एक भाई की वासना -38

(Ek Bhai Ki Vasna-38)

जूजाजी 2015-09-14 Comments

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सम्पादक – जूजा जी
हजरात आपने अभी तक पढ़ा..
जाहिरा हँसने लगी और बोली- भाई जल्दी से नाश्ता करो और चाय पी कर निकलो.. आपको बहुत देर हो गई है!
फैजान- लेकिन आज तो मैं चाय नहीं दूध पीऊँगा..
जाहिरा- तो जाओ अन्दर जाकर पी आओ.. भाभी अन्दर ही हैं..
फैजान- लेकिन मैं तो आज तेरी इन चूचियों का दूध पीऊँगा..

फैजान ने जाहिरा की चूची से खेलते हुए कहा और फिर झुक कर अपनी बहन की चूची के निप्पल को अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगा।
जाहिरा ने उसके बालों में हाथ फेरा और फिर बोली- आह्ह.. बस करो.. भाई क्या आपने एक ही दिन में सारे के सारे मजे लूट लेना हैं..
अब आगे लुत्फ़ लें..

फैजान मुस्कराया और उठ कर बाहर की तरफ चला गया और जाहिरा भी पीछे-पीछे डोर लॉक करने और उसे ‘सी ऑफ’ करने के लिए चली गई।
गेट पर भी फैजान ने जाहिरा को अपनी बाँहों में जकड़ा और उसे किस करने लगा, बोला- डार्लिंग थोड़ा सा मुँह में लेकर इसे नर्म तो कर दो.. देखो यह सारा दिन मुझे ऑफिस में तंग करेगा।

जाहिरा हँसी और अपना हाथ फैजान की पैन्ट की ऊपर से फैजान के लंड पर रख कर उसे दबाते हुए बोली- भाई तड़फने दो इसे.. इसी तड़फन में तो मज़ा है.. वापिस आओगे.. तो इसका कुछ ना कुछ करूँगी.
फैजान- प्रॉमिस है ना?
जाहिरा- नहीं जी.. प्रॉमिस-श्रौमिस कोई नहीं.. अगर मौका मिला तो.. समझे..
यह कहते हुए जाहिरा ने उसे बाहर की तरफ धकेला और फिर फैजान घर से निकल गया।

जाहिरा अपना ड्रेस ठीक करते हुए वापिस आई और बर्तन समेट कर रसोई में चली गई।
मैं भी दोबारा बिस्तर पर लेट गई।

थोड़ी ही देर मैं जाहिरा चाय के दो कप बना कर बेडरूम में आ गई और लाइट जलाते हुए बोली- क्या बात है भाभी.. आज आपने उठना नहीं है क्या?
मैं अंगड़ाई लेती हुई बोली- रात तूने मुझे नींद में डरा ही दिया था.. तो नींद ही खराब हो गई थी.. तुझे रात को क्या हो गया था?

जाहिरा दूसरी तरफ बिस्तर की पुश्त से टेक लगा कर बैठते हुए बोली- भाभी लगता है कि रात को सोते में भी भाई ने फिर मुझे तुम्हारी जगह ही समझ लिया था.. वो ही हरकतें कर रहे थे.. इसलिए तो मैं उठ कर दूसरी तरफ आ गई थी।
जाहिरा ने मासूमियत से पूरी की पूरी बात छुपाते हुए कहा।

मैं मुस्करा कर बोली- अरे यार.. तो फिर क्या हुआ.. उसे मजे करने देती और खुद भी मजे करती.. इसकी तो यही आदत है.. सारी रात सोते में भी मुझे तंग करता रहता है। अब तो मैं इस सबकी आदी हो गई हूँ..

