गीत मेरे होंठों पर-7

(Geet Mere Honthon Par- Part 7)

This story is part of a series:

अब तक की मेरी सेक्स कहानी में आपने पढ़ा था कि मैं और मनु, परमीत के घर गए थे, जिधर उसने हम दोनों को एक डिल्डो दिखाया. उस डिल्डो का साइज़ लगभग एक फुट का था, जिसके दोनों सिरों पर लंड के सुपारे जैसा बना हुआ था.

मैंने उसके हाथ से डिल्डो ले लिया और देखने लगी.

तभी परमीत ने मुझसे कहा कि साली देखते देखते कहीं अपनी चुत न डाल लेना.

अब आगे:

गीत ने कहा- तू तो ऐसे कह रही है, जैसे कि मेरी चूत में इतना बड़ा एक फुट का डिल्डो चला ही जाएगा.
परमीत ने इठलाते हुए कहा- तेरी चूत का तो पता नहीं, पर मेरी चूत में तो चला जाता है.

उसकी ये बात सुनकर मैं और मनु आश्चर्य से परमीत को देखने लगे. अभी तक हम हंसी मजाक से आगे कभी नहीं बढ़े थे, पर परमीत की ऐसी बातों ने हमारे होश उड़ा दिए. हम दोनों ने एक साथ परमीत पर धावा बोला … और उसे मारने लगे.

मेरे मुँह से गालियां निकलने लगीं- कमीनी कुतिया साली … कभी कोई बात पूरी नहीं बताती, तुझे कब से ये शौक हुआ है रे … जरा दिखा तो तेरी चूत कितनी बड़ी है, जो एक फुट का डिल्डो गटक जाती है.

ये कहते हुए मैंने परमीत का लोवर खींचा, पर परमीत ने लोवर पूरा उतरने से बचा लिया.

घर सूना था इसलिए हमें मस्ती करने के लिए पूरी आजादी मिली हुई थी. जब मैं लोवर ना उतार सकी, तो मैंने परमीत की चूत को अपनी मुट्ठी में लेकर भींच लिया.

परमीत तड़प उठी, शायद उसे दर्द हुआ था. उससे ज्यादा सिहरन मुझे हुई थी … क्योंकि किसी दूसरे के गद्देदार चूत को अपनें हाथों में भरकर दबाने का मेरा पहला अनुभव था.

मनु मेरा पूरा साथ देते हुए उसके मदमस्त हाथी की तरह हिलते हुए उरोजों को दबाने लगी.

वो परमीत के दूध मसलते हुए बड़बड़ा रही थी- साली बड़ी गर्मी है तेरे अन्दर … रूक अभी तेरी गर्मी निकालती हूँ. तू अपने इन्हीं मम्मों से लोगों को रिझाती है ना … दिखा तो कुतिया … जरा एक नजर मैं भी तो देखूँ इन गुब्बारों को!

मैं और मनु तो जैसे परमीत का काम ही उठाने लगे और वो कमीनी हमसे बचती रही. फिर परमीत ने हमारे सामने हाथ जोड़ लिए और हमारी बातों को मानने के लिए तैयार हो गई.

इसके बाद हमने परमीत को बात छुपाने की सजा के तौर पर पूरे कपड़े निकाल कर नंगे जिस्म को दिखाने की बात कही. परमीत ना नुकुर करने लगी, तो हम दोनों गुस्सा दिखाते हुए उसके कमरे से निकल कर जाने लगे, तो उसने हमें दौड़ कर रोका और कपड़े निकालने के तैयार हो गई.

अब वो हमारे सामने कपड़े निकालने के लिए शर्माते हुए खड़ी थी और हम टकटकी लगाए परमीत के संगमरमरी बदन की झलक पाने बेताब हुए जा रहे थे. वैसे तो वो हमारी सहेली ही थी, पर नंगे जिस्म का दीदार करना और सामान्य तरीके से देखने में बहुत फर्क होता है.

