धोबी घाट पर माँ और मैं -14
(Dhobi Ghat Per Maa Aur Main-14)
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माँ ने मेरे चेहरे को अपने होंठों के पास खींच कर मेरे होंठों पर एक गहरा चुम्बन लिया और अपनी कातिल मुस्कुराहट फेंकते हुए मेरे
कान के पास धीरे से बोली- सिर्फ़ दूध ही पीयेगा या मालपुआ भी खायेगा? देख तेरा मालपुआ तेरा इन्तजार कर रहा है राजा।
मैंने भी माँ के होंठों का चुम्बन लिया और फिर उसके भरे-भरे गालों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा और फिर उसके नाक को चूम और फिर धीरे से बोला- ओह माँ, तुम सच में बहुत सुन्दर हो।
इस पर माँ ने पूछा- क्यों, मजा आया ना चूसने में?
‘हाँ माँ, गजब का मजा आया, मुझे आज तक ऐसा मजा कभी नहीं आया था।’
तब माँ ने अपने पैरों के बीच इशारा करते हुए कहा- नीचे और भी मजा आयेगा। यह तो केवल तिजोरी का दरवाजा है, असली खजाना तो नीचे है। आ जा बेटे, आज तुझे असली मालपुआ खिलाती हूँ।
मैं धीरे से खिसक कर माँ के पैरो पास आ गया, माँ ने अपने पैरों को घुटनो के पास से मोड़ कर फैला दिया और बोली- यहाँ बीच में दोनों पैरों के बीच में आकर बैठ, तब ठीक से देख पायेगा, अपनी माँ का खजाना!
मैं उठ कर माँ के दोनों पैरों के बीच घुटनों के बल बैठ गया और आगे की ओर झुका, मेरे सामने वो चीज़ थी, जिसको देखने के लिए
मैं मरा जा रहा था।
माँ ने अपनी दोनों जांघें फैला दी और अपने हाथों को अपनी बुर के ऊपर रख कर बोली- ले देख ले अपना मालपुआ… अब आज के बाद से तुझे यही मालपुआ खाने को मिलेगा।’
मेरी खुशी का तो ठिकाना नहीं था। सामने माँ की खुली जांघों के बीच झांटों का एक त्रिकोण सा बना हुआ था, इस त्रिकोणीय झांटों के जंगल के बीच में से माँ की फ़ूली हुए गुलाबी चूत का छेद झांक रहा था जैसे बादलों के झुरमुट में से चाँद झाँकता है।
मैंने अपने काम्पते हाथों को माँ की चिकनी जांघों पर रख दिया और थोड़ा सा झुक गया। उसकी चूत के बाल बहुत बड़े नहीं थे, छोटे छोटे घुंघराले बाल और उनके बीच एक गहरी लकीर से चीरी हुई थी।
मैंने अपने दाहिने हाथ को जांघ पर से उठा कर हकलाते हुये पूछा- माँ, मैं इसे छू लूँ?
