एक दिल चार राहें -12

(House Maid Sex Story)

प्रेम गुरु 2020-07-24 Comments

This story is part of a series:

हाउस मेड सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि कैसे मैंने अपनी कमसिन कामवाली को अपने बातों और तोहफों के जाल में फंसा लिया था. उसके बाद मैंने उसको नंगी कैसे किया.

5 मिनट तक हम एक दूसरे को ऐसे ही चूमते रहे। मैंने उसकी पीठ और उसके नितम्बों पर भी हाथ फिराना चालू कर दिया।
सानिया तो जैसे अपने होश में ही नहीं थी। मैंने एक हाथ से उसकी कमर पकड़ रखी और मेरा दूसरा हाथ धीरे-धीर उसके नितम्बों की खाई में फिसलने लगा।
और जैसे ही मैंने उसकी बुर को टटोलने की कोशिश की तो सानिया कामुकता से की एक हल्की सिसकारी सी निकल गई।
उसने अपनी जांघें जोर से भींच ली और उसका एक पैर थोड़ा सा ऊपर हो गया।

अब तो मेरी शातिर अंगुलियाँ उसकी सु-सु के बिल्कुल करीब जा पहुंची थी। उसकी बुर की गर्माहट और गीलापन मेरी अँगुलियों पर महसूस होने लगा था।

अब आगे की हाउस मेड सेक्स स्टोरी:

“आह … सर … क्या कर रहे हो? आह … उईइ … मैं मर जाऊंगी.” सानिया का बदन अकड़ने सा लगा था।
वो रोमांच के मारे एक किलकारी सी मारते हुए अपने हाथ से मेरे हाथ को अपनी बुर से हटाने की कोशिश करने लगी।

“सानू मेरी जान! तुम बहुत खूबसूरत हो.”
“आह … मेला सु-सु निकल जाएगा … आह …”
“सानू जान अब मुझे मत रोको … प्लीज एक बार मुझे अपनी सु-सु … दिखा दो मेरी जान!”
कहते हुए मैंने उसे जोर से अपनी बांहों में भींच लिया।

अब तो मेरा लंड उसकी बुर पर ठोकर सी मारने लगा था। मैंने अपना हाथ आगे करके पहले तो उसके पेट और नाभि पर हाथ फिराया.
और फिर जैसे ही उसके पाजामे के ऊपर से उसकी बुर को टटोला उसकी हल्की सी चीत्कार (रोमांच भरी हल्की चीख) निकल गई। उसका गुनगुना सा अहसास मुझे अपनी अँगुलियों पर महसूस हो रहा था। मेरा अन्दाज़ा सही था उसने अन्दर पेंटी नहीं पहनी थी।

“आह … नहीं सर … रुको … ऐसे मत करो … आह … नहीं!”
“प्लीज सानू … बस एक बार देख लेने दो … प्लीज!”
“नहीं … नहीं … मुझे शर्म आ रही है!”

“मेरी जान पिछली दो रातें मैंने तुम्हारी याद में जागते हुए बिताई हैं। प्लीज बस एक बार?” मैंने उसके होंठों को चूमते हुए मिन्नत की।
“आह …” सानिया का सारा बदन तो अब किसी अनजाने भय, रोमांच और इस नये अनुभव की उत्तेजना के मारे सिहर सा उठा था।

“मेरी जान आओ रूम में चलते हैं.” कहते हुए मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और अपने बेड रूम में ले आया।

सानू जान आँखें बंद किए मेरे गले से लिपटी रोमांच के उच्चतम शिखर पर पहुँच गई थी। मुझे लगता है उसकी लाड कँवर (कुंवारी अनछुई बुर) ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया है। उसने अपनी बांहें मेरे लगे में डाल दी।

रूम में आने के बाद मैंने उसे बेड पर लेटा दिया। सानिया ने अब भी मेरे गले में अपनी बांहें डाल रखी थी उसकी आँखें बंद थी।