अब परमीत ने अपने लोवर की इलास्टिक हाथ की उंगलियों में फंसाई और एक-दो इंच ही नीचे सरकाई थी, फिर शरमा के ऊपर चढ़ा लिया.

इतने में तो मनु जैसे आग बबूला ही हो गई और नाराज होकर जाने लगी. उसने जाते जाते परमीत से कहा- जा साली कुतिया मर, अब तेरे घर कभी नहीं आऊंगी.

मनु की बातों से स्पष्ट था कि वो परमीत के नंगे बदन को देखने के लिए कितनी उतावली थी. मैं मनु के पास खड़ी थी, मैंने उसे हाथ पकड़ कर रोका और तभी परमीत ने मनु को सॉरी कहा.

उसी पल परमीत ने एक झटके में लोवर नीचे सरका दिया.

वाह … क्या गजब का तराशा हुआ बदन था, अभी हमारी नजरों ने कमर से नीचे की ओर देखना ही शुरू किया था कि परमीत ने अपना टॉप भी निकाल फेंका.

अब दोनों बांहें फैलाए हुए परमीत हमारे सामने सिर्फ ब्रा पेंटी में रह गई थी. प्रिंटेड ब्रा पेंटी में गजब ढाती परमीत को हमने पार्टी वाले दिन भी देखा था. उस दिन परमीत के भारी उरोजों के खुले दर्शन ने भी हमें इतना नहीं लुभाया था, जितना आज रिझा रहे थे.

मैं तो मंत्र मुग्ध सी खड़ी रही, पर मनु पैर पटक कर जाने लगी. मुझे उसका ये व्यवहार समझ नहीं आया, लेकिन परमीत जान गई कि मनु ऐसा क्यों कर रही है.
परमीत ने हड़बड़ाते हुए कहा- ये ले कुतिया … अब पेंटी भी उतार दी, अब तो भाव खाना बंद कर दे.

परमीत की आवाज ट्रेन की साइरन की तरह हमारे कानों में टकराई और हम दोनों एक साथ खुश होकर सीधे घुटने के बल बैठ गए. परमीत ने अपनी हथेलियों से अपना चेहरा छुपा लिया.

मैं और मनु परमीत के सामने घुटने के बल बैठ कर टकटकी लगाये उसकी चूत का मुआयना करने लगे. काले लेकिन भूरे जैसे बड़े बालों से आच्छादित उसकी योनि मेरी योनि से काफी बड़ी लग रही थी. शायद कुदरती हो, या फिर डिल्डो की वजह से सूज गई हो. पर चुत की साइज देखकर डिल्डो वाला आश्चर्य, हमारे मन से निकल गया. लेकिन अब उसकी खूबसूरती ने हम दोनों के अंतर्मन में वासना के कांटे चुभाने शुरू कर दिए थे.

पेंटी तो मेरी भी गीली हो चुकी थी, पर अभी तो मैं बस परमीत की चूत को छूना चूमना चाटना चाह रही थी. पता नहीं मेरे मन में ये ख्यालात कैसे आने लगे थे. तभी मेरे दिल को थोड़ी राहत पहुँची, क्योंकि मैं तो सोचते ही रह गई और मनु ने मेरे मन का काम कर दिया. उसने हाथ बढ़ाकर परमीत की चूत को छू लिया. परमीत के मुँह से एक सिसकारी फूट पड़ी और उसने अपने होंठों को दांतों में दबा लिया. परमीत की तड़प तो हम दोनों भी समझ गए थे, पर अभी भावविभोर थे.

मनु ने अपनी एक उंगली उसकी चूत में नीचे से लेकर ऊपर की ओर चलाई, तो उंगली चूत के रस से पूरी भीग गई. जब हाथ अलग किया, तो मकड़े की जाल जैसी एक तार ने उंगली और चूत को अलग नहीं होने दिया.

