निरंकुश वासना की दौड़- 7
(Xxx Unexpected Sex Pleasure)
Xxx अनएक्सपेक्टिड सेक्स प्लेज़र का मजा दिलाया मेरे पति ने मुझे और अपने दोस्त की गर्म बीवी को. वे दो अफ्रीकी लड़के बुला लाये हम दोनों की चूत चुदाई के लिए.
कहानी के छठे भाग
दो हसीनाएं एक दीवाना
में अब तक आपने पढ़ा कि नीलम अपनी नए लंड की तलब मिटाने, मुंबई अपने पति के मित्र निखिल के यहां जाती है। उसकी पत्नी संध्या के साथ लेस्बियन संबंध स्थापित करती है। संध्या और निखिल के साथ स्वैपिंग का खेल खेलती है। उसके बाद उन्मुक्त हो चुकी संध्या, सुनील और नीलम के साथ मुंबई से गोवा की यात्रा में अपनी वासना का उन्मुक्त प्रदर्शन करती है।
कोल्हापुर पहुंच कर हम तीनों साथ नहाते हैं, एक दूसरे के जिस्म से खेलते हुए, सुनील का लंड तन्ना जाता है। वह हम दोनों को झुका के हमारी चुदाई करता है और पहले मेरी और बाद में संध्या की चूत में स्खलित होता है।
अब आगे Xxx अनएक्सपेक्टिड सेक्स प्लेज़र:
जब सुनील का लंड सिकुड़ के संध्या की चूत से बाहर सटक गया, तब हम तीनों बाथरूम से बाहर निकले और बिस्तर पर नंग धड़ंग हालत में ही सुस्ताने लग गए।
थोड़ी देर शरीर को आराम देने के बाद तीनों फिर डिनर के लिए रूम से बाहर आए, रात में खाना खाकर कमरे में लौटे।
पूरे दिन के सफर की थकान और अभी शाम को बाथरूम में एक बार चुदाई एंजॉय कर लेने के कारण, हमने सोचा कि अब गोवा की नशीली जमीन पर ही बाकी की मस्ती मारेंगे।
सुबह कोल्हापुर से निकलकर दोपहर तक हम लोग गोवा पहुंच गए।
एक लग्जरी होटल में एक आलीशान रूम हमने बुक कर रखा था। तीनों ने उस एक ही रूम में रुकने का निर्णय लिया।
कमरे में पहुंच कर हम थोड़ा रिलेक्स हुए, कुछ देर सफर की थकान उतारने, चाय नाश्ता करने के बाद, हम ने फिर गोवा के रंगीन माहौल के अनुरूप कपड़े पहने।
मैंने तो छोटी सी निकर और छोटा सा पारदर्शी टॉप पहना जिसमें मेरे बूब्स मेरी ब्रा से बाहर निकलते साफ दिख रहे थे।
संध्या के पास तो शॉर्ट्स थे नहीं इसलिए उसने जोश में आ कर टू पीस बिकिनी में जाने का निर्णय लिया।
तीनों गोवा बीच पर टहलने लगे।
सुनील के साथ दो सैक्सी औरतों के कारण सब की निगाहें हमारी ओर उठ रही थीं।
मेरे और संध्या के 36 तथा 38 इंच के बूब्स, सब शौकीन मिज़ाज मर्दों को ललचा रहे थे।
चलते हुए हमारे स्तनों का नृत्य तथा मटकते हुए कूल्हे, सैलानियों के दिलों पर बम की तरह बरस रहे थे।
कुछ ने केवल आंखों सेंकी तो कुछ ने कुछ फब्तियां भी कसी।
सिर से पैर तक वासना से भरी, हम दोनों औरतों को लोगों के अश्लील कमेंट्स बिल्कुल बुरे नहीं लग रहे थे।
हम दोनों तो यह सोचकर खुश हो रही थीं कि जवान लौंडे और मर्द हम दोनों के मादक उभारों और आमंत्रण देते नग्न सौंदर्य को नोटिस कर रहे थे।
मुझे वह कहावत याद आ रही थी कि ‘लड़की को छेड़ो तो उसे बुरा लगता है लेकिन नहीं छेड़ो तो ज्यादा बुरा लगता है।’
सुनील की निगाहें भी कम कपड़ों में घूम रही देशी विदेशी लड़कियों की गोलाइयां नाप रही थीं.