अब मैंने उसकी बगल में अधलेटा सा होते हुए उसका एक चुम्बन लिया और फिर इलास्टिक वाले पायजामे के अन्दर हाथ डालने की कोशिश की।
सानिया ने एक हल्का सा विरोध तो जरूर किया पर मेरी अंगुलियाँ अब तक अब तक उसकी बुर के पपोटों के पास पहुँच गई थी। हल्के-हल्के रेशम से बालों से लकदक उसकी बुर का चीरा तो पहले से ही कामरज से भरा था।

जैसे ही मैंने अपनी अंगुली उसके चीरे पर फिराई सानिया की रोमांच भरी चींख पूरे कमरे में गूँज उठी।
“सर … मुझे बहुत डर लग रहा है.”
“ओह … कैसा डर?”
“वो … वो … बापू?”
“कौन बापू?”
“अगर मेले बापू को पता चल गया तो मुझे जान से मार डालेगा.”
“ओह … अरे.. नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा.”

“तो?”
“अरे इतना डरने की कोई बात नहीं है. तुम्हारा बापू कोई हमें देख थोड़े ही रहा है.” मैंने उसे समझाते हुए कहा।
“लेकिन?”
“अरे बेबी … उसे इस बात का पता भला कैसे पता चलेगा?”

“ओह …” कह कर सानिया ने फिर से अपनी आँखें बंद कर ली। अब तो पूरे हुस्न का खजाना मेरी आँखों के सामने था। पायजामे के कसे हुए इलास्टिक में फंसी उसकी पतली कमर के ऊपर उभरा हुआ सा पेडू और उसके ऊपर गोल गहरी नाभि तो किसी मुर्दे के जिस्म में भी जान फूंक दे।
मैंने उसके पेडू पर एक चुम्बन लिया और फिर उसकी नाभि के छेद को चूम लिया।

“आईईई” सानिया ने जोर की किलकारी मारी और अपनी दोनों जांघें कसकर भींच ली।

दोस्तो! आप सोच रहे होंगे ‘यार प्रेमगुरु! अब तो लौंडिया पूरी तरह गर्म हो चुकी है क्यों देर कर रहे हो? ठोक तो साली को।’

बस थोड़ा सा इंतज़ार। आप तो जानते हैं खैनी जितना रगड़ो और लड़की को तड़फाकर जितना गर्म करो दोनों बाद में उतना ही ज्यादा मज़ा देती हैं।

मैंने उसकी शर्ट को थोड़ा सा ऊपर किया।
आह … दो रस भरे संतरे मेरी आँखों के सामने नुमाया हो गए। सानू जान ने ब्रा भी नहीं पहनी थी। चौड़ी छाती के बीच टेनिस की छोटी बॉल की तरह गोल रस कूप और उनका गहरे लाल रंग का एरोला (चूचक) तो ऐसे लग रहा था जैसे उरोजों के ऊपर कोई अंगूर का दाना रख दिया हो।

मैंने होले से उनपर हाथ फिराया।
आह … रेशम से कोमल मुलायम नर्म कुच!
मैंने एक-एक चुम्बन बारी बारे दोनों स्तनाग्रों (चूचक) पर लिया और फिर अपने हाथ को फिर से उसके पेडू और पेट पर फिराने लगा। मेरे होंठ उसके उरोजों पर फिसल रहे थे। सानिया की सीत्कार पर सीत्कार निकल रही थी उसका सारा शरीर रोमांच के मारे गनगना उठा था।

अब मैंने अपने एक अंगुली उसके पायजामे के इलास्टिक के अन्दर फंसाई और फिर उसे नीचे करने लगा।

