मेरी लेस्बीयन लीला-4
(Meri Lesbian Lila-4)
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उसने मेरे कान को चूमा और मेरे कान में अपनी जीभ डाली.. उससे मुझे अजीब सी झुनझुनाहट हुई… मैं तिलमिला गई।
वो धीरे से कान में फुसफुसाई- छोटी.. मेरी जान.. आज का दिन तू कभी नहीं भूल पाएगी।
मैं उत्साहित हो कर आधी खड़ी हो गई। उसने कस कर मेरे होंठों को चूम लिया.. अब दोनों जोश में थे।
मुझ पर तो मानो मस्ती सर चढ़ी थी और दीदी भी अजीबोगऱीब तरीके से मुझ पर प्यार लुटा रही थीं।
दीदी को इतना जोश में मैंने कभी नहीं देखा था। मैं भी खुल रही थी.. आधे लेटे-लेटे मैंने मेरा एक पाँव नीचे किया और दीदी के दोनों पैरों के बीच में अपने पैरों की उंगलियों से घात देने लगी।
वो दीदी को भी अच्छा लगा।
उसने मुझे उकसाया और मेरा पाँव पकड़ कर वो अपनी ‘उस’ जगह पर रगड़वाने लगीं।
अब वो फिर से मुझे चूमने लगीं.. उन्होंने अपने दोनों हाथ मेरी टी-शर्ट में डाल कर मेरी पीठ की मसाज करते-करते टी-शर्ट निकालने लगीं।
मेरे बालों में से बड़ी नजाकत से मेरी टी-शर्ट को निकाला, वो अपनी अत्यधिक चाह से सब कर रही थी, उसका ये नया प्यार मेरे दिल को छू रहा था।
मेरे स्तन उससे थोड़े छोटे थे.. मोटे संतरे जैसे और मेरे निप्पल घने काले थे।
मुझे अपने जिस्म में अपने उरोज बहुत ही पसंद थे.. मैं पहले से ही स्पोर्ट ब्रा पहनती थी।
उससे मुझे तनिक तकलीफ तो होती थी पर उसी ने मेरे मम्मों को जरा सा भी झुकने नहीं दिया था। मेरे मम्मे बहुत ही कसे हुए और काफी कड़क थे।
मैं देख सकती थी कि मेरे मम्मों ने दीदी को भी इम्प्रेस किया था। वो मेरी चूचियों को प्यार से घूर रही थीं.. जैसे पूरा खा जाएँगी।
मैंने जब मेरे मम्मों को देखा तो लाल रोशनी उन पर गिर रही थी.. जिससे अत्यधिक गोरे रंग पर हल्का लाल रंग मिलाने से जैसा सुर्ख लाल बनता है.. वैसे ही मेरी चूचियाँ दिख रही थीं।
मुझे अपने मम्मों पर गर्व महसूस हुआ.. पर तभी दीदी ने जता दिया कि अब मेरे मम्मे उसकी मिल्कियत हैं। मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं थी.. फिर इसके बाद मैं सिर्फ लोअर में रह गई थी।
मैंने शर्म के मारे अपने दुद्दू हाथ से ढकने की कोशिश की.. दीदी हैरानी से मेरी ओर प्रश्नवाचक भाव से देखने लगीं.. मैंने बताया।
‘दीदी.. मुझे शर्म आ रही है..’
तब दीदी ने आगे आकर मेरा झुका हुआ सर उठा कर बड़े ही आशिकाना अंदाज़ से कहा- मेरी जान.. पहले ये ‘दीदी’ बोलना भूल जा.. बाक़ी की शर्म मैं छुड़वा दूँगी।
‘तो क्या बोलू..?’
‘अवनी बोल.. एवी बोल.. (अंदाज़ से) जानू.. चिकनी.. रानी.. हनी.. छमिया.. जो तेरा जी चाहे बोल मेरी जान..’
