शीशे का ताजमहल-2
(Shishe Ka Tajmahal- Part 2)
कहानी का पहला भाग : शीशे का ताजमहल-1
शबनम ने दीवान पर मेरे सोने की व्यवस्था कर अन्दर चली गई।
मुझे नींद नहीं आ रही थी, मेरा मन अब शबनम के प्रति बदल चुका था। मैंने तय कर लिया था कि शबनम को अब बुरी निगाह से नहीं देखूँगा और न उसके बारे में कुछ सोचूँगा। जो गलती मुझसे एक बार हो गई है, उसे अब दोहराना नहीं है।
इन्हीं विचारों में खोया हुआ मैं आँखें बंद कर चुपचाप लेटा था। लगभग बीस मिनट बीते होंगे दरवाजे पर किसी के आने की आहट सुनाई दी…
देखा तो शबनम खड़ी है.. हाथों में दूध से भरा हुआ गिलास लेकर।
मैं हड़बड़ाकर उठ बैठा। उसने मुझे दूध का गिलास देकर कहा- दूध पी लो…
मैं यंत्रवत उसके हाथ से दूध का गिलास लेकर एक ही साँस में पूरा पी गया। शबनम के हाथों से दूध का गिलास लेते समय अनजाने में मेरी उंगलियाँ उसके उंगलियों से स्पर्श कर गई। इससे मुझे कोई उत्तेजना नहीं हुई।
वो जा चुकी थी… मैं भी चादर ओढ़कर चुपचाप लेट गया। दूध सुगन्धित और स्वादिष्ट था। थोड़ी ही देर में मुझे अपने अन्दर कुछ परिवर्तन सा महसूस होने लगा। मेरे सर से पाँव तक सारे शरीर में चीटियाँ सी रेंगती हुई महसूस होने लगी।
मेरा शरीर गर्म होने लगा। सारा शरीर ऐंठने लगा। मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरे अन्दर सहस्त्र अश्वों का बल समाने लगा है, मैं ताकतवर होता जा रहा हूँ। मेरा लिंग आश्चर्यजनक रूप से मोटा, लम्बा और सख्त होता जा रहा था। मैंने अपने वस्त्र उतार फेंके और पूर्णतः नग्न हो गया।
मैं खड़ा हुआ तो खुद को किसी अति-कामातुर अश्व की तरह पाया। मेरा जिस्म किसी स्त्री के सानिध्य के लिए विचलित हो उठा।
मेरी सारी वर्जनाएं समाप्त हो चुकी थी। मैं धीरे-धीरे शबनम के कमरे की ओर बढ़ा।
ज्योंही मैं शबनम के बेडरूम में पहुँचा…
अन्दर का दृश्य देखकर मैं अवाक् रह गया। शबनम पूर्ण निर्वस्त्र बिस्तर पर पड़ी हुई है। उसके काले घने लम्बे घुंघराले बाल बिस्तर पर बिखरे हुए थे। उसका सांचे में ढला हुआ सा चिकना शरीर, बड़े-बड़े उभरे हुए सुडौल स्तन – स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा सी लग रही थी वो।
मेरे आने की आहट पाकर सर घुमाकर उसने मेरी ओर देखा तो उसकी अधखुली आँखों में कामाग्नि की लालिमा साफ़ झलक रही थी। मेरी ओर देखकर वो अपने हाथों से अपने दोनों विशाल स्तनों को धीरे-धीरे सहलाने लगी। यह कहानी आप मोबाइल पर पढ़ना चाहें तो एम डॉट अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ सकते हैं।
यह मेरे लिए आमंत्रण था। मैं आगे बढ़ा और उसके बिस्तर पर चढ़ गया और उसके गर्म, गदराये, निर्वस्त्र जिस्म को अपने बलिष्ठ बाँहों में भरकर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। उसके सांसों की खुशबू से मेरा रोम-रोम खिल उठा।
मैंने उसके दोनों गालों को अपने हथेलियों में लेकर उसके मस्तक, गालों, गर्दन को अपने होंठों से सहलाने लगा। उसने अपनी आँखें बंद कर मुझे कस कर जकड़ लिया और मुझ पर चुम्बनों की बौछार करने लगी। लगभग 15 मिनट तक हम एक दूसरे को चूमते रहे।
