बहू की मेहरबानी, सास हुई बेटे के लंड की दीवानी-1
(Bahu Ki Meharbani, Saas Hui Bete Ke Lund Ki Diwani- Part 1)
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कैसे हो दोस्तो! मैं आपका अपना राज शर्मा… बहुत दिन बाद आज एक कहानी आप लोगों के साथ शेयर करना चाहता हूँ।
जैसा कि आप सब जानते ही हैं मैं चुत का बहुत रसिया इंसान हूँ। मेरी बहुत सी कहानियाँ भी आप सबने पढ़ी हैं और पसंद भी की है।
मेरी पिछली कहानी थी
दोस्त की बुआ के घर में तीन चूत
मेरी कहानियाँ पढ़ कर मेरी एक महिला मित्र बनी जिसका नाम है रमिता खन्ना, दिल्ली की रहने वाली है। वो दिल्ली में अपने पति और सास के साथ रहती है। वैसे तो उसके पति हिमाचल के रहने वाले हैं पर नौकरी दिल्ली में होने की वजह से वो अब दिल्ली के दिलशाद गार्डन एरिया में कहीं रहते हैं।
अब आते है असली कहानी पर! यह कहानी मेरी नहीं है बल्कि रमिता के बताये गये किस्से पर आधारित है। वो बहुत दिनों से कह रही थी कि उसकी भी एक कहानी है और मैं उसे हिंदी में लिख कर आप सब को भेजूँ। पर समय ही मिल रहा था। आज तीन दिन की छुट्टी मिली तो सोचा कि आज यह शुभ काम कर ही दिया जाए। बस लैपटॉप उठाया और बैठ गया रमिता की कहानी लिखने।
रमिता 22-23 साल की जवान और खूबसूरत बदन की मलिका, कद पाँच फीट तीन इंच, बदन का एक एक अंग साँचे में ढला हुआ। अभी 8 महीने पहले ही उसकी शादी अशोक खन्ना से हुई जो दिल्ली की एक कंपनी में काम करता है।
अशोक भी 24 साल का हट्टा कट्टा नौजवान है। दिखने में सुन्दर और लम्बे मोटे लंड का मालिक। रमिता बहुत खुश थी अशोक से शादी करके। अशोक भी उसकी हर रात को रंगीन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ता था, खूब मस्त चुदाई करता था वो रमिता की।
परिवार का एक और अहम् सदस्य था अशोक की माँ साधना… उम्र 45 के आसपास पर बदन इतना मस्त कि अच्छी अच्छी कुँवारी लड़कियाँ भी पानी भरती नजर आयें। कद पाँच फीट, चुचे ऐसे जैसे हिमाचल की पहाड़ियाँ। पतला सपाट पेट मस्त उभरे हुए कूल्हे।
आप सोच रहे होंगे कि रमिता की कहानी में मैं उसकी सास की तारीफ क्यों लिख रहा हूँ? तो बता दूँ कि इस कहानी की मुख्य पात्र अशोक की माँ और रमिता की सास ही है।
कहानी की शुरुआत तब हुई जब एक दिन दोपहर में रमिता ने अपनी सास के कमरे से सिसकारियों की आवाज सुनी। उसने दरवाजे में से झाँक कर देखा तो दंग रह गई। उसकी सास साधना सिर्फ पेटीकोट में पलंग पर लेटी थी और एक हाथ की दो उँगलियों से अपनी चुत को रगड़ रही थी वहीं दूसरे हाथ से अपनी कड़क चुचियों को मसल रही थी। शायद वो झड़ने वाली थी तभी उसके मुँह से सिसकारियाँ फूट रही थी।
रमिता का ध्यान साधना की चुत पर गया तो देखा की साधना की चुत एकदम क्लीन शेव थी जैसे आज ही झांटें साफ़ की हो। पानी के कारण लाइट में चमक रही थी साधना की चुत। रमिता को आशा नहीं थी कि उसकी सास इतनी कामुक होगी।
बहू रमिता दरवाजे पर ही खड़ी रही और जब सास साधना झड़ कर शांत हो गई तो वो एकदम से दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गई। रमिता को देख अस्तव्यस्त कपड़ों में पड़ी साधना एकदम से हड़बड़ा गई और उसने जल्दी से पास पड़ी साड़ी से अपने बदन को ढक लिया।
“अब क्या फायदा मम्मी जी… सब कुछ तो देख चुकी हूँ मैं!” रमिता ने हँसते हुए माहौल को हल्का करने के मकसद से कहा।
साधना तो जैसे शर्म से मरी जा रही थी।
रमिता जाकर साधना के पास पलंग पर बैठ गई- मम्मी जी, क्यों परेशान हो रहे हो… होता रहता है ये सब तो… ये सब तो प्राकृतिक है!
