लॉकडाउन में मिली एक प्यारी सी लड़की- 1
(Sweet Girl Bani Girlfriend)
स्वीट गर्ल बनी गर्लफ्रेंड जब वह लड़की पुलिस से डर कर मेरी दूकान में घुस गयी. लॉकडाउन के कारण हम छिप पर बैठ गए. हमने एक दूसरे से चिपक कर बैठना पड़ा.
दोस्तो, मैं विनोद,
एक बार फिर अपनी कल्पना को पर लगाकर आपके लिए एक नई कहानी लेकर आया हूँ।
यह कहानी मेरी जिंदगी के कुछ सच्चे लम्हों में अपनी फैंटेसी को जोड़कर बनाई गई है।
वास्तविकता केवल स्थान और कुछ सामान्य परिस्थितियों तक सीमित है।
इसके अलावा, पूरी कहानी को वासना के रंगों में काल्पनिक ढंग से सजाया गया है।
तो कहानी शुरू करने से पहले बता दूं कि मेरी एक कहानी
चुदाई के चाव में कुंवारी बुर की सील तुड़वाई
पहले भी आ चुकी है।
आप उसे इस लिंक पर पढ़ सकते हैं.
ये कहानी उससे बिल्कुल अलग समय की है।
यह स्वीट गर्ल बनी गर्लफ्रेंड वाली बात दूसरे लॉकडाउन की है।
उस समय सारे देश में काम-धंधे ठप पड़े थे।
राजस्थान में भी लॉकडाउन चल रहा था। केवल कंस्ट्रक्शन का काम ही चल रहा था।
लोग छुप-छुपकर अपनी दुकानें चला रहे थे, बंद दुकानों के पीछे से सामान दे रहे थे।
मैंने आपको पहले बताया था कि मेरी दुकान से मैं गुजारा ठीक-ठाक चला रहा था।
इतनी बचत नहीं थी कि बैठे-बैठे खा सकूं।
इसलिए मैं भी अपनी दुकान पर चला जाता था।
वहां दुकान के बाहर मैंने थोड़ा कंस्ट्रक्शन का काम शुरू कर लिया था।
इससे दुकान की पुरानी मरम्मत भी हो रही थी।
कोई ग्राहक आता तो उसे शटर ऊपर करके सामान दे देता था।
मैं दुकान में ग्राहकों को अंदर ले जाकर सामान दिखाता था।
इतनी देर बाहर वाले भैया दुकान को बाहर से लॉक कर देते थे।
ग्राहक को सामान देने के बाद मैं भैया को बोल देता।
वो बाहर की स्थिति देखकर हमें बाहर निकाल देते।
फिर ग्राहक अपनी राह जाता और मैं भैया के साथ काम में लग जाता था।
इसी तरह हमें करीब 10 दिन हो गए थे।
हम अपना काम इसी तरीके से कर रहे थे।
उस दिन मैं और भैया दोनों बाहर काम कर रहे थे।
तभी एक लड़की पर मेरी नजर पड़ी।
वो कुछ जल्दी में थी और हमारी तरफ ही आ रही थी।
उसने मास्क पहन रखा था।
फिर भी उसे पहचानने में मुझे देर नहीं लगी।
उसका नाम मुझे आज तक नहीं पता।
ये भी नहीं मालूम कि वो मुझे जानती थी या नहीं।
चूंकि उसका नाम नहीं पता, तो मैंने उसे काल्पनिक नाम “आशना” दिया।
आशना कुछ दिनों पहले ही मेरे गांव में अपने रिश्तेदारों के यहां आई थी।
तब उसे कई बार गांव में घूमते हुए देखा था।
वो स्थानीय गांवों की नहीं थी।
उसका शरीर किसी कोमल परी से कम नहीं था।
उसकी आंखें मोटी-मोटी और हल्की भूरी थीं।
वो हमेशा मास्क में ही दिखी थी।
उसने एक बड़ा गोल्डन फ्रेम का चश्मा पहन रखा था।
उसके बाल काले और बिल्कुल सीधे थे।
एक रबर बैंड से बंधे हुए बाल उसके एक ब्रेस्ट को ढकते हुए नीचे तक जाते थे।