“सर … क्या कर रहे हो? मुझे शर्म आ रही है.” सानिया ने फिर मेरा हाथ पकड़ते हुए थोड़ा प्रतिरोध किया।
“मेरी जान … मेरी सानू … तुम बहुत खूबसूरत हो … प्लीज बस एक बार मुझे अपने इस अनमोल खजाने को देख लेने दो … प्लीज …”
“आह …” सानिया के हाथों की पकड़ ढीली पड़ने लगी अलबत्ता उसने अपनी जांघें कसे हुए ही रखी थी।

अब मैंने धड़कते हुए दिल से अपने दोनों हाथों से उसके पायजामे को धीरे-धीरे नीचे करना शुरू किया.
आइईला …

पहले हल्के-हल्के रेशमी घुंघराले से बाल नज़र आये और फिर उभरा हुआ सा दाना और उसके दो मोटे मोटे पपोटों के बीच तीन-चार इन्च का रक्तिम चीरा रस से भरा हुआ। चुकंदर सी गहरी लाल बुर देख कर तो इंसान क्या फरिश्ते भी अपना ईमान खो दें।

मैंने अपने जीवन में बहुत से बुर और चूतें देखी हैं पर सानिया की बुर में एक खास बात मैंने नोट की। उसकी बुर के ऊपरी भाग पर ही बाल थे और नीचे तो बस पपोटों दोनों तरफ थोड़े-थोड़े से घुंघराले बाल थे। अक्सर प्युबर्टी (जवानी की शुरुवात में) के समय थोड़े से बाल पहले पपोटों और बुर के ऊपरी भाग पर ही आते हैं बाद में तो पूरा शहद का छाता ही बन जाता है।

एक मदहोश करने वाली गंध मेरे नथुनों में भर गई। उसका चीरा तो कामरज से लबालब भरा दिख रहा था। और दोनों फांकों के बीच में छोटी-छोटी दो सुनहरे रंग की पत्तियाँ ऐसे लग रही थी जैसे कोई छोटी सी मछली तड़फ रही हो।
हे भगवान्! इतने दिनों इस सौंदर्य के खजाने को इसने कहाँ छिपा रखा था।

प्रिय पाठको! आप मेरी हालत का अंदाज़ा लगा सकते हैं मुझे इस समय मिक्की और सिमरन कितनी याद आई होगी। (मेरी कहानियां तीन चुम्बन और काली टोपी लाल रुमाल जरूर पढ़ें.)

सानिया की साँसें बहुत तेज हो गई थी। उसने अपनी जांघें बहुत जोर से कस रखी थी इसलिए अब पायजाम और नीचे नहीं सरक सकता था।
“ए सानू … मेरी जान अब शर्म छोड़ो … मेरी जान अपनी जांघें थोड़ी सी और खोल दो … प्लीज मुझे अपने हुस्न के दीदार से महरूम (वंचित) मत करो।”

बेचारी सानिया मिर्ज़ा के लिए अब मेरी बात को नकारना कहाँ मुमकिन था। सानिया ने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया।

मैंने उसके पायजामे को उसके घुटनों तक सरका दिया।
आह … दो मखमली जाँघों के बीच फंसी नाजुक बुर को देख कर तो मुझे लगा मैं अभी बिना कुछ किए धरे गश खाकर गिर पडूंगा। मैंने अपने होंठ उसकी बुर के चीरे पर लगा दिए। आह … उसकी अनछुई कमसिन कुंवारी बुर की महक जैसे ही मेरे नथुनों में समाई मेरा सारा शरीर जैसे रोमांच से झनझना उठा।

उसकी बुर से आती तीखी और मदहोश करने वाली गंध मेरे लिए अनजान नहीं थी। मुझे लगता है वह जब बाथरूम में अपने पैर धोने गई थी उसने अपनी बुर को भी धोया होगा और उस पर भी कोई क्रीम या तेल जरूर लगाया होगा। मेरा अंदाज़ा है सानिया ने अभी तक अपनी इस बुर से केवल मूतने का ही काम किया है। मुझे लगता है लंड तो क्या इसने तो अपनी इस बुर में अंगुली भी नहीं डाली होगी।

