मेरी सनसनी भरी कामुक बस यात्रा- 1

(Xxx Bus Fuck Kahani)

xxx बस फक़ कहानी में पढ़ें कि काम ज्वर से पीड़ित मैं स्लीपर बस द्वारा अपने पति के पास जा रही थी. मैं सीट पर सो गयी और पति द्वारा मुझे कामसुख देने का सपना देखने लगी.

मेरे रसिक पाठको, मैं आपकी अपनी माधुरी सिंह ‘मदहोश’
मैंने अपनी पिछली कहानी
वासना की फिसलन भरी राहें
में बताया था कि कैसे एक नवविवाहिता दीपाली कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण अपने शरीर में उठे वासना के ज्वार को नियंत्रित नहीं कर पाती और अपने सुदर्शन व्यक्तित्व वाले मकान मालिक वैभव सिंह की बाहों में उसके नए लंड से चुदने की इच्छा से पहुंच जाती है।

उसी कहानी में मैंने एक नई थ्योरी दी थी कि औरत की चूत में प्राकृतिक सील के अलावा एक स्वनिर्मित काल्पनिक दूसरी सील और होती है जिसको तुड़वाने के पहले औरत को बहुत अधिक संत्रास से गुजरना पड़ता है।

अपनी मानसिक ग्रंथियों और सामाजिक बंदिशों से मुक्त होने के लिए नैतिक, अनैतिक के तर्कों से जूझना पड़ता है।
अपने मन में तरह तरह की आशंकाओं और भ्रांतियों को दूर करने के लिए मन को बहुत अधिक समझाना पड़ता है।

उसी सैक्सी कहानी में मैंने यह भी बताया था कि एक बार जब औरत की संकोच, झिझक और दुविधा की यह दूसरी सील टूट जाती है तब वह हर तरह के अंदेशों के मकड़जाल से मुक्त हो जाती है।

उसके साथ फिर कभी भी, कहीं भी, किसी के भी साथ, शारीरिक सम्बन्ध बनाने में कोई अनिर्णय की स्थिति उत्पन्न नहीं होती।
सब कुछ उसकी कामवासना और स्वेच्छा पर निर्भर करता है।

इसके उपरांत यदि पति एकाधिकार की भावना से ग्रस्त ना हो और अपनी बीवी की कामुक हसरतों को पूर्ण करने में सहयोगी हो तब तो सोने पर सुहागा!

क्योंकि जीवन में सारे तनाव सिर्फ इसी कारण होते हैं कि मैं तो चोरी छुपे हर तरह की हसरतें पूरी करूं पर अपने साथी की ख्वाहिशों पर नियंत्रण रखूं एवम् उस की नए स्वाद की हसरत पूरी नहीं करने दूं।

आपकी सुप्त वासना को जगाने और रक्त संचार को तेज करने के लिए प्रस्तुत है मेरी उस कहानी के आगे की यह कड़ी!
इसमें आपको पता चलेगा कि कहानी की नायिका दीपाली ने अवसर मिलने पर और क्या गुल खिलाए।

यह कहानी सुनें.

आगे की कहानी दीपाली के शब्दों में:

मैं दीपाली, आप सब जानते हैं कि मैं कैसे अपने मकान मालिक वैभव सिंह के सामने एक छोटी सी चूक के कारण ब्रा, पैंटी में जा पहुंची थी और उसके बाद वैभव सिंह की कामुक आंखों के सम्मोहन से बंधी एवं अपनी भड़की हुई कामवासना के आगे विवश होकर उसके पास चुदने जा पहुंची थी।

उसके बाद वैभव ने अपनी पत्नी मेनका की तपस्या मेरे पति आदित्य से कैसे भंग करवाई थी।
वह सब आप मेरी पिछली कहानी ‘वासना की फिसलन भरी राहें’ में पढ़ चुके हैं।