तो संध्या और मेरी नजरें, हर उम्र के, देश विदेश के मर्दों की जांघों के जोड़ पर अटक जाती थीं।
हम लगातार यह अनुमान लगा रही थीं कि किस मर्द का लंड कितना लंबा अथवा कितना मोटा होगा।
विशेषकर संध्या की तो चूत में पराये मर्दों को देखकर और उनसे चुदाई की काम-कल्पनाओं के कारण बहुत गुदगुदी हो रही थी।
इस बार तो वह मेरे और सुनील के साथ आई थी इसलिए हम दोनों की योजना अनुसार ही उसे आनन्द मिलना था किंतु वह अधिक से अधिक हासिल करने के लिए छटपटा रही थी।
वह तो यहां तक सोचने लगी थी कि काश वह अकेली आती तो कई सारे लौड़ों का मजा, पूरी बेशर्मी से लूटती।
मैं तो निखिल सहित पांच लंड ले चुकी थी इसलिए मेरी नज़र सिर्फ ऐसा मर्द ढूंढ रही थी, जिस का लंड असामान्य आकार का हो यानि बहुत लंबा और मेरे ननदोई महिपाल के लंड से भी अधिक मोटा हो।
यदि कोई जंबो साइज का नया लंड, चुदने के लिए किसी औरत को मिल जाए तो औरत का चुदाई का मजा स्वतः ही बढ़ जाता है।
ऐसी स्थिति में यदि मेरे जैसी औरत को गोवा में नया लंड तो मिले लेकिन वह सामान्य आकार का ही हो तो मेरा तो गोवा आना ही बेकार हो जाएगा।
होटल पहुंच कर सुनील ने कहा- तुम लोग रेस्ट करो, मैं ड्रिंक्स का इंतजाम करके आता हूं।
सुनील निकल गया.
संध्या और मैं दोनों आपस में लिपटकर थकान उतारने लगी।
सुनील करीब एक घंटे बाद कुछ बीयर की बोटलें और स्पेशल ब्रांड की व्हिस्की ले कर लौटा।
संध्या ने कभी बीयर भी चखी नहीं थी लेकिन अभी वह हर बंदिश, हर वर्जना से मुक्त हो जाना चाहती थी इसलिए उसने मेरे साथ थोड़ी बीयर ली तो सुनील ने व्हिस्की के दो पैग लगाए।
उसके बाद हम तीनों खाना खाने रूम से बाहर निकल गए।
जब हम डिनर करके लौटे तो हमारे शरीर वासना से भरे हुए थे।
पर संध्या एक अजीब सी दुविधा में पड़ी हुई थी।
वह सोच रही थी कि रास्ते में आते जाते ट्रक वालों की नजरों के सामने, चूत चटाने की घटना को छोड़कर उसे मस्ती और आनन्द के जिस विलक्षण अनुभव की उम्मीद थी, अभी तक तो ऐसा कुछ हुआ नहीं था।
सैक्स में आनन्द को बढ़ाने के लिए सबसे अधिक जरूरत एक सक्रिय दिमाग और कल्पनाशीलता की होती है।
संध्या इस खेल में अभी नई-नई थी, उसे बस शरीर में बला की सनसनी चाहिए थी, वह चरम सुख में आनन्द की पराकाष्ठा को छूना चाहती थी।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस आनन्द को पाने के लिए वह आखिर करे क्या?
वह हमारे साथ घर से बड़ी उम्मीद से निकली थी कि कामवासना के नए संसार से रूबरू होगी, आनन्दातिरेक का अनुभव करेगी.
