जमींदार का कर्ज ना चुका पाने का दण्ड चूत चुदाई-1
(Jamindar Ka Karz Na Chuka Pane Ki Saja Chut chudai- Part 1)
दोस्तो, आपका अपना अभय जालंधर, पंजाब से आपकी सेवा में एक नई कहानी लेकर हाज़िर है।
मुझे उम्मीद है मेरी सेक्सी स्टोरी आपको पसन्द आएगी और कहानी के अंत में दिए गए मेल पते पर अपने सुझाव जरूर भेजेंगे।
आज की कहानी शुरू होती है पंजाब के जमींदार बलविंदर सिंह की हवेली से, यहाँ उसका परिवार, जिसमें खुद बलविंदर सिंह, उसकी पत्नी मनप्रीत कौर और 5 साल का बेटा गुरप्रीत सिंह रहते हैं।
भगवान का दिया सब कुछ है उनके घर में, लेकिन वो कहते है न कि ज्यादा पैसा भी मती मार देता है और उल्टे सीधे शौक डाल देता है।
ऐसा ही जमींदार बलविंदर सिंह के साथ हुआ… चाहे जमींदार साब शादीशुदा है लेकिन आज भी कच्ची कलियाँ मसलने में ज्यादा विश्वास रखते हैं।
उन्होंने हवेली में घर का काम करने के लिए एक गरीब घर की औरत सुनीता रखी हुई है जो बेहद खूबसूरत सुडौल ज़िस्म की मालकिन है। उसे देखकर कोई भी अंदाज़ा नहीं लगा सकता कि वो बेहद गरीब घर की बहू है। उसकी उम्र यही कोई 28 साल के लगभग होगी। उसके परिवार में उसकी सास, उसका पति, वो खुद और 3 साल के बच्चे को मिलाकर 4 मैम्बर हैं।
रोज़गार के नाम पर उसका पति राजेंद्र छोटी सी सब्ज़ी की रेहड़ी लगाता है, और गली गली जाकर सब्ज़ी बेचता है। घर का गुज़ारा और अच्छी तरह से हो, इस लिए सुनीता अपने 3 साल के बेटे को अपनी सास को सौंप कर, खुद जमींदार के घर पर काम करती है।
जमींदार पहले दिन से ही उसे भूखी नज़रों से देखता है जिसका सुनीता को भी पता है लेकिन गरीब होने के कारण मज़बूरी है कि उनकी दासी बनकर उनके घर का काम करना पड़ता है।
वो तो जमींदार का बस नहीं चलता, नहीं तो उसे कब का कच्ची कली की भांति मसल कर फेंक चुका होता। वो रोज़ाना उसके सुडौल बदन को हवस भरी नज़रों से देख कर स्कीम बनाता कि कैसे इसको इसी की बातों में घेर कर इसकी जवानी को भोगा जाये।
एक दिन सुनीता ने जमींदार से घर के किसी जरूरी काम के लिए 10 हज़ार रुपये की मांग की।
जमींदार- देखो सुनीता, इतनी बड़ी रकम दे तो दूंगा लेकिन जिस तरह से तुम्हारी तनख्वाह है। उसके हिसाब से तो एक साल से ऊपर लग जायेगा तुझे क़र्ज़ चुकाने में, ऊपर से ब्याज मिला कर तुम्हारे 2 साल यहाँ पे खराब हो जाएंगे। अब बताओ इतना समय पेट को गांठ कैसे लगाओगी, घर पे क्या नहीं चाहिए… बोलो… खाना, कपड़े और अन्य छोटे छोटे खर्चे।
सुनीता- आप इसकी फ़िक्र न करे मालिक, वो मेरी सरदर्दी है, कहीं से भी लाऊँ, आपकी पाई पाई चुकता कर दूंगी।
जमींदार- देख लो सुनीता, 6 महीने का वक्त दे रहा हूँ। यदि एक दिन भी ऊपर हो गया तो उसके ज़िम्मेदार तुम खुद होंगी। यहाँ अंगूठा लगाओ। और एक बात… इस पैसों वाली बात का किसी से भी ज़िक्र न करना, ये बात हम दोनों में ही रहनी चाहिए।
सुनीता- ठीक है हज़ूर!
