होली का रंग- माँ की चूत के संग

कमल बुर 2005-11-12 Comments

यह घटना इसी होली की है। 6 साल के बाद मैं होली में अपने घर पर था। मेरी उम्र 19 साल की है। मैं अपने शहर से बहुत दूर एक कॉलेज में तकनीकी की पढ़ाई कर रहा हूँ। हड़ताल होने के कारण कॉलेज एक महीने के लिए बन्द हो गया था।

सारे त्योहारों में मुझे यह होली का उत्सव बिल्कुल पसन्द नहीं है। मैंने पहले कभी भी होली नहीं खेली। पिछले 6 साल मैंने होस्टल में ही बिताया। मेरे अलावा घर में मेरे बाबूजी और माँ है। मेरी छोटी बहन का विवाह पिछले साल हो गया था। कुछ कारण बस मेरी बहन रेनू होली में घर नहीं आ पाई। लेकिन उसके जगह पर हमांरे दादाजी होली से कुछ दिन पहले हमांरे पास हमसे मिलने आ गये थे। दादाजी की उम्र करीब 61-62 साल है, लेकिन इस उम्र में भी वे खूब हट्टे कट्टे दिखते हैं। उनके बाल सफेद होने लगे थे लेकिन सर पर पूरे घने बाल थे। दादाजी चश्मा भी नहीं पहनते थे। मेरे बाबूजी की उम्र करीब 40-41 साल की होगी और माँ की उम्र 34-35 साल की। माँ कहती है कि उसकी शादी 14 वे साल में ही हो गई थी और साल बीतते बीतते मैं पैदा हो गया था। मेरे जन्म के 2 साल बाद रेनू पैदा हुई।

अब जरा माँ के बारे में बताउँ। वो गाँव में पैदा हुई और पली बढ़ी। पांच भाई बहनों में वो सबसे छोटी थी। खूब गोरा दमकता हुआ रंग, 5’5″ लम्बी, चौडे कन्धे, खूब उभरी हुई छाती, उठे हुए स्तन और मस्त, गोल गोल भरे हुए नितम्ब। जब मैं 14 साल का हुआ और मर्द और औरत के रिश्ते के बारे में समझने लगा तो जिसके बारे में सोचते ही मेरा लौड़ा खड़ा हो जाता था, वो मेरी माँ मालती ही है। मैंने कई बार मालती के बारे में सोच सोच कर हत्तु मारा होगा लेकिन ना तो कभी मालती का चुची दबाने का मौका मिला, ना ही कभी उसको अपना लौड़ा ही दिखा पाया। इस डर से क़ि अगर घर में रहा तो जरुर एक दिन मुझसे पाप हो जायेगा, 8वीं क्लास के बाद मैं जिद कर होस्टल में चला गया।

माँ को पता नहीं चल पाया कि उसके इकलौते बेटे का लौड़ा माँ की बुर के लिए तड़पता है। छुट्टियों में आता था तो चोरी छिपे मालती की जवानी का मज़ा लेता था और करीब करीब रोज रात को हत्तु मारता था। मैं हमेशा यह ध्यान रखता था कि माँ को कभी भी मेरे ऊपर शक ना हो। और माँ को शक नहीं हुआ। वो कभी कभी प्यार से गालों पर थपकी लगाती थी तो बहुत अच्छा लगता था। मुझे याद नहीं कि पिछले 4-5 सालों में उसने कभी मुझे गले लगाया हो।

अब इस होली कि बात करें। माँ सुबह से नाश्ता, खाना बनाने में व्यस्त थी। करीब 9 बजे हम सब यानि मैं, बाबूजी और दादाजी ने नाश्ता किया और फिर माँ ने भी हम लोगों के साथ चाय पी। 10 – 10.30 बजे बाबूजी के दोस्तो का ग्रुप आया। मैं छत के ऊपर चला गया। मैंने देखा कि कुछ लोगों ने माँ को भी रंग लगाया। दो लोगों ने तो माँ की चूतड़ों को दबाया, कुछ देर तो माँ ने मजा लिया और फिर माँ छिटक कर वहाँ से हट गई। सब लोग बाबूजी को लेकर बाहर चले गये । दादाजी अपने कमरे में जाकर बैठ गये।