‘छू ले, तेरे छूने के लिये ही तो खोल कर बैठी हूँ।’
मैंने अपने हाथों को माँ की चूत को ऊपर रख दिया, झांट के बाल एकदम रेशम जैसे मुलायम लग रहे थे।
हालांकि आम तौर पर झांट के बाल थोड़े मोटे होते हैं और उसकी झांट के बाल भी मोटे ही थे पर मुलायम भी थे। हल्के हल्के मैं उन बालों पर हाथ फिराते हुए उनको एक तरफ करने की कोशिश कर रह था। अब चूत की दरार और उसकी मोटी-मोटी फांकें स्पष्ट रूप से
दिख रही थी।
माँ की बुर एक फ़ूली हुई और गद्देदार लगती थी, चूत की मोटी मोटी फांकें बहुत आकर्षक लग रही थी, मेरे से रहा नहीं गया और मैं बोल पड़ा- ओह माँ, यह तो सचमुच में मालपुए के जैसी फ़ूली हुई है।
‘हाँ बेटा, यही तो तेरा असली मालपुआ है। आज के बाद जब भी मालपुआ खाने का मन करे, यही खाना।’
‘हाँ माँ, मैं तो हमेशा यही मालपुआ खाऊँगा। ओह माँ, देखो ना इससे तो रस भी निकल रहा है।’
चूत से रिसते हुए पानी को देख कर मैंने कहा।
‘बेटा, यही तो असली माल है हम औरतों का। यह रस मैं तुझे अपनी बुर की थाली में सजा कर खिलाऊँगी। दोनों फांकों को खोल कर देख कैसी दिखती है? हाथ से दोनों फांक पकड़ कर, खींच कर बुर को चिरोड़ कर देख।’
सच बताता हूँ, दोनों फांकों को चीर कर मैंने जब चूत के गुलाबी रस से भीगे छेद को देखा, तो मुझे यही लगा कि मेरा तो जन्म सफल हो गया है। चूत के अंदर का भाग एकदम गुलाबी था और रस भीगा हुआ था, जब मैंने उस छेद को छुआ तो मेरे हाथों में चिपचिपा सा रस लग गया।मैंने उस रस को वहीं बिस्तर की चादर पर पौंछ दिया और अपने सिर को आगे बढ़ा कर माँ की बुर को चूम लिया।
माँ ने इस पर मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाते हुए हल्के से सिसकारते हुए कहा- बिस्तर पर क्यों पोंछ दिया, उल्लू? यही माँ का असली प्यार है जो तेरे लंड को देख कर चूत के रास्ते छलक कर बाहर आ रहा है। इसको चख कर देख, चूस ले इसको।
‘हाय माँ, चूस लूँ मैं तेरी चूत को? हाय माँ, चाटूँ इसको?’
‘हाँ बेटा चाट ना, चूस ले अपनी माँ की चूत के सारे रस को, दोनों फांकों को खोल कर उसमें अपनी जीभ डाल दे और चूस। और ध्यान से देख, तू तो बुर की केवल फांकों को देख रहा है, देख मैं तुझे दिखाती हूँ।’
और माँ ने अपनी चूत को पूरा चिरोड़ दिया और अंगुली रख कर बताने लगी- देख, यह जो छोटा वाला छेद है ना, वो मेरे पेशाब करने
वाला छेद है। बुर में दो दो छेद होते हैं, ऊपर वाला पेशाब करने के काम आता है और नीचे वाला जो यह बड़ा छेद है, वो चुदवाने के काम आता है। इसी छेद में से रस निकलता है ताकि मोटे से मोटा लंड आसानी से चूत को चोद सके। और बेटा यह जो पेशाब वाले छेद के ठीक ऊपर जो यह नुकीला सा निकला हुआ है, वो भगनासा कहलाता है, यह औरत को गर्म करने का अंतिम हथियार है, इसको छूते ही औरत एकदम गरम हो जाती है, समझ में आया?
‘हाँ माँ, आ गया समझ में! हाय, कितनी सुन्दर है यह तुम्हारी बुर… मैं चाट लूँ इसे माँ?’
‘हाँ बेटा, अब तू चाटना शुरु कर दे, पहले पूरी बुर के ऊपर अपनी जीभ को फिरा कर चाट, फिर मैं आगे बताती जाती हूँ, कैसे करना
है?’
