चुद गई नौकरानी मुझसे
(Chud Gai Naukarani Mujhse)
दोस्तो, लड़की को उत्तेजित करके चोदने में बड़ा मज़ा आता है। बस उसे गर्म करने का तरीका ठीक होना चाहिये।
मैंने अपनी घर की नौकरानी को ऐसे ही कामोत्तेजित करके खूब चोदा। अब सुनाता हूँ उसकी दास्तान।
जयपुर से वापस आने के बाद मैंने अपने मकान मालिक से बोला- कोई अच्छी नौकरानी हो तो बताइयेगा।
मेरे घर में उल-ज़लूल नौकरानियों के काफ़ी अरसे बाद एक बहुत ही सुन्दर और सेक्सी नौकरानी काम पर लगी। उसका नाम आरती था। 22-23 साल की उमर होगी। सांवला सा रंग था। मध्यम ऊंचाई की और सुडौल बदन, फ़िगर उसका रहा होगा 33-26-34 का, शादीशुदा थी। उसका पति कितना किस्मत वाला था, साला उसे खूब चोदता होगा। बूब्स यानि चूचियाँ ऐसी कि हाय, बस दबा ही डालो। ब्लाऊज में चूचियाँ समाती ही नहीं थी।
कितनी भी साड़ी से वो ढकती, इधर उधर से ब्लाऊज से उभरते हुए उसकी चूचियाँ दिख ही जाती थी। झाड़ू लगाते हुए जब वह झुकती, तब ब्लाऊज के ऊपर से चूचियों के बीच की दरार को छुपा ना पाती थी।
एक दिन जब मैंने उसकी इस दरार को तिरछी नज़र से देखा तो पता लगा कि उसने ब्रा तो पहना ही नहीं था। कहाँ से पहनती, ब्रा पर बेकार पैसे क्यों खर्च किये जायें। जब वो ठुमकती हुई चलती, तो उसके चूतड़ बड़े ही मोहक तरीके से हिलते और जैसे कह रहे हों कि मुझे पकड़ो और दबाओ।
अपनी पतली सी सिन्थेटिक साड़ी को जब वो सम्भालती हुई सामने अपनी बुर पर हाथ रखती तो मन करता कि काश उसकी चूत को मैं छू सकता, दबा सकता। करारी, गरम, फ़ूली हुई और गीली गीली चूत में कितना मज़ा भरा हुआ था। काश मैं इसे चूम सकता, इसके मम्मे दबा सकता और चूचियों को चूस सकता और इसकी चूत को चूसते हुए जन्नत का मज़ा ले सकता।
और फिर मेरा तना हुए लौड़ा इसकी बुर में डाल कर चोद सकता। हाय मेरा लण्ड ! मानता ही नहीं था। बुर में लण्ड घुसने के लिये बेकरार था। लेकिन कैसे? वो तो मुझे देखती ही नहीं थी, अपने काम से मतलब रखती और ठुमकती हुई चली जाती।
मैंने भी उसे कभी एहसास नहीं होने दिया कि मेरी नज़र उसे चोदने के लिये बेताब है। अब चोदना तो था ही। मैंने अब सोच लिया कि इसे उत्तेजित करना ही होगा। धीरे धीरे गर्म करना पड़ेगा वरना कहीं मचल जाये या नाराज हो जाये तो भाण्डा फ़ूट जायेगा।
मैंने आरती से थोड़ी थोड़ी बातें करना शुरु किया। एक दिन सुबह उसे चाय बनने को कहा, चाय उसके नर्म नर्म हाथों से जब ली तो लण्ड उछला।
चाय पीते हुए कहा, “आरती, चाय तुम बहुत अच्छी बना लेती हो।”
उसने जवाब दिया, “बहुत शुक्रिया बाबूजी।”
अब करीब करीब रोज़ मैं चाय बनवाता और उसकी बड़ाई करता। फिर मैंने एक दिन कॉलेज जाने के पहले अपनी कमीज इस्तरी करवाई।
“आरती तुम इस्तरी भी अच्छी ही कर लेती हो।”
“ठीक है बाबूजी।” उसने प्यारी सी आवाज़ में कहा।
जब घर में कोई नहीं होता, तब मैं उसे इधर उधर की बातें करता। जैसे- आरती, तुम्हारा आदमी क्या करता है?
