शीला का शील-12
(Sheela Ka Sheel- Part 12)
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और फिर एक दिन…
उस रात भी हस्बे मामूल सोनू उसके साथ ही था। रानो भी साथ ही थी, हालांकि अब अक्सर वह सहवास के वक़्त उनके पास से हट जाती थी कि एकांत में शीला उन्मुक्त हो सके।
मगर उस रात साथ ही थी जब किसी ने दरवाज़ा पीटा था…
उस वक़्त शीला और सोनू के शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था और दोनों एक आसन में संभोगरत थे जब इस अनपेक्षित व्यधान ने दोनों की भंगिमाओं को ठहरा दिया।
‘मैं देखती हूँ।’ रानो उठती हुई बोली।
वह अंधेरे के बावजूद अभ्यस्त नेत्रों से देखती बाहर निकल गई और वे दिमाग में चलते विचारों और शंकाओं के झंझावात के चलते उसी अवस्था में बाहर की आवाज़ें सुनने लगे।
‘कौन हो सकता है?’ सोनू ने प्रश्न सूचक निगाहों से उसे देखा।
‘मुझे खुद ताज्जुब है इस वक़्त कौन हो सकता है… शायद किसी ने गलती से दरवाज़ा खटखटाया है।’
दूर-दूर तक किसी के भी इस वक़्त उनके यहाँ आने की कोई सम्भावना नहीं थी इसलिए शीला ने त्वरित प्रतिक्रिया दिखाने की ज़रूरत नहीं समझी थी और उसे लग रहा था किसी से गलती हुई है।
पर एकदम से दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और साथ ही रानो की घुटी-घुटी सी आवाज़ और ऐसा लगा जैसे कोई अंदर घुसा हो।
कोई अप्रत्याशित खतरा भांपते ही शीला ने सोनू को खुद से अलग किया और अंधेरे में कपड़े ढूंढने की कोशिश कर ही रही थी कि आगंतुक कमरे तक पहुंच गया।
‘लाइट जला मादरचोद।’ गुर्राती हुई आवाज़ कमरे में गूंजी।
फिर शायद रानो ने ही कमरे की लाइट जलाई थी और दरवाज़े पर रानो के बाल पकड़े चंदू किसी शैतान की तरह खड़ा था।
उसके दाएं-बाएं दो चमचे भी साथ ही खड़े थे।
और जिस घड़ी रोशनी हुई— सोनू अधलेटा सा समझने की कोशिश में उलझन ग्रस्त था कि यह हो क्या रहा था और शीला चौपाये की तरह झुकी अपने कपड़े ढूंढने के प्रयास में थी।
रोशनी होते ही वह एकदम सिमट कर बैठ गई।
‘ओहो… तो यहाँ यह रंडापा हो रहा है। हरामज़ादी… जब कहे थे कि कोई जुगाड़ न बना हो तो हमें बताना तो हमें नहीं बताया और यह लौंडे को बुला लिया।
तुझे क्या लगता है कि छोटे लौंडे से चुदवायेगी तभी मज़ा आएगा। हमारे कांटे हैं क्या? और तू बे लौंड़ू… साले दुनिया के सामने इन्हें दीदी बोलता है और रात में चोदने आता है।
अबे यह तो तरसी नदीदी थी लौड़े की— तुझे भी चूत नसीब नहीं थी कि इन बड़ी उम्र की चूतों पर फांद पड़ा। रोज़ रात को तुझे इस गली की परिक्रमा करते देखते थे पर दिमाग में ही नहीं आया कि यहाँ मुंह काला करने आता है।
परसों से पता चला कि इस घर में चरण कमल पड़ते हैं तो जुगाड़ में हम भी लग गये।’
चंदू के शब्दों से जितना ज़लील महसूस कर सकती थी… उसने किया और सोनू की हालत तो ऐसी हो रही थी जैसे रो ही देगा।
वह जैसे का तैसा उठ कर खड़ा हो गया था।
