धोबी घाट पर माँ और मैं -10
(Dhobi Ghat Per Maa Aur Main-10)
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मुझे तो ज़ल्दी से माँ के साथ सोने की हड़बड़ी थी कि कैसे माँ से चिपक के उसके माँसल बदन का रस ले सकूँ। पर माँ रसोई साफ करने में ज़ुटी हुई थी, मैंने भी रसोई का सामान सम्भालने में उसकी मदद करनी शुरु कर दी।
कुछ ही देर में सारा सामान ज़ब ठीक ठाक हो गया तो हम दोनों रसोई से बाहर निकले!
माँ ने कहा- जा, दरवाजा बंद कर दे।
मैं दौड़ कर गया और दरवाजा बंद कर आया।
अभी ज्यादा देर तो नहीं हुई थी, रात के साढ़े नौ ही बजे थे पर गाँव में तो ऐसे भी लोग जल्दी ही सो जाया करते हैं। हम दोनों। माँ बेटा छत पर आकर बिछावन पर लेट गए।
बिछावन पर माँ भी मेरे पास ही आकर लेट गई थी।
माँ के इतने पास लेटने भर से मेरे बदन में एक गुदगुदी सी दौड़ गई, उसके बदन से उठने वाली खुशबू मेरी सांसों में भरने लगी और मैं बेकाबू होने लगा था, मेरा लण्ड धीरे धीरे अपना सर उठाने लगा था।
तभी माँ मेरी ओर करवट लेकर घूमी और पूछा- बहुत थक गये हो ना?
‘हाँ माँ, जिस दिन नदी पर जाना होता है, उस दिन तो थकावट ज्यादा हो ही जाती है।’
‘हाँ, बड़ी थकावट लग रही है, जैसे सारा बदन टूट रह हो।’
‘मैं दबा दूँ, थोड़ी थकान दूर हो जाएगी।’
‘नहीं रे, रहने दे तू, तू भी तो थक गया होगा।’
‘नहीं माँ, उतना तो नहीं थका कि तेरी सेवा ना कर सकूँ।’
माँ के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गई और वो हंसते हुए बोली- दिन में इतना कुछ हुआ था, उससे तो तेरी थकान और बढ़ गई होगी।’
‘हाय, दिन में थकान बढ़ने वाला तो कुछ नहीं हुआ था।’
इस पर माँ थोड़ा सा और मेरे पास सरक कर आई।
माँ के सरकने पर मैं भी थोड़ा सा उसकी ओर सरका। हम दोनों की सांसें अब आपस में टकराने लगी थी।
माँ ने अपने हाथों को हल्के से मेरी कमर पर रखा और धीरे धीरे अपने हाथों से मेरी कमर और जांघों को सहलाने लगी।
माँ की इस हरकत पर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई और लण्ड अब फुफकारने लगा था।
माँ ने हल्के-से मेरी जांघों को दबाया। मैंने हिम्मत करके हल्केसे अपने काम्पते हुए हाथों को बढ़ा कर माँ की कमर पर रख दिया।
माँ कुछ नहीं बोली, बस हल्का-सा मुस्कुरा भर दी।
मेरी हिम्मत बढ़ गई और मैं अपने हाथों से माँ की नंगी कमर को सहलाने लगा।
माँ ने केवल पेटिकोट और ब्लाउज़ पहन रखा था। उसके ब्लाउज़ के ऊपर के दो बटन खुले हुए थे।
इतने पास से उसकी चूचियों की गहरी घाटी नजर आ रही थी और मन कर रहा था किजल्दी से जल्दी उन चूचियों को पकड़ लूँ।
पर किसी तरह से अपने आपको रोक रखा था।
माँ ने जब मुझे चूचियों को घूरते हुए देखा तो मुस्कुराते हुए बोली- क्या इरादा है तेरा? शाम से ही घूरे जा रहा है, खा जायेगा क्या? ‘हाय माँ तुम भी क्या बात कर रही हो, मैं कहाँ घूर रहा हूँ?’
‘चल झूठे, मुझे क्या पता नहीं चलता? रात में भी वही करेगा क्या?’
‘क्या माँ?’
‘वही, जब मैं सो जाऊँगी तो अपना भी मसलेगा और मेरी छातियों को भी दबायेगा।’
‘हाय माँ।’
‘तुझे देख कर तो यही लग रहा है कि तू फिर से वही हरकत करने वाला है।’
‘नहीं माँ।’
मेरे हाथ अब माँ की जांघों को सहला रहे थे।
‘वैसे दिन में मजा आया था?’ पूछ कर माँ ने हल्के से अपने हाथों को मेरी लुंगी के ऊपर लण्ड पर रख दिया।
मैंने कहा- हाय माँ, बहुत अच्छा लगा था।’
‘फिर करने का मन कर रहा है क्या?’
