धोबी घाट पर माँ और मैं-4
(Dhobi Ghat Per Maa Aur Main-4)
माँ ने मेरे हाथ को अपने हाथों में ले लिया और कहा- इसका मतलब तू मुझे नंगी नहीं देख सकता, है ना?
मेरे मुंह से निकल गया- हाय माँ, छोड़ो ना!
मैं हकलाते हुए बोला- नहीं माँ, ऐसा नहीं है।
‘तो फिर क्या है? तू अपनी माँ को नंगी देख लेगा क्या?’
‘हाय, मैं क्या कर सकता था? वो तो तुम्हारा पेटिकोट नीचे गिर गया, तब मुझे नंगा दिख गया। नहीं तो मैं कैसे देख पाता?’
‘वो तो मैं समझ गई, पर उस वक्त तुझे देख कर मुझे ऐसा लगा, जैसे कि तू मुझे घूर रहा है… इसलिये पूछा।’
‘हाय माँ, ऐसा नहीं है। मैंने तुम्हें बताया ना, तुम्हें बस ऐसा लगा होगा।’
‘इसका मतलब तुझे अच्छा नहीं लगा था ना?’
‘हाय माँ, छोड़ो…’ मैं हाथ छुड़ाते हुए अपने चेहरे को छुपाते हुए बोला।
माँ ने मेरा हाथ नहीं छोड़ा और बोली- सच सच बोल, शरमाता क्यों है?
मेरे मुंह से निकल गया- हाँ, अच्छा लगा था।
इस पर माँ ने मेरे हाथ को पकड़ के सीधे अपनी छाती पर रख दिया और बोली- फिर से देखेगा माँ को नंगी? बोल देखेगा?’
मेरे मुख से आवाज नहीं निकल पा रही थी, मैं बड़ी मुश्किल से अपने हाथों को उसकी नुलीली, गुदाज छातियों पर स्थिर रख पा रहा था। ऐसे में मैं भला क्या जवाब देता, मेरे मुख से एक कराहने की सी आवाज निकली।
माँ ने मेरी ठुड्डी पकड़ कर फिर से मेरे चेहरे को ऊपर उठाया और बोली- क्या हुआ? बोल ना, शरमाता क्यों है? जो बोलना है बोल।
मैं कुछ नहीं बोला।
थोड़ी देर तक उसकी चूचियों पर ब्लाउज़ के ऊपर से ही हल्का-सा हाथ फेरा।, फिर मैंने हाथ खींच लिया।
माँ कुछ नहीं बोली, गौर से मुझे देखती रही, फिर पता नहीं क्या सोच कर वो बोली- ठीक है, मैं सोती हूँ यहीं पर… बड़ी अच्छी हवा चल
रही है, तू कपड़ों को देखते रहेना, जो सूख जायें, उन्हें उठा लेना। ठीक है?
और फिर मुंह घुमा कर एक तरफ सो गई।
मैं भी चुपचाप वहीं आँखें खोले लेटा रहा।
माँ की चूचियाँ धीरे-धीरे ऊपर-नीचे हो रही थी। उसने अपना एक हाथ मोड़ कर अपनी आँखों पर रखा हुआ था और दूसरा हाथ अपनी बगल में रख कर सो रही थी। मैं चुपचाप उसे सोता हुआ देखता रहा।
थोड़ी देर में उसकी उठती गिरती चूचियों का जादू मेरे ऊपर चल गया और मेरा लण्ड खड़ा होने लगा, मेरा दिल कर रह था कि काश मैं फिर से उन चूचियों को एक बार छू लूँ।
मैंने अपने आप को गालियाँ भी निकाली- क्या उल्लू का पठ्ठा हूँ मैं भी, जो चीज आराम से छूने को मिल रही थी, तो उसे छूने की बजाये मैंने हाथ हटा लिया।
पर अब क्या हो सकता था, मैं चुपचाप वैसे ही बैठा रहा, कुछ सोच भी नहीं पा रहा था।
फिर मैंने सोचा कि जब उस वक्त माँ ने खुद मेरा हाथ अपनी चूचियों पर रख दिया था तो फिर अगर मैं खुद अपने मन से रखूँ तो शायद डांटेगी नहीं, और फिर अगर डांटेगी तो बोल दूँगा कि तुम्ही ने तो मेरा हाथ उस वक्त पकड़ कर रखा था, तो अब मैंने अपने आप से रख दिया, सोचा, शायद तुम बुरा नहीं मानोगी।
यही सब सोच कर मैंने अपने हाथों को धीरे से उसकी चूचियों पर ले जा कर रख दिया और हल्के हल्के से सहलाने लगा। मुझे गजब का मजा आ रहा था। मैंने हल्के से उसकी साड़ी को पूरी तरह से उसके ब्लाउज़ पर से हटा दिया और फिर उसकी चूचियों को दबाया।
ओ…ओह… इतना गजब का मजा आया कि बता नहीं सकता… एकदम गुदाज और सख्त चूचियाँ थी माँ की इस उमर में भी।
यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !
