सास बहू की रंगरेलियाँ -1
(Sas Bahu Ki Rangreliyan-1)
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नमस्कार.. आदाब.. मेरा नाम मयूरा है.. मैं 38 वर्ष की वैवाहिक जीवन बिताती हुई एक महिला हूँ और मैं मुंबई में रहती हूँ।
यह मेरी एक सच्ची कहानी है.. जो मेरी सासू माँ और पति के बारे में है।
अब मैं सीधे कहानी पर आती हूँ।
मैं एक कारपोरेट ऑफिस में जॉब करती हूँ.. और मेरे पति अपना खानदानी व्यापार संभालते हैं।
मेरी सासू माँ एक सामान्य.. लेकिन बहुत ही सुंदर महिला हैं.. वे हर वक्त अपने मुख में भगवान का नाम लेते हुए अपना जीवन बिता रही हैं।
मेरे ससुर जी की 2 साल पहले एक बीमारी में मृत्यु हो गई थी। ये सब मैंने मेरे परिवार के बारे में आपको बताया है ताकि आपको कहानी में पूरा मजा आए।
एक दिन मुझे अपने मायके से फोन आया कि मेरी सग़ी बहन प्रसव के लिए घर आई हुई है.. और उसे दो दिन पहले अस्पताल में भरती कराया गया है।
मुझे भी अपनी बहन से मिलने का मन कर रहा था.. तो उस दिन मैंने अपने पति को बताकर मायके जाने के लिए बोला.. तो उन्होंने मुझे जाने की इजाजत दे दी.. लेकिन जाने क्यों.. सासू माँ के वास्ते जल्दी आने को कहा।
मैं जाने की सोच कर बहुत खुश हो गई.. और इसी वजह से ऑफिस से भी जल्दी घर वापस आ गई। मैंने सासू माँ को बताया कि मैं अपने पीहर जा रही हूँ..
तो उन्होंने कहा- हाँ तो जाओ न.. सबसे मिलकर आओ..
मैं खुश हुए और भगवान को शुक्रिया अदा करने लगी.. जो मुझे ऐसे घर वाले मिले हैं।
मैंने अपना बैग पैक किया।
वैसे मैं शुक्रवार को जा रही थी.. शनिवार को मैंने ऑफिस से भी छुट्टी ले ली थी। अगले दिन तो वैसे भी रविवार की छुट्टी होती है.. तो इस तरह 3 दिन के वास्ते मैं अपने पीहर वाले घर जा रही थी।
घर से निकलने से पहले मैंने सासू माँ के पैर छुए और निकल पड़ी.. लेकिन मुझे देरी से ऑटो रिक्शा मिला.. उसको मैं बता कर मैं अपने घर की ओर जाने लगी।
मैंने ऑटो वाले से पूछा- आज इतने लोग पैदल क्यों जा रहे हैं?
तो उसने कहा- आज इधर के लोगों का कोई अनशन है.. वो आज काम पर नहीं गए हैं।
तो मैं हैरान हो गई.. क्योंकि मुझे चिंता हो उठी कि मुझे घर जाने के लिए बस मिल जाएगी या नहीं.. यह एक परेशानी का सबब था।
मैंने जानबूझ कर उस ऑटो वाले को पैसे देकर बस स्टैंड के बाहर ही रुकवा लिया ताकि अगर कोई बस नहीं मिली.. तो उसी से ही ससुराल के घर वापस जा सकूँ।
मैंने अन्दर जाकर जानकारी की.. तो मालूम हुआ कि आज कोई बस नहीं जा रही है।
मैं निराश होकर बाहर आ गई।
अब मैं ऑटो में बैठ कर अपने घर के लिए वापस निकलने लगी। मैं बहुत दु:खी हो रही थी.. क्योंकि अपने मायके के घर वालों से ना मिल पाने से दुःख हो रहा था।