पर सब कुछ सुनील और मुझ पर निर्भर था कि हम दोनों कैसे उसके शरीर में वासना का ज्वार पैदा करते हैं और कैसे उसको वह सुख प्रदान करते हैं, जिससे वह अभी तक अनभिज्ञ रही है।
वह अंदर से बहुत उफनी हुई थी और सब से पहले तो उसे एक बढ़िया वाली ठुकाई चाहिए थी।
क्योंकि नहाते समय तो सुनील ने बस अपने लंड का तनाव उसकी और मेरी चूत में निकाला था।
बढ़िया वाली चुदाई की जरूरत तो मेरे को भी थी। कमरे में आ के तीनों ने वासना की आग में झुलस रहे, एक दूसरे के जिस्मों से सारे कपड़े एक एक कर के उतार फेंके।
उसके बाद सुनील ने पलंग पर बैठ कर हम दोनों औरतों को सामने खड़ा किया और दोनों हाथों से हमारे स्तनों से खेलने लगा, बारी बारी चारों निप्पलों को चूस चूस के हमारी वासना की आग को और भड़का दिया।
उसके बाद सुनील ने संध्या और मुझे दोनों को घोड़ी बनने के लिए कहा तो संध्या से रहा नहीं गया, वह पूछ बैठी- यार सुनील, तुमने बाथरूम में भी हम दोनों को झुका के हमारी चुदाई करी थी जिसमें हमको तो घंटा मजा नहीं आया। अब हमें फिर से घोड़ी बनाकर तुम अकेले, हम दोनों को आखिर कैसे चोद के संतुष्ट कर पाओगे?
सुनील ने कहा- संध्या, जब तू हमारे साथ आई है तो ज्यादा दिमाग पर जोर मत डाल, जो हो रहा है और जो होने वाला है, उसका आनन्द ले।
हमारे पास और कोई चारा तो था नहीं, सुनील की बात सुनकर संध्या और मैं दोनों चुपचाप घोड़ी बन गईं.
अब हम दोनों इंतजार कर रही थीं कि सुनील हमारी चूत में लंड डालेगा.
लेकिन सुनील हमारी आशा के विपरीत पलंग पर आ के चित लेट गया और हम दोनों के लटके हुए भारी-भारी बूब्स के साथ खेलने लगा।
हमारे मम्मों को सहलाने, दबाने के बाद हमारी बड़ी-बड़ी निप्पलों को बारी बारी मसलने और मुंह में लेकर चूसने लगा।
हम दोनों तो पहले से ही चुदासी हो रही थीं लेकिन अब हमारी चूत में वासना की लपटें उठने लगीं।
हमारी बेचैनी बढ़ती जा रही थी.
तभी संध्या और मेरे, दोनों के मुंह से चीख निकल गई।
सुनील ने पूछा- क्या हुआ? तुम दोनों चीखी क्यों?
संध्या और मैं दोनों बोली- हरामजादे, किसी का लंबा एवं मोटा लंड हमारी चूत में घुस गया है।
हम दोनों बोली- तू तो पलंग पर लेटा हुआ है फिर हमारी चूत को ये कौन अपने मोटा लंड डाल के फाड़ रहा है?
सुनील हंसता हुआ संध्या को बोला- मैंने कहा नहीं था कि हमारे साथ तुझे गोवा में मस्ती के नए शिखर छूने को मिलेंगे? तू तो बस मजा ले मस्त लंड का, जब तू गर्म कुतिया बन ही गई है तो तुझे कौन कुत्ता चोद रहा है उससे तुझे क्या?
संध्या ने कहा- सही बोल रहा है कमीने!
फिर उसने चुदाई की और ध्यान लगाया.
20 – 22 साल के एक अनजान, गठीले, कसरती बदन वाले नीग्रो का लंड, उसकी चूत को चौड़ा करते हुए अंदर जा रहा था।
उसको शुरू में तो थोड़ी पीड़ा हुई पर कुदरत ने औरत की चूत को कुछ ऐसा बनाया है कि कुछ ही रगड़ों में वह पीड़ा आनन्द में बदल गई और उसे हर धक्के में जन्नत दिखाई देने लगी।
संध्या तो जैसे निहाल हो गई Xxx अनएक्सपेक्टिड सेक्स प्लेज़र से!
