पहला सेक्स अनुभव वो भी लेस्बो

अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा प्यार भरा नमस्कार! मित्रो, मेरा नाम फौजी भाई है, उम्र 22 वर्ष है, मैं भारतीय सेना का सिपाही हूँ। अन्तर्वासना को मैं तकरीबन तीन वर्ष से पढ़ रहा हूँ पर आज मौका मिला है लिखने का!

आज मैं जो कहानी पेश करनेवाला हूँ वो मेरी नहीं है, अपितु मेरे एक शिक्षिका मित्र की कहानी है जो मेरी काफी अच्छी दोस्त है, हम आपस में खुल कर बात करते हैं, खुल कर रहते हैं, और उसी ने मुझे अपनी कहानी अन्तर्वासना पर लिखने को कहा है, इसी लिए मैं आज उसकी कहानी लिख रहा हूँ। तो मित्रों सुनिए उसी की कहानी उसी की जुबानी!

प्रणाम दोस्तो, मेरा नाम नीलम है, मेरी उम्र 27 वर्ष, रंग गोरा, कद 5 फीट 4 इंच और फिगर 36-34-40 है, दिखने में बहुत ही खूबसूरत हूँ, और मैंने पढ़ाई भी एम.ए तक की है और अभी तक कुँवारी हूँ पर इसके पीछे भी मेरी जिज्ञासा और हवस कारण है।

मैं शुरू से ही शर्मीली और शांत स्वाभाव की रही हूँ और अभी तक मैंने यौन सम्बन्ध के बारे में पढ़ा और सुना ही था, पर कभी करने की कोशिश नहीं की थी। मेरे घर में मैं और मेरी माँ रहते हैं, पिताजी का स्वर्गवास हो चुका है और मैंने इसी लिए अब तक शादी नहीं की क्यूँकि माँ अकेली रह जाती। ऐसा नहीं है कि रिश्ते नहीं आये, बहुत आये पर मेरी माँ के कारण मैंने शादी नहीं की। घर चलाने के लिए मैं एक स्कूल में टीचर के पद पर नौकरी कर रही हूँ। स्कूल में कई शिक्षक मुझे फ़ंसाने के सारे हथकंडे अपना चुके थे, यहाँ तक की ग्यारहवीं बारहवीं के लड़कों ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

हमारे स्कूल के स्टाफ में मालती नामक एक शिक्षिका थी। मित्रो, मेरी जिंदगी में जो भी समस्यायें उत्पन्न हुई हैं, उसकी जिम्मेदार मैं मालती को नहीं कह सकती क्यूंकि उसकी जिम्मेदार मैं खुद ही हूँ।

हुआ यूँ कि दीपावली का महीना चल रहा था और सभी घर की साफ़-सफाई व नए कपड़े खरीदने में लगे हुए थे। तभी एक रोज मालती ने मुझे स्कूल के दरमियान बुलाकर कहा- क्या आप मेरे घर आएँगी क्यूंकि घर की साफ़-सफाई करनी है और मैं घर में अकेली हूँ, आप आएँगी तो काम जल्दी निपट जायेगा।

तो मैंने भी ज्यादा ना सोचते हुए मालती से कह दिया- मैं आ जाऊँगी पर आपको भी मेरे घर के साफ़-सफाई में हाथ बंटाने आना पड़ेगा।

वो मान गई और दोपहर को घर आ जाने को कह कर गई। मैं घर जाकर अपनी माँ से कहकर मालती के घर चली गई।

मालती 35 साल के आसपास की विधवा महिला है। उसने आठ साल पहले प्रेम विवाह किया था लेकिन उसके पति का निधन एक कार एक्सिडंट में दो साल पहले हो चुका था।

मालती के घर पहुँचते ही मैंने डोरबेल बजाई। मालती को पता था कि मैं आने वाली हूँ इसीलिए उसने तुरंत दरवाजा खोल दिया।

मैंने देखा कि मालती सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज में थी और उसका आधा पेटीकोट भीगा हुआ था। मुझे देखते ही उसने अंदर आने को कहा और बोली- ‘जान’ तुम भी अपनी साड़ी उतार दो वर्ना भीग जायेगी।