मैंने अपनी जीभ निकाल ली और माँ की फ़ुद्दी पर अपनी जुबान को फिराना शुरु कर दिया। पूरी चूत के ऊपर मेरी जीभ चल रही थी।
मैं फ़ूली हुई गद्देदार बुर को अपनी खुरदरी जुबान से, ऊपर से नीचे तक चाट रहा था। अपनी जीभ को दोनों फांकों के ऊपर फेरते हुए मैंने ठीक बुर की दरार पर अपनी जीभ रखी और मैं धीरे धीरे ऊपर से नीचे तक चूत की पूरी दरार पर जीभ को फिराने लगा।
बुर से रिस रिस कर निकलता हुआ रस जो बाहर आ रहा था, उसका नमकीन स्वाद मुझे मिल रहा था। जीभ जब चूत के ऊपरी भाग में पहुंच कर भगन से टकराती थी तो माँ की सिसकारियाँ और भी तेज हो जाती थी।
माँ ने अपने दोनों हाथों को शुरू में तो कुछ देर तक अपनी चूचियों पर रख था और अपनी चूचियों को अपने हाथ से ही दबाती रही। मगर बाद में उसने अपने हाथों को मेरे सर के पीछे लगा दिया और मेरे बालों को सहलाते हुए मेरे सर को अपनी चूत पर दबाने लगी।
मेरी चूत चुसाई बदस्तूर जारी थी और अब मुझे इस बात का अंदाज हो गया था कि माँ को सबसे ज्यादा मजा अपनी भगन की चुसाई में आ रहा है। इस लिए मैंने इस बार अपनी जीभ को नुकीला करके उससे भिड़ा दिया और केवल भगन पर अपनी जीभ को तेजी से चलाने लगा।
मैं बहुत तेजी के साथ उसके ऊपर जीभ चला रहा था और फिर पूरी भगनासा को अपने होंठों के बीच दबा कर जोर जोर से चूसने लगा।
माँ ने उत्तेजना में अपने चूतड़ों को ऊपर उछाल दिया और जोर से सिसकारियाँ लेते हुये बोली- हाय दैया, उई माँ, शीस्स शीस्श, चूस ले, ओह, चूस ले, मेरे भगनासा को। ओह, शीस्सह, क्या खूब चूस रहा है रे तू? ओह म…मैंने तो सोचा भी नहीं थाआआअ… कि तेरी जीभ ऐसा कमाल करेगी। हाय रे, बेटाआअ, तू तो कमाल का निकला… आहह… ओओह… ओह ऐसे ही चूस, अपने होंठों के बीच में भगनासा को भर कर, इसी तरह से चूस ले, ओह बेटा चूस, चूस बेटा!
माँ के उत्साह बढ़ाने पर मेरी उत्तेजना अब दुगुनी हो चुकी थी। मैं दोगुने जोश के साथ एक कुत्ते की तरह से लपलप करते हुए, पूरी बुर को चाटे जा रहा था।
अब मैं चूत के भगनासा के साथ साथ पूरी बुर के मांस को अपने मुँह में भर कर चूस रहा था और माँ की मोटी फ़ूली हुई चूत अपनी झांटों समेत मेरे मुँह में थी। पूरी फ़ुद्दी को एक बार रसगुल्ले की तरह से मुँह में भर कर चूसने के बाद मैंने अपने होंठों को खोल कर
चूत के चोदने वाले छेद के सामने टिका दिया और बुर के होंठों से अपने होंठों को मिला कर मैंने खूब जोर जोर से चूसना शुरु कर दिया।
बुर का नशीला रस रिस रिस कर निकल रहा था और सीधे मेरे मुख में जा रहा था।
मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं चूत को ऐसे चूसूँगा या फिर चूत की चुसाई ऐसे की जाती है। पर शायद चूत सामने देख कर चूसने की कला अपने आप आ जाती है।
फुद्दी और जीभ की लड़ाई अपने आप में ही इतनी मजेदार होती है कि इसे सीखने और सिखाने की जरूरत नहीं पड़ती।
बस जीभ को फुद्दी दिखा दो, बाकी का काम जीभ अपने आप कर लेती है।
माँ की सिसकारियाँ और शाबाशी और तेज हो चुकी थी।
मैंने अपने सिर को हल्का सा उठा कर माँ को देखते हुए, अपनी बुर के रस से भीगे होंठों से माँ से पूछा- कैसा लग रहा है माँ, तुझे अच्छा लग रहा है ना?
माँ ने सिसकाते हुए कहा- हाय बेटा मत पूछ, बहुत अच्छा लग रहा है, मेरे लाल… इसी मजे के लिए तो तेरी माँ तरस रही थी। चूस ले
मेरी बुर कोओओ… ओओह… ओईईह, और जोर से चूस्स…स्स, सारा रस पी ले मेरे सैंया, तू तो जादूगर है रेएएए, तुझे तो कुछ बताने की भी जरूरत नहीं, हाय मेरी बुर की फांकों के बीच में अपनी जीभ डाल कर चूस बेटा, और उसमें अपनी जीभ को लबलबाते हुए अपनी जीभ को मेरी चूत के अंदर तक घुमा दे। हय घुमा दे, राजा बेटा घुमा दे!