“साहब, वो एक मिल में नौकरी करता है।”
“कितने घण्टे की ड्यूटी होती है?” मैंने पूछा।
“साहब, 10-12 घण्टे तो लग ही जाते है न। कभी कभी रात को भी ड्यूटी लग जाती है।”
“तुम्हारे बच्चे कितने है?” मैंने फिर पूछा।
शरमाते हुए उसने जवाब दिया, “अभी तो एक लड़की है, 2 साल की।”
“उसे क्या घर में अकेला छोड़ कर आती हो?” मैं पूछता रहा।
“नहीं, मेरी बूढ़ी सास है ना, वो सम्भाल लेती है।”
“तुम कितने घरों में काम करती हो।?” मैंने पूछा।
“साहब, बस आपके और एक नीचे घर में।”
मैंने फिर पूछा, “तो तुम दोनों का काम तो चल ही जाता होगा।”
“साहब, चलता तो है, लेकिन बड़ी मुश्किल से। मेरा आदमी शराब में बहुत पैसे बरबाद कर देता है।”
अब मैंने एक इशारा देना उचित समझा, मैंने सम्भलते हुए कहा, “ठीक है, कोई बात नहीं। मैं तुम्हारी मदद करूँगा।”
उसने मुझे अजीब सी नज़र से देखा, जैसे पूछ रही हो– क्या मतलब है आपका?
मैंने तुरन्त कहा, “मेरा मतलब है, तुम अपने आदमी को मेरे पास लाओ, मैं उसे समझाऊँगा।”
“ठीक है साहब,” कहाते हुए उसने ठण्डी सांस भरी।
इस तरह मैंने बातों का सिलसिला काफ़ी दिनो तक जारी रखा और अपने दोनों के बीच की झिझक को मिटाया। एक दिन मैंने शरारत से कहा, “तुम्हारा आदमी पागल ही होगा। अरे उसे समझना चाहिये। इतनी सुन्दर पत्नी के होते हुए उसे शराब की क्या ज़रूरत है।”
औरत बहुत तेज़ होती है दोस्तो ! उसने कुछ कुछ समझ तो लिया था लेकिन अभी तक अहसास नहीं होने दिया अपनी ज़रा सी भी नाराजगी का। मुझे भी ज़रा सा हिन्ट मिला कि अब तो ये तस्वीर पर उतर जायेगी, मौका मिले और मैं इसे दबोचूँ। चुदवा तो लेगी और आखिर एक दिन ऐसा एक मौका लगा।
कहते है ऊपर वाले के यहाँ देर है लेकिन अन्धेर नहीं।
रविवार का दिन था। वो आई और लौड़ा खड़ा होने लगा। उसने दरवाज़ा बन्द किया और काम पर लग गई। इतने दिन की बातचीत से हम खुल गये थे और उसे मेरे ऊपर विश्वास सा हो गया था इसी लिये उसने दरवाज़ा बन्द कर दिया था। मैंने हमेशा की तरह चाय बनवाई और पीते हुए चाय की बड़ाई की। मन ही मन मैंने निश्चय किया की आज तो पहल करनी ही पड़ेगी वरना गाड़ी छूट जायेगी। कैसे पहल करें? आखिर में ख्याल आया कि भैया सबसे बड़ा रुपैया।
मैंने उसे बुलाया और कहा, “आरती, तुम्हें पैसे की ज़रूरत हो तो मुझे ज़रूर बताना। झिझकना मत।”
“साहब, बाद मैं आप वो पैसा मेरी तनखा काट लोगे और मेरा आदमी मुझे डांटेगा।”
“अरे पगली, मैं तनख्वाह की बात नहीं कर रहा। बस कुछ और पैसे अलग से चाहिये तो मैं दूंगा मदद के लिये। और किसी को नहीं बताऊँगा। बशर्ते तुम भी ना बताओ तो।”
और मैं उसके जवाब का इनतज़ार करने लगा।
“मैं क्यों बताने चली? आप सच में मुझे कुछ पैसे देंगे?” उसने पूछा।
बस फिर क्या था, कुड़ी पट गई। बस अब आगे बढ़ना था और मलाई खानी थी।
“ज़रूर दूँगा आरती। इससे तुम्हें खुशी मिलेगी ना?” मैंने कहा।
“हां साहब, बहुत आराम हो जायेगा।” उसने इठलाते हुए कहा।
अब मैंने हल्के से कहा, “और मुझे भी खुशी मिलेगी। अगर तुम भी कुछ ना कहो तो और जैसा मैं कहूँ वैसा करो तो? बोलो, मंज़ूर है?”