उसने सुनील को कहा- काश, तुम लोग कम से कम 10 साल पहले मिल जाते तो कितना मजा आता!
इस पर मैं बोली- यार संध्या, मैं तो खुद भी पहली बार इतनी कम उम्र वाले काले नीग्रो के, इतने लंबे और मोटे लंड से चुद रही हूं।
इस पर संध्या बोली- ठीक है नीलम, पर यह सोच कि तू कितनी खुश किस्मत है जो तुझे सुनील जैसा पति मिला है। जो तेरे शरीर, तेरी कामवासना, तेरी नए नए लौड़ों से चुदवाने की हसरतों का इतना ध्यान रखता है। उसे पता है कि हर औरत को नए लंड में अधिक मजा आता है और विशेष कर यदि नया लंड लंबा और मोटा भी हो फिर तो उससे चुदने पर मिलने वाली सनसनी और आनन्द का तो जवाब हो ही नहीं सकता।
संध्या और मेरे पीछे साढ़े छः फीट के दो नौजवान नीग्रो हम दोनों को धकाधक पेल रहे थे, उनके धक्के लगातार जारी थे और जब भी बीच में एक करारा वाला झटका लगता, कभी संध्या चीखती, कभी मैं!
हम दोनों को समझ नहीं आ रहा था कि सुनील इतनी जल्दी ये दो सांड कहां से ढूंढ कर लाया.
ये लोग नॉर्मल मर्द तो हो नहीं सकते, दोनों लंपट राक्षस की तरह चुदाई कर रहे थे और उन के बलशाली धक्कों के कारण मुझे और संध्या को वे कामदेव के समान लग रहे थे।
हमारे पूरे शरीर की वासना नंगा नाच करती हुई, धीरे-धीरे चूत के भीतर केंद्रित हो रही थी।
हमारी चूतें दो सांडों के झटके झेल झेल के थक चुकी थीं, हमें लग रहा था कि अब एक बार दोनों को झड़ जाना चाहिए।
हम दोनों कामुक चूतों ने सुनील से याचना करी कि वह दोनों नीग्रो को कहे कि वे जल्दी अपनी चुदाई खत्म करें।
सुनील के इशारे पर पीछे चोद रहे दोनों नीग्रो ने अपने धक्कों में जोश और गति बढ़ा दी और मेरी तथा संध्या की चूत में करारे झटके लगा के चूत के चीथड़े करने लगे।
दोनों नीग्रो के शक्तिशाली लंड एक पिस्टन की तरह हमारी गर्म चूतों के अंदर बाहर हो रहे थे।
अब तो दोनों नीग्रो के मुंह से भी मस्ती की सिसकारियां निकल रही थीं.
