वासना की न खत्म होती आग -2
(Vasna Ki Na Khatm Hoti Aag-2)
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उन्होंने कहा- ‘जब से तुम्हारी फोटो देखी है, तब मैं तुम्हें चोदने के सपने देखता हूँ।
उनका जिस्म और उम्र देख कर तो लगता नहीं था कि वो सम्भोग ज्यादा देर कर सकते हैं पर फिर मुझे अपने फूफाजी की बात याद आई।
उस रात उन्होंने हाथ से हिला के मुझे अपना वीर्य भी दिखाया कितना गाढ़ा और सफ़ेद था।
उसे देख मैं भी उत्तेजित सी हो गई थी।
पर मैं सोने चली गई बस उस लिंग को सोचते हुए क्योंकि रात काफी हो गई थी।
कहानी जारी रहेगी।
इसके बाद तो बाते होती रही और लगभग हर बार मुझे मिलने की बात कहते।
उनकी इन बातों से कभी कभी मेरे मन में भी ऐसे ख्याल आते पर यह सब संभव नहीं था, जानती थी सो ज्यादा धयान भी नहीं देती थी।
हम धीरे धीरे इतने घुलमिल गए कि हर 3-4 दिन में मैं उन्हें हस्तमैथुन करने में मदद करती और देखती उनको कंप्यूटर पे अपना रस निकलते हुए।
वो हमेशा तरह तरह की बातें करते मुझसे मुझे बताते कि किस तरह से वो कल्पना करते हैं मुझे चोदने और मैं भी कभी कभी उनकी कल्पनाओं में खो जाती।
फिर एक दिन वो कहने लगे कि हमें मिलना चाहिए और उनकी यह बात अब जिद सी बन गई।
पर मैं न तो अकेली कहीं जा सकती थी और न किसी से अकेली मिल सकती थी तो मेरे लिए मुमकिन नहीं था।
पर मुझे भी अपने अन्दर की वासना कमजोर बना देती पर किसी तरह मैं खुद को काबू करती थी।
तारा मुझसे हमेशा पूछती थी कि कोई मिला या नहीं? पर मैं उसे हमेशा कहती- हाँ, रोज कोई न कोई मिलता है, बातें कर के समय काट लेती हूँ।
पर उधर मेरा वो दोस्त मुझसे मिलने और सम्भोग के लिए इतना उत्सुक हो चुका था कि वो किसी भी हद तक जाने को तैयार था। मुझे वो रोज परेशान करने लगा तब मैंने यह बात तारा को बताई।
तारा ने मुझे पहले तो पूछा कि वो मुझे पसंद है या नहीं?
तो मैंने उसे हाँ कह दिया तब उसने कहा- अगर पसंद है तो मिल लो।
उसने कहा- अगर मिलना चाहती हो तो तय कर लो, बाकी तेरे घर से निकलने और मिलने का इन्तजाम मैं कर दूँगी।
अब ये सब बातें सुन कर तो मैं हैरान हो गई और दोनों से लगभग दो हफ़्ते बात नहीं की।
पर मेरे अन्दर की वासना से मैं ज्यादा दिन बच न सकी और एक दिन तारा से पूछ लिया कि क्या वो ऐसा कर सकती है कि हम मिल सकें और सब कुछ सुरक्षित तरीके से बिना किसी के शक कहीं मिल सकें?
उसने मुझे फिर समझाया कि अगर मैं तैयार हूँ तो वो मेरे लिए सारा इन्तजाम कर देगी। मुझे तो उस पर पूरा भरोसा था, मैंने उस दोस्त को सन्देश भेज दिया कि मैं मिलना चाहती हूँ।
उसी रात हमने फिर बातें की और उनसे कह दिया कि जब मुझे मौका मिलेगा, मैं उन्हें बुला लूँगी।
इधर तारा को सारी बात मैंने बता दी। उसने कहा कि अगले हफ्ते का दिन तय कर लो, मैं झारखण्ड आऊँगी और सब इंतज़ाम कर दूंगी।
मैंने अपने दोस्त को भी फ़ोन कर के अगले हफ्ते आने को कह दिया।
अगले हफ्ते बुधवार को तारा हमारे गाँव आ गई और शाम को मुझसे मिली। हमने तय किया कि अगले दिन हम शहर जायेंगे।
मेरे घर वाले तारा के साथ कहीं आने जाने से रोकते टोकते नहीं थे तो मुझे कोई चिंता नहीं थी, बस शाम को अँधेरा होने से पहले मुझे घर लौटना था।
अगले दिन हम सुबह 8 बजे घर से निकल गए और करीब नौ बजे शहर पहुँच गए। रास्ते भर मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था यह सोच कर कि क्या होगा ऐसे किसी इंसान के साथ जिससे मैं पहले कभी मिली नहीं।
मुझे अभी तक नहीं पता था कि तारा ने क्या इंतज़ाम कर रखा है।
पहले तो वो मुझे एक होटल में ले गई, पर मुझे बहुत डर लगा, मैंने इन्कार कर दिया।
फिर उसने बताया कि वो इसी होटल में है और हम अलग कमरा लेंगे।
हम वह अन्दर गए और हमने कमरा ले लिया यह कहकर कि तबियत ख़राब है, थोड़ा फ्रेश होने के लिए कुछ देर के लिए चाहिए कमरा।
दो औरत 40 बरस के ऊपर, सोच उनको ज्यादा परेशानी नहीं हुई और हम कमरे में चले गए।
कमरे में जाते ही तारा ने मुझे कहा कि उसको फ़ोन कर बुला लो हमारे कमरे में!
मैंने थोड़ा हिचकते हुए फ़ोन किया और उन्हें हमारे कमरे में आने को कहा।
10 मिनट के बाद दरवाजा खटखटाने की आवाज आई, तारा ने दरवाजा खोला तो सामने एक लम्बा सा 60 साल का मर्द खड़ा था।
उसने अपनी पहचान बताई और तारा ने उसे अन्दर बुला लिया।
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वो मुझे देख कर मुस्कुराया और मैं भी दिल के धड़कनों को काबू में करते हुए मुस्कुरा दी।
हम बेड पर बैठ कर बातें करने लगे, मैंने उस दोस्त को बस यही बताया था कि तारा मेरी सबसे अच्छी दोस्त है और उसको बस इतना बताया है कि वो मुझे प्यार करता है और मिलना चाहता था।
बाकी असल बात क्या है मेरे और तारा के बीच थी और उनके और मेरे बीच।
आगे की कहानी जल्दी भेजूँगी।
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