उसके बाद हम चारों का जीवन मस्ती, आनन्द और रस से भर गया था। कभी हम स्वैपिंग करते, कभी थ्रीसम, कभी 4सम, यानि सैक्स के हर समीकरण हम चारों ने मिलजुल कर हल किए थे।

एक सोमवार की बात है कि आदित्य को कंपनी के काम से जोधपुर जाना पड़ा और संयोगवश वैभव भी अपने किन्हीं व्यावसायिक कारणों से नई दिल्ली के लिए रवाना हो गया।
पीछे से घर में रह गईं हम दो कामुक औरतें।

मेनका की शादी को तो फिर भी 5 वर्ष हो चुके थे लेकिन मेरी शादी को अभी सिर्फ एक ही वर्ष हुआ था, हम दोनों के जिस्म की भूख का स्तर अलग था।
जहां मेनका हफ्ते में 5 या 6 बार ही चुद रही थी, वहीं मेरी चुदाई अब तक रोजाना कम से कम दो बार, नियमित रूप से हो रही थी।

इसलिए दो-तीन दिन बाद ही बिना चुदाई के मेरे जिस्म में बेचैनी बढ़ने लगी।
यह xxx बस फक़ कहानी मेरी इसी बेचैनी के कारण बन पाई है.

मेनका ने मेरी आंखों में वासना के लाल डोरों को पढ़ लिया और उसने शरारत से पूछा भी- क्यों री दीपू, इतनी बेचैन क्यों है? आदित्य की याद आ रही है या वैभव की?
मेरे मुंह से आवेश में निकल गया- दोनों मर्दों को एक साथ तो नहीं जाना था यार! उनको यह तो सोचना था कि पीछे से हम दोनों कामुक औरतों का क्या होगा?

मेरी हालत जल बिन मछली जैसी हो रही थी, बिना चुदाई के मैं जैसे तड़प रही थी।

मेनका ने मेरे मजे लेते हुए मुझे फिर छेड़ा- तेरे लिए किसी नए लंड का जुगाड़ करें क्या?
मैंने कहा- नहीं यार, बदनामी का डर है … पर मुझसे बिना लंड के रहा नहीं जा रहा।

उसके बाद मेनका ने बहुत कोशिश की मेरी वासना की आग बुझाने की।
उसने मुझे ओरल cunnilingus के जरिए झराया भी!

लेकिन लंड आखिर लंड होता है।
पुसी लिकिंग ओरल से झड़ने के बाद मेरी लंड की तलब और बढ़ गई।

कुदरत की इस नायाब चीज़ का कोई रिप्लेसमेंट न अभी तक बन पाया है, न भविष्य में कभी बन सकता है।

मर्द का शरीर जब औरत के शरीर से मिलता है और जब उसका लंड औरत की चूत में घुस कर अपने घर्षण से जो आनन्द औरत को प्रदान करता है, ऐसा आनन्द किसी और युक्ति से संभव नहीं है।

पहले आदित्य शुक्रवार को लौटने वाला था, गुरुवार की रात उसने बताया कि कंपनी ने फील्ड वर्क के कारण उसे रविवार तक वहीं रुकने के आदेश दिए हैं।
मेरा तो दिमाग खराब हो गया, मैं अचानक चुदाई के लिए व्याकुल हो गई।

मैंने मेनका को कहा भी- चल दोनों जोधपुर चलते हैं, आदित्य के लंड को दोनों मिलकर निचोड़ेंगी.
तो मेनका ने कहा- नहीं यार, मैं सोच रही हूं कि मैं 2 दिन मायके हो आती हूं, तू जा और जी भरकर चुदवाना और पूरी तरह अपनी जिस्म की भूख शांत करना।

मेरी बेताबी इतनी बढ़ गई कि मैं आदित्य को बताए बिना, रात की बस से जोधपुर जाने के लिए घर से निकल गई।
मैंने सोचा सुबह-सुबह आदित्य की बाहों में पहुंचकर लंड के लिए तड़पती मेरी चूत को चुदवा चुदवा के प्रसन्न करूंगी।