साधना अभी भी चुपचाप बैठी थी जैसे चोरी करते पकड़ी गई हो।
रमिता ने साधना को सामान्य करने के इरादे से हाथ बढ़ा कर साधना की चूची को अपने हाथ में लेते हुए कहा- क्या बात है मम्मी जी… आपकी चूची तो बहुत कड़क और मस्त हैं, देखो मेरी तो तुमसे छोटी भी है और इतनी मुलायम भी नहीं हैं.
कहते हुए रमिता ने साधना का हाथ पकड़ कर अपनी चूची पर रख दिया।
“क्यों शर्मिंदा कर रही हो बहू…” साधना के मुँह से पहली बार कोई शब्द निकले।
“अरे नहीं मम्मी जी… ये सब प्राकृतिक क्रिया है… होता है कभी कभी ऐसा कि सेक्स हावी हो जाता है… जब अशोक कभी टूर पर जाते हैं तो मेरे साथ भी ऐसा होता है। तब मैं भी उंगली करके ही शान्त होती हूँ।”
जब बहुत कुछ कहने करने पर भी साधना का मन नहीं बदला तो रमिता ने ये कहते हुए बात खत्म की कि आज से हम दोनों सहेली हैं। जब भी आपको ऐसी कोई जरूरत महसूस हो तो मुझे बताना मैं आपकी मदद कर दूँगी आपको शांत करने में और जब अशोक टूर पर होंगे तो आप मेरी सहायता कर देना।
कुछ दिन ऐसे ही बीते। रमिता पूरी तरह से सास को खुश करने में लगी रहती पर साधना रमिता के सामने शर्मा जाती और ज्यादातर चुप ही रहती।
फिर एक दिन अशोक को तीन दिन के लिए टूर पर जाना था, पीछे से सास बहू घर पर अकेली थी। रमिता ने सोच लिया था कि साधना को इन तीन दिनों में खोल देना है ताकि वो शर्मिंदा महसूस ना करें।
पहली ही रात को रमिता ने साधना को अपने कमरे में सोने को कह दिया। साधना ने मना भी किया पर रमिता नहीं मानी तो साधना को उसकी बात माननी ही पड़ी। रात को रमिता एक पतली सी नाईटी पहन कर सोने के लिए बेड पर आ गई पर साधना साड़ी पहने हुए थी तो रमिता ने उसकी साड़ी को खींच कर अलग लिया और एकदम आराम से सोने को कहा।
कुछ देर इधर उधर की बातें की और फिर रमिता ने अचानक अपनी नाईटी उतार कर एक तरफ उछाल दी। रमिता की इस हरकत से साधना स्तब्ध थी। इससे पहले कि वो कुछ बोलती, रमिता ने आगे बढ़ कर साधना के पेटीकोट कर नाड़ा खींच दिया और फिर बिना देर किये साधना के ब्लाउज के हुक खोलने लगी।
साधना ने रोकने की कोशिश की पर रमिता उसको पूर्ण रूप से नंगी करने के बाद ही रुकी। अब बेड पर दोनों सास बहू जन्मजात नंगी बैठी थी।
“अरे मम्मी जी… आप तो नई नवेली दुल्हन की तरह शर्मा रही है… आगे बढ़ो और मजा करो।”
“रमिता, तू बहुत बेशर्म है री… देख तो बेशर्म ने अपने साथ साथ मुझे भी नंगी कर दिया!”
“मम्मी जी अभी तो सिर्फ नंगी किया है आगे आगे देखो क्या क्या करती हूँ।”
“तू तो पूरी पागल है…” साधना शर्म से लाल हो गई थी। यह पहला मौका था जब वो अपने पति के अलावा किसी के सामने पूर्ण रूप से नग्न थी।
कपड़े उतारने के बाद रमिता साधना से लिपट गई और साधना के खरबूजे के साइज़ के चुचों को मसलने लगी। साधना कसमसा रही थी पर सच यही था कि उसको भी इस सब से उत्तेजना होने लगी थी। रमिता ने किसी मर्द की तरह ही पहले तो उसके चुचों को कस कस के मसला और फिर अपनी सासू माँ के तन चुके चूचुकों को मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। जैसे ही रमिता ने साधना के मम्मे चूसने शुरू किये, साधना तो जैसे जन्नत में पहुँच गई। सालों से सेक्स का मजा नहीं ले पाई थी साधना। जब भी ज्यादा बेचैन होती तो बस उंगली से चुत मसल कर पानी निकाल लेती। मूली खीरा बेंगन भी कभी प्रयोग नहीं किया था।