उसने अपने हाथों से मेरे हाथों को पकड़कर अपने सीने पर रख दिया। मैंने उसके विशाल पुष्ट उरोजों से खेलना शुरू कर दिया। उसके बड़े- बड़े स्तन मेरी हथेलियों में नहीं समा रहे थे।
मैं उसके कमर के दोनों ओर घुटनों के बल देकर उसके पेट पर बैठ गया और दोनों हाथों से उसके दोनों स्तनों को कलात्मक अंदाज़ से घुमाने लगा… दबाने लगा।
उसे आनन्द आ रहा था, वो जोर-जोर से सिसकारियाँ भर रही थी। मैं उसके बाएं और दायें स्तन को बारी-बारी से अपने दोनों हाथों से पकड़कर सख्त हो चुके भूरे चूचुक को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा।
बीच-बीच में उन्हें अपने दांतों से हल्का दबाकर ऊपर की ओर खींच लेता। जब मैं कुछ देर के लिए रुकता तो वो उन्हें पकड़कर फिर से मेरे मुँह में डाल देती। अचानक मुझे अपने भारी-भरकम उत्तेजित लिंग पर उसकी पकड़ महसूस हुई। वो मेरे लिंग को सहलाने लगी थी।
मुझे अपूर्व आनंद की अनुभूति हो रही थी। मैं उसके ऊपर से उठा और उसके शरीर को – मस्तक से पैर की उँगलियों तक अपनी दसों उँगलियों से एक विशेष अंदाज़ से सहलाने लगा, जैसे कोई सर्प उसके शरीर पर इधर से उधर दौड़ रहा हो।
वो अत्यधिक उत्तेजना में तड़पने लगी, उसका शरीर लहराने लगा। अचानक उसके योनिद्वार के पास मेरा दाहिना हाथ रुका।
मैंने उसके योनिद्वार के कटाव को सहलाते हुए अपनी मध्यमा ऊँगली उसकी गर्म योनि में डालकर अन्दर के हिस्से को सहलाने लगा, उसका सारा शरीर थिरकने लगा।
उसने अपने दोनों टांगों को कुछ ऊपर उठा कर फैला दिए। मैं अपनी उंगली उसकी योनि के और अन्दर तक ले गया और जोर-जोर से घुमा-घुमाकर रगड़ने लगा। जब भी मेरे हाथ रुकते वो विचलित हो जाती और भर्राई हुई आवाज़ में मुझे जारी रखने को कहती।
उसके पैर फैलते जा रहे थे। मैं जोर-जोर से रगड़ते जा रहा था।
उसकी थिरकन बढ़ती जा रही थी। अचानक उसने अपने दोनों पैरों को सटाकर योनि को सिकोड़ लिया और निढाल हो गई।
वो झर चुकी थी, उसकी योनि गीली हो गई थी। उसकी उत्तेजना कुछ शांत हो गई थी पर मेरी उत्तेजना और बढ़ गई।
इसे शबनम भी अच्छी तरह समझती थी। उसने मुझे चित्त लिटाया और मेरे सर के दोनों ओर अपने घुटनों को रखकर तथा अपनी दोनों कुहनियों को मेरे कमर के दोनों और रखकर मेरे लिंग को अपने मुँह में लेकर चूसने लगी।
मैं उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़कर उसकी योनि को अपनी मुँह की सीध में लाया और अपना जीभ उसकी योनि में डाल दिया।
वो मेरे लिंग को जोर-जोर से चूसने लगी। मैं अपना मुँह उसकी योनि के भीतर तक डालकर आम की तरह चूसने लगा। मैं उसकी योनि के अन्दर और बाहर जोर-जोर से चूस रहा था।
उसे इतना आनंद आ रहा था कि उसने मेरे लिंग को मुँह में तो रखा था पर चूसना छोड़ दिया। वो कराह रही थी, अपने कूल्हों को हिला-हिलाकर पूर्ण आनन्द प्राप्त कर रही थी। थोड़ी देर में वो निढाल होकर मेरे ऊपर गिर पड़ी।
वो फिर से झर चुकी थी।
मैंने उसे अपने ऊपर से अलग किया और उसके गदराई अर्धतृप्त काया को अपनी बाँहों में समेटकर प्यार से सहलाने लगा। उसने मुझे कस कर जकड़ लिया। हम दोनों यूँ ही एक दूसरे से लिपटे हुए पड़े थे। कुछ देर पड़े रहने के बाद उसने मेरे लिंग को पकड़कर अपनी लाल-लाल याचक निगाहों से मेरी ओर देखा।