यह भी निश्चित था कि आदित्य को भी मेरा यह सरप्राइज अच्छा लगेगा.
यदि उसने मुठ नहीं मारी होगी तो वह भी तो आखिर चुदाई के लिए तरस रहा होगा।

बस जोधपुर जाने को तैयार थी.
लेकिन समस्या यह थी कि कोई सिंगल बर्थ खाली नहीं थी, केवल एक डबल बर्थ ही उपलब्ध थी.
कंडक्टर ने मुझे आश्वस्त किया कि आप निश्चिंत होकर सोएं, मैं किसी महिला यात्री को ही आपके केबिन में आने दूंगा।

मैं कंडक्टर की बातों से संतुष्ट होकर केबिन में जाकर लेट गई.
बस अपने गंतव्य की ओर चल पड़ी।

मैं, एक कामदग्ध औरत, धीरे-धीरे काम कल्पनाओं में खोने लगी, मैं यही सोच रही थी कि जब मैं आदित्य के पास पहुंचूंगी तो सुबह-सुबह मर्द का लंड प्राकृतिक रूप से खड़ा रहता है, मुझे जाते ही बिना किसी प्रयास के मेरी चूत की चुदाई के लिए तैयार लंड मिलेगा।

लेकिन एक बार की चुदाई से मेरा मन कहां भरने वाला है!
पहली चुदाई के बाद कम से कम एक बार और आदित्य का लंड चूस चूस के खड़ा करूंगी और दोबारा चुदूंगी।
अनेक काम आसनों की कल्पनाओं के चलते हुए पता नहीं कब निद्रा देवी की गोद में मेरी चेतना लुप्त हो गई।

काम कल्पनाओं से मुक्त हुई तो मुझे कामुक सपनों ने घेर लिया।
बस अपनी गति से चली जा रही थी.
बीच में 1- 2 बार बस रुकी भी, कुछ पल के लिए मेरी नींद उचटी, फिर नींद लग गई और रंगीन सैक्सी सपनों ने मेरी दमित वासना को उभार कर मेरे पूरे तन बदन में चिंगारियां सुलगा रखी थीं।

ऐसे ही एक कामोत्तेजक सैक्सी सपने की बात आप सब को बताती हूं.

मैंने देखा कि मैं और आदित्य पलंग पर थे.
आदित्य ने मेरे पीछे लेट कर मेरे उन्नत उरोज़ों को सहलाना प्रारंभ किया, उसके चंचल हाथ फिर मेरे पूरे शरीर में काम तरंगें जगाने लगे।

बीच-बीच में वह कभी मेरे स्तनों को दबा देता तो कभी मेरे नितंबों को!
कुछ ही देर में मैंने अपने दोनों चूतड़ों के बीच, उसके कड़क हो चुके लंड का दबाव महसूस किया.
उसने मुझे पीछे से भींच रखा था और मेरे गदराये शरीर का स्पर्श सुख ले रहा था।

मेरी चूत पानी छोड़ने लगी थी, वह मेरे अंग प्रत्यंग को छेड़ कर मेरी बेचैनी को बढ़ा रहा था।
उसने मेरी नंगी पीठ को चूमा, मैं सिहर उठी।
उसकी कामुक हरकतों के कारण मेरी ऐसी इच्छा होने लगी कि अब वह जल्दी से मेरी चूत में अपना तन्नाया हुआ लंड घुसेड़ दे।

उसने धीरे-धीरे एक-एक करके मेरे ब्लाउज के हुक खोले और पीछे से मेरी ब्रा का क्लिप खोलकर मेरे बड़े बड़े, मुलायम, दूधिया कबूतरों को आजाद कर दिया और अब उसके हाथ उन्हें धीरे-धीरे मसल कर उनसे खेल रहे थे।