दीदी का ये अंदाज़ देख कर मेरे तो होश ही उड़ गए। मुझ पर भी अब वो नशा चढ़ने लगा।
तभी उसने मेरे बिल्कुल पास आकर मेरे चूचों पर झुक गई और अपनी जुबान नुकीली बनाकर चूची की नोक को छूने लगी।
मैंने पास आना चाहा.. तो उसने पेट पर हाथ रख दिया। वो सिर्फ निप्पलों को ही छू रही थी।
फिर उसने मेरे चूचुक को मुँह में भर लिया और अब वो उसे चूस रही थी.. जो अब पूरी तन कर कड़क हो चुका था।
वो सिर्फ तने हुए निप्पल का आधा भाग ही चूस.. और छू रही थी.. जबकि मेरी चाह हो रही थी कि वो पूरा निप्पल मुँह में ले कर चूसे।
वो मुझे तड़पा रही थी.. तभी उसने अपने दाँतों से मेरे आधे निप्पल को पकड़ लिया.. और वो झुके-झुके यूँ ही उलटे पाँव चलने लगी.. मैं दर्द से सिसकार उठी।
मैं उसके साथ खिंचती चली गई.. उसने मेरे चूचों की दम पर मुझे खींच कर.. ले जाकर बिस्तर पर लिटा दिया।
अब उसने अब मेरा लोअर निकाल दिया.. मेरे बदन पर सिर्फ काली पैन्टी ही बची थी। वो मुझे लगातार चूम रही थी.. सब जगह चाट रही थी.. मुझे भंभोड़ और दबोच रही थी।
मैं बड़े चाव से अपनी चुदास के मजे ले रही थी।
अवनी ने मुझे लिटा दिया.. हम दोनों के शर्म के परदे हट चुके थे और हम हर हरकत पर अपनी बेशर्मी की हदें पार कर रहे थे।
अब मेरे ऊपर थी वो.. उसने मेरे गुब्बारों का तो हाल बुरा कर दिया था.. इतना चूसा और चाटा था.. खूब दबादबा कर पूरे मम्मों को निचोड़ कर रख दिया था।
अब अवनि दीदी ने अपने कपड़े उतार दिए और बिल्कुल नंगी होकर मुझसे चिपक गई।
उनके रूप-यौवन में एक मस्त सी कशिश थी.. उनके मम्मे मुझसे किसी भी तरह कम न थे.. बिल्कुल उठे हुए थे।
मैंने ध्यान से देखा कि उनकी चूत के पास हल्के-हल्के रेशमी झांटें थीं। शायद वे अपनी चूत को महीने में एकाध बार ही समय देती थीं.. जबकि मुझे अपनी पिंकी को रोज ही देखना होता था तो मेरी चूत चिकनी चमेली ही बनी रहती थी।
अब अवनी ने मुझे लिटा दिया और मेरे पैर फैला दिए.. मैं अपनी चूत पसार कर उनके सामने बेशर्मी से लेट गई।
कुछ पलों तक अवनि ने मेरी चूत को देखा.. फिर आँखों में वासना का नशा लाते हुए मेरी चूत पर अपनी एक ऊँगली फेरी.. आह्ह.. मैं तो सिहर उठी। उनकी ऊँगली मेरी चूत पर चलने लगी और मैं मचलने लगी।
मुझे इस बात की कोई चिंता न थी कि मैं रस छोड़ दूँगी.. क्योंकि अब अवनि और मेरा लेस्बो शुरू हो चुका था।
कुछ ही देर में उसने मेरे बाजू में लेटते हुए मेरी मम्मों की नोंकों को अपने मुँह में भर लिया और मेरी चूत में ऊँगली बदस्तूर जारी रखी। इसके साथ ही मैंने भी उनकी झांटों में अपनी ऊँगली फेरी तो मुझे महसूस हुआ कि उनकी बुर भी गीली हो चुकी थी।
मैंने अपने होंठों को उनके होंठों से सटा दिए और अब चूतों में ऊँगली दुद्दुओं से दुद्धू और जुबान से जुबान रगड़ सुख देने लगी थी।
मुझे अपनी वासना की तृप्ति का मार्ग मिल चुका था मैं बहुत खुश थी। फिर मैंने अवनि से पूछने के अंदाज में कहा- 69 में करें..?
अवनि जैसे इसी इन्तजार में थी.. बिना कोई जबाव दिए वो मेरे ऊपर 69 की अवस्था में आ गई।
बस अब क्या था.. शर्म भी खत्म हो चुकी थी.. उसकी चूत मेरे मुँह में थी और मेरी पिंकी पर उसकी जुबान फिर रही थी..
ये हमारा पहली बार था तो हम दोनों की चूतों ने अपनी रसधार छोड़ने में अधिक वक्त नहीं लगाया और जल्द ही अवनी छूट गई.. उसके कुछ ही पलों बाद में भी सराबोर हो उठी।
बहुत ही नशा चढ़ा था.. जिस्म शिथिल हो उठे थे.. कुछ देर हम दोनों यूँ ही 69 में ही पड़े रहे.. फिर वो उठी और बाथरूम गई। मैं मन ही मन मुस्कुरा उठी कि अब से अवनि मेरी हुई..
आगे बहुत लम्बी दास्तान है अवनी की चूत ने दिनों दिन अपनी आग दिखाई और अब तो हम दोनों अपनी चूतों के लिए डंडे भी इस्तेमाल करने लगे थे.. पर अब नकली डंडों से आगे की कामना भड़कने लगी थी.. क्या हुआ होगा.. फिर कभी लिखूँगी।
मेरे प्रिय साथियों.. मेरी इस कहानीनुमा आत्मकथा पर आप सभी अपने विचारों को अवश्य लिखिएगा.. पर पुरुष साथियों से हाथ जोड़ कर निवेदन है कि वे अपने कमेंट्स सभ्य भाषा में ही दें।
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