फिर आधे घंटे के बाद औरतों का हुजूम आया। करीब 30 औरतें थी, हर उम्र की। सभी एक दूसरे के साथ खूब जमकर होली खेलने लगे। मुझे बहुत अच्छा लगा। जब मैंने देखा कि औरतें एक दूसरे की चुची मसल मसल कर मजा ले रही हैं, कुछ औरतें तो साया उठा उठा कर रंग लगा रही थी। एक ने तो हद ही कर दी। उसने अपना हाथ दूसरी औरत के साया के अन्दर डाल कर बुर को मसला। कुछ औरतों ने मेरी माँ मालती को भी खूब मसला और उनकी चुची दबाई। फिर सब कुछ खा पीकर बाहर चली गई। उन औरतो ने माँ को भी अपने साथ बाहर ले जाना चाहा लेकिन माँ उनके साथ नहीं गई।

उनके जाने के बाद माँ ने दरवाजा बन्द किया। वो पूरी तरह से भीग गई थी। माँ ने बाहर खड़े खड़े ही अपना साड़ी उतार दी। गीला होने के कारण साया और ब्लाऊज दोनों माँ के बदन से चिपक गए थे। कसी कसी जांघें, खूब उभरी हुई छाती और गोरे रंग पर लाल और हरा रंग माँ को बहुत ही मस्त बना रहा था। ऐसी मस्तानी हालत में माँ को देख कर मेरा लौड़ा टाइट हो गया। मैंने सोचा, आज अच्छा मौका है। होली के बहाने आज माँ को बाहों में लेकर मसलने का। मैंने सोचा कि रंग लगाते लगाते आज चुची भी मसल दूंगा। यही सोचते सोचते मैं नीचे आने लगा। जब मैं आधी सीढी तक आया तो मुझे आवाज सुनाई पड़ी!

दादाजी माँ से पूछ रहे थे,” विनोद कहाँ गया?”
“मालूम नहीं, लगता है अपने बाबूजी के साथ बाहर चला गया है।” माँ ने जवाब दिया।

माँ को नहीं मालूम था कि मैं छत पर हूँ और अब उनकी बातें सुन भी रहा हूँ और देख भी रहा हूँ। मैंने देखा मालती अपने ससुर के सामने गरदन झुकाये खड़ी है। दादाजी माँ के बदन को घूर रहे थे।

तभी दादाजी ने माँ के गालो को सहलाते हुये कहा,”मेरे साथ होली नहीं खेलोगी?”

मैं तो ये सुन कर दंग रह गया। एक ससुर अपनी बहू से होली खेलने को बेताब था। मैंने सोचा, माँ ददाजी को धक्का देकर वहाँ से हट जायेगी लेकिन साली ने अपना चेहरा ऊपर उठाया और मुस्कुरा कर कहा,” मैंने कब मना किया है, और अभी तो घर में कोई है भी नहीं!”

कहकर माँ वहां से हट गई। दादाजी भी कमरे के अन्दर गये और फिर दोनों अपने अपने हाथों में रंग लेकर वापस वहीं पर आ गये। दादाजी ने पहले दोनों हाथों से माँ की दोनों गालों पर खूब मसल मसल कर रंग लगाया और उसी समय माँ भी उनके गालों और छाती पर रंग रगड़ने लगी। दादाजी ने दुबारा हाथ में रंग लिया और इस बार माँ की गोल गोल बड़ी बड़ी चुचियों पर रंग लगाते हुए चुचियों को दबाने लगे। माँ भी सिसकारती मारती हुई दादाजी के शरीर पर रंग लगा रही थी।

कुछ देर तक चुचियों को मसलने के बाद दादाजी ने माँ को अपनी बाहों में कस लिया और चूमने लगे। मुझे लगा कि माँ गुस्सा करेगी और दादाजी को डांटेगी। लेकिन मैंने देखा क़ि माँ भी दादाजी के पांव पर पांव चढ़ा कर चूमने में मदद कर रही है। चुम्मा लेते लेते दादाजी का हाथ माँ की पीठ को सहला रहा था और हाथ धीरे धीरे माँ के सुडौल नितम्बों की ओर बढ़ रहा था । वे दोनों एक दूसरे को जम कर चूम रहे थे जैसे पति-पत्नि हों।

अब दादाजी माँ के चूतड़ों को दोनों हाथों से खूब कस कस कर मसल रहे थे और यह देख कर मेर लौड़ा पैंट से बाहर आने को तड़प रहा था। क़हां तो मैं यह सोच कर नीचे आ रहा था कि मैं माँ के मस्त गुदाज बदन का मजा लूंगा और कहां मुझसे पहले इस हरामी दादाजी ने रंडी का मजा लेना शुरु कर दिया।
मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। मन तो कर रहा था कि मैं दोनों के सामने जाकर खड़ा हो जाऊँ। लेकिन तभी मुझे दादाजी कि आवाज सुनाई पड़ी,” रानी, पिचकारी से रंग डालूँ?”