वो हमेशा शॉर्ट्स और टी-शर्ट में दिखती थी इसलिए सबका ध्यान उसकी तरफ चला जाता था।
गांव में शॉर्ट्स कोई आम बात नहीं थी।
उसके शॉर्ट्स से उसके नितंब हमेशा बाहर आने को तैयार रहते थे।
उसके बूब्स की साइज भी उसके नितंबों की तरह बड़ी थी।
उसकी चाल एकदम सामान्य होती थी, इससे उसके अंगों का उभार छुपा रहता था।
वैसे वो हमेशा गांव की एक लड़की के साथ ही दिखती थी।
उस लड़की की वजह से सब उसके परिवार को जानते थे।
उस दिन उसने ब्लैक कलर की लेगिंग पहन रखी थी।
लेगिंग उसे थोड़ी टाइट थी। ये घुटनों और टखनों के बीच तक आ रही थी।
ऊपर उसने व्हाइट कलर का टॉप पहना था। टॉप उसकी नाभि से ऊपर तक था।
उसने अपनी आंखों में हल्का काजल लगा रखा था।
काजल उसके चश्मे से साफ दिख रहा था।
गर्मियों के दिन थे इसलिए उसका शरीर पसीने से भीगा हुआ था।
वो सीधा हमारी तरफ ही आ रही थी।
वो दुकान की तरफ आई।
मैंने इशारे से उससे दुकान के लिए पूछा।
उसने जल्दी में हां कर दिया।
मैंने चाबी से दुकान खोली।
तब तक वो दुकान के पास आ गई।
मैंने जल्दी से उसे अंदर आने को कहा।
उसके अंदर आते ही मैंने दुकान बंद कर दी।
हर बार की तरह भैया ने बाहर से लॉक लगा दिया।
मैंने उसे पसीने में देखकर पंखा चलाया।
तभी मैंने देखा कि उसकी आंखों से आंसू आ रहे थे।
मुझे कुछ गड़बड़ लगी।
मैंने उससे पूछ लिया, “तुम क्यों रो रही हो?”
आशना बोली, “मेरे घरवालों ने बाहर निकलने को मना किया था। फिर भी मैं मार्केट में बिना किसी काम के निकल आई थी। मैं अपनी दोस्त के घर जा रही थी। रास्ते में पुलिसवाले दिखे। पता नहीं उन्होंने मुझे देखा था या नहीं।
लेकिन वो इधर ही आ रहे थे। इसलिए मैं डर गई और इधर आ गई। अब मुझे डर लग रहा है कि घर कैसे जाऊंगी।”
इतना सुनते ही मैंने भैया को पुलिस वालों के लिए सचेत किया।
उसने बताया कि पुलिस वाले इधर ही आ रहे हैं।
लेकिन वो दुकानों की जांच करते हुए आ रहे थे।
अब मेरी भी फटने की बारी थी।
लड़की के सामने कमजोर नहीं पड़ सकता था।
ये सब सुनकर उसकी हालत और खराब हो गई।
वो अब रोने लगी।
मैंने दुकान का पंखा और लाइट बंद कर दी।
फिर मैंने एक हाथ से आशना के सिर को पकड़ा, दूसरे हाथ से उसके मुंह को दबाया, उसे रोने से मना किया।
लेकिन वो रोती रही।
मैंने उसके हाथ जोड़े, उसे रोने से मना किया; बताया कि पुलिसवालों ने सुन लिया तो चालान काटेंगे, पिटाई अलग से करेंगे। वैसे भी सुबह से कुछ कमाया नहीं। तुम्हारी वजह से सारे मुसीबत में पड़ जाएंगे।
तभी भैया ने बाहर से मुझे चेताया।
मैंने आशना को शांत करके बाहर सुना।
पुलिसवाले भैया को दुकान खोलने को बोल रहे थे।
अब मेरी तो हालत खराब हो गई।
अकेला होता तो संभाल लेता, कह देता कि यहीं काम कर रहा था, थोड़ा आराम करने के लिए अंदर था।
