मेरा गुप्त जीवन- 21
(Mera Gupt Jeewan-21 Nai Ladki Basanti Mere Kamre Me soyi)
This story is part of a series:
-
keyboard_arrow_left मेरा गुप्त जीवन- 20
-
keyboard_arrow_right मेरा गुप्त जीवन- 22
-
View all stories in series
नई लड़की बसन्ती मेरे कमरे में सोई
पहले चम्पा और अब फुलवा दोनों ही गर्भवती हो गई तो मुझको ऐसा नहीं महसूस हुआ कि उन दोनों को गर्भवती करने में मेरा कोई रोल है लेकिन एक दिन चम्पा और फुलवा मुझको मिलने आई उसी कॉटेज में, दोनों के चेहरे चमक रहे थे और दोनों बेहद खुश थी।
चम्पा का चौथा माह चल रहा था और फुलवा अभी तीसरे माह में थी, दोनों ही मेरा आभार प्रकट कर रही थीं लेकिन मैं नहीं मान रहा था कि दोनों को गर्भवती मैंने बनाया है। मैं उनके पतियों को ही अपनी पत्नियों को गर्भवती करने का पूरा श्रेय देता था।
अब बिन्दू के साथ मेरा काम वासना का खेल चलने लगा। पहले वो मुझको फुलवा के साथ बंटाती थी लेकिन अब वो अकेले ही मेरे साथ यौन क्रीड़ा करने लगी।
मैं भरसक कोशिश करता कि मैं बिन्दू के अंदर न छुटाऊँ लेकिन कभी कभी थोड़ा सा पानी उसकी चूत में छूट जाता था। मुझको डर लगा रहता था कि कहीं वो गर्भवती न हो जाए।
बिन्दू अब काफी ज़ोर डालने लगी थी कि चंदा को भी चोदा करूँ!
‘कहाँ चोदूँ उसको?’
‘वहीं उस कॉटेज में और कहाँ!’
मैं चंदा से डरता था क्यूंकि वो उम्र की 24-25 की थी और दूसरे वो अपनी उम्र से बड़ी लगती थी। उसकी शक्ल में भोलापन नहीं था। बिन्दू के मन में शायद उसको मेरे से गर्भवती करवाने का प्लान था जो मुझको मंज़ूर नहीं था।
तभी चंदा ने कुटिल चाल खेली, वो अपनी कुंवारी छोटी बहन को मेरे पास भेजने की कोशिश करने लगी।
वो भी मैं ने मंज़ूर नहीं किया।
अब बिन्दू ने मुझको कहना छोड़ दिया और खुद मुझसे रोज़ चुदती रहती थी।
नतीजा निकलने में कुछ दिन ही बचे थे कि पड़ोस के गाँव से एक औरत अपनी लड़की के साथ मेरी मम्मी से मिलने आई।
बाद में पता चला वो अपनी लड़की को नौकरी दिलवाने मम्मी के पास आई थी।
मैं इस बात को भूल गया लेकिन एक दिन बिन्दू नहीं आई क्यूंकि उसको बुखार चढ़ा था।
दोपहर को मम्मी किसी लड़की को लेकर आई और बोली- सोमू, यह नई लड़की आई है और मैंने इसको रख लिया है। यह घर का थोड़ा काम देख लिया करेगी। लेकिन 2-3 दिन बिन्दू नहीं आ पायेगी क्यूंकि उसको बुखार हो गया है इसलिए यह तुम्हारा काम देखा करेगी जब तक बिन्दू नहीं आती। ठीक है न?
मैं बोला- ठीक है मम्मी !