जाहिरा भी हँसने लगी और फिर हम दोनों चाय पीने लगे। चाय पीते हुए मैं अपने एक हाथ से जाहिरा के कन्धों को सहला रही थी।
मैंने उससे पूछा- जाहिरा.. जब तुम्हारे भाई तुम्हें छू रहे थे.. तो तुमको कैसा लगा था?
जाहिरा का चेहरा सुर्ख हो गया और बोली- भाभी लग तो ठीक रहा था.. लेकिन भाई हैं ना मेरे.. इसलिए अजीब लग रहा था।

मैं जाहिरा के और क़रीब हो गई और अपना हाथ उसकी गर्दन पर उसके बालों में रखते हुए आहिस्ता-आहिस्ता अपने होंठ उसके होंठों के पास ले जाने लगी और धीरे से बोली- जाहिरा.. तुम हो ही इतनी खूबसूरत.. कि कोई भी तुम से दूर कैसे रह सकता है..
कयह कहते हुए मैंने उसके होंठों को चूमना शुरू कर दिया।
जाहिरा कसमसाई- भाभी.. आप फिर से शुरू होने लगी हो ना..

लेकिन उसके जुमले को पूरा होने से पहले ही.. मैंने अपने होंठों में उसके लबों को जज्ब कर लिया और उसके निचले होंठ को.. अपने होंठों में लेकर चूमने और चूसने लगी।

मेरे हाथ उसके बालों को सहला रहे थे और दूसरा हाथ उसकी कमर पर आ गया था।
अब मैं उसकी कमर को सहलाते हुए उसके होंठों को चूमने लगी।

आहिस्ता आहिस्ता मैंने अपने होंठ जाहिरा के नंगे कन्धों पर लाकर उसके मुलायम और गोरे-गोरे कंधों को चूमना शुरू कर दिया.. जाहिरा की आँखें भी बंद होने लगी थीं।
मैंने आहिस्ता से जाहिरा को नीचे तकिए पर लिटा दिया और झुक कर उसकी गोरे-गोरे उठे हुए सीने पर किस करने लगी।

फिर मैंने जाहिरा के टॉप की डोरियाँ नीचे को करके उसकी चूचियों को बाहर निकाला और उसके चूचों को नंगा कर दिया।

मैंने मुस्करा कर जाहिरा की तरफ देखा.. तो उसने एक लम्हे की लिए अपनी आंखें खोल कर मुझे निहारा.. और फिर से बंद कर लीं।
मैंने अपने होंठ जाहिरा के एक निप्पल पर रखे और उसे चूम लिया.. साथ ही जाहिरा के जिस्म में एक झुरझुरी सी दौड़ गई।

अब आहिस्ता आहिस्ता मैंने जाहिरा के निप्पल को अपनी ज़ुबान से सहलाना शुरू कर दिया और फिर अपने होंठों में लेकर चूसने लगी।
जाहिरा के गुलाबी निप्पल को चूसने का मेरा पहला मौका था कि मैं किसी दूसरी लड़की की चूचियों को छू और चूस रही थी.. लेकिन मुझे भी एक अजीब सा लुत्फ़ आ रहा था..

मेरा दूसरा हाथ जाहिरा की दूसरी चूची को सहलाता हुआ नीचे को जाने लगा और मैंने अपना हाथ जाहिरा के बरमूडा के अन्दर डाल दिया।

अब मेरा हाथ उसकी चूत को पूरी शिद्दत से सहलाने लगा। उसकी चूत गीली होना शुरू हो गई हुई थी।

मैंने सीधे होकर अपना टॉप उतारा और अपना ऊपरी बदन नंगा कर लिया। जब मैंने अपने हाथ और होंठ उसके जिस्म से हटाए.. तो जाहिरा ने आँखें खोल कर फ़ौरन ही मेरी तरफ देखा..
उसने जब मेरी ऊपरी गोरे बदन को नंगा देखा.. तो उसकी चेहरे पर भी एक मुस्कराहट फैल गई। इस बार उसने अपनी आँखें बंद नहीं कीं और मेरी चूचियों की तरफ देखती रही।

मैंने उसकी तरफ देखते हुए.. अपनी दोनों चूचियों पर हाथ फेरा और फिर एक चूची को अपने हाथ में पकड़ कर उसके निप्पल को आगे करते हुए जाहिरा के होंठों पर रख दिया।
जाहिरा मुस्कराई और उसने बहुत ही नजाकत से मेरे निप्पल को चूम लिया।