मैं बताना चाहूँगी कि मालती सभी लोगों को प्यार से ‘जान’ कह कर संबोधित करती है। तो मैंने सोचा के हम दोनों स्त्री ही तो हैं तो कैसा शर्माना, मैंने भी अपनी साड़ी खोल दी और उसके काम में हाथ बंटाने में लग गई। काम करते-करते करते वो मुझे बार-बार छू लेती थी और हंसती थी, कभी-कभी वो मेरी शारीरिक बनावट के बारे में मेरी खिंचाई करती थी और मेरे उभारों के बारे में बोलती थी कि अभी तक इनका मर्दन हुआ है या नहीं?

स्त्री स्वभाव के कारण मैंने भी सहजता से उत्तर दे दिया कि कभी ऐसा मौका आया ही नहीं। और उसके सारे मजाकों के हंस कर टालती गई।

काम करते-करते मालती ने कहा- चलो कुछ नाश्ता कर लेते हैं।

और वो रसोई से नाश्ता ले आई। नाश्ता करने के बाद हम दोनों को सुस्ती चढ़ने लगी, मालती ने कहा- चलो कुछ देर बेडरूम में आराम कर लेते हैं।

मुझे भी यह बात ठीक लगी तो हम दोनों बेडरूम में सोने को चल दीं। बातों-बातों में नींद कब आ गई पता ही नहीं चला।

तकरीबन डेढ़-दो घंटे के बाद मुझे अपनी छाती पर कुछ दबाव महसूस हुआ और मैंने आँखें खोलकर देखा तो मालती अपनी एक तंग मेरे पैरों से लिपटाकर और मेरे स्तन पर अपना एक हाथ रखकर बारी-बारी से दबाए जा रही थी। कुछ देर के लिए मुझे ऐसा लगा मानो कि ये कोई औरत का नहीं बल्कि किसी मर्द का काम हो। पर मैंने भी यह महसूस किया कि उसके मेरे स्तन दबाने से एक अलग प्रकार की सिहरन मेरे बदन में दौड़ रही थी और उस सिहरन का एक अलग प्रकार का मजा महसूस हो रहा था।

फिर मैंने सोचा कि क्यों ना देखा जाये कि आगे वो क्या-क्या करती है मेरे साथ।

कुछ देर बाद उसकी गतिविधि बढ़ रही थी, मुझे पता था कि वो ये सब होश में कर रही है और मेरे मन के अंदर भी एक तूफ़ान सा शुरू हो गया था, ये जानने की जिज्ञासा में मैंने और कुछ देर सोने का नाटक किया। अब धीरे-धीरे उसके हाथ मेरे ब्लाउज के बटन खोल चुके थे। धीरे-धीरे उसका हाथ मेरे पेट से होते हुए मेरे जांघों को सहलाने लगे। उसकी इस हरकत से मैं मानो मैं आसमान में उड़ने लगी, इतना आनन्द आने लगा था।

उसने जब मेरी चूत पर अपना हाथ फेरना शुरू किया तब तो मानो मैं सातवें आसमान पर पहुँच गई थी।

ये सब मेरे जीवन में पहले कभी नहीं महसूस किया था पर जैसे ही उसने दोनों हाथ से स्तन और मेरी चूत पर दबाव बढ़ाया और फिर अचानक ही उसने मेरी पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया और अब उसका हाथ मेरी चूत पर था। कुछ देर बाद ऐसे ही उसने उसकी एक उंगली मेरी चूत में गड़ा दी।

मुझसे रहा नहीं गया और मैं बोल पड़ी- मालती, धीरे करो!

उसने यह सुनते ही अपनी आँखें खोल दी और मुझसे बोली- नीलू, तुम जाग रही हो?

तो मैंने भी हाँ में सर हिलाते हुए मुस्कुरा दिया। मेरी सहमति देख उसका हौंसला बढ़ गया और दूसरे ही पल वो मेरे होंठों से अपने होंठ टकरा चुकी थी। और मैंने भी बढ़ावा देते हुए उसका साथ देना सही समझा। क्यूंकि अब मैं इस मजे को पूरी तरह लूटना चाहती थी। उसने मेरी ब्रा और पेंटी एक ही झटके में उतार फेंकी और मैंने भी लिपटे हुए उसका उत्साह बढ़ाया।

मेरा उत्साह देख मालती बोली- क्यूँ नीलू ‘जान’ मजा आ रहा है?