परमीत की चूत का इस तरह खुशी के आंसू बहाना, हमारे लिए अजीब नहीं था, क्योंकि हमारी हालत भी ऐसी ही थी. पर एक फुटा डिल्डो चुत के अन्दर लेने का सुख डर और मजे का अहसास तो परमीत ही जानती थी. पता नहीं उसने पूरा डिल्डो गटका था या आधा लिया था. जो कुछ भी रहा हो, पर आज हमारे यौवन से भी बगावत की महक आने लगी थी.
उसकी चूत के इतने करीब होने की वजह से उसकी खुशबू हमें मदहोश कर रही थी. परमीत की चूत के बीचों-बीच वाली दरार मेरी चूत की दरार से थोड़ी अधिक थी. फिर भी नवयौवना की चूत का मुँह चाहे जितनी भी फूली हो, पर खुली नहीं रहती.

मनु के हाथ अपने ही उरोज को मसलने लगे और मैं खुद में सिमट कर गोलाकार हो जाने का प्रयास करने लगी.

फिर मनु ने दुबारा से चूत को छूने के लिए जैसे ही हाथ बढ़ाया था कि दरवाजे पर दस्तक हुई और दीदी की आवाज कान में पड़ी.

मेरी और मनु की घबराहट एकदम से बढ़ गई. लेकिन हमारे लिए एक आश्चर्य की बात ये थी कि परमीत अब भी बेपरवाह खड़ी थी. जबकि मुझे और मनु को डर के मारे पसीने आने लगे थे.

मैंने जल्दी से परमीत के कपड़े उठाए और उसे खींचते हुए लेकर उसके रूम में घुस गई. रूम का दरवाजा बंद करते हुए मैंने मनु को बाहर का दरवाजा खोलने का इशारा कर दिया.

मनु ने दरवाजा खोला और दीदी ने अन्दर आकर सामान रखते हुए मेरे और परमीत के बारे में पूछा. बाहर से दीदी की आवाज कमरे के अन्दर तक आ रही थी.

मनु ने थोड़ी सुस्ती से जवाब दिया- दीदी वो दोनों अन्दर बातें कर रहे हैं. मनु सब कुछ सामान्य दिखाने का असफल प्रयत्न कर रही थी, जबकि हमारे सीने में ज्वारभाटा उफान ले रहा था. शायद ये बात दीदी के अनुभव ने महसूस कर लिया.

दीदी ने हंसते हुए कहा- लगता है कोई ज्यादा ही खास बात है … तभी तो बंद कमरे में गुफ्तगू चल रही है.

दीदी की बात पर मैं रूम के अन्दर ही सकपका गई और अब तक परमीत भी कपड़े पहन चुकी थी.

मैंने तुरंत दरवाजा खोल दिया और अनजान बनते हुए कहा- अच्छा हुआ दीदी आप आ गईं, हमें घर के लिए देर हो रही है, हम चलते हैं.

इस पर दीदी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा- अरे बैठ तो सही … अभी तो तुम लोगों से मेरी कोई बात भी नहीं हुई है, ऐसे कैसे चली जाओगी.
मैंने कहा- पर दीदी घर भी तो जाना है, हम किसी और दिन आते हैं … तब आपसे खूब बातें करेंगे.
दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा- किसी और दिन क्यों? मुझे तो तुम लोगों से आज ही बात करनी है … और रही घर जाने की बात, तो चलो मैं तुम दोनों के घर पर फोन लगा देती हूँ, फिर तो कोई दिक्कत नहीं होगी.

हमने अनमने मन से हां में सर हिलाया, क्योंकि हमें लगा कि दीदी के कहने से हम घर थोड़े देर से पहुंचेंगे, तो चलेगा. ऐसे भी अभी 6.00 ही बजे थे, हम 7.00 बजे तक घर जा सकते थे. पर हम तो चोरी पकड़े जाने के डर से भाग रहे थे. हालांकि अब दीदी के कहने पर हमें घर से एक घंटे की और छूट मिल सकती थी.