उनकी सांसें भी भारी होने लगी थीं, स्पष्ट था कि उनके लंड से वीर्य विस्फोट होने वाला था।
हम दोनों तो जैसे पागल हो रही थीं, हमारी उत्तेजना असहनीय हो रही थी।
गर्म लोहे पर हथौड़े की तरह, अपनी गर्म चूत पर, दमदार लंड की कई चोट खाने के बाद में हमारी चूतें मस्ती में फड़कने लगीं और नसें इतनी तेज़ी से फड़क रही थीं, जैसे तड़क जायेंगी।
नीग्रो के लंबे लंड हमारी चूतों में जड़ तक समाए हुए थे, चुदाई में संलग्न चारों के चेहरों की खिंची हुई मांसपेशियां, स्खलन के साथ शिथिल पड़ने लगी थीं।
दोनों नीग्रो अपने लंड के कामरस के कतरों से अपनी और हम दोनों काम पिपासु औरतों की वासना को, शांत कर चुके थे।
उनके लंड से निकलने वाली वीर्य की धार, दूसरे मर्दों जितनी तेज नहीं थी लेकिन उनके लंड की मोटाई के कारण उनके लंड का फड़कना, हम दोनों गर्म चूतों को महसूस हो रहा था।
होटल के इस कमरे में व्हिस्की, बीयर, वीर्य, चूत रस, पसीना और मादक जिस्मों की नशीली महक भर गई थी।
सुनील को छोड़कर संध्या, मैं और दोनों नीग्रो की सांसें अभी भी भारी थीं।
संध्या और मेरे पैर अब कमजोर पड़ने लगे थे, हमसे अब घोड़ी बनकर रहा नहीं जा रहा था।
हम दोनों आगे बढ़ती हुई पलंग पर औंधी लेट गईं, हमारे पीछे-पीछे दोनों नीग्रो भी, बिना हमारी चूत से लंड निकाले, हमारे ऊपर अपना वजन डालते हुए निढाल पड़ गए।
मैं तो फिर भी कई लंड से चुद चुकी थी फिर भी आज की चुदाई का अनुभव अनोखा था।
हम दोनों को आज यह भी समझ में आ गया था कि जो लोग कहते हैं कि लंड की साइज से कोई फर्क नहीं पड़ता, वे कितना गलत कहते हैं। लंड की लंबाई से भले ही फर्क पड़े ना पड़े लेकिन मोटाई से तो बहुत फर्क पड़ता है।
यह आज के आनन्द से सिद्ध हो गया था.
संध्या को ऐसा लग रहा था कि उसकी अब तक की चुदाई तो ऐसी थी जैसे बेस्वाद खाने से पेट भर लिया जाए।
चुदाई में जो आनन्द उसे आज मिला, वह निखिल के साथ की गई चुदाई में कहां मिल पाया था!
चुदाई में इतना मजा आ सकता है, यह तो उसे आज पता चला।
उसको लगा कि जैसे उसने आनन्द के शिखर को छू लिया है।
कुछ देर बाद दोनों नीग्रो हमारे ऊपर से उठ कर खड़े हुए, उनके लटके हुए लंड भी ऐसे लग रहे थे जैसे गधे के लंड हों।
संध्या सोचने लगी कि उसकी चूत, जिसने अब तक केवल निखिल का औसत लंड और सुनील का निखिल के लंड से थोड़ा ही बड़ा लंड लिया है, इतने लंबे, मोटे लंड को झेल कैसे गई?
उसके बाद उसने मेरे से आज की चुदाई के बारे में पूछा तो मैंने कहा- यार, लंड तो मैंने कई ले लिए हैं किंतु आज इस मूसल जैसे लंड से चुदने का मेरा भी पहला अवसर है।
फिर मैंने संध्या को समझाते हुए कहा- यही तो हम जैसी औरतों की गलती है जो मर्द के नाम पर सिर्फ पति से चुदवा कर ही मन को समझा लेती हैं और उस में भी केवल पति की मर्ज़ी और उसके सुख के ध्यान में लगी रहती हैं। ना हम अपनी हसरतों पर गौर करती हैं, न कभी अपनी चूत की क्षमता का परीक्षण करती हैं। हम यह मान लेती हैं कि बस जो मिल रहा है वही आनन्द पर्याप्त है, जबकि आनन्द असीम होता है, मस्ती अनंत होती है।
मेरी इस सनसनी भरी Xxx अनएक्सपेक्टिड सेक्स प्लेज़र कहानी के रस में डूबे हुए मेरे पाठक पाठिकाओं, मुझे उम्मीद है कि मेरी इस कहानी ने आपकी भी कुछ न कुछ सुप्त हसरतों को जगाया होगा, भावनाओं को भड़काया होगा।
अपने अनुभव और कहानी पर अपने विचारों से मुझे अवगत करायें।
मेरी आईडी है
[email protected]
Xxx अनएक्सपेक्टिड सेक्स प्लेज़र का अगला भाग:
What did you think of this story??
Comments