कपड़ों की धुलाई के साथ चुदाई भी -5
(Kapdon Ki Dhulai Ke Sath Chudai Bhi -5)
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लेखक : अमन वर्मा
प्रेषिका : टी पी एल
मैंने उसके साथ तुरंत स्थान बदल कर सम्भोग क्रिया को ज़ारी रखा और अगले दस मिनट के तीव्र संसर्ग के बाद हम दोनों ने एक साथ ही प्रीति की योनि में अपना रस स्खलित कर दिया।
पांच मिनट वैसे ही लेटे रहने के बाद जब हम उठे तो देखा कि प्रीति की योनि में से हम दोनों के मिश्रित रस का झरना बहने लगा था।
उस झरने को प्रीति बहुत ही हैरानी से देखते हुए बोली- अमन जी, मुझे लगता है कि आपके अंडकोष में सामान्य से दस गुना अधिक रस बनाने की क्षमता है। सम्भोग के बाद मैंने आज तक कभी भी अपनी योनि में से इतना रस निकलते हुए नहीं देखा।
मैंने झट से कहा- यह सब तुम्हारे कारण ही हुआ होगा। मैं तो दोनों समय सिर्फ एक एक बार ही स्खलित हुआ हूँ लेकिन तुमने तो हर बार अपने रस का फव्वारा कई बार छोड़ा था।
मेरी बात पर प्रीति हंस दी और आगे बढ़ कर मेरे लिंग को चूम लिया और उसे तथा अपनी योनि को अच्छी तरह से धो कर साफ़ दिया।
फिर वह कपड़े धोने बैठ गई और मैं उसके पास बैठ कर बातें करते हुए उसके उरोजों से खेलता रहा।
मैंने उससे पूछा- प्रीति एक बात बताओ, क्या तुम्हारे सास-ससुर और देवर सच में बाहर गए हैं?
प्रीति बोली- माँ कसम, सभी बाहर गए हुए हैं। क्या आपको मेरी कही बात पर विश्वास नहीं है?
उसकी बात पर ध्यान नहीं देते हुए मैंने पूछा- क्या तुम्हें सच में ही बस्ती में डर लगता था इसलिए रात को यहाँ पर आ गई थी।
इस पर प्रीति ने कुछ देर चुप रहने के बाद कहा- अमन जी, सच कहूँ तो मुझे बस्ती में अकेले रहने में कोई डर नहीं लगता। मैं कई बार घर पर अकेले रह चुकी हूँ लेकिन कल आपके लिंग को देख कर मेरी वासना जाग उठी और मैं उसे अपनों योनि में लेना चाहती थी। इसीलिए मैं कल रात को आप के पास सोने के लिए आ गई।
प्रीति की बात सुन कर मैंने पूछा- मेरे लिंग में ऐसा क्या देखा की तुम्हारी वासना जागृत हो गई?
मेरे प्रश्न को सुन कर प्रीति ने कुछ क्षणों के लिए कपड़े धोने बंद करके मेरे लिंग को पकड़ते हुए बोली- अमन जी, आपको नहीं मालूम की आपका लिंग कितना सुंदर और आकर्षक है। जो भी युवती एक बार इसे देख लेगी उसकी रात की नींदें और दिन का चैन उड़ जाएगा। वह आपके इस लिंग को अपनी योनि में लेने के लिए उसी समय से तडपना शुरू कर देगी।ो
उसकी बात सुन कर मैंने पूछा- क्या तुम बता सकती हो कि तुम्हें इसमें क्या विशेषता दिखी जो तुम्हें दूसरों के लिंगों में नहीं देखने को मिली?
उसने कपड़े धोते हुए मेरे प्रश्न के उत्तर में कहा- मैं सिर्फ अपने पति के लिंग से इसकी तुलना करके ही बता सकती हूँ कि आपके लिंग में वह सब कुछ है जो एक युवती को यौन संसर्ग में आनन्द एवं संतुष्टि के लिए चाहिए होता है।
मेरी जिज्ञासा बढ़ी गई और मैंने उससे पूछा- क्या मेरे साथ यौन संसर्ग करने में तुम्हें अपने पति से अधिक आनन्द एवं संतुष्टि मिली? अगर अधिक आनन्द एवं संतुष्टि मिली है तो क्या तुम बताओगी की ऐसा क्यों हुआ?