फोन लगाने का काम परमीत ने किया. उसने पहले मेरे घर का नम्बर मिलाया क्योंकि मेरे घर ही ज्यादा दबाव रहता था. फिर मनु के लिए तो कोई दिक्कत नहीं थी.

कुछ देर घंटी जाने के बाद मेरे भैया ने फोन उठाया, तो परमीत ने ‘भैया नमस्ते कहा’ और बोला कि दीदी आपसे बात करेंगी.

ये बोल कर उसने फोन दीदी को पकड़ा दिया.

दीदी को मैं जितना फ्रैंक समझ रही थी, दीदी उससे कहीं ज्यादा निकलीं. उन्होंने फोन पर ही भैया को लाइन मारना शुरू कर दिया.

उन्होंने चहकते हुए कहा- जी आप गीत के बड़े भाई … और मैं परमीत की बड़ी बहन हूँ. परमीत हमेशा ही गीत की बहुत तारीफ करती रहती है और उससे ज्यादा तारीफ आपकी करती है. मुझे एक बार आपसे मिलने का बड़ा मन है, कभी आइए ना आप हमारे घर.

पता नहीं भैया ने क्या जवाब दिया, पर दीदी ने फिर कहा- चलिए कोई बात नहीं … जब आपको समय मिले, तब आ जाइएगा … लेकिन फिलहाल मैं आपकी बहन को आज रात के लिए अपने यहां रोक रही हूँ. वो क्या है ना कि आज मेरा बर्थ-डे है … और आज घर वाले भी नहीं है, तो परमीत और मैं अकेला महसूस कर रहे हैं.

इस बार भी भैया का जवाब हम नहीं सुन पाए, पर दीदी ने फोन रखने के पहले दो तीन बार थैंक्स … थैंक्स कहा.

इधर दीदी का चेहरा देखकर और बात सुनकर मेरी हवा निकल गई थी, क्योंकि रात रुकने का कोई प्रोग्राम नहीं बना था और दीदी का आज बर्थ-डे है, हमें ये भी नहीं पता था.

दीदी ने फोन रखने के बाद हमारे रंग उड़े चेहरे को देख कर कहा- क्यूँ भई क्या हुआ?
मैंने कहा- दीदी हम रात नहीं रुकेंगे और आपने अपने बर्थ-डे के बारे में क्यों नहीं बताया.

दीदी मेरी बातों पर हंसने लगीं और हंसते हुए ही कहा- अरे मेरा बर्थ-डे वर्थ-डे कुछ नहीं है, मैंने तो बस तुम्हारे भैया से बहाना बनाया.

हमारी इतनी बातों तक परमीत ने मनु के घर का नम्बर मिला दिया था. मनु के घर उसके पापा ने फोन उठाया और दीदी ने उनसे भी कुछ बातें करके मनु का हमारे साथ रात रुकना पक्का कर लिया.

मैं और मनु बहुत खुश तो नहीं थे, पर नाराज भी नहीं थे. परमीत ने मुस्कुराते हुए और आंखों को नचाते हुए कहा- अब दीदी से जो पूछना है, पूछ लेना.

मैंने परमीत को चुप रहने का इशारा किया और हम टीवी के सामने बैठ गए. हमारे अन्दर जो ज्वाला कुछ देर पहले भड़क रही थी, वो कुछ संयमित ढंग से अलग दिशा का रूख करने लगी थी.

हम टीवी पर एक धारावाहिक देखने लगे. धारावाहिक देखने में मेरा बिल्कुल मन नहीं लग रहा था, लेकिन वो दीदी का फेवरेट सीरियल था.

उसके खत्म होते ही दीदी ने कहा- मैं फ्रेश होकर खाना बना देती हूँ, तुम सब गप्पें मारो, फिर रात में बातें करेंगे.
इस पर मैंने और मनु ने कहा- नहीं दीदी, अब जो भी करेंगे, एक साथ करेंगे.
इस बात को कमीनी परमीत ने दूसरे तरीके से लिया और दोहराते हुए कहा- अच्छा जो भी करेंगे!