‘इसका नाम बसंती है। और देख बसंती, तू छोटे मालिक से पूछ लेना कि क्या काम करवाना है, वो बता दिया करेंगे।’
यह कह कर मम्मी तो चली गई।
बसंती वहीं पर खड़ी रही।
मैंने देखा, एक पतले जिस्म वाली 18-19 साल की लड़की सामने खड़ी थी, रंग गंदमी लेकिन चेहरा पतला और बाकी शरीर धोती ब्लाउज में ढका था तो पता नहीं चला कि उसके मम्मे और नितम्ब कैसे हैं।
यानि कुल मिला कर मैं कोई ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ था इस नई लड़की से।
मैंने उसको छोटे मोटे काम बता दिए और अपने बिस्तर पर लेट गया।
शाम को वो चाय लेकर आई तो उससे बात करने की कोशिश की लेकिन वो ज्यादा उत्साहित नहीं दिखी तो मैंने भी उसको परेशान करना उचित नहीं समझा।
रात को खाने के बाद वो डरते हुए कमरे में आई और चुपचाप चटाई बिछा कर और चादर लेकर लेट गई।
तब मैंने उस का डर दूर करने की खातिर बात शुरू कर दी।
उसने बताया कि वो बगल के एक गाँव में रहती है और 5 जमात तक स्कूल में पढ़ी है और अब अपनी माँ का हाथ घर के काम में बटाती है। उसकी एक छोटी बहिन भी है और एक छोटा भाई भी है, दोनों स्कूल जाते हैं।
रात सोते समय हम कभी कमरे की पूरी लाइट ऑफ नहीं करते थे लेकिन नाईट बल्ब जला कर रखते थे।
अचानक मेरी नींद रात में खुली तो देखा की बसंती का हाथ चादर के अंदर हिल रहा था। ध्यान से देखा कि उसकी आँखें बंद थी लेकिन उसका दायां हाथ उस की चूत के ऊपर हिल रहा था।
मैं समझ गया कि वो चूत में ऊँगली कर रही है और अपना छूटा लेने की कोशश कर रही थी।
फिर उसकी उंगली बड़ी तेज़ी से चलने लगी और फिर एक लम्बी गहरी सांस के साथ उसका हाथ रुक गया।
मैं समझ गया की बसंती झड़ गई है।
मेरे को पता नहीं क्या सूझी, मैं चुपके से उठा और उसके पास जाकर बैठ गया और धीरे से उसकी चादर को खींच कर ऊपर कर दी। उसकी धोती एकदम पेट पर चढ़ी हुई थी और उसका हाथ अभी तक बालों भरी चूत के ऊपर था और वो धीरे धीरे हाथ से अभी भी चूत को रगड़ रही थी।
लेकिन उस की आँखे बंद थी पर हाथ अभी भी चल रहा था, लगता था कि वो नींद में ही यह सब कर रही थी।
मैंने धीरे से उसका हाथ हटा दिया और अपने हाथ से उसकी भगनासा को दबाने लगा और उसको फिर आनन्द आने लगा।
मैं समझ गया कि वो पक्की नींद में है, मैंने अपना पायजामा खोला और खड़े लंड को उसकी चूत पर टिका दिया।
तभी देखा कि उसने भी झट से अपनी टांगें पूरी खोल कर फैला दी जिस वजह से मुझ को लंड को उसकी चूत में डालने में कोई दिक्कत आई।
मैं लंड डाल कर धीरे धीरे धक्के मारने लगा, मेरा हिलना बस ना के बराबर था, धीरे से लंड अंदर और फिर धीरे से बाहर।
कोई 10 मिनट बाद उसका शरीर एकदम अकड़ा और वह पानी छोड़ बैठी।
मैं भी चुपके से उस के ऊपर से उतरा और उसके ऊपर पहले धोती और चादर ठीक कर दी और आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया और जल्दी ही मैं सो गया।
सवेरे उठा तो बसंती चाय ले कर खड़ी थी और मेरे पायज़ामे की तरफ घूर रही थी।
जब मैंने पायज़ामा देखा तो वो तम्बू बना हुआ था और मेरा लौड़ा एकदम अकड़ा खड़ा था।
बिना शर्म किये वो मेरे लंड को घूर रही थी।
मैंने झट से चादर को अपने खड़े लंड पर डाल दिया और उसके हाथ से चाय ले ली और उसकी तरफ देखा तो वो मंत्रमुग्ध हुई चादर में छिपे मेरे लंड को ही देख रही थी।
मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो ऐसे क्यों कर रही थी। फिर सोचा शायद उस को रात का चुदना याद है और वो आगे बात करना चाहती है।
लेकिन वो बिना कुछ कहे खाली कप लेकर चली गई।
What did you think of this story??
Comments