मेरी लेस्बीयन लीला-1

(Meri Lesbian Lila-1)

मेघा जोशी 2015-05-27 Comments

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हैलो दोस्तो.. इस साईट पर मैं बहुत दिनों से कहानियां पढ़ती आई हूँ.. मुझे बहुत मजा आता है। लोगों के सेक्स के प्रति यूँ खुले विचारों का आदान-प्रदान के लिए ये बहुत अच्छा मंच है।
आज़ मैं भी अपनी कहानी रखना चाहती हूँ। अगर आपको पसंद आए तो प्रतिक्रिया जरूर दीजिएगा।

मुझे कल्पना और संवेदना वाली कहानियाँ ज्यादा पसंद आती हैं। किसी भी कहानी में सेक्स होने से पहले की घटना ही ज्यादा रोमांचित करती है। ये मैं अपना अनुभव कह रही हूँ।

मेरा नाम मेघा है.. मैं अहमदाबाद की रहने वाली हूँ। एक गुजराती समझ से हूँ, गुजराती लोग काफ़ी मिलनसार और मीठे होते हैं।

मैं काफी मर्यादाओं को मानने वाले परिवार से हूँ। पापा, मम्मी, दीदी और भाई.. ये हमारा परिवार है.. बाक़ी चाचा, ताऊ अपने परिवार के साथ गाँव में रहते हैं।
पापा सरकारी अफसर हैं.. माँ प्रोफ़ेसर हैं। मेरे परिवार के सब लोग दिखने में काफी सुन्दर हैं, ब्यूटी और क्यूटी विरासत में मिली थी।

कभी किसी के लिए कोई भी बुरा ख्याल मन में आया नहीं था.. पर जब जवान हुई.. तो लोगों की नजर कपड़ों के अन्दर तक चुभने लगीं, देखने वाले आगे से गरदन के नीचे या पीछे टांगों के ऊपर घूरने लगे.. उनकी कामुक नजरों को भांप कर मेरे अन्दर एक मीठा दर्द उठने लगा।

मैं अभी स्कूल की छात्रा थी.. इसलिए कैसे भी करके पढ़ाई में ही ध्यान लगाया, बारहवीं पास करने तक कुछ नहीं हुआ.. पर तब तक तो मेरी हालत बिन पानी की मछली जैसी हो गई थी, यौवन मुझ पर अधिक ही मेहरबान था, बगैर ब्रा के भी मेरे स्तनों का उभार तना का तना ही था।

मासूम सा खूबसूरत चेहरा.. काले घने बाल.. गोरी और चिकनी त्वचा.. सुनहरे हल्के रोंएं वाले हाथ.. ऊपर से आगे-पीछे का उभरा हुआ कामुक जिस्म..
मुझे देख कर न जाने कितनों की ‘आह’ निकल जाती थी।
जब बस से जाती थी.. तो हर कोई मुझे छूना चाहता था.. पर मैं तो सिर्फ अपने हुस्न की रवायत में ही मस्त थी।

रात को जब कभी नींद खुल जाती थी.. तब एक अजीब सी चुभन महसूस होती थी। अपने आप हाथ सीने से लग जाता था। आँखें बंद होने के बावजूद फिल्मों के सेक्सी सीन दिखाई देते थे। उन कामुक दृश्यों को याद करके मेरी ‘आहें’ निकल जाती थीं। उस समय अपनी छाती नोंचने का जी करता था।

जब ऐसा होता था.. तब पूरी रात नींद नहीं आती थी। उसका मैंने एक हल निकाला था.. मैं तब कल्पनाओं की दुनिया में चली जाती थी।
चूंकि मैं अकेली सोती थी.. तो मैं अक्सर ये ही करती थी।

मेरी कल्पनाओं में कोई खास लड़का जो मुझे पसंद होता था.. उसकी कल्पना करती थी कि वो मेरे पास आता है और मुझे हर तरह प्यार करता है। मुझे चूमता है.. चाटता है.. मेरे मम्मों को दबाता है.. निप्पलों को नोचता है.. ये सब सोचते-सोचते मेरा एक हाथ.. कब मेरी टी-शर्ट के अन्दर चला जाता था.. वो पता भी नहीं लगता था।

उंगलियों से अपने कड़क निप्पलों को हल्के से मींजना शुरू कर देती थी.. जिससे आसपास की फुन्सियां भी तन जाती थीं।

फिर.. पांचों उंगलियों से खाली काला निप्पल वाला भाग धीरे-धीरे दबाना.. फिर जब बायां हाथ पूरी गोलाई पर कब्ज़ा करे तब तक दायां हाथ नीचे की ओर लोअर में ऊपर तक पहुँच कर हल्के से सहलाने लगता था.. हय.. ये सब पूरे बदन के रोंगटे खड़े कर देता था।

लोअर के ऊपर से ही दोनों टाँगों के बीच की गर्मी महसूस हो जाती.. जैसे अन्दर आग धधक रही हो।

फिर ऊपर-ऊपर से उँगलियाँ उस तप्त भट्टी का मुआयना करती थीं और इस आग में भट्टी में घी स्वतः ही डलता ही रहता था। इससे पूरी पैन्टी चिकनी होकर बाहर लोअर का भी रंग बदलने लगती थी।

मुँह से सिसकारियाँ निकलते-निकलते दोनों टाँगें ऊपर-नीचे होने लगती थीं। अब दोनों मम्मों की चमड़ी मानो जलने सी लगती थी। अन्दर से से एक चाह उठती थी.. कि ‘कुछ’ चाहिए है..