चंदू की दहशत ही ऐसी थी और सोनू तो उसके सामने बच्चा ही था।
रानो को चंदू ने एक झटके से आगे धकेला कि वह भी उनके पास बिस्तर पे आ टिकी। उसके बोलने से वह उस भभूके की महक को महसूस कर सकते थे जो बता रहे थे कि वह शराब के नशे में है।
उसके साथ जो दो चमचे थे उन्हें भी वह जानते ही थे, एक तो भुट्टू था और दूसरा बाबर… दोनों ही मोहल्ले के थे और चंदू के जैसे ही बिगड़े हुए लफंगे थे।
‘जा बे… इसके बाप और महतारी को बुला ला और तू जा के जो मोहल्ले की जो तोपें हैं उन सब को बुला के ला! जो न आने को कहे उसके खोपड़े पे घोड़ा रख के लाना। आज इन ब्लू फिल्म के हीरो हीरोइन की बारात निकालते हैं।’
‘नहीं नहीं…’ सोनू कांप कर चंदू के पैरों में पड़ गया, ‘भाई नहीं… ऐसा मत करो। जूते से मार लो आप। जो पास पल्ले पैसे हों वो ले लो पर ऐसा मत करो।’
‘तेरे पास क्या है बे गांड मारें तेरी। क्यों गुठली, तू बोल, बुलायें सबको और निकालें जनाज़ा तुम लोगों की इज़्ज़त का।’
शीला कुछ बोल तो न सकी… बस सूखे होंठों पर जीभ फिरा कर रह गई।
इस हालत में उसकी धड़कनें अनियंत्रित हो चली थीं और जिस्म पसीने से नहा गया था।
‘ऐसा मत करो दादा।’ उसकी जगह रानो ज़रूर गिड़गिड़ाई।
‘क्यों न करें। साली दुनिया हमें ही गलत बोलती है, ज़रा दुनिया को तो पता चले कि मोहल्ले में गलत कौन कौन कर रहा है।’
‘हमारी इज़्ज़त ख़राब करके आपको क्या मिलेगा दादा?’
‘सुकून… कई बार फरियाद की तुम लोगों से, हमें भी मौका दे दो— क्या हम नहीं समझते कि इतनी उम्र तक जब चूत को लौड़ा न मिले तो कैसी आग लगती है। इसीलिये कहते थे कि हमसे काम चला लो।
तो हमें बड़े गुरूर से ठुकरा देती थी और यह गुठली… यह तो बाकायदा आगबबूला हो जाती थी जैसे सती सावित्री हो और यहाँ… किया वही काम। ऊ का कहते हैं बे… हमारा ईगो हर्ट हुआ है। समझी।’
‘मम… माफ़ कर दो।’
‘तू ही बोल रही है। गुठली तो कुछ नहीं बोल रही।’
‘मम… मुझे माफ़ कर… दो।’ बड़ी मुश्किल से शीला बोल पाई।
‘एक शर्त पे।’
‘कक… कैसी शर्त?’
‘सुन बे लोड़ू— कल शाम तक कहीं से भी दो हज़ार रूपये पहुंचायेगा! समझा? और तुम दोनों— जैसे इसे एंटरटेन कर रही थी अभी इसके जाने के बाद हमें करोगी।
या दोनों लोग सीधे-सीधे हाँ बोलो या बुलाने दो हमें मोहल्ले के चौधरियों को।’
‘हह… हाँ-हाँ… मैं कल कहीं से भी आपको पैसे दे दूंगा भाई, आप मुझे जाने दो।’ सोनू गिड़गिड़ाया।
‘और तुम क्या बोलती हो?’
दोनों बहनों ने एक दूसरे को देखा।
ज़ाहिर है कि विकल्प नहीं था और न करने की स्थिति में वह नहीं थीं। उसकी बात से तो ज़ाहिर था कि वह कुछ भी कर सकता था।
बिना कोई लफ्ज़ अदा किये दोनों ने सहमति से सर हिला दिया।
‘शाबाश— चल बे कपड़े पहन… भुट्टू, छोड़ के आ इसे और दरवाज़ा ठीक से बंद कर लियो।
और तू सुन, अब से इधर आने की ज़रूरत नहीं, इनकी देखभाल हम कर लेंगे। समझा?’