माँ के बताये हुए रास्ते पर चलना तो बेटे का फर्ज बनता है, और उस फर्ज को निभाते हुए मैंने बुर की दोनों फांकों को फैला दिया और अपनी जीभ को उसकी चूत में पेल दिया।
बुर के अंदर जीभ घुसा कर पहले तो मैंने अपनी जीभ और ऊपरी होंट के सहारे चूत की एक फाँक को पकड़ कर खूब चूसा, फिर दूसरी फांक के साथ भी ऐसा ही किया।
फिर चूत को जितना चिरोड़ सकता था उतना चिरोड़ कर अपनी जीभ को बुर के बीच में डाल कर उसके रस को चटकारे लेकर चाटने लगा।
चूत का रस बहुत नशीला था और माँ की चूत कामोत्तेजना के कारण खूब रस छोड़ रही थी।
रंगहीन, हल्का चिपचिपा रस चाट कर खाने में मुझे बहुत आनन्द आ रहा था।
माँ घुटी-घुटी आवाज में चीखते हुए बोल पड़ी- ओह चाट, ऐसे ही चाट मेरे राजा, चाट चाट कर मेरे सारे रस को पी जा… हाय रे मेरा बेटा, देखो कैसे कुत्ते की तरह से अपनी माँ की बुर को चाट रहा है। ओह चाट ना, ऐसे ही चाट मेरे कुत्ते बेटे, अपनी कुतिया माँ की बुर को चाट, और उसकी बुर के अन्दर अपनी जीभ को हिलाते हुए मुझे अपनी जीभ से चोद डाल।
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक तो माँ मुझे कुत्ता कह रही है, फिर खुद को भी कुतिया कह रही है। पर मेरे दिलो दिमाग में तो अभी केवल माँ की रसीली बुर की चटाई घुसी हुई थी इसलिए मैंने इस तरफ ध्यान नहीं दिया, माँ की आज्ञा का पालन किया और जैसे उसने बताया था उसी तरह से अपनी जीभ से ही उसकी चूत को चोदना शुरू कर दिया।
मैं अपनी जीभ को तेजी के साथ बुर में से अन्दर बाहर कर रहा था और साथ ही साथ चूत में जीभ को घुमाते हुए चूत के गुलाबी छेद से अपने होंठों को मिला कर अपने मुँह को चूत पर रगड़ भी रहा था।
मेरी नाक बार-बार चूत के भगनासा से टकरा रही थी और शायद वो भी माँ के आनन्द का एक कारण बन रही थी।
मेरे दोनों हाथ माँ की मोटी, गुदाज जांघों से खेल रहे थे।
तभी माँ ने तेजी के साथ अपने चूतड़ों को हिलाना शुरू किया और जोर-जोर से हाँफते हुए बोलने लगी- ओह निकल जायेगा, ऐसे ही बुर में जीभ चलाते रहना बेटा, ओह, सी… सीई शीइ शिशि, साली बहुत खुजली करती थी। आज निकाल दे, इसका सारा पानी।
और अब माँ दांत पीस कर लगभग चीखते हुए बोलने लगी- ओह होओओ ओओह, शीई… ईईशस्स… साले कुत्ते, मेरे प्यारे बेटे, मेरे लाल, हाय रे, चूस और जोर से चूस अपनी माँ की बुर को, जीभ से चोद दे अभी, सीईई ईई चोद नाआआअ कुत्ते, हरामजादे और जोर से चोद सालेएए, चोद डाल अपनी माँ को, हाय निकला रे, मेरा तो निकल गया। ओह मेरे चुदक्कड़ बेटे, निकाल दिया रे… तूने तो अपनी माँ को अपनी जीभ से चोद डाला।
मित्रो, कहानी पूरी तरह काल्पनिक है, आप मुझे मेल जरूर करें।
कहानी जारी रहेगी।
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