यह कहते हुए मैंने उसे 500 रुपये थमा दिये। उसने रुपये मेज पर रखे और मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या करना होगा साहब?”
“अपनी आँखें बन्द करो पहले।” मैं कहते हुए उसकी तरफ़ थोड़ा सा बढ़ा, “बस थोड़ी देर के लिये आँखें बन्द करो और खड़ी रहो।”
उसने अपनी आँखें बंद कर ली। मैंने फिर कहा, “जब तक मैं ना कहूं, तुम आँखें बंद ही रखना, आरती। वरना तुम शर्त हार जाओगी।”
“ठीक है, साहब,” शरमाते हुए आँखें बंद कर वो खड़ी थी। मैंने देखा की उसके गाल लाल हो रहे थे और होंठ कांप रहे थे। दोनों हाथों को उसने सामने अपनी जवान चूत के पास समेट रखा था।
मैंने हलके से पहले उसके माथे पर एक छोटा सा चुम्बन लिया। अभी मैंने उसे छुआ नहीं था। उसकी आँखें बंद थी। फिर मैंने उसकी दोनों पलकों पर बारी बारी से चुम्बन लिया। उसकी आँखें अभी भी बन्द थी। फिर मैंने उसके गालों पर आहिस्ता से बारी बारी से चूमा। उसकी आँखें बन्द थी। इधर मेरा लण्ड तन कर लोहे की तरह कड़ा और सख्त हो गया था।
फिर मैंने उसकी ठोड़ी पर चुम्बन लिया। अब उसने आँखें खोली और सिर्फ़ पूछते हुए कहा, “साहब?”
मैंने कहा, “आरती, शर्त हार जाओगी। आँखें बन्द।” यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
उसने झट से आँखें बन्द कर ली। मैं समझ गया, लड़की तैयार है, बस अब मज़ा लेना है और चुदाई करनी है। मैंने अबकी बार उसके थिरकते हुए होठों पर हलका सा चुम्बन किया। अभी तक मैंने छुआ नहीं था उसे। उसने फिर आँखें खोली और मैंने हाथ के इशारे से उसकी पलकों को फिर ढक दिया।
अब मैं आगे बढ़ा, उसके दोनों हाथों को सामने से हटा कर अपनी कमर के चारों तरफ़ लपेट लिया और उसे अपनी बाहों में समेटा और उसके कांपते होठों पर अपने होंठ रख दिये और चूमता रहा। कस कर चूमा अबकी बार।
क्या नर्म होंठ थे मानो शराब के प्याले। होठों को चूसना शुरु किया और उसने भी जवाब देना शुरु किया। उसके दोनों हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे और मैं उसके गुलाबी होठों को खूब चूस चूस कर मज़ा ले रहा था।
तभी मुझे महसूस हुआ कि उसकी चूचियाँ जो कि तन गई थी, मेरे सीने पर दब रही थी। बायें हाथ से मैं उसकी पीठ को अपनी तरफ़ दबा रहा था, जीभ से उसकी जीभ और होठों को चूस रहा था, और दायें हाथ से मैंने उसकी साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दिया। दायाँ हाथ फिर अपने आप उसकी दाईं चूची पर चला गया और उसे मैंने दबाया।
हाय हाय ! क्या चूची थी। मलाई थी बस मलाई।
अब लण्ड फुंकारें मार रहा था। बांएँ हाथ से मैंने उसके चूतड़ को अपनी तरफ़ दबाया और उसे अपने लण्ड को महसूस करवाया। शादीशुदा लड़की को चोदना आसान होता है क्योंकि उन्हें सब कुछ आता है, घबराती नहीं है।