मेरी सांसों मे तपिश बढ़ती जा रही थी।
मेरे निप्पलों से छेड़छाड़ भी लगातार चल रही थी.
एक बार उसने अपने अंगूठे और तर्जनी में मेरी एक, फिर दूसरी निप्पल को पकड़ कर थोड़ा जोर से मसल दिया तो एक काम तरंग ने सीधे मेरे मस्तिष्क तक पहुंच कर मुझे उद्वेलित कर दिया।

बीच-बीच में उसका पीछे से मेरे दोनों कूल्हों के बीच में लंड टिका के जोर लगाने का सिलसिला ज़ारी था।
मेरी गर्दन के पिछले भाग में उसकी गर्म सांसों की आंच मुझे महसूस हो रही थी और साफ लग रहा था कि अब आदित्य का लंड भी मेरी चूत में घुसने के लिए बेचैन हो रहा था।

आखिरकार वह पल आ गया जब आदित्य से रहा नहीं गया, उसने हौले हौले मेरी साड़ी व पेटिकोट को ऊपर उठाना शुरू किया और अपने अंगूठे से मेरी पैंटी को एक ही बार में घुटने तक खींच दिया.
दूसरी बार में उसने मेरे पैरों से पैंटी को आजाद कर दिया।

अब उसके हाथ मेरे नंगे मांसल चूतड़ों, चिकनी जांघों और रिसती हुई चूत का जायजा ले रहे थे।

मेरी पनियाई हुई चूत बड़ी बेसब्री से आदित्य के लंड का इंतजार कर रही थी।
उसने मेरी चूत को अपनी मुख लार से चिकना किया, थोड़ा सा थूक अपने लंड पर भी लगाया और चूत के बीचो-बीच अपने लंड को रख कर एक करारा झटका दिया।

उसका पूरा लंड मेरी चूत में समाता हुआ जड़ तक पहुंच चुका था।
इस झटके के कारण मेरी नींद उचट गई, मुझको कुछ सेकंड लगे स्थिति को समझने में!
फिर मुझे जब होश आया तब मैंने पाया कि मैं बस में हूं और मेरी चूत में लंड … सच है, सपना नहीं है।

मेरी चूत में किसी मर्द का असली वाला लंड घुसा हुआ है।

यह आदित्य तो हो नहीं सकता … फिर किसने मेरी चूत में लंड डाल दिया?
कौन है जो मुझे यूं चोदने की हिम्मत कर सकता है?
कहीं बस कंडक्टर ने तो मौके का फायदा नहीं उठा लिया?

कई तरह के प्रश्न मेरे दिमाग में उठ रहे थे।

मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था।
यह किसी पराये मर्द का दूसरा लंड था जो मेरी चूत में घुसा हुआ था।
मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं हंसूं या रोऊं।

मेरे पीछे जो कोई भी मर्द था वह लंड घुसेड़ के अपने लंड के तनाव और चूत की गर्माहट का आनन्द ले रहा था।

लेकिन यह कौन मर्द है?
किसने ऐसा दुस्साहस किया है?
एक बार तो मेरी इच्छा हुई कि पलट के चीखूं।

मैंने कोशिश भी करी कि पीछे मुड़कर देखूँ … लेकिन मेरे पीछे जिस अंजान मर्द ने मुझे जकड़ रखा था, उसने अपनी पकड़ ढीली नहीं होने दी और मैंने पीछे मुड़ने की कोशिश छोड़ दी।

उस पर मेरी चूत को तो लंड के रगड़े चाहियें थे।
अतः मैंने सोचा कि अब जब पूरा लंड मेरी चूत में घुस ही चुका है तो क्यों ना अब इसका भी मजा ले ही लिया जाए!