इस पर दीदी हंस पड़ीं और मनु शरमा गई.

मैंने भी हकलाते हुए कहा- मेरा मतलब था कि साथ में ही खाना बना लेंगे, काम भी हो जाएगा और बातें भी हो जाएंगी.
इस पर परमीत ने फिर कह दिया- हां, मैं भी तो यही कह रही थी.
अब मैंने परमीत को एक मुक्का मारते हुए कहा- तु चुप कर कुतिया.

फिर मैंने दीदी को देख कर सॉरी कहा- दीदी ने कहा- कोई गल नहीं, सब चलता है … चलो अब तुम लोग भी कपड़े बदल कर फ्रेश हो जाओ, फिर खाना बनाते हैं.
मनु ने कहा- हम कपड़े तो नहीं लाये हैं.
मनु की बात काटते हुए परमीत ने कहा- तुम मेरा नाइटसूट पहन लो और गीत दीदी के कपड़े पहन लेगी.

हम दोनों ने मौन स्वीकृति दी और मनु परमीत के पीछे चली गई. दीदी मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अपने कमरे में ले गईं.

दीदी ने मुझे सफेद रंग का एक नाइट गाउन दिया, जो जालीदार और बहुत ही ओपन पैटर्न का था. मैंने उसे उठाकर देखा और ना पहनने के लिए बहुत से बहाने करने लगी.

दीदी बड़बड़ाईं- पता नहीं तुम लोगों की शर्म कब छूटेगी … हॉस्टल में रहती तो नंगे बदन ही घर में घूम लेतीं.

ये कहते हुए उन्होंने एक वी-नेक की टी-शर्ट और एक शॉर्ट स्कर्ट पहनने को दिया.

इस बार मैंने कोई बहाना नहीं किया और कपड़े लेकर बाथरूम की ओर जाने लगी.

तभी दीदी ने कहा- कहां जा रही हो?
मैंने सपाट जवाब दिया- कपड़े बदलने.
दीदी मुस्कुराईं और थोड़ा डांटते, थोड़ा समझाते हुए कहने लगीं- किसी भी चीज की अति अच्छी नहीं होती … यहां तेरे मेरे अलावा और कोई नहीं, तो फिर शर्माना कैसा?

मैंने दीदी की बातों का जवाब तो नहीं दिया, पर अब मैं वहीं कपड़े बदलने को राजी हो गई. मैंने अपना दुपट्टा ही उतारा था कि दीदी मेरे सामने सिर्फ ब्रा पेंटी में ही रह गईं. मैं उनके हुस्न का जाम पीने में लगी रही और उसी पल दीदी ने अपनी ब्रा को भी निकाल दिया. उनके कोमल अंगों को देखकर मुझ पर तो मानो बिजलियां ही गिर पड़ीं. मैं बेजान बुत बनी उनके निर्वस्त्र बदन को निहारे जा रही थी और दीदी को मेरे होने ना होने का कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था.

दीदी का तराशा हुआ बदन सभी पैमानों पर परिपूर्ण था. गोरी तो वह थी हीं और भारी स्तनों के कटाव और उन पर बने भूरे गोल घेरे मेरी जान निकाल रहे थे.

ऐसा दीदी परमीत से थोड़ी कम भारी थीं और मेरे से थोड़ी ज्यादा, ऊंचाई भी मनु से ज्यादा और मेरे से कम.

खैर … ये सब तो उसे कल्पना करने के लिए बताया जाता है, जिस बताने के लिए कोई उदाहरण न हो. आप बस यूं समझ लो कि दीदी का फिगर जैसे परिणीति चोपड़ा का हो. अब आप अच्छे ढंग से कल्पना कर सकते हैं. अब जरा सोचिए कि परिणीती को अपने सामनें निर्वस्त्र देखकर कौन बेहाल नहीं होगा.