लेकिन अब मेरे साथ कस्टमर भी था।
चालान कटना और डंडे पड़ना निश्चित था।
ऐसे में मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था।
तभी भैया ने बाहर से जोर से बात करके इशारा किया।
मुझे याद आया, मैंने झट से आशना को उठने को कहा, उसे एक छोटी सी जगह की तरफ इशारा किया।
ये जगह मेरी दुकान में फर्नीचर के पीछे थी।
मेरी दुकान के पास सीढ़ियां हैं।
सीढ़ियों के नीचे की खाली जगह में मैंने स्टोर बना रखा था।
उसमें बहुत कम जरूरत की चीजें रखता था।
वो ऊंचाई में इतना छोटा था कि कोई खड़ा नहीं हो सकता। लंबाई में भी इतना था कि कोई लेट नहीं सकता।
उसकी संरचना समकोण त्रिभुज जैसी थी। एक तरफ 0 से शुरू होकर 5 फीट दूरी पर 4 फीट ऊंचाई तक जाता था।
चौड़ाई में करीब 2.5 फीट का था। इसमें 1 फीट दोनों तरफ फर्नीचर था।
उसके मुंह पर हमने जूतों के डब्बे रखे थे।
इसके बारे में सिर्फ वही जानता था जो पहले से परिचित था।
मैंने आशना को इशारा किया।
स्टोर के मुंह से डब्बे उठाए।
उसे चुपचाप अंदर जाने को बोला।
वो पहले जाने में आनाकानी करने लगी।
फिर नीचे झुकी तो मेरी नजर उसकी गांड पर पड़ी।
उसकी लेगिंग नीचे झुकने से खिंचकर जालीदार हो गई थी।
घुटनों से थोड़ी नीचे खिसक गई।
उसकी ब्लैक जालीदार पैंटी आधी बाहर दिखने लगी।
मुझे वो नजारा बहुत शानदार लगा।
उसकी गोरी पीठ पर एक मोटा तिल था।
वो घोड़ी बनकर अंदर जा रही थी।
उसके दोनों कूल्हे दो मोटी फुटबॉल की तरह आपस में रगड़ रहे थे।
उसके जाने के बाद मैंने पानी की बोतल उठाई।
मैं भी अंदर घुस गया।
आशना ढंग से बैठ नहीं पा रही थी।
वो उकड़ूं बैठी थी।
मेरे अंदर जाने से उसे और परेशानी हो रही थी।
हम दोनों उसमें टच होकर बैठ गए।
दोनों ही उकड़ू थे।
फिर मैंने डब्बे वापस उसी जगह पर लगा दिए।
अब अंदर बिल्कुल छोटी सी जगह थी।
उसमें अंधेरा छा गया था।
दुकान की लाइट और पंखा मैंने पहले ही बंद कर दिया था।
भैया तब दुकान का लॉक खोल रहे थे।
तभी मुझे याद आया। मैं थोड़ा सा खड़ा हुआ, जेब से फोन निकालने लगा।
आशना ने अपने कूल्हे जमीन पर टिकाए।
पैरों को मेरी तरफ सीधा किया।
उसने टाइट लेगिंग पहन रखी थी।
उकड़ूं बैठना मुश्किल हो रहा था।
मैंने फोन निकालकर साइलेंट कर दिया।
अब मेरे पास बैठने की जगह नहीं बची थी।
मैंने आशना को पैर उठाने को कहा।
उसने भिखारी जैसे मुंह बनाकर पैर वैसे ही रहने देने को बोला।
अब तक मेरी आंखें अंधेरे की अभ्यस्त हो चुकी थीं।
मैंने उसके पैरों को हाथों से उठाया, बैठकर उन्हें अपनी गोद में रख लिया।
अंधेरे में ज्यादा नहीं दिखा लेकिन इतना अंदाजा लगा कि वो मुस्कुरा रही थी।
तभी भैया ने दुकान खोल दी।
पुलिस वालों को अंदर कोई नहीं दिखा।
एक पुलिस वाले ने भैया से पूछा, “कुछ टाइम पहले तुम शटर नीचे करके लॉक लगा रहे थे?”