‘जी भाई।’
‘चल फूट!’
सोनू ने जल्दी जल्दी कपड़े पहने और दोनों बहनों पर एक नज़र डालता हुआ कमरे से निकल गया।
उसके पीछे भुट्टू भी और उन्होंने बाहर दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ सुनी।
फिर उसने वापस कमरे में आकर कमरे का भी दरवाज़ा बंद कर लिया।
‘साला यह पता होता कि ऐसी नौबत आ जाएगी तो दारु बचा लेते… और मज़ा आता।’
‘तो क्या हुआ भाई, अभी तरंग कम कहाँ हुई है। आज ऐसे ही काम चला लेते हैं। आगे से ध्यान रखेंगे कि मैडम लोगों की सेवा में दारू चकना भी लेके चलें।’ बाबर ने उसे उकसाया।
वे दोनों बिस्तर पे आ गये।
‘यह तो पहले से तैयार है— चल तू भी कपड़े उतार और तैयार हो जा।’ चंदू ने रानो से कहा।
बात कितनी भी काबिले ऐतराज़ क्यों न हो मगर जब आप फँस जाते हैं और हालात ऐसे बन जाते हैं जब किसी और विकल्प की गुंजाईश न बचे तो इंसान खुद को हालात के हवाले कर ही देता है।
जैसे उन दोनों बहनों ने उन हालात में किया।
अपने तने हुए स्नायुओं को ढीला छोड़ दिया और खुद को मन से इस बात के लिए तैयार कर लिया कि जो हो रहा है वे उसे बदल नहीं सकते तो क्यों न होने दें।
शायद शारीरिक कष्ट से ही बचत हो और क्या पता जो ऐसे नागवार हालात में उन्हें हासिल हो रहा है वह भी आगे न हासिल हो पाये। सामान्य जीवन से तो वह वैसे भी नाउम्मीद ही थीं।
रानो ने कपड़े उतार दिये।
हाँ, उसे यह अहसास था कि जिन लोगों ने हमेशा उसके तन को ढके देखा था और कल्पनाएं ही की होंगी, अब वह उसे बिना कपड़ों के देख रहे थे।
जो कहीं न कहीं उसे थोड़ी सी शर्म का अहसास करा रहा था।
ऐन यही मानसिक स्थिति शीला की भी थी, उसे अपने नग्न बदन को उनकी निगाहों के सामने खोलते उसी किस्म की झिझक महसूस हो रही थी।
लेकिन दोनों को ही यह पता था कि यह कैफियत बहुत देर नहीं रहने वाली थी।
‘भाई, मुझे तो दुबली-पतली लौंडियाएं पसंद हैं। पीछे से डालने में बड़ा मज़ा आता है।’ बाबर भद्दी सी हंसी हंसते हुए बोला।
‘मुझे भी।’ भुट्टू ने भी उसका समर्थन किया।
‘पर मुझे गुदहरी लौंडिया पसंद है इसलिये तुम दोनों बहनचोद इस कमसिन कली को चोदो और गुठली तू मेरे कने आ।’
वह तीनों अपने शरीर के कपड़े उतार के बिस्तर के सरहाने से टिक कर अधलेटे से बैठ गये।
भुट्टू और बाबर तो दरमियाने कद के और साधारण कदकाठी के लड़के थे लेकिन चंदू अच्छी लंबाई चौड़ाई वाला और कसरती बदन का स्वामी था।
उसके करम बुरे थे, उसका आचरण बुरा था लेकिन देखा जाये तो सूरत और शरीर से वह काफी अच्छा था।
और ऐसा था कि सेक्स की ख्वाहिश रखने वाली किसी भी औरत के लिये एकदम योग्य मर्द था, सहवास के लिये एक आदर्श शरीर!