क्योंकि सभी कपड़े धुल चुके थे इसलिए प्रीति ने मेरे पास आ कर मेरे लिंग को पकड़ कर हिलाना शुरू कर दिया और जब वह चेतना की अवस्था में आ गया तब बोली- आपका लिंग का रंग देखिये कितना साफ़ है। सफ़ेद तो नहीं लेकिन बहुत ही हल्का गेहुँआ है जबकि मेरे पति का लिंग बिल्कुल काला है। आपका लिंग-मुंड एक बड़े साइज़ की छीली हुई गुलाबी लीची की तरह है जब के मेरे पति का लिंग-मुंड एक छोटे से जामुन की तरह काला एवं बहुत ही बेढब्बा सा दिखता है।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली- अगर लिंग देखने में सुन्दर एवं आकर्षक नहीं होता है तो सम्भोग के लिए भी कोई उत्तेजना नहीं उठती। लेकिन कल आपके सुन्दर एवं आकर्षक लिंग को देखने के बाद मेरी योनि एवं शरीर में झुरझुरी होने लगी थी। इसीलिए आपके लिंग को अपने अंदर लेने की लालसा इतनी बढ़ गई थी कि मुझे रात को आपके पास आना ही पड़ा।
मैंने कहा- प्रीति, तुमने मेरी उस बात का तो उत्तर तो दिया ही नहीं… मैंने पूछा था कि क्या मेरे साथ यौन संसर्ग करने में तुम्हें अधिक आन्न्द एवं संतुष्टि मिली थी या फिर अपने पति के साथ करने में?
तब प्रीति ने थोड़ा रुक कर कहा- अमन जी, सच कह रही हूँ कि मुझे आपके लिंग से अधिक आनन्द एवं संतुष्टि मिली। अपने पति के साथ मैं आज तक कभी भी एक बार से अधिक स्खलित नहीं हुई जबकि आपने तो मुझे दोनों सम्भोग में तीन तीन बार स्खलित किया।
मेरे पूछने पर कि ऐसा क्यों हुआ तो उसने कहा- मैं अपने अनुभव से यही कह सकती हूँ कि एक युवती को आनन्द देने तथा संतुष्ट करने के लिए बहुत लम्बे लिंग की आवश्यकता नहीं है। अगर आपके लिंग जैसा मोटा और सख्त लिंग किसी भी युवती की योनि में जाएगा तो उसे आनंद और संतुष्टि अवश्य ही मिलेगी।
अमन जी, मेरे पति का लिंग आप के लिंग से एक इंच अधिक लम्बा ही होगा लेकिन मोटाई में वह आपके लिंग से लगभग आधा भी नहीं है। मेरे पति का लिंग लम्बा होने के कारण थोड़ा लचीला और नर्म महसूस होता है जबकि आपका लिंग एक लोहे की रॉड की तरह लगता है। इसीलिए आपके लिंग ने मेरे योनि में फंस कर हिलते हुए इतनी ज़बरदस्त रगड़ मारी थी कि मेरी योनि में आज बहुत ही हलचल हुई थी। उसी हलचल के कारण मैं तीन तीन बार स्खलित हुई थी।
एक दूसरे के गुप्तांगों से खेलने एवं इस बातचीत के प्रीति मुझसे भी अधिक उत्तेजित हो उठी और बोली- अमन जी, सच कहूँ तो इस समय मेरी योनि में फिर से बहुत हलचल हो रही है और अगर आपकी अनुमति हो तो मैं आपके गन्ने का रस एक बार फिर से निकालना चाहूंगी।
मैं भी अपनी उत्तेजना को नियंत्रण करने का असफल प्रयत्न कर रहा था इसलिए प्रीति की बात सुन कर तुरंत उसे अपने बाँहों में भर लिया और फिर उसके उरोजों को मसलते हुए मैं उसके होंठों को भी चूसने लगा।
वह मुझसे अधिक उत्तेजित थी इसलिए चुम्बन में उसने मेरा पूरा साथ दिया तथा नीचे से मेरे लिंग को अपने हाथों में लेकर हिलाने लगी और उसे अपनी योनि के होंठों एवं भगनासा पर रगड़ने लगी थी।
कुछ हो क्षणों में प्रीति उत्तेजना के शिखर पर पहुँच गई और उसकी योनि में से योनि-रस की बूंदें मेरे पैरों पर गिरने लगी था।
मैंने तब अधिक देर नहीं करने की सोची और प्रीति को पॉट के पास ले जाकर नीचे झुका कर घोड़ी बना दिया तथा पीछे से उसके नितम्बों की दरार को खोलते हुए अपने लिंग को उसकी रसीली योनि में धकेल दिया।
योनि-रस से गीली होने के कारण मेरा लिंग फिसलता हुए उसकी योनि की जड़ तक पहुँच गया और जब उसकी अंदरूनी दीवार से टकराया तब उसने एक सिसकारी ले तथा बोली- आह्ह्ह… थोड़ा धीरे करिए, अंदर दुखता है।
मैंने कहा- ठीक है अब जैसा कहोगी वैसा ही करूँगा।