दादाजी ने माँ को अपने से चिपका लिया था। माँ का पिछवाड़ा दादाजी से सटा था और मुझे माँ का सामने का माल दिख रहा था। दादाजी का एक हाथ चुची को मसल रहा था और दूसरा हाथ माँ के पेड़ू को सहला रहा था।

“अब भी कुछ पूछने की जरूरत है क्या?”

माँ का इतना कहना था कि दादाजी ने एक झटके में साया के नाड़े को खोल डाला और हाथ से धकेल कर साया को नीचे जांघो से नीचे गिरा दिया। मैं अवाक था माँ की बुर को देखकर। माँ ने पैरों से ठेल कर साया को अलग कर दिया और दादाजी का हाथ लेकर अपनी बुर पर सहलाने लगी। बुर पर बाल थे जो बुर को ढक रखा था। दादाजी की अंगुली बुर को कुरेद रही थी और माँ अपनी हाथो से ब्लाउज का बटन खोल रही थी। दादाजी ने माँ के हाथ को अलग हटाया और फटा फट सारे बटन खोल दिए और ब्लाउज को निकाल दिया।

अब माँ पूरी तरह से नंगी थी। मैंने जैसा सोचा था, चूची उससे भी बड़ी बड़ी और सुडौल थी। दादाजी आराम से नंगी जवानी का मजा ले रहे थे। माँ ने 2-3 मिनट दादाजी को चुची और चूत मसलने दिया फिर वो अलग हुई और वहीं फर्श पर मेरी तरफ पाँव रखकर लेट गई। मेरा मन कर रहा था कि जाकर चूत में लौड़ा पेल दूँ। तभी दादाजी ने अपना धोती और कुर्ता उतारा और माँ के चेहरे के पास बैठ गये। माँ ने लन्ड को हाथ में लेकर मसला और कहा,”पिचकारी तो अच्छा दिखता है लेकिन देखें इसमें रंग कितना है! अब देर मत करो, वे आ जायेंगे तो फिर रंग नहीं डाल पाओगे।”

और फिर, दादाजी ने माँ पाँव के बीच बैठ कर लन्ड को चूत पर दबाया और तीसरे धक्के में पूरा लौड़ा बुर के अन्दर चला गया। क़रीब 10 मिनटों तक माँ को खूब जोर जोर से धक्का लगा कद चोदा। उस रन्डी को भी चुदाई का खूब मजा आ रहा था, तभी तो साली जोर जोर से सिसकारी मार मार कर और चूतड़ उछाल उछाल कर दादाजी के लंड के धक्के का बराबर जबाब दे रही थी। उन दोनों की चुदाई देखकर मुझे विश्वास हो गया था कि माँ और दादाजी पहले भी कई बार चुदाई कर चुके हैं.

“क्या राजा, इस बहू का बुर कैसा है? मजा आया या नहीं?” माँ ने कमर उछालते हुये पूछा।

“मेरी प्यारी बहू! बहुत प्यारी चूत है और चूची तो बस, इतनी मस्त चुची पहले कभी नहीं दबाई।”दादाजी ने चुची को मसलते हुये पेलना जारी रखा और कहा।

“रानी, तुम नहीं जानती, तुम जबसे घर में दुल्हन बन कर आई, मैं हजारों बार तुम्हारे चूत और चुची का सोच सोच कर लंड को हिला हिला कर तुम्हारा नाम ले ले कर पानी गिराता हूँ।”

दादाजी ने चोदना रोक कर माँ की चुची को मसला और रस से भरे ओंठों को कुछ देर तक चूसा। फिर चुदाई शुरू की और कहा,”मुझे नहीं मालूम था कि एक बार बोलने पर ही तुम अपनी चूत दे दोगी, नहीं तो मैं तुम्हें पहले ही सैकडों बार चोद चुका होता!”