ब्रा तो उसने पहनी ही नहीं थी, ब्लाऊज के बटन पीछे थे, मैंने अपने दायें हाथ से उन्हें खोल दिया और ब्लाऊज को उतार फेंका। चूचियाँ जैसे कैद थी, उछल कर हाथों में आ गई। एकदम सख्त लेकिन मलाई की तरह प्यारी भी। साड़ी को खोला और उतारा। बस अब साया बचा था।
वो खड़ी नहीं हो पा रही थी, उसकी आँखें अभी भी बन्द थी। मैं उसे हल्के हल्के से खींचते हुए अपने बेडरूम मैं ले आया और लेटा दिया, अब मैंने कहा, “आरती रानी अब तुम आँखें खोल सकती हो।”
“आप बहुत पाजी है साहब !” शरमाते हुए उसने आँखें खोली और फिर बन्द कर ली। मैंने झट से अपने कपड़े उतारे और नंगा हो गया। लण्ड तन कर उछल रहा था। मैंने उसका साया जल्दी से खोला और खींच कर उतारा। जैसे वो चुदवाने को तैयार ही थी, कोई कच्छी नहीं पहनी थी उसने !
मैंने बात करने के लिये कहा, “ये क्या, तुम्हारी चूत तो नंगी है। चड्डी नहीं पहनती क्या।”
“नहीं साहब, सिर्फ़ महीना में पहनती हू।” और शरमाते हुए कहा, “साहब, परदे खींच कर बन्द करो ना। बहुत रोशनी है।”
मैंने झट से परदों को बन्द किया जिससे थोड़ा अन्धेरा हो गया और मैं उसके ऊपर लेट गया।
होठों को कस कर चूमा, हाथों से चूचियाँ दबाई और एक हाथ को उसके बुर पर फिराया। घुंघराले बाल बहुत अच्छे लग रहे थे चूत पर। फिर थोड़ा सा नीचे आते हुए उसकी चूची को मुंह में ले लिया।
अहा, क्या रस था। बस मज़ा बहुत आ रहा था।
अपनी एक अंगुली को उसकी चूत के दरार पर फिराया और फिर उसके बुर में घुसाया अंगुली ऐसे घुसी जैसे मक्खन मैं छुरी। चूत गर्म और गीली थी। उसकी सिसकारियाँ मुझे और भी मस्त कर रही थी। मैंने उसकी चूत चीरते हुए कहा, “आरती रानी, अब बोलो क्या करूँ?”
“साहब, मत तड़पाईये, बस अब कर दीजिये।” उसने सिसकारियाँ लेते हुए कहा।
मैंने कहा, “ऐसे नहीं, बोलना होगा, मेरी जान।”
मुझे अपने करीब खींचते हुए कहा, “साहब, डाल दीजिये ना !”
“क्या डालूँ और कहाँ?” मैंने शरारत की।
दोस्तो, चुदाई का मज़ा सुनने में भी बहुत आता है।
“डाल दीजिये ना अपना यह लौड़ा मेरी चूत के अन्दर।” उसने कहा और मेरे होठों से अपने होंठ चिपका लिये। इधर मेरे हाथ उसकी चूचियों को मसलते ही जा रहे थे। कभी खूब दबाते, कभी मसलते, कभी मैं चूचियों को चूसता कभी उसके होठों को चूसता। अब मैंने कह ही दिया, “हाँ रानी, अब मेरा ये लण्ड तेरी बुर में घुसेगा। बोलो चोद दूँ।”
“हाँ हाँ, चोदिये साहब, बस चोद दीजिये मुझे !” और वो एकदम गर्म हो गई थी।
फिर क्या था, मैंने लण्ड उसके बुर पर रखा और घुसा दिया अन्दर। एकदम ऐसे घुसा जैसे बुर मेरे लण्ड के लिये ही बनी था। दोस्तो, फिर मैंने हाथों से उसकी चूचियों को दबाते हुए, होठों से उसके गाल और होठों को चूसते हुए, चोदना शुरु किया। बस चोदता ही रहा। ऐसा मन कर रहा था कि चोदता ही रहूँ !