और इसके बाद मैंने थोड़ा नीचे झुक कर अपने सीने को उसकी पीठ से लगा दिया और उसके उरोजों को हाथों में ले कर मसलते हुए अपने लिंग को धीरे धीरे उसकी योनि के अन्दर बाहर करने लगा।
कुछ ही देर में प्रीति की योनि के अंदर हलचल होने लगी और उसमें हो रही सिकुड़न तथा खिंचावट की लहरें मुझे मेरे लिंग पर महसूस होने लगी थी।
कभी कभी जब योनि में बहुत तीव्र खिंचावट होती तब मुझे लगता था कि मेरा लिंग उसकी की अंदरूनी जकड़न के कारण उसी में फंस गया है।
पन्द्रह मिनट के बाद प्रीति ने कहा- अमन जी, बहुत ही आनन्द आ रहा है। अब मैं शिखर पर पहुँचने वाली हूँ इसलिए तेज़ तेज़ कीजिये ताकि हम दोनों एक साथ ही स्खलित हों।
प्रीति की बात सुन कर जब मैंने संसर्ग की गति बढ़ाई तब उसने भी तेज़ी से अपने चूतड़ों को पीछे की ओर धकेलने लगी।
हमारी पांच मिनट की इस धक्का-पेल में अचानक प्रीति का शरीर अकड़ने लगा और उसकी टांगें कांपने लगी तथा उसकी योनि के अंदर ज़बरदस्त सिकुड़न होने लगी थी।
तभी मेरा लिंग उसकी योनि में फंस कर फूलने लगा और हम दोनों ने जोर से चिंघाड़ते हुए सिसकारी भरी और अपना अपना रस स्खलित किया।
रस के संखलित होते ही प्रीति की टांगों ने खड़े रहने से जवाब दे दिया और जब वह निर्जीव सी हो कर नीचे गिरने लगी तब मैंने उसे पकड़ लिया तथा उसे उठा कर अपनी गोदी में बिठा लिया।
दस मिनट के बाद जब प्रीति सामान्य हुई तब मैंने उससे पूछा- तुम्हें क्या हो गया था जो अचानक ही नीचे क्यों गिरने लगी थी?
वह बोली- कुछ नहीं, बस योनि की सिकुड़न एवं खिंचावट के कारण टाँगें कांपने लगी थी और मेरे लिए खड़े रहना असम्भव हो गया था। मेरे शरीर की सारी ताकत जैसे उस सिकुड़न एवं खिंचावट में व्यय हो गई थी।
मैंने पूछा- अब कैसा महसूस हो रहा है? क्या कमजोरी महसूस हो रही है?
उसने कहा- नहीं, कोई कमजोरी नहीं है। अब तो बहुत ही अच्छा लग रहा है। मैंने आज जितनी बार भी सम्भोग किया है उन सब में से अधिक आनन्द एवं संतुष्टिदायक अभी वाला सम्भोग ही था।
मैंने पूछा- इस सम्भोग में ऐसा क्या हुआ जो तुम इसे सब से अधिक आनन्द एवं संतुष्टिदायक कह रही हो?
प्रीति ने मेरे गालों और होंठों को चूमते हुए कहा- मेरी योनि में जितनी सिकुडन एवं खिंचावट अभी अभी हुई थी उतनी मुझे पहले कभी भी नहीं हुई। मैं तो आनन्द की चरम-सीमा से भी उपर पहुँच गई थी और मुझे अत्यंत संतुष्टि का आभास भी हुआ था। मेरे शरीर के रोम रोम में जो हलचल हुई थी उसका नशा मुझे अभी भी महसूस हो रहा है।
उसके बाद प्रीति ने मेरे लिंग को और मैंने उसकी योनि को अच्छी तरह से धोया तथा हमने उनका एक एक चुम्बन भी लिया और फिर हम दोनों साथ साथ नहाने लगे।
नहाने के बाद दोनों ने मिल का चाय नाश्ता बनाया और उसके करने के बाद प्रीति ने धुले कपड़े उठाये और शाम को आने के लिए कह कर अपने घर चली गई।
इसके बाद प्रीति अगली तीन रातें मेरे साथ ही सोई और हम दोनों ने कामसूत्र के बहुत से आसनों में सम्भोग किया तथा दोनों के अपनी अपनी कामाग्नि को तृप्त किया।
चार वर्षों से भी अधिक समय हो गया है और प्रीति हर शनिवार एवं रविवार सुबह जब कपड़े धोने के लिए मेरे कमरे में आती है तब मुझे यौन संसर्ग का सुख, आनन्द तथा संतुष्टि दे कर ही जाती है।
इसी आशा के साथ की अगले कई वर्षों भी यह सिलसिला इसी तरह चलता रहेगा।
आपसे विदा लेने से पहले मेरी इस रचना के सम्पादन एवं प्रकाशन में सहयोग देने के लिए मैं अन्तर्वासना की एक प्रमुख लेखिका श्रीमती टी पी एल का बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रकट करता हूँ।
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