बस इसी तरह मेरी उमंगें दरिया की लहरों की तरह जवान होती और दम तोड़ देती थीं।

ऐसे ही एक दिन मैं और मुझसे दो साल बड़ी दीदी.. अवनी साथ-साथ सोए हुए थे। उसी दिन एक सहेली के सेल फोन पर मैंने ब्लू फिल्म Blue Film, Porn Movie की एक क्लिप देखी हुई थी.. तो रात को वो सब याद आ रहा था। मैंने लोअर और टॉप पहना था। मैं रात को ब्रा पहनना पसंद नहीं करती।

मैं अपने मम्मों की मसाज करते-करते अपनी ‘पिंकी’ को सहला रही थी। फिर मैंने अपना हाथ अपने लोअर के अन्दर कर लिया।

अपने होंठ चबाते हुए मम्मों को दबा दिया। मेरे मुँह से एक मीठे दर्द की एक ‘आह’ निकल गई। तभी दीदी थोड़ा घूमी.. तो मैंने अपना मन काबू में कर लिया।

मेरी पिंकी.. जिसको यहाँ चूत बोला जाता है.. उस पर बहुत कम सुनहरे भूरे बाल थे।
मैं उसकी खड़ी लकीर पर अपनी उंगली फ़िरा रही थी.. मुझे उसमें मजा आ रहा था।

मैंने अपनी बड़ी वाली उंगली मुँह में डाल कर उसको गीला किया और अपनी चूत के ऊपर वाले हिस्से में स्पर्श करवा दिया। उंगली से मैं अपने ‘सू-सू’ पॉइंट की गोल-गोल मालिश कर रही थी।
हाय.. बड़ा मजा आ रहा था.. मेरी तो सिसकारियाँ निकल रही थीं।

उंगली मेरी चूत की गहराई नापने को आतुर हो रही थी। बहुत अधिक गीलापन महसूस हो रहा था.. अद्भुत रोमांच हो रहा था।

मैं अपने दूसरे हाथ से अपनी छाती, गला और कन्धों को सहला रही थी।

तभी दीदी मेरी ओर घूमी और मैं डर गई। मुझे लगा कि शायद वो जग रही थीं। वो मेरी बाईं ओर सो रही थीं। वो अपना दायां खुला हाथ मेरी ओर करके वापस सो गईं।

अब मेरे अन्दर तो आग लगी पड़ी थी और दीदी का डर लग रहा था।

मेरी दीदी अवनी कॉलेज के आखिरी साल में थीं। वे मुझसे भी अधिक खूबसूरत लगती थीं और मैं उनके जैसी बनना चाहती थी। उनकी आँखें मुझे बहुत ही ज्यादा पसंद थीं।
अपने सारे सीक्रेट वो मुझसे साझा करती थीं.. हमारी अच्छी बनती थी। उनका कोई ब्वॉयफ्रेंड नहीं था.. वो बहुत पढ़ना चाहती थीं। आज वो बहुत आगे हैं।

मैं उन्हें देख सकूँ.. इसलिए मैं उनकी ओर मुँह करके सो गई.. पर अब कुछ भी करने में डर लग रहा था।

मैं थोड़ा दीदी से सट गई और सोने का मूड बना लिया। मैं पेट के बल उल्टी होकर सोने लगी और अपना दायाँ हाथ दीदी पर रख दिया। तभी मेरी एक चूची दीदी के हाथ पर आ गई।
मैं ऐसे सोई कि मेरी नाक दीदी की गरदन के पास आए। मैं जोर-जोर से सांस लेने लगी।

मैं काफी उत्तेजित थी। मैं अपनी कमर को नीचे दबा रही थी। जो हाथ दीदी पर था.. उसको थोड़ा ऊपर लिया. अब वो दीदी के मम्मों के ठीक नीचे पेट पर था।

मैं अपने एक मम्मे को दीदी के हाथ पर सैट करके दबा रही थी और लम्बी साँसें ले रही थी। मेरी साँसें दीदी के गरदन पर लग रही थी पर वो सो रही थीं।

मुझे गुस्सा आ रहा था। क्योंकि दीदी घोड़े बेच कर सो रही थीं। तो मैंने अपना पैर भी दीदी पर रख दिया और अपना घुटना उनकी कमर के नीचे सटा दिया।
अब मैं घुटने से थोड़ा हल्के से जोर दे रही थी। इससे दीदी को कुछ महसूस हुआ.. तो वो जगीं.. आँखें खोलीं.. मेरी ओर देखा और फिर मुझे चिपक कर सो गईं।
वो ऐसा अक्सर करती थीं और वो उनका प्यार था।

उन्होंने तीन-चार बार मेरी पीठ पर हाथ घुमाया.. पर मेरे में कुछ और भाव था। अब हम दोनों एक-दूसरे की बाँहों में आ चुके थे.. पर कुछ हो नहीं रहा था। मेरा मुँह दीदी की गरदन के पास था और होंठ कान के नीचे।

तो मैंने अपना मुँह खुला रखा। अब मेरी साँसों की गरमी से दीदी को गुदगुदी महसूस हुई होगी तो उन्होंने गरदन को मेरे होंठों से सटा दिया।

मैंने होंठ जुबान से गीले किए और दीदी की गरदन पर रख दिए और साँसें मुँह से निकलने लगीं.. अब शायद दीदी थोड़ी चेतन हुई थीं।

मेरे प्रिय साथियों.. मेरी इस कहानीनुमा आत्मकथा पर आप सभी अपने विचारों को अवश्य लिखिएगा.. पर पुरुष साथियों से हाथ जोड़ कर निवेदन है कि वे अपने कमेंट्स सभ्य भाषा में ही दें।

मेरी लेस्बीयन लीला की कहानी जारी है।
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