खूब कस कस कर चोदा। बस चोदते चोदते मन ही नहीं भर रहा था। क्या चीज़ थी यारो, बड़ी मस्त थी। वो तो खूब उछल उछल कर चुदवा रही थी।
“साहब, आप बहुत अच्छा चोद रहे हैं, चोदिये खूब चोदिये, चोदना बन्द मत कीजिये।” और उसके हाथ मेरी पीठ पर कस रहे थे, टांगें उसने मेरी चूतड़ पर घुमा कर लपेट रखी थी और चूतड़ों से उछल रही थी, खूब चुदवा रही थी और मैं चोद रहा था।
मैं भी कहने से रुक ना सका, “आरती रानी, तेरी चूत तो चोदने के लिये ही बनी है रानी, क्या चूत है, बहुत मज़ा आ रहा है। बोल ना कैसी लग रही है ये चुदाई?”
“बस साहब, बहुत मजा आ रहा है, रुकिये मत, बस चोदते रहिये, चोदिये चोदिये चोदिये।”
इस तरह हम ना जाने कितनी देर तक मज़ा लेते हुए खूब कस कस कर चोदते हुए झड़ गये।
क्या चीज़ थी, वो तो एकदम चोदने के लिये ही बनी थी। अभी मन नहीं भरा था, 20 मिनट के बाद मैंने फिर अपना लण्ड उसके मुँह में डाला और खूब चुसवाया। हमने 69 की पोजिशन ली और जब वो लण्ड चूस रही थी मैंने उसकी चूत को अपनी जीभ से चोदना शुरु किया। खास कर दूसरी बार तो इतना मज़ा आया कि मैं बता नहीं सकता क्योंकि अब की बार लण्ड बहुत देर तक चोदता रहा। लण्ड को झड़ने में काफ़ी समय लगा और मुझे और उसे भरपूर मज़ा देता रहा।
कपड़े पहनने के बाद मैंने कहा, “आरती रानी, बस अब चुदवाती ही रहना। वरना यह लण्ड तुम्हें तुम्हारे घर पर आकर चोदेगा।”
“साहब, आप ने इतनी अच्छी चुदाई की है, मैं भी अब हर मौके में आपसे चुदवाऊँगी। चाहे आप पैसे ना भी दो।”
कपड़े पहनने के बाद भी मेरे हाथ उसकी चूचियों को हल्के हल्के मसलते रहे और मैं उसके गालों और होठों को चूमता रहा।
एक हाथ उसके बुर पर चला जाता था और हल्के से उसकी चूत को दबा देता था।
“साहब अब मुझे जाना होगा।” कहा कर वो उठी।
मैंने उसका हाथ अपने लण्ड पर रखा, “रानी एक बार और चोदने का मन कर रहा है, कपड़े नहीं उतारूँगा।”
दोस्तो, सच में लण्ड कड़ा हो गया था और चोदने की लिये मैं फिर से तैयार था। मैंने उसे झट से लेटाया, साड़ी उठाई और अपना लौड़ा उसके बुर में पेल दिया। अबकी बार उसे भचाभच करके खूब चोदा और कस कर चोदा और खूब चोदा और चोदता ही रहा। चोदते चोदते पता नहीं कब लण्ड झड़ गया और मैंने कस कर उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया। चूमते हुए चूचियों को दबाते हुए, मैंने अपना लण्ड निकाला और अन्त में उसे विदा किया।
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