भैया ने सफाई दी, “कोई औजार अंदर रह गया था। वो निकालने के लिए खोली थी।”
उधर भैया पुलिस वालों से बात कर रहे थे, इधर मैंने आशना के पैर अपनी गोद में ले रखे थे।
मैं उकड़ू बैठा था। उसके पैर मेरे सामान पर रखे थे।
अब सामान तो सामान होता है, वो परिस्थिति नहीं देखता, बस मौका देखता है।
उसे टच मिला और वो धीरे-धीरे सलामी देने लगा।
मेरा लंड उसके पैरों को छूने लगा।
मैंने पजामा पहन रखा था, उकड़ू बैठने से वो दबकर घायल हो रहा था।
मुझे शर्मिंदगी होने लगी कि आशना क्या सोचेगी कि ऐसे हालात में भी क्या सोच रहा हूँ।
डर भी लगने लगा कि कहीं ये कुछ उल्टा-सीधा करके पुलिसवालों के सामने बखेड़ा न खड़ा कर दे।
मेरा लंड उसके पैरों से दबने की वजह से सलामी दे रहा था।
मैंने हिम्मत करके उसके पैरों को एक हाथ से ऊपर किया, अपने सामान को थोड़ा एडजस्ट किया।
लेकिन उसके पैर ज्यादा ऊपर हो गए, वो पीछे की तरफ लुढ़क गई।
ऊपर की दीवार से उसके सिर में चोट लग गई।
अब हर तरफ बखेड़ा ही खड़ा हो रहा था।
मैंने उससे सॉरी कहा, उसके सिर को मसलने लगा।
उसने मुझे मना किया लेकिन मैंने फिर भी मसलना जारी रखा।
तब उसने कहा, “कोई बात नहीं। मुझे पता है गलती से हुआ। अब रहने दो।”
तब जाकर मैंने उसका सिर छोड़ा।
उसने पूछा, “तुमने मेरे पैर ऊपर क्यों किए?”
मुझे और कुछ सूझा नहीं। हर तरफ गड़बड़ हो रही थी।
मैं परेशान था, उसे बोला, “तेरे पैरों के वजन से मेरे सामान में दर्द हो रहा था।”
वो कन्फ्यूज सी दिखी, बोली, “सामान?”
तब मुझे हंसी आ गई। मैंने जैसे-तैसे हंसी दबाई।
वो भी समझ गई, खुद ही पैर हटा लिए।
अब हम कुछ देर ऐसे ही बैठे रहे और बाहर की स्थिति पर गौर करने लगे।
इतनी देर अंदर बंद रहने से आशना पसीने में पूरी तरह भीग चुकी थी।
मैं भी पसीने में था।
मैंने उसे पीने का पानी दिया।
उसने थोड़ा पिया, थोड़ा अपने सिर पर डाल लिया।
मैंने उसे डांटा, “पानी इतना ही है।”
उसने सॉरी कहा और मुझसे रुमाल मांगा।
मैंने रुमाल दे दी।
उसने सिर पर डाले पानी को रुमाल से पोंछा, फिर चेहरा, गला, और गर्दन पोंछी।
बाद में अपने बूब्स से थोड़ा ऊपर तक, जहां टॉप था, वहां रुमाल फेरा।
गर्मी के कारण उसने मास्क भी निकाल दिया था।
मास्क निकालने के बाद मुझे महसूस हुआ।
आशना एक कातिलाना और कोमल चेहरे की मालकिन थी।
उसके होंठ कुछ डार्क कलर के थे।
नीचे वाला होंठ थोड़ा बड़ा था।
उसे इतना पसीना था, ऊपर से पानी डालने से रुमाल भीग गई।
मैं अब निश्चिंत था। कुछ देर में पुलिस वाला चला जाएगा, फिर इसे विदा करके बाहर खुली हवा में जाएंगे।
लेकिन जब किस्मत खराब हो तो इतनी खूबसूरत लड़की के साथ बैठकर भी परेशानी रहती है।
हम थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करते रहे।
फिर मैंने उससे पूछा, “तुम इतनी खूबसूरत हो। तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड तो होगा ही?”