पहले कभी शीला ने उसे इस तरह देखा ही नहीं था। बचपन से ही उसकी हरकतों के चलते उससे नफरत करती आई थी।
और आज तक या शायद थोड़ा पहले तक उसे चंदू से नफरत ही रही थी लेकिन जैसे जैसे वक़्त सरक रहा था उसकी नफरत क्षीण पड़ रही थी।
उसने नग्न हुए तीनों बंदों को गौर से देखा था, उनके जननांगों को देखा था। जहाँ भुट्टू का लिंग बस पांच इंच तक और पतला सा था वहीं बाबर का उससे थोड़ा बड़ा और मोटा।
जबकि चंदू का लिंग उसकी काया के ही अनुकूल था… सोनू का लिंग लंबाई और मोटाई दोनों में चंदू से कम रहा होगा, बल्कि अब उसे ऐसा लग रहा था जैसे चंदू का लिंग परिपक्व हो और सोनू का अपरिपक्व।
हालांकि चंदू का लिंग आकर में बड़ा और मोटा होने के बावजूद भी चाचा के लिंग से बराबरी नहीं कर सकता था पर था आकर्षक।
लिंग का आकर्षण तो उसके गंदे, भद्दे और भयानक दिखने में ही होता है।
‘चलो… मुंह में लेकर ऐसे चूसो जैसे बचपन में लॉलीपॉप चूसती थी।’ चंदू उसके चेहरे को थाम कर उसकी आँखों में देखता हुआ बोला।
वह उसके पैरों के पास अधलेटी अवस्था में झुक गई थी, उसके नितंबों को चंदू ने अपनी तरफ खींच कर सहलाना शुरू कर दिया था।
और वह उसके लिंग को पकड़ कर बड़े नज़दीक से देखने लगी थी जो अभी मुरझाया हुआ था। ऐसे रोशनी में उसने कभी सोनू के लिंग को भी नहीं देखा था।
चाचा के लिंग को देखा था मगर उसे देखते, छूते वक़्त उसमे एक ग्लानि का भाव रहता था और यही भाव तब भी होता था जब वह सोनू का लिंग चूषण करती थी जबकि यहाँ ऐसा कोई भाव नहीं था।
उसने जड़ की तरफ मुट्ठी सख्त की जिससे खून और अंदर की मांसपेशियां सिमट कर ऊपर की तरफ आ गईं और यूँ आधा लिंग थोड़ा तन कर फूल गया शिश्नमुंड समेत।
वह टमाटर जैसे लाल और नरम सुपाड़े को होंठों में ले कर दबाने लगी। फिर होंठों को और नीचे सरका कर मुंह के अंदर जीभ से शिश्नमुंड को लपेट-लपेट कर भींचने लगी।
फिर मुंह से निकाल कर मुट्ठी का दबाव ढीला किया तो एकदम ढीला होकर चूहे जैसा हो गया। अब उसने हाथ नीचे सरका कर फिर उसे मुंह में लिया और होंठ जड़ तक पहुंचा दिये।
इस तरह लूज़ पड़ा लिंग सिमट कर पूरा ही उसके मुंह में समां गया मगर उसे भी ऐसा लग रहा था जैसे उसका पूरा मुंह भर गया हो।
वो गालो को भींच-भींच कर ज़ुबान पूरे लिंग पर रगड़ने लगी।
ऐसा करते उसने आँखें तिरछी करके रानो की तरफ देखा। इस वक़्त वह बाबर के लिंग को मुंह और हाथ से सहला और चूस रही थी और बाबर उसके छोटे-छोटे वक्षों को बेदर्दी से मसल रहा था।
और भुट्टू रानो के निचले धड़ को सीधा किये उसकी योनि पे झुका उसकी क्लिट्स चुभला रहा था और अपनी उंगली उसके छेद में अंदर बाहर कर रहा था।
शीला चंदू के बाईं साइड में इस तरह मुड़ी हुई लिंग चूषण कर रही थी की उसकी पीठ चंदू के चेहरे की तरफ थी। वह उलटे हाथ से उसके नितम्ब सहला रहा था और सीधे हाथ से उसके वक्ष।
उसके पत्थर जैसे खुरदरे हाथ उसके वक्षों पर सख्ती से फिर रहे थे। वह उसके निप्पल्स भी चुटकियों में मसल देता था जिससे वह चिहुंक सी जाती थी।
