गुड़िया से बन गई चुदक्कड़ मुनिया-1

गुड़िया 2008-07-31 Comments

प्रेषिका : गुड़िया
संपादक : मारवाड़ी लड़का

सबसे पहले अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा प्रेम भरा प्रणाम!

मेरा नाम गुड़िया है और मैं पंजाब की रहने वाली हूँ। जिला मैं नहीं बता सकती, सिर्फ इतना जान लीजिये कि मैं “मस्त पंजाबन” हूँ। मेरे गाँव के लड़कों ने मेरा नाम ट्रैक्टर की ट्राली रख दिया है। वे कहते हैं कि मैं उनमें से हूँ जिसे कोई भी, कभी भी अपने ट्रैक्टर के पीछे डाल कर ले जा सकता है। मुझे उनके ऐसे कटाक्ष हमेशा ही रोमांचित करते रहते हैं।

मेरी ख़ूबसूरती देखते ही बनती है। अपने मुँह से खुद की तारीफ तो नहीं करनी चाहिए, मगर मुझे ऐसा ही जिस्म मिला है। रंग मेरा गोरा नहीं बल्कि सांवला है, मगर ऊपर वाले ने जो जिस्म मुझे दिया है, जिस सांचे में मुझे बनाया है, उस पर हर गबरू जवान मरता है। पतली सी बलखाती कमर है मेरी! दिलों को हिला के रख देने वाले मस्त गोल गोल उभरे हुए चूतड़! जी हाँ पूरे गोल-गोल, मानो किसी ने दो खरबूजे रख कर उस पर पैंटी डाल दी हो। मगर इन्हें कौन समझाए कि मेरे पास तो यह कुदरत की देन है। मेरे मम्मे देख कर अगर किसी जवान का हथियार खड़ा ना हो तो मेरा नाम गुड़िया नहीं।

हर मर्द, हर लड़का, यहाँ तक कि बुजुर्ग भी मेरी मारना चाहतें हैं। मैंने भी शुरू से ही जवानी के मजे दोनों हाथ खोल कर चखवाए हैं और मजे लिए हैं।

बात उन दिनों की है जब हम गाँव में रहते थे। आप सभी तो जानते ही हैं कि गाँव में रहकर जवानी दबाये नहीं दबती। पापा और चाचा जब से जर्मनी गए थे, तब से ही मैंने घर में कई ऐसे दृश्य देखे जिन्हें एक लड़की को अपनी शादी के बाद देखने चाहिए। माँ और चाची दोनों का तो आवा ही औता था, बाकी तो आप समझ ही गए होंगे।

हम तीन बहनें और दो भाई हैं। मेरा एक भाई मुझसे डेढ़ साल बड़ा है और एक भाई हम भाई बहनों में सबसे छोटा है। बड़ा भाई डलहौजी हॉस्टल में था और छोटा भाई एक अच्छे स्कूल में पढ़ता था। मगर हम लड़कियों को सरकारी स्कूल में डाला गया था। मेरी चाचाजी की भी दो लड़कियाँ और एक लड़का है जो के डलहौजी हॉस्टल में पढता था। हमारी गाँव में पुश्तैनी जायदाद है और काफी अच्छा काम धंधा है।

हम बहनों को घर के कामों में हाथ बंटाना पड़ता था। हम सभी के काम बाँध दिए गए थे। जैसे कि खेतों में काम कर रहे लोगों के लिए खाना बनाना व चाय बनाना आदि। वैसे तो सारे मजदूर खाना लेने खुद ही आते थे मगर कभी कभी खेतों में जाकर चाय पानी पहुँचाना भी पड़ता था। इसलिए हम बहनें बारी बारी से खेतो में जा कर चाय पानी पहुंचा आते थे। एक दो बार ज़ब में खेतो पर गई तो मैंने गौर किया कि सबकी नज़र मेरी छाती पर ही रहती थी, जो इतनी कम उम्र में विकसत हो रही थे। उनकी तिरछी नज़र से मेरे जिस्म में अजीब सी सिहरन उठने लगती थी। अब तो खेतों में काम कर रहे लोग मुझ पर कटाक्ष भी कसने लगे थे। मुझे यह सब बड़ा अच्छा लगता था।

मैंने एक बार एक जवान मजदूर के साथ चाची को गन्ने के खेतों में और मोटर वाले कमरे में घुसते भी देखा था और अब उसी जवान मजदूर की नजरें माँ और चाची की जवान हो रही बेटियों पर जाने लगी थी।