तो मैंने भी अपनी आँखें बंद करके सहमति जता दी। अब फिर क्या बाकी था, मालती ने मेरे एक स्तन को अपने हाथों से दबाना शुरू किया और दूसरे को अपने मुँह में लेकर जोर-जोर से चूसना शुरू कर दिया।

मैं कराहने लगी- मालती और चूसो, जोर से दबाओ, आह.. आह.. ऊम्ह.. उम्ह!

उसने बारी-बारी मेरे स्तन चूसे और दबाए, बहुत मज़ा आ रहा था।

फिर मालती ने मुझे लेट जाने को कहा, मैं लेट गई और उसने फिर से मेरी चूत पर अपनी उंगलियाँ सटा दी, और उसे मसलने लगी। मुझे इतनी मदहोशी छा रही थी कि अगर उसके पास लंड होता तो मैं फट से उसे अपने चूत में डलवा लेती, पर क्या करती, मज़बूरी ही कुछ ऐसी थी, वो मेरी चूत सहला रही थी और मैं उसके स्तन पर अपने हाथ से मसाज कर रही थी।

ऐसा कुल दस मिनट तक चला। फिर उसने मेरी मुझे अपनी चूत चाटने को कहा मैं संकोच में उसके कपड़े उतारने लगी, उसके कपड़े उतार देने के बाद उसको मैंने कहा- मुझे मालूम नहीं है कि इसका अनुभव कैसा होगा।

तो उसने कहा- लाओ, मैं पहले तुम्हारी चूत चाट कर बताती हूँ।

और फिर वो मेरे दोनों पैरों के बीच में अपना मुंह ले आई और उसने मेरी चूत पर अपनी जीभ सटा दी।

क्या बताऊँ दोस्तो, उस वक्त मुझे कैसा अनुभव हुआ था, जैसे सारा आसमान मेरे कदमों के नीचे आ गया हो, इतन मज़ा आज तक नहीं आया था। उसे मेरी क्लिटोरस पर अपनी जीभ से चाटना शुरू किया, और अपनी एक उंगली मेरी योनि में भी गड़ा दी और मेरी चुदाई करने लगी, मेरे चूत से बहुत सारा तरल द्रव निकल रहा था, पर मालती सब चाटे जा रही थी। फिर उसने अपनी गति तेज कर दी, और मुझे उत्तेजना के चरम सीमा पर ले गई, मैं झड़ कर निढाल हो गई और चरमसीमा पर पहुँचने का आनन्द ले रही थी।

उसने मुझे मेरे हाल पर छोड़ते हुए कुछ देर अकेला छोड़ दिया। मैंने किसी तरह अपने आपको संभाला और मालती को वापस बुलाया, मालती आई और मेरे सामने बैठ गई। वो थोड़ी उलझन में लग रही थी, मैंने उसका शुक्रिया अदा करते हुए उसके उदासी का कारण पूछा तो उसने बताया कि जिस चरम सीमा पर आज मैं पहुँची हूँ वो उस पर कई महीनों से नहीं पहुँच पाई थी।

उसने कहा- मुझे मज़ा देने वाला कोई नहीं है।

मैं समझ गई कि मालती को क्या चाहिए था, मैंने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा- जिसका कोई नहीं होता, उसका खुदा होता है! मैं हूँ ना तुम्हारी देखभाल के लिए, तुमने मुझे आज जिस खुशी से परिचय करवाया है, मेरा भी फ़र्ज़ बनता है कि तुम्हें भी मैं वो खुशी दूँ। और अगर कोई कमी करूँ तो तुम मुझे सिखाओ।