जमींदार की बही पे सुनीता ने अंगूठा लगाकर 10 हज़ार रूपये ले लिए, पैसे देते वक्त उसने सुनीता का हाथ भी पकड़ना चाहा लेकिन ऐन वक्त पर उसकी बीवी आ जाने से उसने उस वक़्त उसे छोड़ दिया।
धीरे धीरे वक्त बीतता गया। कब साढ़े 5 महीने बीत गए पता ही न चला।
इकरार से एक हफ्ता पहले सुनीता को मालिक ने अपने कमरे में बुलाया।
जमींदार- सुनीता, क्या तुम्हें याद भी है कि तुम्हारे किये इकरार के हिसाब से 5 दिन बाद तूने मुझे सारे पैसे ब्याज समेत वापिस करने हैं। मैंने सोचा कि क्यों न याद करवा दूँ। ताकि जो कोई कमी भी रही हो, तो रहते वक्त तक पूरी हो जाये। परन्तु याद रखना जुबान से बदल न जाना। वरना मैं बहुत बुरे स्वभाव का व्यक्ति हूँ।
सुनीता- आप फ़िक्र न करो मालिक, आपको आपका पैसा समेत ब्याज सुनिश्चित तारीख पे मिल जायेगा।
जमींदार बीच में बात काटते हुए- यदि न वापिस आये तो?
सुनीता- तो फेर जो दिल करे दण्ड लगा लेना, मैं हंस कर आपकी हर सज़ा कबूल कर लूँगी।
जमींदार- चलो देखते है, क्या बनता है?
इस तरह से वो इकरार वाला दिन भी आ गया।
सुबह से ही जमींदार बार बार दरवाजे की तरफ देख रहा था।
मनप्रीत- क्यों जी, इतने व्याकुल क्यों हो? किसकी प्रतीक्षा कर रहे हो?
जमींदार- नहीं कुछ नहीं तुम अपना काम करो।
जमींदार सोचने लगा कि आज से पहले तो सुनीता सुबह 8 बजे ही काम पर आ जाती थी। लेकिन आज 10 बजने पर भी नहीं आई। कही पैसो के चक्कर की वजह से तो नहीं गैर हाज़िर हुई है।
यही सोचते सोचते जमींदार सुनीता के घर की तरफ चला गया।
घर के बाहर रुककर आवाज़ लगाई- ओ राजेंद्र, बाहर आ!
2-3 बार ऐसे ही आवाज़ देने पे जब कोई बाहर न आया तो खुद जमींदार बन्द पड़े लकड़ी के टूटे से दरवाजे को खोलकर घर के भीतर चला गया।
अंदर जाकर क्या देखता है कि सुनीता खाट पे पड़ी है, उसके पास उसके बेटे के इलावा कोई भी नहीं है, जिसे शायद स्तनपान कराते कराते सो गई थी। उसके कपड़े नींद की वजह से अस्त व्यस्त से पड़े थे। जिसमें से आधे से ज्यादा सुनीता का बदन दिख रहा था।
जिसे देखकर पहले तो जमींदार की नीयत बिगड़ गई और मन में सोचने लगा..
आज जैसा वक़्त दुबारा मिले या न मिले क्यों न मौका सम्भाल लूँ और बहती गंगा में एक डुबकी लगा ही लूँ, जिससे सारी उम्र की मौज़ बन जायेगी।
जैसे ही वो खाट के नजदीक गया तो उसकी पैर चाल से सुनीता की आँख खुल गई और अपने पास किसी अजनबी को पाकर एकदम कपड़े ठीक करती हड़बड़ाती हुई बोली- मा.. म.. मालिक आप कब आये? सन्देस भेज दिया होता मैं खुद आ जाती। बैठो, आपके लिए पानी लेकर आती हूँ।
जमींदार- नहीं नहीं सुनीता, इसकी कोई जरूरत नहीं है। तू ये बता कि आज काम पे क्यो नहीं आई? उस दिन तो बड़ी लम्बी लम्बी डींगें हाँक रही थी? क्या हुआ हमारे आज के इकरार का?