मैं उन्हें निहारती ही रही और उन्होंने एक स्टाइलिश गाउन निकाल कर बदन पर डाल लिया. गाउन पहनने के बाद जो नजारा मेरे सामने था, वो अब भी कामुक था, पर अब दृश्य में थोड़ा परिवर्तन आ चुका था. वैसे तो गाउन दीदी के खूबसूरत जिस्म को ढंकने के लिए नाकाफी था, पर कुछ अंग अब पर्दे के पीछे चले गए थे और कुछ अन्दर से बाहर झांक रहे थे.

दीदी की आवाज से मेरी तंद्रा टूटी- तेरा इरादा क्या है … वैसे तो बड़ी भोली बनती है और देख ऐसे रही है, जैसे मुझे खा ही जाएगी.

इस पर मैंने कुछ नहीं कहा और हड़बड़ा कर अपने कपड़े बदलना चाहे. दीदी मेरे सामने रैगिंग करने वाली स्टाइल में खड़ी हो गईं. पल भर में ही मैंने ऊपरी कपड़े उतार फेंके और दीदी के दिए हुए टॉप स्कर्ट को पहनने लगी.

तभी दीदी ने कहा- अरे घर पर भी ब्रा पहने रहती हो क्या … ऐसे में तो बीमारी हो जाएगी.

मैंने कुछ कहना ठीक नहीं समझा और चुपचाप हाथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोल दिया. मैंने एक बार ही नजर उठा कर दीदी को देखा, वो मुझे बहुत ही ललचाई नजरों से घूर रही थीं. उनके देखने के अंदाज ने एक बार फिर मेरे भीतर खलबली मचा दी. फिर भी दीदी के सामने मेरा शर्मीला रूप ही जाहिर रहा और मैंने फटाफट कपड़े पहन लिए और दीदी से चलने को कहा.

दीदी ने एक लंबी गहरी ठंडी सांस लेते हुए, मेरी ठोड़ी को पकड़कर हिलाया और कहा- मेरी बहना रानी, तुझे तो जो भी भोगेगा … वो दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इंसान होगा.

मैंने उनकी आंखों में झांक कर देखा.

तो दीदी ने दूसरी बार ठंडी सांस लेते हुए हाययय काश …
दीदी ने इतना ही कहा और हम बाहर आ गए.

दीदी ने ली तो ठंडी सांस, पर मेरे मन में आग लगा दी. उनकी बातों ने मुझे बेचैन कर दिया, मेरी चूत में खलबली मचा दी.

उधर से परमीत शॉर्ट्स टी-शर्ट में और मनु लोवर टी-शर्ट में गजब ढाते हुए निकलीं.

मनु को परमीत के कपड़े जरा तंग हो रहे थे, इसलिए सीने के उभार और शरीर की बनावट कपड़ों पर से भी नजर आ रही थी.

हम सभी सामान्य होने की कोशिश कर रहे थे, पर मुझे लगा कि हम सब एक दूसरे को देखकर कामुकता का अनुभव कर रहे थे. शायद हॉस्टल वाली लड़कियों के लिए सब कुछ आम हो, पर हमारे लिए सब कुछ खास और उत्तेजक था.

अब हम सभी गप्पें मारते हुए काम में लग गए. दीदी बाजार से पालक और पनीर लाई थीं. हमने पालक पनीर की सब्जी, दाल रोटी चावल, पापड़ सलाद तैयार करके टेबल पर सजा दिया. खाना काफी टेस्टी बना था और हमें पिकनिक का अहसास हो रहा था.

हमने बड़े मजे से खाना खाया और इस दौरान हम दीदी से और ज्यादा घुल-मिल गए … या कहा जाए, तो खुल गए.