उसके चेहरे पर खुशी छलक पड़ी, फिर मैं देर ना करते हुए उसके पास गई और उसको बिस्तर पर लिटा दिया। पैंतीस साल उम्र होने की वजह से उसका शरीर हल्का सा ढीला जरूर हो चुका था, पर वो अब भी जवान थी। मैंने उसको बहुत चूमा, उसके होंठों को अपने होंठों से खूब रगड़ा, उसके स्तन जो अभी भी तने हुए थे, उनको बहुत मसला, वो वाकई मज़े ले रही थी। मैंने भी अपने एक हाथ से उसके स्तन को दबाना शुरू किया और दूसरे हाथ से उसकी चूत को रगड़ना शुरू किया, और उसका स्तन भी चूस रही थी।

वो बहुत ज्यादा मदहोश हो चुकी थी, वो आहें भर रही थी, आह आह… ऊम्म.. ऊम्म..

फिर उसने मुझे अलमारी में से कुछ लाने को कहा, मैंने पूछा- वो क्या है?
तो उसने कहा- वो एक लंड के आकार का खिलौना है।

मैं तुरंत वो ले आई। मैं फिर उसकी टांगों के बीच बैठ गई और धीरे धीरे उसकी क्लिट पर उस खिलौने को रगड़ने लगी, वो और भी मदहोश हो गई।

फिर मैंने उसकी चूत पर अपनी जीभ सटा दी और अपनी एक उंगली उसकी योनि में डाल दी, और उसे अपनी उंगलियों से चोदने लगी। थोड़ी देर बाद उसने अपनी टाँगें ऊपर की ओर उठा दी और मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चूत में दबाने लगी।

तभी मेरी नज़र उसके गांड के छेद पर गई, और मुझे अपने बचपन की एक बात याद आ गई, जब एक लड़के ने मेरे साथ घर-घर खेलने में मेरे पति का किरदार किया था, और उसी नासमझी में उसने मेरी गांड में अपना छोटा सा लण्ड डाला था, पर लंड बहुत छोटा और मेरी गांड की दरार काफी गहरी होने के कारण उसका लंड मेरी गांड में नहीं घुस पाया था, पर फिर उसने मेरी गांड में पेन्सिल डाल कर मेरी गांड मरी थी, और मैंने भी उसका छोटा सा लंड अपने मुँह में रख कर थोड़ी देर तक चूसा था, बस यही किस्सा याद आया और तुरंत ही मैंने अपनी एक उंगली मालती के गांड के छेद से सटा दी और थोड़ा जोर देने पर मेरी उंगली मालती की गांड में प्रवेश कर गई। मालती अचानक चौंक गई, पर वो समझ गई कि उसके साथ क्या हुआ है और वो भी मेरा साथ देने लगी।

फिर मैं अपने जीभ से फिर से मालती की चूत चाटने लगी और एक उंगली से उसकी योनि में चोदने लगी और दूसरी उंगली से उसकी गांड भी मारने लगी।

मालती सच में इस चुदाई का मज़ा ले रही थी क्यूंकि काफी दिन से उसे किसी ने नहीं चोदा था। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

फिर मैंने अपनी रफ़्तार बढ़ाई और मालती को चरमसीमा तक पहुँचा कर ही उसकी गांड और चूत से उंगली बाहर निकाली। वो खुशी के मारे मेरे गले लग पड़ी और हम दोनों के स्तन एक दूसरे को दबाने लगे।

मालती बोली- मेरी ‘जान’ आज तूने मुझे खुश कर दिया, तेरा बहुत-बहुत शुक्रिया।

और हम कुछ देर तक नंगे ही बिस्तर पर पड़े रहे, फिर हमने अपने-अपने कपड़े पहने और मैं अपने घर को चली आई।

मित्रो, ऐसा कई दिनों तक चलता रहा, मालती ने भी उसी खिलौने से मेरी गांड भी मारी। यह सिलसिला तीन महीने तक चला। उसके बाद मैं पहली बार किसी मर्द से चुदी मालती के मदद से!

वो कहानी मैं अगले भाग में बताऊँगी कि कैसे मैं लेस्बो से स्ट्रेट बनी। मित्रो, आपको यह कहानी कैसी लगी, कृपया मुझे मेल करके जरूर बतायें।
धन्यवाद।
[email protected]

What did you think of this story??

Comments

Scroll To Top