मुझे विश्वास नहीं हुआ कि माँ दादाजी से पहली बार चुद रही है। दादाजी ने एक बार कहा और हरामजादी बिना कोई नखरा किये चुदाने के लिये नंगी हो गई और दादाजी कह रहे है कि आज पहली बार ही माँ को चोद रहे हैं।

लेकिन तब माँ ने जो कहा वो सुनकर मुझे विश्वास हो गया कि माँ पहली बार ही दादाजी से मरवा रही है।

माँ ने कहा,” राजा, मैं कोई रंडी नहीं हूँ। आज होली है, तुमने मुझे रंग लगाना चाहा, मैंने लगाने दिया, तुमने चुची और चूत मसला, मैंने मना नहीं किया, तुमने मुझे चूमा और मैंने भी तुमको चूमा और तुम चोदना चाह्ते थे, पिचकारी डालना चाहते थे तो मेरी चूत ने पिचकारी अन्दर ले ली। तुम्हारी जगह कोई और भी ये चाहता तो मैं उस से भी चुदवाती। चाहे वो राजा हो या नौकर! होली के दिन मेरा माल, मेरी चूत, मेरी जवानी सब के लिये खुली है…!”

माँ ने दादाजी को अपनी बांहों और जांघों में कस कर बांधा और फिर कहा,”आज जितना चोदना है, चोद लो, फिर अगली होली का इंतजार करना पड़ेगा मेरी नंगी जवानी का दर्शन करने के लिये!”

माँ की बात सुनकर मैं आश्चर्य-चकित था कि होली के दिन कोई भी उसे चोद सकता था.

लेकिन यह जान कर मैं भी खुश हो गया। कोई भी में तो मैं भी आता हूँ। आज जैसे भी हो, माँ को चोदूँगा ही। यह सोच कर मैं खुश था और उधर दादाजी ने माँ की चूत में पिचकारी मार दी। बुर से मलाई जैसा गाढ़ा दादाजी का रस बाहर निकल रहा था और दादाजी खूब प्यार से माँ को चूम रहे थे।

क़ुछ देर बाद दोनों उठ गये।
“कैसी रही होली?” माँ ने पूछा,” आप पहले होली पर हमारे साथ क्यों नहीं रहे। मैंने 12 साल पहले होली के दिन सबके लिये अपना खजाना खोल दिया था।”

माँ ने दादाजी के लौड़ा को सहलाया और कहा,” अभी भी लौड़े में बहुत दम है, किसी कुमारी छोकरी की भी चूत एक धक्के में फाड़ सकता है।”

माँ ने झुक कर लौड़े को चूमा और फिर कहा,”अब आप बाहर जाईये और एक घंटे के बाद आईयेगा। मैं नहीं चाहती कि विनोद या उसके बाप को पता चले कि मैंने आप से चुदाई है।”

माँ वहीं नंगी खड़ी रही और दादाजी को कपडे पहनते देखती रही। धोती और कुर्ता पहनने के बाद दादाजी ने फिर माँ को बांहो में कसकर दबाया और गालों और होंठों को चूमा। कुछ चुम्मा चाटी के बाद माँ ने दादाजी को अलग किया और कहा,”अभी बाहर जाओ, बाद में मौका मिलेगा तो फिर से चोद लेना लेकिन आज ही, कल से मैं आपकी वही पुरानी बहू रहूंगी।”

दादाजी ने चुची दबाते हुये माँ को दुबारा चूमा और बाहर चले गये।

मैं सोचने लगा कि क्या करूँ?

मैं छत पर चला गया और वहाँ से देखा- दादाजी घर से दूर जा रहे थे और आस पास मेरे पिताजी का कोई नामो निशान नहीं था। मैंने लौड़े को पैंट के अन्दर किया और धीरे धीरे नीचे आया। माँ बरामदे में नहीं थी। मैं बिना कोई आवाज किये अपने कमरे में चला गया और वहाँ से झांका। इधर उधर देखने के बाद मुझे लगा कि माँ किचन में हैं। मैंने हाथ में रंग लिया और चुपके से किचन में घुसा। माँ को देखकर दिल बाग बाग हो गया। वो अभी भी नंग धड़ंग खड़ी थी। वो मेरी तरफ पीठ करके पुआ बेल रही थी। माँ के सुडौल और भरे भरे मांसल चूतड़ों को देख कर मेरा लौड़ा पैंट फाड़ कर बाहर निकलना चाहता था।

कोई मौका दिये बिना मैंने दोनों हाथों को माँ की बांहो से नीचे आगे बढ़ा कर उनके गालों पर खूब जोर जोर से रंग लगाते हुये कहा,”माँ, होली है!”