उसके मुंह में समाये चंदू के लिंग में जान पड़ने लगी थी और खून का दौरान बढ़ने से वह तनने लगा था और अब उसके मुंह से बाहर आने लगा था।
उसकी आँखें चंदू से मिलीं, उनमें प्रशंसा का भाव था।
वह उसके अंडकोषों को सहलाने के साथ अब लिंग को बाहर करके लॉलीपॉप के अंदाज़ में चूसने लगी थी, जिससे उसमें अब तनाव आता साफ़ पता चल रहा था।
जबकि चंदू ने अब उसके निचले धड़ को अपनी तरफ और खींच के नज़दीक कर लिया था और अपनी बिचली उंगली उसकी योनि में घुसा दी थी।
इस उंगली भेदन से उसकी सीत्कार छूट गई थी और वह और ज्यादा उत्तेजक ढंग से लिंग चूषण करने लगी थी।
जबकि थोड़ी देर उसकी योनि में उंगली घुमाने के बाद चंदू ने उंगली बाहर निकाल कर उसके गुदा के छेद में घुसा दी थी और जैसे उसे खोदने लगा था।
यौनानन्द बढ़ाने के लिये सोनू भी अक्सर ऐसा करता था इसलिये अब ऐसा प्रयास उसे वर्जित या असहज नहीं लगता था बल्कि वह इसे भी एक सहज स्वाभाविक सेक्स क्रिया के रूप में स्वीकारने लगी थी।
हालांकि उंगली योनि में हो तो ज्यादा मज़ा देती थी मगर उससे जल्दी स्खलित होने का चांस बढ़ जाता था जबकि अभी लिंग से योनि भेदन बाकी हो, ऐसे में उंगली गुदाद्वार में ही भली थी।
बीच-बीच में वह उसके वक्षों और चुचुकों को भी मसल देता था।
जबकि उधर बाबर का लिंग पूरी तरह जागृत हो कर तन गया था तो उसने रानो को हटा दिया था और अब उसकी जगह भुट्टू था और खुद वह भुट्टू की जगह उसका योनि चूषण कर रहा था।
चंदू का लिंग उसकी लार से पूरी तरह भीगा, कड़क होकर तन गया था और उसका अग्रभाग फूलने पिचकने लगा था।
चंदू ने उसे हाथ के दबाव से अपने ऊपर इस तरह खींच लिया कि वह अपने पैर चंदू के सीने के दोनों तरफ किये उसके पेट पर बैठ गई, जिससे उसकी लसलसाती योनि चंदू के पेट से रगड़ने लगी।
चंदू ने उसे अपनी तरफ इस तरह झुकाया कि उसके वक्ष चंदू के सीने से रगड़ने लगे और दोनों के चेहरे एक दूसरे के समानांतर आ गये।
उसके मुंह से छूटती शराब की महक जो शायद सामान्य स्थिति में शीला को परेशान करती, इस हालत में… जब वह कामज्वर से तप रही थी, उसे भली ही लग रही थी।
जिस चेहरे ने उसमें हमेशा डर और घृणा उत्पन्न की थी, आज पहली बार उसे इतने करीब से देखने पर वह उसे अच्छा लग रहा था।
आज चंदू उसमे कैसा भी प्रतिरोध नहीं पैदा कर रहा था बल्कि आज उसे वह ऐसी नियामत लग रहा था कि वह खुद से उसके सामने बिछने के लिये बेकरार हुई जा रही थी।
उसके अंतर का समर्पण उसकी चेहरे और आँखों से ज़ाहिर हो रहा था जिसे चंदू जैसे घाघ के लिये समझना मुश्किल नहीं था।
उसने एक हाथ से उसके नितम्ब को दबोचते हुए दूसरे हाथ से शीला के सर के पीछे दबाव बना के उसे अपने बिलकुल पास कर लिया।
इतने पास कि दोनों की सांसें एक दूसरे के नथुनों से टकराने लगीं।
हो सके तो कहानी के बारे में अपने विचारों से मुझे ज़रूर अवगत करायें!
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