उसने कहा, “तुम्हें उससे क्या? बॉयफ्रेंड होना जरूरी है क्या?”
मैंने कहा, “बस यूं ही चांस लेने के लिए।”
आशना ने कहा, “कैसा चांस?”
मैंने कहा, “हम तो शादीशुदा हैं। हमें तो एक ही तरह का चांस चाहिए होता है।”
आशना ने कहा, “यार, हम यहां फंसे हुए हैं। और तुम्हें अभी भी ये सब सूझ रहा है।”
मैंने टॉपिक घुमाते हुए कहा, “यार, बुरा मत मानना। मेरी अभी हालत खराब है। बस ये टॉपिक ही ध्यान भटका रहा है।”
वो मुझे देखकर हंसने लगी।
मुझे लगा, चलो कुछ तो अच्छा हुआ।
लेकिन किस्मत तो किस्मत थी।
आशना का फोन बजने लगा।
वहां खड़ा होना मुश्किल था।
बैठे-बैठे टाइट लेगिंग से फोन निकालना और मुश्किल था।
मैंने अपने हाथ से सिर को मारा।
आशना फोन निकालने के लिए खड़ी होने लगी।
ऊपर दीवार से सिर में चोट लगी। वो मेरे ऊपर आ गिरी।
गिरते वक्त बचने के लिए हाथ आगे किए तो एक हाथ मेरे लंड पर आ गया।
मुझे अब उस पर गुस्सा आने लगा। मौका भी मिल गया।
उसने मेरे लंड को जानबूझकर नहीं छुआ था लेकिन मैंने उसके बूब्स को एक हाथ से जानबूझकर पकड़ा।
दूसरे हाथ से उसे वैसे ही रहने को कहा, फोन के बटन महसूस करके फोन म्यूट किया।
फोन महसूस करते हुए मैंने उसकी जांघों को छूने के बहाने मसला।
उसे शक हो गया।
उसका एक बूब मेरे हाथ में था।
दूसरा मेरे हाथ से दबा हुआ था।
उधर बाहर पुलिस वाले पूछ रहे थे, “अंदर फोन किसका बज रहा है?”
भैया ने बहाना बनाया, बोला, “मेरा ही फोन अंदर है। बाहर काम में नुकसान न हो, इसलिए अंदर रखा है।”
उनकी बातों से लगा कि पुलिसवाले पहले ज्यादा थे।
फिर उनमें से एक वहीं बैठ गया। उसके पास करने को कुछ नहीं था।
बाकी पुलिसवाले आगे बढ़ गए।
अब हमारी मुश्किल और बढ़ गई।
मैंने कुछ देर उसके बूब्स को वैसे ही पकड़े रखा।
उसका सारा शरीर पसीने से गीला हो चुका था। इतना गीला कि उसका टॉप भी भीग गया था।
उसकी हालत खराब हो रही थी।
उसके बूब्स मेरे हाथ में होने से मेरा लंड फनफना रहा था।
ये मेरे पजामे में साफ झलक रहा था।
मैंने आशना को उठाया।
इस बार उसके बूब को हल्का दबा दिया।
वो समझ गई, बोली, “क्या कर रहे हो?”