और फिर दोनों हाथों को एक साथ नीचे लाकर माँ की गुदाज और बड़ी बड़ी चुचियों को मसलने लगा।

“ओह … तू कब आया? दरवाजा तो बन्द है! छोड़ ना बेटा … क्या कर रहा है? माँ के साथ ऐसे होली नहीं खेलते … ओह्ह्ह्ह … इतना जोर जोर से मत मसल … अह्ह्ह्ह्ह … छोड़ दे! … अब हो गया…!”

लेकिन मैं ऐसा मौका कहां छोड़ने वाला था। मैं माँ के चूतड़ों को अपने पेरु से खूब दबा कर और चूची को मसलता रहा। माँ बार बार मुझे हटने के लिये बोल रही थी और बीच बीच में सिसकारी भी भर रही थी.. खास कर जब मैं घुंडी को जोर से मसलता था। मेरा लंड बहुत टाइट हो गया था। मैं लंड को पैंट से बाहर निकालना चाहता था। मैं कस कर एक हाथ से चुची को दबाये रखा और दूसरा हाथ पीछे लाकर पैंट का बटन खोला और नीचे गिरा दिया। मेरा लौड़ा पूरा टन टना गया था। मैंने एक हाथ से लंड को माँ के चूतड़ों के बीच दबाया और दूसरा हाथ बढ़ा कर चूत को मसलने लगा।

“नहीं बेटा, बुर को मत छुओ … यह पाप है!”

लौड़े को चूतड़ों के बीच में दबाये रखा और आगे से बुर में बीच वाली अंगुली घुसेड़ दी। करीब 15-20 मिनट पहले दादाजी चोद कर गये थे और चूत गीली थी। मेरा मन झनझना गया था, माँ की नंगी जवानी को छू कर। मुझे लगा कि इसी तरह अगर मैं माँ को रगड़ता रहा तो बिना चोदे ही झड जाउंगा और फिर माँ मुझे कभी चोदने नहीं देगी। यही सोच कर मैंने चूत से अंगुली बाहर निकाली और पीछे से ही कमर से पकड़ कर माँ को उठा लिया।

“ओह … क्या मस्त माल है … चल रंडी, अब तुझे जम कर चोदूंगा … बहुत मजा आयेगा मेरी रानी तुझे चोदने में!”

ये कहते हुये मैंने माँ को दोनों हाथों से उठा कर बेड पर पटक दिया और उसकी दोनों पैरों को फैला कर मैंने लौड़ा बुर के छेद पर रखा और खूब जोर से धक्का मारा।

“आउच..जरा धीरे! ” माँ ने हौले से कहा।

मैंने जोर का धक्का लगाया और कहा,”ओह्ह्ह्ह … माँ, तू नहीं जानती, आज मैं कितना खुश हूँ!” मैं धक्का लगाता रहा और खूब प्यार से माँ के रस से भरे होंठों को चूमा।

“मां, जब से मेरा लौड़ा खड़ा होना शुरु हुआ, चार साल पहले, तो तबसे बस सिर्फ तुम्हें ही चोदने का मन करता है। हजारों बार तेरी चूत और चुची का ध्यान कर मैंने लौड़ा हिलाया है और पानी गिराया है.. हर रात सपने में तुम्हें चोदता हूँ। ले रानी आज पूरा मजा मारने दे!”

मैंने माँ की चुचियों को दोनों हाथों में कस कर दबा कर रखा और दना दन चुदाई करने लगा। माँ आंख़ बन्द कर चुदाई का मजा ले रही थी। वो कमर और चूतड़ हिला हिला कर लंड को चुदाई में मदद दे रही थी।

“साली, आंख खोल और देख, तेरा बेटा कैसा चुदाई कर रहा है … रंडी, खोलना आंख!”

माँ ने आंखें खोली। उसकी आंखो में कोई ‘भाव’ नहीं था। ऐसा भी नहीं लग रहा था कि वो मुझसे नाराज है…ना ही यह पता चल रहा था कि वो बेटे के लंड का मजा ले रही है.. लेकिन मैं पूरा मजा लेकर चोद रहा था…

“साली, तू नहीं जानती … तेरे बुर के चक्कर में मैं रन्डियों के पास जाने लगा और ऐसी ऐसी रंडी की तलाश करता था जो तुम्हारी जैसी लगती हो… लेकिन अब तक जितनी भी बुर चोदी सब की सब ढीली ढाली थी … लेकिन आज मस्त, कसी हुई बुर चोदने को मिली है … ले रंडी तू भी मजा ले!”