जमींदार ने अपना मालिकाना रौब झड़ते हुए कहा।
सुनीता- वो कल रात काम से लौटते ही बहुत तेज़ बुखार हो गया था मालिक, इसलिए आज काम पे हाज़िर नहीं हो सकी। जैसे ही बुखार उतरेगा, ठीक होकर काम पे वापिस आ जाऊँगी। मेरी वजह से आपको परेशानी हुई उसके लिए दोनों हाथ जोड़कर आपसे माफ़ी चाहती हूँ। कृपया मुझे माफ कर दो।
जमींदार- मैंने काम पे हाज़िर होने का नहीं, पैसों के बारे में पूछा है।
इस बार उसकी वाणी में थोड़ी कठोरता थी।
सुनीता- मालिक, वो इकरार भी आज पूरा नहीं हो सकेगा, क्योंकि जिस बलबूते पे मैंने वो इकरार किया था, वो अभी पूरा नहीं हो पायेगा, उसके लिए कम से कम एक महीना और लग जायेगा। इस लिए आप वादा खिलाफी की जो सज़ा देना चाहते हो, दे दो। मुझे हर हाल में कबूल है।
जमींदार उसकी हालत की नज़ाकत को देखते हुए- खैर ये लो कुछ पैसे, दवाई लेकर ठीक हो जाओ और कल दूसरी हवेली पहुँचो। अभी फ़िलहाल जा रहा हूँ। कल सुबह को तेरा वहीं इंतज़ार करूँगा।
चाहे सुनीता को आभास हो गया था कि मालिक किस नियत से वहाँ बुला रहा है लेकिन समय की नज़ाकत को देखकर सब्र की घूँट पी गई। क्योंकि उसकी जरा सी भी गलती बड़ा बखेड़ा शुरू कर सकती थी।
अगले दिन उसका थोड़ा बुखार कम हुआ तो वो दूसरी हवेली पे चली गई। वहाँ जाकर देखा तो अकेले जमींदार के सिवाए वहाँ कोई भी नहीं था।
सुनीता को आते देख जमींदार की बांछें खिल गई और अपनी मूंछ को ताव देते हुए मन में खुद से बाते करने लगा ‘जिस दिन का तू कई महीनों से इंतज़ार कर रहा था, आखिर वो आज आ ही गया। आज तो तुम्हारी हर इच्छा पूरी होने वाली है। जो कल्पना में देखता या सोचता है तू!’
और चेहरे पे हल्की सी मुस्कान लाकर पास आ रही सुनीता को देखने लगा।
जमींदार- आखिर आ ही गई सुनीता तू, मुझे तो लगा था कि आज भी कल की तरह बुखार की वजह से आ नहीं पाएगी।
सुनीता- हम गरीब जरूर है मालिक, लेकिन ज़ुबान के एकदम पक्के हैं। वो बात अलग है किसी वजह से थोड़ा देरी से आई। आपको बोला था कि बुखार उतरते ही आऊँगी तो आ गई। अब बोलो क्यों बुलाया है आपने, क्योंकि मेरे हिसाब से इस हवेली का कोई भी काम अधूरा रहता नहीं है। सब काम पिछले हफ्ते ही तो मैं पूरे करके गई थी।
जमींदार- सुनीता, जरूरी नहीं हवेली के किसी काम ही बुलाया हो तुझे, कोई और भी काम हो सकता है।
चाहे सुनीता समझ चुकी थी कि वो किस और काम के लिए बोल रहा है लेकिन फिर भी उसके मुंह से सुनना चाहती थी।
सुनीता- और कौन सा काम मालिक?
जमींदार- वही जो तूने बोला था कि यदि दिए समय में आपका क़र्ज़ न चुकता कर पाऊँ तो जो मर्ज़ी दण्ड लगा लेना।
सुनीता- हाँ बोला था, लेकिन सज़ा तो उस हवेली में भी दे सकते थे न, इतनी दूर बुलाने की जरूरत क्या थी।
जमींदार- वहाँ सब है तेरी मालकिन, छोटे जमींदार, घर के नौकर चाकर, सो उनके सामने तुझको सज़ा देना मुझे शोभा नहीं देता था। इसलिए यहाँ अकेले में तुझको बुलाया है। यहाँ तुझे जी भर के सज़ा दूंगा।
इस बार उसकी बोली में दोहरापन था।
सुनीता- चलो ठीक है, बताओ क्या सज़ा है मेरी?