पहली बार किसी लड़की ने मेरे निप्पल को चूमा था। मैंने अपनी चूची को उसकी होंठों पर दबा दिया.. जाहिरा ने भी अपने होंठों को खोल कर मेरे निप्पल को अपने होंठों में भर लिया.. और उसे चूसने लगी।

जाहिरा के कुँवारे होंठों के दरम्यान अपने निप्पल को चुसवाते हुए मुझे एक अजीब सा मज़ा आ रहा था। मैंने अपना हाथ दोबार जाहिरा के बरमूडा में डाला और उसकी चूत से खेलने लगी।
मेरी उंगली उसकी चूत के सुराख को छू रही थी और उसके अन्दर दाखिल होना चाह रही थी। मैं उसकी चूत के दाने को रगड़ रही थी और उसकी वजह से जाहिरा के जिस्म में बिजली सी भर रही थी।

उसकी मेरे निप्पल को चूसने की ताक़त में इज़ाफ़ा होता जा रहा था। कभी आहिस्ता से वो मेरी निप्पल को काट भी लेती थी।
कुछ देर तक जाहिरा से अपना निप्पल चुसवाने के बाद.. मैं उठी और जाहिरा की टाँगों की तरफ आ गई।

मैंने उसके बरमूडा को पकड़ कर खींचा और उतार दिया।
अब जाहिरा का निचला जिस्म बिल्कुल नंगा हो गया। जाहिरा ने फ़ौरन ही अपने हाथ अपनी चूत पर रख लिए। मैंने झुक कर उसकी दोनों जाँघों को चूमा और आहिस्ता-आहिस्ता अपनी ज़ुबान से चाटते हुए ऊपर को उसकी चूत की तरफ आने लगी।
फिर मैंने उसकी दोनों हाथों पर किस किया.. जो कि उसकी चूत पर रखे हुए थे।

आहिस्ता से मैंने उसकी हाथों को उसकी चूत पर से हटाया.. तो उसने कोई मज़ाहमत नहीं की और अपनी चूत को मेरे सामने पेश कर दिया।

अब मेरी नज़र जाहिरा की जाँघों के बीच में थी.. जहाँ जाहिरा की कुँवारी चूत थी। जिसके ऊपर के हिस्से और इर्द-गिर्द एक भी बाल नहीं था। जाहिरा की चूत के मोटे-मोटे बाहर के फोल्ड्स आपस में जुड़े हुए थे.. बालों के बगैर उसकी कुँवारी चूत किसी बहुत ही छोटी सी बच्ची की चूत का मंज़र पेश कर रही थी।

दोनों बेरूनी फलकों के दरम्यान से गुलाबी रंग की अन्दर की चमड़ी का कुछ हिस्सा नज़र आ रहा था। जिससे यह अंदाज़ा हो सकता था कि दोनों फलकों के अन्दर का गोस्त किस क़दर गुलाबी और नर्म होगा।

उसकी चूत के दोनों फलकों के निचले हिस्से में जहाँ पर चूत की लकीर खत्म होती है.. वहाँ पर पानी का एक क़तरा चमक रहा था..
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जाहिरा की कुँवारी चूत से निकल रही चूत का रस का क़तरा.. जो कि अपनी गाढ़ेपन की वजह से उस जगह पर जमा हुआ था और आगे नहीं बह रहा था।

जाहिरा की कुँवारी चूत के क़तरे की चमक से मेरी आँखें भी चमक उठीं और मैं वो करने पर मजबूर हो गई.. जो कि मैंने आज तक कभी नहीं किया था.. सिर्फ़ मूवी में देखा भर था।

आप सब इस कहानी के बारे में अपने ख्यालात इस कहानी के सम्पादक की ईमेल तक भेज सकते हैं।
अभी वाकिया बदस्तूर है।
[email protected]

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