दीदी ने अपने बारे में बताते हुए कहा- मेरा एक ब्वॉयफ्रेंड था. मैंने उसके साथ जिंदगी के सारे मजे किए, तब मैं हॉस्टल में रहती थी. ब्वॉयफ्रेंड मेरा सीनियर था. मुझे उससे मिले एक साल ही हुआ था, उसकी पढ़ाई पूरी हो गई और वो अपने शहर लौट गया.

उसके बाद मैं किसी और को अपनी जिंदगी में शामिल करती, उससे पहले गर्मी की छुट्टियों में ही मुझे शादी के लिए देखने एक लड़का घर आ गया और उससे इस शर्त पर बात पक्की हो गई कि मेरी पढ़ाई पूरी होने पर शादी होगी. तब तक सगाई की रश्म अदा कर दी जाएगी. पर वो कमीना किसी और लड़की के चक्कर में था और उसने उससे शादी कर ली. फिर जब मैं उदास रहने लगी, तो हॉस्टल में एक सहेली ने डिल्डो लाकर दिया और खुद से प्यार करना और अपनी जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर बनना सिखाया. मुझे उसकी बात बहुत पसंद आई और मैंने डिल्डो को अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा बना लिया.

दीदी के मुँह से डिल्डो का खुला वर्णन सुनकर हम दोनों बड़े आश्चर्य से उनको देखने लगे.

दीदी ने हमें भी समझाते हुए कहा- जिंदगी में सब कुछ करना, पर किसी को भी जिंदगी में ऐसे शामिल मत करना कि उसके बिना जीवन ही नष्ट हो जाए.

ये सुनकर मुझे दीदी की आंखों में कुछ सूनापन नजर आया, पर दीदी ने उसे अपनी हंसी के पीछे छिपा लिया. हालांकि दीदी की बातों से हम दोनों को ये पता नहीं चला कि परमीत और दीदी के बीच सेक्स रिलेशन है या नहीं.

खैर काम खत्म करके गप्पें मारते हुए रात ग्यारह कैसे बजे, पता ही नहीं चला.

हम सभी में से सबसे पहले मनु ने सोने चलने की बात कही, तो दीदी ने हम सबकी सुविधा के लिए मनु को परमीत के कमरे में भेज दिया और मुझे अपने साथ कमरे में ले आईं.

दीदी ने जब कमरों का बंटवारा किया, तब मैं उनके भीतर छिपे रहस्य को समझ चुकी थी. लेकिन मुझे दुख इस बात का था कि डिल्डो तो परमीत के कमरे में था, फिर दीदी के साथ बिना डिल्डो के … खैर जो भी हो. इतना सोचने का क्या लाभ था!

कमरे में आकर दीदी ने अतिरिक्त कपड़े उतार देने को कहा.

मैंने कहा- मैं ठीक हूं.

फिर दीदी ने नाइट लैंप जलाकर बाकी लाइटें बंद कर दीं, कमरा धीमी लाल रौशनी से नहा उठा. दीदी बिस्तर पर जाकर लेट गईं और मुझे भी अपने पास लिटा लिया. हम दोनों एक ही चादर को ओढ़े एक दूसरे के सामने मुँह किए फिर बातें करने लगे. इस बार दीदी का अंदाज थोड़ा अलग था.

उन्होंने मेरे बाजुओं को बड़े प्यार से सहलाते हुए कहा- क्या तुमने कभी सेक्स किया है?

अब मैं दीदी से इतना तो खुल गई थी कि केले वाली बात बता सकूँ.

मैंने कहा- हां.
दीदी ने आश्चर्य से पूछा- किससे … कब?
मैंने कहा- कल रात केले से …

इस बात पर हम दोनों हंस पड़े.
दीदी ने हंसते हुए मुझे चूमा और कहा- चल आज तुझे मैं सेक्स का मजा कराती हूँ.

उनकी बातों के जवाब में मेरा चेहरा भाव शून्य था, एक हिसाब से ये मेरी मौन स्वीकृति ही थी.

कहानी जारी रहेगी.
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