम्मा मेरे ऊपर सौंपते हुए वह मदहोश होकर लौड़ा चूस रही थी.
सक्कू ने अपने से लगभग आधे उम्र के लड़के का लौड़ा चूस चूस कर अपनी हवस बिना बताये ही ज़ाहिर कर दी थी.
उसकी आँखों में वासना और प्यार दोनों के भाव साफ़ दिखाई दे रहे थे.
पर अब बारी मेरी थी, सक्कू की जवानी का रस मुझे भी चखना था.
तो मैं उसे बिस्तर पर लेट जाने का इशारा करते हुए खुद ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गया.
मैंने उसका आधा खुला साया निकालते हए उसे पूरी नंगी कर दिया.
तो उसने खुद अपने पैर फ़ैलाते हुए मुझे अपने ख़जाने का दरवाज़ा दिखाया.
वासना की आग से झुलसती सक्कू का बदन कब का तपने लगा था, उसकी प्योर देसी इंडियन चूत अच्छी ख़ासी गीली होकर अपना रस छोड़ने लगी थी.
पहले तो मैं अपने दोनों हाथों से चूत की पंखुड़ियाँ खोलते हुए चूत का जायज़ा लेने लगा, लाल रंग की दीवारों के बीच में एक गुलाबी रंग का दाना मेरे सामने खुलकर बाहर आया.
एक उंगली से मैंने सक्कू के चूत का दाना सहलाया तो सक्कू ‘आअह्ह मालिक’ कहती हुई थरथर काँप उठी.
धीरे धीरे मैं उस मोहक कामरस से भरी नदी की तरफ अपना मुँह लेने लगा और उस गीली चूत की खुशबू मेरे नाक में घुलती चली गयी.
झट से मैंने सक्कू की चूत को चूमते हुए कहा- क्या बात है सक्कू, कितनी प्यारी चूत है तेरी मेरी जान, आज तो जी भरके रस पिऊँगा साली तेरा!
सक्कू ने भी मेरे बालों को सहलाते हुए मेरा मुँह अपनी भोसड़ी पर दबाते हुए कहा- इसश हहह मालिक, आज से रोज ये सक्कू आपको मेरा रस पिलाएगी, चाटो ना मेरे मालिक उफ्फ छोटे मालिक!
मैं भी बिना देर किये उसके भोसड़ी पर टूट पड़ा.
धीरे धीरे अपनी जीभ से उसकी फुद्दी चाटते हुए मैंने जीभ उसके फटे हुए भोसड़े में घुसा दी.
मेरा मुँह अब सक्कू का भोसड़ा अपने कब्जे में ले चुका था.
दाँतों से उसके दाने को काटते हुए मैं पूरी जीभ अंदर घुसा कर जोर जोर उसका भोसड़ा चूसने लगा.
सक्कू की चूत मैं बिल्कुल वैसे ही चूस रहा था जैसे कोई पका हुआ आम चूसकर उसका रस निकालता है.
धीरे धीरे अब सक्कू की चूत के रस से मेरे मुँह को नमकीन बना दिया.
सक्कू किसी रंडी की तरह सिसकार सिसक कर अपनी कमर ऊपर नीचे हिलाते हुए मेरा मुँह अपनी फुद्दी पर दबाने लगी.
देसी गाँव की होने के कारण वह कुछ ज़्यादा बोल नहीं रही थी पर बीच बीच में उसके वासना से भरे बोल मेरे कानों पर पड़ रहे थे.
अपनी चूत मेरे मुँह पर दबाते हुए सक्कू बोली- आआह ऐसे ही बाब्बू उउउउ एस्ससे सीई ही करो नंन्न खा जा … मेरी भोसड़ी बेहेनचोद आअह्ह ह माँआ आआआ मर गईइ इइइइ!
उसके मुँह से निकलती गालियों से साफ़ पता चल रहा था कि सक्कू कामवसना में बेसुध हो कर मजे ले रही थी.