जमींदार- किस तरह की सज़ा चाहती है, बोल?
सुनीता- बोलना क्या है, मालिक जो सज़ा है बोल दो, मेरा ज़ुर्म जिस सज़ा के काबिल है, उसी तरह की सज़ा दे दो।
जमींदार- तुमने वादा खिलाफी तो की है तो इसकी सज़ा ये है कि तू मेरे पूरे बदन की तेल लगाकर मालिश करेगी और जब तक मैं न चाहूँ घर नहीं जाएगी।
सुनीता- हैं… ये कैसी सज़ा है। मैंने तो सोचा था कि पूरा दिन काम काज पे लगाए रखोगे या पूरा दिन धूप पे खड़ा करके रखोगे। लेकिन फिर भी वादे के मुताबक मुझे आपकी ये सज़ा भी मंज़ूर है।
जमींदार- तू बहुत नाज़ुक सी चीज़ है सुनीता, तेरा मालिक इतना भी बेरहम नहीं है कि फूल सी नाज़ुक चीज़ को धूप में खड़ा करके मुरझाने के लिए छोड़ देगा।
अपनी झूठी तारीफ सुनकर भी सुनीता को अच्छा लगा।
जमींदार- चलो सुनीता, अब बातें बहुत हो गई। बाहर वाला दरवाजा बंद करके, मेरे पीछे मेरे बेडरूम में आ, वहाँ चल कर तुझे सज़ा दूंगा।
सुनीता डरती डरती मालिक के पीछे चली गई।
वहाँ पहुंचकर जमींदार ने पंखा चालू कर दिया परन्तु डर के मारे सुनीता पसीने से भीग रही थी।
बात करते करते जमींदार ने अकेला अंडरवियर छोड़कर सारे कपड़े उतारकर दीवार पे लगी कुण्डी पे टांग दिए और खुद उल्टा होकर बेड पे लेट गया।
जमींदार- सुनीता, बेड की दराज़ में से तेल की शीशी निकाल लाओ और मेरे पूरे बदन पे लगा दो, पूरा बदन दर्द से टूट रहा है।
सुनीता बेचारी हुक्म में बन्धी, जैसा वो बोलता गया वैसे करती गई। सुनीता तेल की शीशी लेकर मालिक के पैरों की तरफ बैठ गई और हथेली पे ढेर सारा तेल उड़ेलकर उसकी पीठ पर मलने लगी। जमींदार की तो जैसे लाटरी लग गई, वो आँख बन्द करके लेटा सुनीता के नर्म नर्म हाथों की मालिश का मजा लेने लगा और उसके कोमल स्पर्श मात्र से ही काम चढ़ने की वजह से उसका लंड अंडरवीयर में ही फड़फड़ाने लगा।
थोड़ी देर बाद जमींदार बोला- सुनीता, तुम बहुत बढ़िया मालिश करती हो। ऐसा करो, थोड़ा तेल मेरी टांगों पर भी लगा दो।
सुनीता हुक्म की पालना करती जमींदार की टाँगों की मालिश करने लगी।
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करीब 10 मिनट बाद वो सीधा होता हुआ बोला- अब लगते हाथ आगे की भी मालिश कर दो सुनीता!
जैसे ही जमींदार उल्टा लेटा सीधा हुआ उसका मोटा लंड अंडरवियर में फ़ड़फ़ड़ाता हुआ सुनीता को दिख गया। एक पल के लिये वो देखती ही रह गई, जैसे ही जमींदार की नज़र उस पर पड़ी, वो शर्मा गई और मुंह दूसरी ओर करके जमींदार की टाँगों की तेल से मालिश करने लगी।
कहानी जारी रहेगी.
मेरी सेक्सी कहानी आपको कैसी लगी, अपने विचार मुझे [email protected] पर भेजें।
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