आज जब रमिता ने ये सब किया तो साधना को बहुत मजा आने लगा था। रमिता ऐसे ही सब कर रही थी जैसे अशोक उसके साथ करता था उसको गर्म करने के लिए। चूची चूसते चूसते रमिता ने एक उंगली साधना की चुत में पेल दी। साधना की चुत पूरी गीली हो चुकी थी उत्तेजना के कारण। जब रमिता की उंगली घुसी तो साधना मस्त हो उठी और उसके मुँह से आह्ह्ह निकल गई। साधना ने भी अब रमिता के चुचों को अपनी हथेली में दबोच लिया और मसलने लगी थी।
रमिता अब उसके चुचों को छोड़ नीचे की तरफ बढ़ने लगी थी। और फिर रमिता ने साधना की चुत पर जब अपने होंठ रखे तो साधना का पूरा बदन गनगना उठा। रमिता ने जीभ निकाल कर अपनी सासू माँ को खुश करने के लिए पूरी लगन से साधना की चुत चाटना शुरू कर दिया। साधना के लिए ये सब एक नया अनुभव था। रमिता की थोड़ी सी मेहनत से ही साधना की चुत से पानी का दरिया बहने लगा। रमिता के लिए भी ये अनुभव नया था क्योंकि आज तक उसने सिर्फ अपनी चुत चटवाई थी जबकि आज वो पहली बार किसी की चुत का मजा ले रही थी। इसी सोच के कारण रमिता भी उत्तेजित होने लगी थी।
रमिता अपनी सास की चुत चाटते हुए अपने चुचों को मसल रही थी। अब उसकी चुत में भी गुदगुदी होने लगी थी। जब उससे बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने पलटी मारी और अपनी सासू माँ के ऊपर आकर 69 की पोजीशन बना अपनी चुत साधना के मुँह के ऊपर कर दी।
साधना भी समझ गई कि उसकी लाड़ली बहू क्या चाहती है और उसने भी रमिता की चुत में अपनी जीभ घुसा दी।
करीब एक घंटा सास बहूएक दूसरे से लिपट कर मजा लेती रही और फिर दोनों पस्त होकर लेट गई।
“रमिता… आज सालों बाद मेरा इतना पानी निकला है… चार बार झड़ी आज मेरी चुत…” साधना ने लम्बी लम्बी साँस लेते हुए रमिता से कहा।
“माँ जी… सच बताना, आखरी बार चुत में लंड कब लिया था आपने?”
“बहुत साल हो गये अब तो याद भी नहीं…”
“फिर भी बताओ ना?”
साधना ने अपनी कहानी रमिता को सुनानी शुरू की।
जब मैं स्कूल में पढ़ती थी तब अशोक के पापा से मेरी शादी हुई, वो तब नए नए फौज में भर्ती हुए थे, 19-20 के ही थे वो भी… दोनों ही नादान, सुहागरात को ना उन्हें कुछ पता था ना मुझे। पहली रात तो बस ऐसे ही बीत गई।
अगले उनके दोस्तों ने उनको बताया कि क्या कैसे करना है तब जाकर दूसरी रात को इन्होंने मेरी सील खोली। मेरी कमसिन सी चुत और उनका लंड सारी रात दोनों अन्दर डाल कर पड़े रहे। सुबह देखा तो पूरा बिस्तर खून से सना पड़ा था।
लगभग 20 दिन रहे हम साथ साथ, रोज तीन से चार बार चुदाई करते। फिर उनकी छुट्टियाँ ख़त्म हो गई और वो अपनी ड्यूटी पर चले गए।
बहुत याद आती थी उनकी!
मेरी ससुराल में भरा पूरा परिवार था। मेरी सास इतनी कड़क के उनकी नजर से ही डर लगता था मुझे। कभी इधर उधर नजर उठाने की हिम्मत भी नहीं हुई। दोनों तड़पते रहे। फिर धीरे धीरे आदत सी हो गई। वो छुट्टियों में आते और हम दोनों पूरा समय बस एक दूसरे में ही खोये रहते, पूरी पूरी रात हम चुदाई का मजा लेते, एक एक पल का आनन्द लेते।
फिर मैं पेट से हो गई, वो अपनी ड्यूटी पर थे जब मुझे अपनी कोख में पल रहे बच्चे का पता चला।
जब अशोक पैदा हुआ तो वो आये।
फिर उनकी ड्यूटी दूर बंगाल बोर्डर पर हो गई और वो एक साल तक नहीं आये। मैं भी अशोक के साथ व्यस्त रहने लगी। तीन साल तक वो जब भी आये तो हमारा मिलना सिर्फ रात को ही होता। दिन में तो बात भी नहीं होती।
जब उनकी ड्यूटी पठानकोट हुई तब हम दो साल साथ में फॅमिली क्वाटर में रहे।
जिन्दगी ऐसे ही चल रही थी, फिर तेरह साल पहले एक एक्सीडेंट में उनकी मौत हो गई, तब से अब तक अकेले ही जिन्दगी काट रही हूँ।
कहानी जारी रहेगी.
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