इसी उहापोह और उलझन में मैं अपने ससुराल वाले घर तक वापस पहुँच गई।
मैंने ऑटो वाले को पैसे दिए और मैं घर के दरवाजे पर आ गई।
मैंने सासू माँ को आवाज़ दी.. मैं सोचने लगी कि सासू माँ क्या कहेंगी।
लेकिन उनका अन्दर से कोई जबाव नहीं आया।
मैंने दरवाजे पर नॉक करने के लिए हाथ लगाया.. पर दरवाजा थोड़ा सा खुल गया।
मुझे लगा माँ जी भगवान के पूजन में व्यस्त होंगी.. इसलिए दरवाजे को कुण्डी लगाना भूल गई हैं।
अन्दर हॉल में आते ही मुझे दो साड़ियाँ फर्श पर पड़ी दिखीं.. उसमें से एक सासू माँ की थी.. और दूसरी का कुछ पता नहीं चल रहा था।
तो मैंने अपना बैग सोफे के पास रख दिया.. और माँ जी के कमरे के पास जाने लगी.. लेकिन माँ जी के कमरे में से किसी की धीमी आवाज़ में सीत्कारने जैसे चीखने की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
जैसे ही मैं और पास जाती.. वैसे ही वो आवाज़ की तीव्रता बढ़ने लगी.. मुझे लगा कोई मारने की आवाज तो है नहीं.. मैंने कौतूहलवश धीरे से दरवाजा खोला तो दरवाजा खुला था और मेरे धक्के से दरवाजा अन्दर को ढुलक गया।
कमरे के अन्दर का नज़ारा देख कर मैं दंग रह गई.. सासू माँ बिना कपड़ों में किसी औरत के सामने पैर फैला क़र लेटी हुई थीं और वो औरत माँ जी की चूत पर ज़ोर से चाट रही थी।
माँ की मदहोशी में कामुक आवाज निकल रही थी- हाँ.. और ज़ोर से चाटो मधु.. ज़ोर से हाँ.. पानी निकालो इसका.. ज़ोर से.. ओह्ह..
वे ऐसे सिसकारियाँ ले रही थीं.. वो देख कर मैं हतप्रभ रह गई.. आज तक मैंने ऐसा नज़ारा नहीं देखा था.. और न ही कभी ऐसा खुद ही किया था.. क्योंकि मेरे पति ने कभी भी मेरी बुर नहीं चाटी थी।
वो तो सीधे अपना 7 इंच का हलब्बी लौड़ा मेरी चूत में डाल देते थे और मुझे 2-3 घंटे तक लगातार चोदते थे, वे चोदने में कभी नहीं रुकते थे..
तभी हल्के से माँ का आँख खुली.. और उन्हें पता चल गया कि मैं ये सब देख रही हूँ।
वो झट से उठ गई और अपना नंगा बदन ढकने की नाकाम कोशिश करने लगीं।
मैं उन्हें देखे ही जा रही थी.. माँ वहाँ से अपने कपड़े पहन कर निकल गईं.. मैं सोच में डूबी हुई अपने कमरे में आ गई।
थोड़ी देर बाद सासू माँ एक जैकेट वाली नाईटी पहन कर मेरे कमरे में आ गईं.. और मेरी तरफ देखने लगीं..
मैं अपने कमरे में थोड़ा गुस्से वाले अंदाज में साफ-सफाई करने में लगी थी।
उन्हें लगा कि मुझे बहुत बुरा लग रहा होगा.. तो वो मेरे पास आ गईं और मुझे कहने लगीं- सॉरी बेटा.. वो थोड़ा फ्रेण्ड के बहकावे में आकर थोड़ा बदन की मालिश करवा रही थी।
तो मैंने तैश में कहा- तो नंगी होकर.. और वो भी आपकी प्राइवेट जगह को चूमकर? किसी के बदन की मालिश ऐसी होती है क्या?