जैसे ही मेरे होंठ उसके चीरे से टकराए सानिया बिलबिला उठी- सर … क्या कर रहे हो … ओह … रुको … छी … गन्दी जगह मुंह लगा रहे हो.
कहते हुए सानिया ने मेरा सिर अपने हाथों में पकड़ कर मुझे दूर हटाने की नाकाम कोशिश की।

पर मैं कहाँ मानने वाला था … मैंने उसकी बुर को अपने मुंह में भर लिया। सानिया की तो एक किलकारी ही निकल गई। अब उसने मेरे सिर के बालों को अपने हाथों में कस कर पकड़ लिया। उसका सारा शरीर झनझना सा उठा और फिर झटके से खाने लगा।

मैंने अभी 3-4 चुस्की ही लगाईं थी कि उसकी बुर ने मीठा शहद छोड़ दिया।

“आईईईई … मेरा सु … सु … आह …” सानिया तो जैसे कसमसाने ही लगी थी। उसने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ कर जोर से भींच लिया था।
2-3 झटके से खाने के बाद उसकी पकड़ कुछ ढीली सी हो गई थी।

मुझे लगता है उसने अपने जीवन का पहला ओर्गास्म प्राप्त कर लिया था।

मैंने 3-4 चुस्की और लगाईं और फिर एक हाथ से उसके चीरे को थोड़ा सा चौड़ा करके अपने जीभ नीचे से ऊपर फिराई तो सानिया अपने नितम्बों को सरकाने की कोशिश करने लगी और पैर पटकने लगी। मैंने अब भी उसकी कमर को पकड़ रखा था ताकि वह हिलकर मेरे मज़े को खराब ना कर दे।

मुझे लगा अगर सानिया का पायजामा पूरा उतार दिया जाए तो उसका पूरे नंगे बदन का सौंदर्य तसल्ली से देखा जा सकता है।

“सर … बस करो … अब रहने दो … मुझे पता नहीं क्या होते जा रहा है.”
जैसे ही मैंने अपना मुंह उसकी बुर से हटाया तो उसने झट से अपने हाथों से अपनी बुर को ढक लिया। साली इन कुंवारी लड़कियों के नखरे संभालना भी बड़ा मुश्किल काम होता है।
“सानू प्लीज ये शूज उतार दो ना!”
“क … क्यों?”
“यार सच में तुम्हारे सौंदर्य को देखने से अभी मन ही नहीं भरा? प्लीज … बस एक बार और …”

“ओह … पर आपने देख तो लिया?”
“यार! मैं तो इस अनमोल खजाने की बस एक झलक ही देख पाया हूँ … बस एक बार ढंग से थोड़ी देर देख लेने दो प्लीज … तुम्हें अपनी दोस्ती और प्रेम की कसम!”

सानिया ने असमंजस भरी निगाहों से मेरी ओर देखा। शायद वह आखरी फैसला लेने में हिचकिचा रही थी। मैंने अब तो उसे अपनी कसम भी दे दी थी अब भला उस बेचारी के मेरी बात मान लेने के अलावा कोई चारा कहाँ बचा था।

इससे पहले कि सानिया कुछ कह पाती मैंने झट से उसके जूतों के फीते (चिपकने वाले) खोल कर पैरों से जूते निकाले और फिर उसके पायजामे को भी निकाल फैंका। सानिया ने मारे शर्म के अपनी बुर पर अपने हाथ रख लिए। अब मैं भी उसकी बगल में आकर लेट गया।

“ए सानू?”
“हम्म?” उसने आँखें बंद किए हुए ही जवाब दिया।
“क्या तुम्हारा मन नहीं करता?”
“किस बात के लिए?”
“जैसे लड़कों का मन होता है अपनी महबूबा के सौंदर्य को बिना कपड़ों के देखने का?”
“मुझे नहीं पता!”