मैंने उसे चित्त लिटाया और उसकी दोनों जांघों को फैलाकर उनके बीच घुटनों के बल बैठ गया। मेरा वृहदाकार लिंग पूर्ण उत्तेजित अवस्था में शबनम के प्यासे गदराये योनि में प्रवेश के लिए आतुर हो रहा था।
मैंने अपने लिंग को दाहिने हाथ से पकडकड़ शबनम के योनिद्वार पर रख दिया।
उसने अपने पैरों को फैलाकर थोड़ा सा ऊपर उठाया, मैंने हल्का सा धक्का दिया। लिंग थोड़ा सा अन्दर गया। मैंने लिंग को बाहर निकाला और एक जोरदार धक्के के साथ पूरे के पूरे लिंग को एक ही बार में शबनम के गर्म योनि में अन्दर तक बहुत अन्दर तक प्रवेश करा दिया।
शबनम का जिस्म जोर से थिरक उठा, उसके गले से उत्तेजक चीख निकल गई, उसने मेरे कन्धों को कस कर पकड़ लिया।
अब मैं अपने लिंग को धीरे-धीरे बाहर निकालकर झटके के साथ भीतर घुसाने लगा। हर झटके में वो तड़प उठती। ज्यों ही मेरा लिंग अन्दर जाने को होता शबनम अपने योनि की भीतरी दीवारों को संकुचित कर उसे जकड़कर अन्दर की गहराइयों में खींच लेती और बाहर निकलते वक़्त योनि को ढीला कर किसी अनजानी भीतरी ताक़त से बाहर की ओर धकेल देती। ऐसा वो हर प्रहार पर करने लगी।
मुझे असीम आनन्द की अनुभूति हो रही थी, मैंने अपने प्रहार तेज कर दिए। वो अपने नितम्बों को उठा-उठाकर मुझे सम्भोग का सम्पूर्ण आनन्द प्रदान कर रही थी। वो चीख रही थी, चिल्ला रही थी और मैं पूरी ताक़त से उसे चोद रहा था। हम इस दुनिया से बेखबर किसी अलौकिक दुनिया में जा चुके थे।
उसने अपने नाखून मेरी पीठ पर गड़ा दिए मैंने उसके बालों को कस कर पकड़ लिया और जोर-जोर से चोदता हुआ एक भयंकर चीत्कार के साथ अपना सर्वस्व उसकी योनि-पात्र में उड़ेल दिया।
सुबह जब नींद खुली तो देखा शबनम सम्पूर्ण नग्नावस्था में मेरे समीप गहरी नींद में सोई हुई है। उसके चेहरे पर सम्पूर्ण तृप्ति और संतुष्टि के भाव थे। स्वर्गलोक की किसी अप्सरा सी लग रही थी वह।
मैंने उसे आलिंगनबद्ध कर उसके माथे पर चुम्बन जड़ा… उसने आँखें खोली… मुस्कुराई… और मुझे जकड़कर अपने अंक में भर लिया। इसके बाद मैं शादी तक हर रोज़ उसके घर जाता और हम रात-रात भर रतिक्रिया में लीन हो जाते।
हमने तरह-तरह के आसनों में एक दूसरे को यौनसुख का आदान-प्रदान किया, नए-नए अनुभव प्राप्त किये।
शादी के तीसरे दिन मैं वापस आ गया। आते समय मेरा मन भारी था पर शबनम गंभीर… निर्विकार थी, उसके चेहरे पर दुःख का कोई भाव नहीं था। इस घटना के करीब एक माह बाद मैंने शीशे का ठीक वैसा ही ताजमहल खरीदकर उसे भिजवा दिया और एक कागज़ के टुकड़े पर लिखा- आपका जो नुक्सान मैंने अनजाने में कर दिया था, उसकी भरपाई की कोशिश कर रहा हूँ। संभव हो तो इसे उचित स्थान दीजियेगा!
बाद में दीदी से ताजमहल के बारे में पूछने पर उसने बताया कि शबनम का जो ताजमहल टूट गया था, उसकी जगह उसने हूबहू वैसा ही ताजमहल खरीदकर उसी जगह पर रख दिया है। मेरे चेहरे पर निश्चिन्तता की मुस्कराहट तैर गई।
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अर्जुन
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