तो वो चुप हो गईं और मुझे अपने बेटे से कुछ नहीं बोलने की रिक्वेस्ट करने लगीं।
थोड़ी देर ना-नुकुर करने के बाद मैं यह सोच कर मान गई कि शायद जिस्म की जरूरत होगी।
उन्होंने मुझे झट से अपने गले से लगा लिया.. लेकिन अभी भी वो सीन मेरी आँखों के सामने से नही हाथ पा रहा था.. मेरे नीचे मुझे अपनी पैन्टी थोड़ी सी गीली महसूस हो रही थी।
ये सब होते हुए मैं बिस्तर पर बैठ गई थी और सासू माँ ने मुझे खड़े होकर गले लगाया था.. सो मेरा हाथ सासू माँ के पीछे चूतड़ों पर चला गया.. जिसका मुझे कोई अंदाज़ा नहीं था।
जब मेरा हाथ उनके पिछवाड़े पर फिरा.. तो मुझे पता चला कि उनके बहुत ही बड़े चूतड़ थे।
अभी मैंने हाथ लगाया ही था कि माँ जी का हाथ मेरे मम्मों के बगल में आ गया था। जब इसका मुझे पता चला तो मेरे बदन में करेंट सा दौड़ गया।
मैंने माँ जी को ज़रा चिपका लिया और जोर से पकड़ लिया।
अब मैंने जानबूझ कर ज़रा ठीक से माँ जी के चूतड़ों पर हाथ रखा.. लेकिन माँ जी का कोई प्रतिरोध नहीं था.. वो खुद भी धीरे-धीरे से मेरे मम्मों पर बगलों से हाथ फिरा रही थीं।
मेरी साँसें तेज होने लगी थीं.. तो माँ जी ने थोड़ा सा हाथ बढ़ा कर हल्के से मेरे मम्मों के ऊपर रखने लगीं। मुझे भी बहुत मज़ा आने लगा था।
मैं भी हल्के से माँ जी के चूतड़ों के ऊपर अपना हाथ फिराने लगी.. जिससे माँ जी को भी बहुत मज़ा आने लगा था।
अब हल्के से माँ जी ने मेरे पूरे मम्मों पर अपना हाथ रख दिया और मेरी मूक सहमती जान कर अपने हाथों को मेरे मम्मों पर फेरने लगीं और मम्मों को प्यार से दबाने लगीं।
मैंने चुपके से ऊपर देखा.. तो माँ जी हँसने लगीं।
अब हम दोनों को पता चल चुका था कि हम एक-दूसरे से मजे ले रहे हैं।
तो माँ जी ने मुझे धीरे से बिस्तर पर लिटा दिया और धीरे से मेरे पल्लू की पिन निकाल कर मेरा पल्लू निकाल दिया।
मेरी साँसें तेज होने के कारण मेरे चूचे ऊपर-नीचे हो रहे थे.. वो माँ जी ने देख लिया और वे मेरे मस्त चूचों पर हाथ घुमाने लगीं।
उन्होंने मुझसे कहा- आज तुम्हें इससे मैं मुक्ति दिलाऊँगी।
अब माँ जी ने हल्के से मेरा स्लीवलैस ब्लाउज निकाल दिया.. और मेरी छोटी सी काली ब्रा उनके सामने आ गई।
उन्होंने भी अपनी सामने से खुलने वाले गाउन को निकाल दिया। मेरे सामने उनका अन्दर का मस्त जिस्म नुमाया हो गया।
उन्होंने अन्दर की ब्रा उतार दी थी.. उनके चूचे मुझसे भी बड़े थे और काले रंग के उनके तने हुए निप्पल मेरे सामने अकड़े हुए दिख रहे थे।
माँ जी ने मेरा एक हाथ पकड़ कर अपने मम्मों पर रखा.. और अंगूठे से मेरे चूचुकों को दबाकर हल्के से खींचने लगीं।
मुझे थोड़ा दर्द भी हुआ.. पहली बार किसी औरत के द्वारा ऐसा करने की वजह से मैं सिसकारियाँ भरने लगीं।
माँ जी ने अपना गाउन उतार दिया और मेरे ऊपर आ गईं। अब वे मेरे मम्मों को चूसने लगीं.. पहली बार मैं ऐसे.. अपने खुद के मम्मों को किसी औरत से चुसवा रही थी।
मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और मज़े लेने लगी।
इतनी उत्साहित मैं कभी नहीं हुई थी। माँ जी ने अपनी जीभ से मेरे चूचुकों के बाजू में सहलाने लगीं.. फिर उन पर जीभ फिराने लगीं।
तभी धीरे से उनका हाथ नीचे मेरी चूत पर पहुँच गया और वे उधर अपना हाथ फेरने लगीं..
मैंने आँखें बंद कर लीं.. मैं सिर्फ़ मज़े लूटते हुए मादक सिसकारियाँ लेने लगीं।
माँ जी ने कब मेरे पूरे कपड़े उतार दिए.. मुझे पता भी नहीं चला।
मैंने ज़ोर से माँ जी को पकड़ा हुआ था और मैं उनको अपने ऊपर खींच रही थी
माँ जी ने अब तक सिर्फ़ ब्रा उतारी थी.. अब माँ जी ने अपनी दो उँगलियाँ मेरी चूत के अन्दर डाल कर मुझे मज़े देने लगीं।
दोस्तो, अभी मेरी सासू माँ के साथ मेरा लेस्बो चल ही रहा है.. जिसमें कैसे माँ जी ने पति के साथ किए हुए आनन्द के बारे में बताया.. ये सब लिखूँगी.. आप बस मुझे ईमेल जरूर करें।
कहानी जारी है।
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