और उसके बाद बिना कोई बात किये मैं माँ को चोदता रहा और वो भी कमर उछाल उछाल कर चुदवाती रही। कुछ देर के बाद माँ ने सिसकारी मारनी शुरु की और मुझे उसकी सिसकारी सुनकर और भी मजा आने लगा। मैंने धक्के की स्पीड और दम बढ़ा दिया और खूब दम लगा कर चोदने लगा.

माँ जोर जोर से सिसकारी मारने लगी।

“रंडी, कुतिया जैसे क्यों चिल्ला रही है, कोई सुन लेगा तो?”

“तो सुनने दो…लोगों को पता तो चले कि एक कुतिया कैसे अपने बेटे से मरवाती है…मार दे , फाड़ दे इस बुर को…मादरचोद , माँ की बुर इतनी ही प्यारी है तो हरामी पहले क्यों नहीं पटक कर चोद डाला… अगर तू हर पिछली होली में यहाँ रहता और मुझे चोदने के लिये बोलता तो मैं ऐसे ही बुर चिरवा कर तेरा लौड़ा अन्दर ले लेती…चोद बेटा ..चोद ले…लेकिन देख तेरा बाप और दादाजी कभी भी आ सकते हैं..! जल्दी से बुर में पानी भर दे!”

“ले मां, तू भी क्या याद रखेगी कि किसी रन्डीबाज ने तुझे चोदा था… ले कुतिया, बन्द कर ले मेरा लौड़ा अपनी बुर में!” मैं अब चुची को मसल मसल कर, कभी माँ की मस्त जांघों को सहला सहला कर धक्के पर धक्का लगाये जा रहा था।

“आह्ह्ह्ह्ह … बेटा, ओह्ह्ह्ह्ह … बेटा… अह्ह्ह्ह्ह … मार राजा … चोद … चोद!”

और माँ ने दोनों पाँव उपर उठाए और मुझे जोर से अपनी ओर दबाया और माँ पस्त हो गई और हांफने लगी।

“बस बेटा, हो गया … निकाल ले … तूने खुश कर दिया!”

“माँ बोलती रही और मैं कुछ देर और धक्का लगाता रहा और फिर मैं भी झर गया। मैंने दोनों हाथों से चुची को मसलते हुये बहुत देर तक माँ के गालों और ओंठो को चूमता रहा। माँ भी मेरे बदन को सहलाती रही और मेरे चुम्बन का पूरा जबाब दिया। फिर उसने मुझे अपने बदन से उतारा और कहा,”बेटा, कपड़े पहन ले … सब आने बाले होंगे!”

“फिर कब चोदने दोगी?” मैंने चूत को मसलते हुये पूछा।
“अगले साल, अगर होली पर घर में मेरे साथ रहोगे!” माँ ने हंस कर जवाब दिया.
मैंने चूत को जोर से मसलते हुये कहा,”चुप रंडी, नखरे मत कर, मैं तो रोज तुझे चोदूँगा!”

“ये रंडी चालू माल नहीं है… तू कालेज जा कर उन चालू रंडियों को चोदना…” माँ कहते कहते नंगी ही किचन में चली गई।

मैंने पीछे से पकड़ कर चूतड़ों को मसला और कहा,”मां, तू बहुत मस्त माल है … तुझे लोग बहुत रुपया देंगे, चल तुझे भी कोठे पर बैठा कर धंधा करवाऊँगा।” मैंने माँ की गांड में अंगुली पेली और वो चिहुंक गई.
मैंने कहा,”रंडी बाद में बनना, चल साली अभी तो कपड़े पहन ले.”

“कमरे से ला दे … जो तेरा मन करे!” वो बोली और पुआ तलने लगी।

मैंने तुरंत कमरे से एक साया और ब्लाउज लाकर माँ को पहनाया।
“साड़ी नहीं पहनाओगे?” माँ ने मेरे गालों को चूमते हुये कहा।
“नहीं रानी, आज से घर में तुम ऐसी ही रहोगी, बिना साड़ी के…”
“तेरे दादाजी के सामने भी?” उसने पूछा।
“ठीक है सिर्फ आज भर … कल से फिर साड़ी भी पहनूंगी।”
माँ खाना बनाती रही और मैं उसके साथ मस्ती करता रहा।

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