क्योंकि उस समय कामुक सपनों के प्रभाव में मेरी चूत की कामाग्नि ने प्रचंड रूप ले रखा था.
फिर मैंने अपनी पिछली कहानी में बताया भी था कि किस तरह मेरी दूसरी सील टूट चुकी थी इसलिए अब मुझे किसी प्रकार की कोई दुविधा भी नहीं थी।
यहां तक कि मेरी चूत भी इस बात के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी कि हाथ आया हुआ शिकार छोड़ दे।

जिस भी मर्द ने मेरी चूत में लंड डाला था, वह भी शायद सांस रोके मेरी प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा था।

आखिर मेरे मुंह से निकल गया- अब गेंडे की तरह पड़ा हुआ क्यों है स्साल्ले … कमीने, रगड़ता क्यों नहीं है?

जिस पराये मर्द ने मेरी चूत में अपना लंड घुसेड़ा हुआ था, उसने मेरी बात सुनकर राहत की सांस ली क्योंकि ना मैंने कोई गुस्सा किया था, ना ही मैं चीखी थी।
उसने मेरी बात को सुनकर अपनी कमर को हिलाना शुरू किया।

वह अपना लंड आधे से ज्यादा बाहर लाता और फिर झटके से अंदर पहुंचाते हुए कहने लगा- जो आज्ञा मेरी कामुक रानी, जैसा तुम चाहो।
उसकी मर्दाना गंभीर आवाज की मैं कायल हो गई।

इस तरह चलती हुई बस में मेरी चूत को एक अजनबी अपने कड़क लंड के रगड़ों से घर्षण सुख पहुंचा रहा था।
xxx बस फक़ के खेल में उसके धक्कों के साथ मेरी लचकती हुई कमर ने भी लय बिठा ली थी और मैं उस गैर मर्द के लंड के हर धक्के में मस्ती महसूस करने लगी थी।

मेरी जिंदगी में यह दूसरा पराया मर्द था.
लेकिन चलती बस में एक अनजान मर्द से चुदवाने का यह मेरा पहला अनुभव था और मैं जिसके लंड से चुदाई के मजे ले रही थी.
यह मर्द न केवल अपरिचित था बल्कि मैं चुदवाती हुई भी उसके चेहरे से अभी तक अनजान थी।

यह भी मेरे लिए सनसनी भरा एक सुखद अहसास था।
मेरी चूत में लगातार मुझे सुकून देने वाली तरंगें उठ रही थीं।

अचानक मुझे चोद रहे मर्द के धक्कों में तेजी आने लगी.
मैं समझ गई कि अब वह स्खलित होने वाला है।

उसने लगातार धक्के लगाने शुरू कर दिये.
15 – 20 धक्के लगे होंगे कि उसकी सांसें भारी होने लगीं।
उसका लंड उसके नियंत्रण से बाहर हो गया और उसके फड़कते हुए लंड ने कई किश्तों में मेरी चूत को अपने वीर्य से भर दिया।

मैं अपने चरमसुख से वंचित रह गई थी किंतु इस सुख से भरी हुई थी कि कुदरत ने मेरे सफर को यादगार बनाने के लिए एक और गैर मर्द को मेरे पास भेज दिया था.
चूत में नए लंड के प्रवेश मात्र से अनोखा सुकून, अजीब सी सनसनी मिलती है, जिसको समझाया नहीं जा सकता, सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।

अतः मैं संतुष्ट नहीं थी लेकिन खुश थी।
जब उस अनजान गैर मर्द के लंड से वीर्य की अंतिम बूंद तक मेरी चूत की गहराई में निकल गई, उसके बाद उसका लंड तो सिकुड़ के बाहर निकल गया और मैंने एक नैपकिन को तह करके अपनी चूत पर लगा लिया और पैंटी चढ़ा ली।

मैं नहीं चाहती थी कि उसका वीर्य बाहर निकल कर कपड़ों को खराब करे।

फिर मैंने करवट ली और उसकी तरफ चेहरा घुमाया और मेरे केबिन की लाइट ऑन की।
मैंने देखा कि मुझे चोदने वाला एक खूबसूरत, मेरी ही उम्र का युवक था।