मैंने कहा, “तुम्हें ऊपर उठा रहा हूँ। कब से मेरे ऊपर पड़ी हो। अपना फोन निकालो, साइलेंट करो।”
अब उसकी मजबूरी हो गई, ऐसे ही बैठे रहना पड़ा।
इस दौरान मैंने पांच-छह बार उसके बूब को हल्का दबाया; अपनी एक उंगली उसके बूब पर फेरने लगा।
फिर उसने फोन निकाला, उसे साइलेंट किया।
कुछ देर ऐसे ही बैठे रहने से दोनों पसीने में भीग गए।
कपड़ों पर धूल लग गई।
मैंने हिम्मत करके दूसरे हाथ से उसके दूसरे बूब को पकड़ा।
वो कुछ बोलती, उससे पहले मैंने पहला हाथ हटा लिया।
उसने फिर पूछा, “क्या कर रहे हो?”
मैंने कहा, “एक हाथ थक गया था। तो दूसरे से पकड़ा है।”
उसने पूछा, “तो यहीं पकड़ना जरूरी है क्या?”
मैंने कहा, “यहां थोड़ी गद्दीदार जगह है। हाथ कम थकता है।”
आशना अब वापस बैठने के लिए बैलेंस बनाने लगी।
लेकिन फिर से मेरे ऊपर गिर गई।
इस बार उसका चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल पास था।
मैंने उसे शांत रहने को बोला। जैसे है, वैसे ही रुकने को कहा।
थोड़ी देर ऐसे रहने से मेरी हवस परवान चढ़ गई।
मैंने हिम्मत करके अपने हाथों को थोड़ा नीचे किया।
जिस पर आशना टिकी हुई थी।
अपने मुंह को थोड़ा ऊपर किया।
उसके होंठ मेरे बिल्कुल पास आ गए।
मैंने उन्हें चूम लिया।
आशना इस अचानक हरकत को समझ नहीं पाई।
जब समझा, तब तक मैं किस कर चुका था।
मेरा लंड फटने को हो रहा था।
वो फनफना रहा था।
बार-बार आशना को छू रहा था।
आशना सब समझ चुकी थी।
मेरा लंड बार-बार उसकी गुफा और जांघों को छू रहा था।
इससे वो भी गर्म हो चुकी थी।
बाकी कसर किस ने पूरी कर दी।
न मेरे में हिम्मत थी आगे बढ़ने की … न आशना में।
वो बस मुझे घूरे जा रही थी।
मैंने समय की नजाकत को देखते हुए डिब्बों को साइड किया।
आशना को बाहर जाने को कहा।
ताकि दुकान में गर्मी कम लगे।
वो वैसे ही परेशान थी।
मेरे ऊपर छतरी की तरह घोड़ी बनी हुई थी।
झट से बाहर निकलने लगी।
मैंने बहाने से उसके एक कूल्हे को जोर से दबाया, बोला, “आराम से निकलो, आवाज मत करो।”
उसे घोड़ी बनते देख मेरा बंबू पूरा खड़ा हो गया।
मैं भी उसके पीछे-पीछे बाहर आ गया।
जब आशना बाहर निकली और खड़ी होने वाली थी।
तब मेरी नजर उसके चूतड़ों पर पड़ी।
अंदर की हरकतों से उसके चूतड़ों के बीच उसकी चूत गीली हो चुकी थी।
उसकी पैंटी और लेगिंग भी गीली हो गई थीं।
ये सब देखकर मेरा लंड और उत्तेजित हो रहा था।
मेरा मन कर रहा था कि यहीं आशना की लेगिंग नीचे कर दूं। अपने लंड को उसकी चूत में डालकर चोदने लग जाऊं।
लेकिन ये सोचते-सोचते आशना बाहर निकल चुकी थी।
जब मैं बाहर निकलकर खड़ा हुआ, मेरा तंबू खड़ा ही रहा।
मैं अनजान बना रहा।
आशना को बैठने के बाद पानी के लिए पूछा ताकि उसका ध्यान मेरे तंबू पर जाए।
उसने कई बार तंबू को देखा। फिर नीचे देख लिया।
एक बार मैंने उसे देखते हुए पूछा, “क्या देख रही हो?”