‘हाय माँ।’
इस पर माँ ने अपने हाथों का दबाव जरा सा मेरे लण्ड पर बढ़ा दिया और हल्के हल्के दबाने लगी।
माँ के हाथों का स्पर्श पाकर मेरी तो हालत खराब होने लगी थी, ऐसा लग रहा था कि अभी के अभी पानी निकल जाएगा।
तभी माँ बोली- जो काम तू मेरे सोने के बाद करने वाला है, वो काम अभी कर ले। चोरी चोरी करने से तो अच्छा है कि तू मेरे सामने ही कर ले।
मैं कुछ नहीं बोला और अपने काम्पते हाथों को हल्के से माँ की चूचियों पर रख दिया। माँ ने अपने हाथों से मेरे हाथों को पकड़ कर अपनी छातियों पर कस के दबाया और मेरी लुंगी को आगे से उठा दिया और अब मेरे लण्ड को सीधे अपने हाथों से पकड़ लिया।
मैंने भी अपने हाथों का दबाव उसकी चूचियों पर बढ़ा दिया, मेरे अंदर की आग एकदम भड़क उठी थी, और अब तो ऐसा लग रहा था कि जैसे इन चूचियों को मुंह में लेकर चूस लूँ।
मैंने हल्के से अपनी गर्दन को और आगे की ओर बढ़ाया और अपने होंठों को ठीक चूचियों के पास ले गया।
माँ शायद मेरे इरादे को समझ गई थी, उसने मेरे सिर के पीछे हाथ डाला और अपनी चूचियों को मेरे चेहरे से सटा दिया।
हम दोनों अब एक दूसरे की तेज चलती हुई सांसों को महसूस कर रहे थे।
मैंने अपने होठों से ब्लाउज़ के ऊपर से ही माँ की चूचियों को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा। मेरा दूसरा हाथ कभी उसकी चूचियों को दबा रहा था, कभी उसके मोटे मोटे चूतड़ों को।
माँ ने भी अपना हाथ तेजी के साथ चलाना शुरु कर दिया था और मेरे मोटे लण्ड को अपने हाथ से मुठिया रही थी।
मेरा मजा बढ़ता जा रहा था।
तभी मैंने सोचा ऐसे करते-करते तो माँ फिर मेरा निकाल देगी और शायद फिर कुछ देखने भी न दे, जबकि मैं आज तो माँ को पूरी नंगी करके जी भर कर उसके बदन को देखना चाहता था।
इसलिए मैंने माँ के हाथों को पकड़ लिया और कहा- हाय माँ, रुको।
‘क्यों, मजा नहीं आ रहा है क्या जो रोक रहा है?’
‘हाय माँ, मजा तो बहुत आ रहा है मगर?’
‘फिर क्या हुआ?’
‘फिर माँ, मैं कुछ और करना चाहता हूँ। यह तो दिन के जैसा ही हो जाएगा।’
इस पर माँ मुस्कुराते हुए पूछा- तो तू और क्या करना चाहता है? तेरा पानी तो ऐसे ही निकलेगा ना, और कैसे निकलेगा?
‘हाय नहीं माँ, पानी नहीं निकालना मुझे।’
‘तो फिर क्या करना है?’
‘हाय माँ, देखना है।’
‘हाय, क्या देखना है रे?’
‘हाय माँ, यह देखना है।’ कह कर मैंने एक हाथ सीधा माँ की बुर पर रख दिया।
‘हाय बदमाश, ये कैसी तमन्ना पाल ली तूने?’
‘हाय माँ, बस एक बार दिखा दो ना।’
‘नहीं, ऐसा नहीं करते। मैंने तुम्हें थोड़ी छूट क्या दे दी, तुम तो उसका फायदा उठाने लगे।’
‘हाय माँ, ऐसे क्यों कर रही हो तुम? दिन में तो कितना अच्छे से बातें कर रही थी।’
‘नहीं, मैं तेरी माँ हूँ बेटा।’
‘हाय माँ, दिन में तो तुमने कितना अच्छा दिखाया भी था, थोड़ा बहुत?’
‘मैंने कब दिखाया? झूठ क्यों बोल रहा है?’
‘हाय माँ, तुम जब पेशाब करने गई थी, तब तो दिखा रही थी।’
‘हाय राम, कितना बदमाश है रे तू? मुझे पता भी नहीं लगा, और तू देख रहा था? हाय दैया, आज कल के लौंडों का सच में कोई भरोसा नहीं। कब अपनी माँ पर बुरी नजर रखने लगे, पता ही नहीं चलता?’
‘हाय माँ, ऐसा क्यों कह रही हो? मुझे ऐसा लगा जैसे तुम मुझे दिखा रही हो, इसलिए मैंने देखा।’
‘चल हट, मैं क्यों दिखाऊँगी? कोई माँ ऐसा करती है क्या?’
‘हाय, मैंने तो सोचा था कि रात में पुरा देखूँगा।’
‘ऐसी उल्टी-सीधी बातें मत सोचा कर, दिमाग खराब हो जायेगा।’
‘हाय माँ,
ओह माँ, दिखा दो ना, बस एक बार। सिर्फ़ देख कर ही सो जाऊँगा।’
पर माँ ने मेरे हाथों को झटक दिया और उठ कर खड़ी हो गई, अपने ब्लाउज़ को ठीक करने के बाद छत के कोने की तरफ चल दी।
छत का वो कोना घर के पिछवाड़े की तरफ पड़ता था और वहाँ पर एक नाली जैसा बना हुआ था जिससे पानी बह कर सीधे नीचे बहने वाली नाली में जा गिरता था।
कहानी जारी रहेगी।
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