मेरी बड़ी बहन के तो कुछ लड़कों के साथ चक्कर चल पड़े थे। यह सब देख देख कर मेरा भी मन मचलने लगा था और मेरा दिमाग गन्दा हो चुका था। अक्सर जब हम बहनें अकेली होतीं तो आपस में लिपट लिपट कर अपने मम्मे दबवाने और दबाने के मजे लेतीं थी, मेरी बड़ी बहन और मेरे चाचा जी की बड़ी लड़की को तो मैंने कई बार एक दूसरे की चूत पर हाथ फेरते भी देखा था, वे दोनों एक दूसरे के दानों को चुटकी में ले कर मस्ती के साथ रगड़ने लगती थी और यह करते समय उनकी आँखें मुंद जाती थी। यह सब देख कर मेरे भीतर भी वासना की हलकी चिंगारी लग चुकी थी।

एक दिन में खेतों में मोटर पर काम कर रहे मजदूर को चाय और खाना पकड़ाने गई। वो उस दिन अकेला था और भैंसों के लिए चारा कुतर रहा था। मुझे देख कर उसने मशीन बंद कर दी और मेरी तरफ खाना लेने आया। मगर यह क्या उसने तो खाना पकड़ने के बहाने मेरी कलाई ही पकड़ ली।

मैंने कहा- यह क्या कर रहे हो?
वो बड़े ही अल्ल्हड़पन के साथ बोला- तेरी कलाई पकड़ कर देख रहा हूँ कि जवानी वाली चमड़ी आई भी है या नहीं!

मैं छटपटा कर उससे अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी मगर उसने खाने का डिब्बा किनारे रख कर मुझे अपनी तरफ खींचा।
मैंने उससे विनती करते हुए कहा- जाने दे मुझे, रब के वास्ते जाने दे मुझे!
वो बोला- चली जाना, आज तेरे घर पर कोई भी तो नहीं है। सब तो शादी में गए हुए हैं। तू अकेली वहाँ क्या करेगी?

और इतना कहते हुए उसने मेरे उभरते हुए अनारों को ऊपर से रगड़ा और मुझे बाँहों में जकड़ लिया और मेरे होंठ चूमने लगा।
मैं इस अकस्मात् हमले को झेल नहीं पाई.. हालाँकि मुझे इन सब चीजों का ज्ञान था मगर सम्भोग के बारे में मेरा ज्ञान अभी पूरा नहीं था।
मैंने उससे विनती करते हुए फिर से कहा- कालू जाने दो! मुझे वरना मैं माँ को बता दूँगी।
वो मेरे उभारों को दबाते हुए बड़बड़ाया- चुप कर साली! वो कौन सी दूध की धुली हैं। तेरी माँ और चाची दोनों को ठोंक चूका हूँ और वो भी उनकी पहल पर!

फिर उसने मेरी कमीज के बटन खोलते हुए कहा- अभी कुछ नहीं करूँगा बस ऊपर से ही एक बार मजे लेने दे। मैंने इतनी कच्ची उम्र की कलि को कभी नंगा नहीं देखा है। देर ना कर और मुझे ऊपर से ही हलके फुल्के मजे लेने दे।”

इतना कहते हुए उसने मेरी कमीज उतारनी शुरु कर दी और फिर एक ही पल में उसने मेरी कमीज को मेरे शरीर से अलग कर दिया।
मैंने अपने अनारों पर अभी ब्रा डालनी शुरू नहीं किया था ,इसलिए कमीज के नीचे कुछ भी नहीं था।

मेरे उभरते हुए अनारों को देखते ही उसका मुंह खुला का खुला रह गया और उसने कहा- हाय कितनी मस्त है तेरी जवानी!

जब उसने मेरे दाल के दाने जैसे चुचूक को चुटकी में लेकर मसला तो मानो मुझे स्वर्ग का मजा मिल गया। उसने अपना सर झुका कर अपने होंठों से मेरे चुचूक चूसने शुरू कर दिए। मेरे तीस इन्ची अनार उसके मुंह में पूरे आ रहे थे। वो कमाल कर रहा था। मुझे बहुत बहुत बहुत ही ज्यादा मजा आ रहा था। जी हाँ दोस्तो, इतना मजा तो मुझे आज भी नहीं आता जितना मजा मुझे उस पहली बार में आया था।

मैं उसके बालों में हाथ फेर रही थी और वो मेरे चुचूक चूस रहा था। मेरे लिए यह एक नया अनुभव था। उसने चुचूक चूसते हुए सलवार का नाड़ा खींच दिया और मेरी सलवार नीचे सरक गई। मैंने आज सलवार के नीचे भी कुछ नहीं पहना था। हल्के भूरे बालों से भरी मेरी गुलाबी होंठों वाली चूत देख उसका बुरा हाल हो गया। और जब उसने मेरी चूत के होंठ को अलग कर उस पर हाथ फेरा तो
हाय!!!!
मैं क्या बताऊँ, मैं सिसकने लगी…

उसके बाद क्या हुआ?
क्या वो उस दिन सिर्फ ऊपरी मजे ले कर मान गया??
उसके बाद क्या हुआ जानने के लिए इंतज़ार करें मेरी कहानी के दूसरे भाग का।
तब तक अपनी राय मुझे मेल जरूर करें।
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