उसकी फुद्दी से आती सुगंध मेरे नाक में घुल रही थी.
उसके मुँह से ऐसी ऐसी गालियां निकल रही थी जो मैंने कभी ऐसी गालियां किसी औरत के मुँह से नहीं सुनी थी.
पर उन ग़ालियों का मेरे ऊपर कुछ ऐसे असर हो रहा था कि मैं और जोश और हवस से उसकी चूत पर टूट पड़ा और जीभ के साथ साथ मैंने अपनी दो उँगलियाँ भी सक्कू के भोसड़े में घुसा दी.
मेरा लंड भी इस कदर तन चुका था कि नसें फूलकर साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी.
और इस वजह से मुझे थोड़ा मेरे लौड़े में दर्द भी होने लगा था.
मुझे लगा कि अगर सक्कू मेरे लौड़े को चूस दे तो शायद दर्द कुछ काम हो जाए.
इसीलिए मैं विपरीत दिशा में घूमकर उसके ऊपर लेट गया.
मेरे लौड़े को उसके मुँह पर दबाते हुए मैंने कहा- ले मेरी रांड, तू भी कुछ काम कर छिनाल, साली खुद मजे ले रही है मादरचोद कुतिया, मेरा लौड़ा क्या तेरी माँ चूसेगी?
मेरे लौड़े को हाथों से सहलाते हुए उसने चूमा और बोली- मालिक, आपके लौड़े को देख कर मेरी माँ बहन ख़ुद आ जाए चुदवाने! कसम से आज पहली बार इतना तगड़ा लौड़ा देखा है और वह भी इतने कम उम्र के लड़के का!
बस इतना बोलते ही उसने फिर से मेरा लौड़ा अपने मुँह में भर लिया.
इस बार मैं उसके ऊपर होने के कारण मुझे उसका मुँह चोदने में आसानी हो रही थी.
सक्कू का मुख मैं ऐसे चोद रहा था जैसे कोई चूत हो!
पर वह बिना कोई शिकायत के मेरे लौडे से अपना मुँह चुदवा रही थी.
मैं भी अपना मुँह उसके चरबीदार जांघों के बीच घुसाते हुए उसकी भोसड़ी चाटने लगा.
मेरी ज़ीभ पूरी की पूरी सक्कू की चूत में घुस चुकी थी.
उसकी जांघें इतनी नर्म थी कि मैं उनको आटे की तरह गूँथ रहा था.
चूत को चूसते चूसते मैं बीच बीच में उन चरबीदार जांघों को भी कस के चूस रहा था.
मेरे चूसने से उसकी चूत और जांघें लाल हो चुकी थी, जग़ह-जग़ह काटने के और चूसने के निशान बनते जा रहे थे.
हम दोनों एक दूसरे को भूखे भेड़ियों की तरह चूस चाट रहे थे.
सक्कू की चूत का नमकीन पानी पीने में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था और मेरे लंड से निकलती चिपचिपे पानी का स्वाद वह पूरे मन से चख़ रही थी.
बहुत देर तक मैंने सक्कू की चूत को चाट कर तो कभी उँगलियों से क़ुरेद क़ुरेद कर चुदाई के लिए तैयार कर दिया.
तो उसने भी अपने थूक से मेरे लंड को अच्छे से चिकना कर दिया.
सक्कू की सिसकारियाँ सुनकर और चूत का गीलापन देख कर मुझे पता चला कि अब यह रंडी मेरा लौड़ा अपने भोसड़े में लेने के लिए बिल्कुल तैयार हो चुकी है.
प्रिय पाठको, आपको प्योर देसी इंडियन चूत चाटने का मौका कभी मिला क्या?
आप इस कहानी पर अपने विचार मुझे बताएं.
मानस पाटिल
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प्योर देसी इंडियन चूत की कहानी का अगला भाग: पुश्तैनी गाँव में चुदाई का मजा- 2
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