मेरा तो लण्ड खड़ा हो गया, और मैं अपने एक हाथ को चूचियों पर रखे हुए दूसरे हाथ से अपने लण्ड को मसलने लगा।
जैसे-जैसे मेरी बेताबी बढ़ रही थी, वैसे-वैसे मेरे हाथ दोनों जगहों पर तेजी के साथ चल रहे थे। मुझे लगता है कि मैंने माँ की चूचियों को कुछ ज्यादा ही जोर से दबा दिया था, शायद इसलिये माँ की आँख खुल गई, वो एकदम से हड़बड़ाते उठ गई, अपने आंचल को संभालते हुए अपनी चूचियों को ढक लिया और फिर मेरी तरफ देखती हुई बोली- हाय, क्या कर रहा था तू? हाय,मेरी तो आँख लग गई थी।
मेरा एक हाथ अभी भी मेरे लण्ड पर था और मेरे चेहरे का रंग उड़ गया था।
माँ ने मुझे गौर से एक पल के लिये देखा और सारा माजरा समझ गई और फिर अपने चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट बिखेरते हुए बोली- हाय, देखो तो सही !! क्या सही काम कर रहा था ये लड़का। मेरा भी मसल रहा था और उधर अपना भी मसल रहा था।
फिर माँ उठ कर सीधी खड़ी हो गई और बोली- अभी आती हूँ।
कह कर मुस्कुराते हुए झाड़ियों की तरफ बढ़ गई। झाड़ियों के पीछे से आकर फिर अपने चूतड़ों को जमीन पर सटाये हुए ही थोड़ा आगे सरकते हुए मेरे पास आई।
उसके सरक कर आगे आने से उसकी साड़ी थोड़ी-सी ऊपर हो गई, और उसका आंचल उसकी गोद में गिर गया पर उसको इसकी फिकर नहीं थी। वो अब एकदम से मेरे नजदीक आ गई थी और उसकी गरम सांसें मेरे चेहरे पर महसूस हो रही थी।
वो एक पल के लिये ऐसे ही मुझे देखती रही, फिर मेरी ठुड्डी पकड़ कर मुझे ऊपर उठाते हुए हल्के से मुस्कुराते हुए धीरे से बोली- क्यों रे बदमाश, क्या कर रहा था? बोल ना, क्या बदमाशी कर रहा था अपनी माँ के साथ?
फिर मेरे फूले-फूले गाल पकड़ कर हल्के-से मसल दिये।
मेरे मुख से तो आवाज ही नहीं निकल रही थी।
फिर उसने हल्के-से अपना एक हाथ मेरी जांघों पर रखा और सहलाते हुए बोली- हाय, कैसे खड़ा कर रखा है, मुए ने?
फिर सीधा पजामे के ऊपर से मेरे खड़े लण्ड (जो माँ के जगने से थोड़ा ढीला हो गया था, पर अब उसके हाथों का स्पर्श पाकर फिर से खड़ा होने लगा था।) पर उसने अपना हाथ रख दिया- उई माँ, कैसे खड़ा कर रखा है? क्या कर रहा था रे, हाथ से मसल रहा था क्या? हाय बेटा, और मेरी इसको भी मसल रहा था? तू तो अब लगता है, जवान हो गया है। तभी मैं कहूँ कि जैसे ही मेरा पेटिकोट नीचे गिरा,
यह लड़का मुझे घूर घूर कर क्यों देख रहा था? हाय, इस लड़के की तो अपनी माँ के ऊपर ही बुरी नजर है।
‘हाय माँ, गलती हो गई, माफ कर दो।’
कहानी जारी रहेगी।
[email protected]
What did you think of this story??
Comments