उसको देखकर मेरे दिल को तसल्ली हुई कि चलो मुझको चोदने वाला यह तीसरा मर्द भी खूबसूरत और दिल और आँखों को सुहाने वाला निकला।

उससे अब बात होने लगी.
उसने बताया कि वह अजमेर में बैंक मैनेजर है।

यह जानकर कि वह बैंक मैनेजर है, मैं चौंकी, इसलिए पूछ बैठी- अरे! तुम बैंक मैनेजर हो, फिर ऐसी छिछोरों जैसी हरकत कैसे कर पाए? कैसे इतनी हिम्मत जुटा ली तुमने कि तुम न सिर्फ मेरे साथ, मेरे पीछे आकर सो गए बल्कि मेरे साथ इतना सब कुछ कर डाला?

तो वह कहने लगा- यार, तुम्हारा केबिन हल्का सा खुला हुआ था और बाहर की रोशनी में मैंने देखा कि भीतर एक परी सोई हुई है और डबल बर्थ के केबिन में तुम अकेली थी, बाहर सब गहरी नींद में सोए हुए थे। जैसा कि सामान्यतः होता है, रात के अंधेरे में वासना का आवेग बढ़ जाता है. मुझे लगा कि यह अच्छा मौका है कि मैं तुम्हारे केबिन में प्रवेश करके तुम्हारे पास सो जाऊं। मेरा लंड नई चूत मिलने की संभावना को देखते हुए तन्नाने लगा था। यह तो तुम जानती ही होगी कि जब लंड खड़ा हो जाता है, उसके बाद मर्द उस के वश में हो जाता है। मैंने अपनी प्रतिष्ठा को दांव पर लगाते हुए हिम्मत करी और तुम्हारे पास आकर लेट गया। उसके बाद जैसे-जैसे मेरी हिम्मत बढ़ती गई, वैसे वैसे मैं तुम्हारे शरीर से खेलने लगा। तुमने ना रोका, ना टोका, तो मेरी हिम्मत बढ़ती चली गई और फिर एक क्षण ऐसा आया कि जब मैं बिल्कुल दीवाना हो चुका था, उस समय ऐसा लगा कि यदि मैंने अपना लंड तुम्हारी चूत में नहीं डाला तो शायद उसमें विस्फोट हो जाएगा।

मैं मुस्कुराती हुई उसकी बातों का आनन्द लेती रही, विशेषकर उसका मुझे परी कहना बहुत अच्छा लगा।

मैंने उसकी उत्तेजना को समझते हुए उससे अपने चरम सुख ना मिल पाने की शिकायत भी नहीं की।
वैभव से चुदवाने का निर्णय मेरी जिंदगी का एक खुशनुमा मोड़ था तो इस अनजान मर्द से चलती बस में ठुकवाना एक और हसीन मोड़!

मुझे पक्का विश्वास था कि जब मैं आदित्य से मिलूंगी और उसे इस घटना के बारे में बताऊंगी तो निश्चित रूप से उसके बदन में वासना का एक ज्वार उठेगा और उसके बाद वह मुझे दोगुने जोश के साथ चोदेगा।

कहानी के अगले भाग ‘पति हो तो मेरे पति जैसा’ में पढ़िए कि दीपाली जब आदित्य के पास पहुंची और उसे दीपाली की आकाश के साथ हुई चुदाई का पता चला तो उसकी क्या प्रतिक्रिया रही।

xxx बस फक़ कहानी के बारे में अपनी राय और सुझाव भेज सकते हैं, मैं जवाब अवश्य दूंगी.
किंतु पाठकों से एक निवेदन है कि अपने आपको कहानी पर कमेंट तक सीमित रखें।
मेरी मेल आईडी है
[email protected]

xxx बस फक़ कहानी का अगला भाग: मेरी सनसनी भरी कामुक बस यात्रा- 2

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