“प्लीज बताओ ना अब शरमाओ मत?”
“हओ … पर डर लगता है.”
“किस बात का?”
“वो घर वालों को पता चल गया तो बापू तो मुझे जान से ही मार डालेगा.”

“अरे नहीं मेरी जान … तुम्हारे बापू को इन सब बातों की हवा तक नहीं लगेगी। अगर तुम्हारा भी देखने का मन हो तो मैं भी तुम्हें अपना सब कुछ दिखा सकता हूँ.”

सानिया ने अब अपनी आँखें खोल कर मेरी ओर देखा। उसकी साँसें बहुत तेज हो चली थी और होंठ कांपने से लगे थे। शब्द तो जैसे उसके गले में अटक से गए थे।

“अच्छा … अगर तुम्हें शर्म आये तो कोई बात नहीं मैं अपनी आँखें बंद कर लूंगा फिर देख लेना.” मैंने हंसते हुए कहा।
“हट!” कहकर सानिया ने अनजाने में अपनी बुर से हाथ हटाकर अपनी आँखों पर रख लिए।

अब मैंने भी अपने कपड़े उतार दिए। दिन का समय था तो कमरे में कोई बल्ब या ट्यूब लाईट तो नहीं जल रही थी पर पर्याप्त रोशनी थी।

मैं फिर से सानिया की बगल में आ गया और थोड़ा झुकते हुए उसके होंठों को फिर से चूमने लगा। पहले उसकी शर्ट को ऊपर करते हुए उसके उरोजों को चूमा और फिर उसके पेट और नाभि को चूमते हुए उसकी बुर पर अपना मुंह फिराने लगा।

सानिया को रोमांच भरी गुदगुदी सी होने लगी थी। अब मैंने उसका एक हाथ पकड़कर अपने खड़े लंड पर लगाया तो सानिया को जैसे कोई करंट सा लगा और उसने अपना हाथ खींच लिया।

“यार सानू तुम तो निरी डरपोक हो … लड़कियां तो इसका दर्शन करने और छूने के लिए भगवान् से कितनी मन्नतें मांगती हैं और तुम्हें मौक़ा मिला है तो तुम शर्मा रही हो”
“पहली बार में शर्म तो आती ही है ना?”

“सानू जान, एक बार इसे हाथ में लेकर देखो तो सही! मुझे लगता है तुम्हें भी बहुत अच्छा लगेगा.” कहते हुए मैंने उसके गालों और होंठों पर फिर से चूमना चालू कर दिया।

मेरे एक और प्रयास के बाद सानिया ने मेरे लंड को पहले तो होले से छूकर देखा और फिर उसे हाथ में लेकर दबाने लगी। मेरा लंड तो नाजुक अँगुलियों का स्पर्श पाते ही और भी ज्यादा खूंखार हो गया।

दोस्तो! अब तो आगे का रास्ता बिल्कुल निष्कंटक लगने लगा था।

अब तक मेरा एक हाथ हाउस मेड की बुर तक पहुँच गया था। सानिया ने थोड़ा आह … ऊंह … तो जरूर किया पर ज्यादा विरोध अब उसके बस में नहीं था। अब मैंने उसकी जांघें थोड़ी सी और फैला दी थी। मेरी शातिर अंगुलियाँ उसके चीरे पर ऊपर नीचे फिसलने लगी थी।

आह … गुनगुना सा अहसास … जैसे किसी शहद की भरी कटोरी में अंगुली चली गई हो। अब तो सानू जान जोर-जोर से मेरे लंड को सहलाने और मसलने लगी थी। मुझे हैरानी इस बात की भी हो रही थी जिस प्रकार वह मेरे लंड को अपने मुट्ठी में पकड़कर हिला रही थी मुझे लगता है उसे यह हुनर जरूर उस प्रीति नामक बला ने सिखाया होगा।

मेरी हाउस मेड सेक्स स्टोरी में मजा आ रहा है ना पाठको!
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हाउस मेड सेक्स स्टोरी जारी रहेगी.

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