ऐसा बोलकर मैंने नीचे देखा जैसे मुझे कुछ पता ही न हो।
उसके सामने शर्मिंदगी जताते हुए उसे सही करने लगा।
फिर उससे बोला, “तुम्हें पता ही होगा कि ये क्यों खड़ा हो गया।”
ये सुनकर वो और शर्मा गई।
तभी मेरी नजर उसके टॉप पर पड़ी।
उसका टॉप गीला होने से अंदर का सब दिख रहा था।
उसके दोनों बूब्स पर मेरे हाथ की उंगलियां छपी हुई थीं।
अंदर हाथ धूल से गंदे थे।
टॉप सफेद और गीला था।
उसके गोल-गोरे बूब्स साफ दिख रहे थे।
उसके निप्पल काले और बड़े थे।
बूब्स पर बड़े-बड़े काले घेरे थे।
मैंने उससे पूछा, “घर वालों को किसका नाम बताओगी?”
उसने पूछा, “किसका नाम क्यों बताना है? तुम पूछ क्या रहे हो?”
मैंने कहा, “अगर घर वालों ने पूछा कि कहां दबवाकर आ रही हो। तो किसका नाम बताओगी?”
उसकी नजर अपने टॉप पर पड़ी।
वो डर गई।
उसके कपड़े सारे गंदे थे।
लेकिन टॉप पर बूब्स के निशान साफ थे।
उसने पूछा, “अब क्या करें?”
मैंने कहा, “इसको खोल दो।”
उसने टोंट कसते हुए कहा, “हां, खोल लो। ताकि तुम्हें जो देखना हो, वो दिख जाए।”
शायद उसने नहीं देखा था कि उसका ऊपरी शरीर वैसे ही दिख रहा था।
मैंने कहा, “मुझसे डरती हो क्या कि मैं इन्हें देख लूंगा?”
आशना ने कहा, “तुम बहुत गंदे हो। उधर मुंह करो, मुझे ये बदलना है।”
मैंने कहा, “उधर मुंह करने की क्या जरूरत? ऐसे ही बदल लो।”
आशना ने कहा, “ऐसे नहीं बदल सकती। मैंने अंदर कुछ नहीं पहना।”
मैंने कहा, “तो क्या? अगर अंदर कुछ पहना होता तो बदल लेती क्या? वैसे भी मुझे जो देखना है, वो सब अच्छे से दिख रहा है।”
ये सुनकर उसने नीचे देखा।
वो समझ गई, दूसरी तरफ मुड़ गई, बोली, “तुम्हें शर्म नहीं आई ऐसे देखते हुए?”
मैंने कहा, “शर्म की क्या बात। कुछ दिख रहा था, तभी तो देख रहा था। मैंने तुम्हारा कुछ खोलकर तो देखा नहीं। वैसे अब तक किसी ने बताया हो या नहीं। लेकिन तुम्हारे पास जो है, वो खजाने से कम नहीं।”
आशना उधर मुड़ी हुई थी।
मैंने हिम्मत करके उसे पीछे से बांहों में भर लिया। मेरा खड़ा लंड सीधा उसकी गांड को टच कर रहा था।
वो थोड़ी कसमसाई, धीरे से बोली, “क्या कर रहे हो?”
मैंने कहा, “वो जो हम दोनों चाहते हैं।”
उसने कहा, “मैं कुछ नहीं चाहती। तुम मुझे छोड़ो।”
कहानी लम्बी है. 3 भागों में चलेगी.
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