रेगिस्तान में रंगीन हुई एक रात
(Registan Me Rangin Huyi Raat)
अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा नमस्कार। मैंने हिंदी में सेक्सी स्टोरी की इस साईट की बहुत सारी कहानियाँ पढ़ी हैं। तो मैंने भी सोचा क्यों ना मेरे साथ हुई घटना को भी सबके साथ शेयर करूं। उम्मीद करता हूं कि मेरी कहानी को भी आप सब पसंद करेंगे।
मेरा नाम सूरज है, मैं राजस्थान में एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ। मेरी उम्र 21 साल की है, कद 5 फीट 9 इंच का है। मैं शहर में नौकरी करता हूँ, इस कारण गांव में एकाध महीना ही गुजार पाता हूं।
मेरी कहानी या यूं कहें कि जो हकीकत में मेरे साथ हुआ.. वो मैंने कभी सोचा तक नहीं था।
तो बिना आप सब का वक्त गंवाए शुरू करता हूँ कि आखिर ऐसा क्या हुआ मेरे साथ और किस प्रकार मैंने एक रेगिस्तानी इलाके में एक अनजान लड़की के साथ एक रंगीन रात गुजारी।
एक बार मैं और मेरा दोस्त विकास बाईक से किसी काम के सिलसिले में हमारे गांव से करीब 70 किलोमिटर दूर गए थे.. जून महीने की शुरुआत में गर्मियों वाले दिन थे।
हम दोनों काम निपटा कर जब लौटने लगे.. तब शाम के 6:30 बज चुके थे। अभी कुछ किलोमीटर ही चले होंगे कि अचानक बाईक का पिछला टायर पंचर हो गया। रेगिस्तानी एरिया था.. दूर-दूर तक कोई गांव या पंचर की दुकान नजदीक नहीं दिख रही थी।
अब मैं और विकास पैदल बाईक को खींचते-खींचते करीब दो किलोमीटर चले होंगे कि रात हो चुकी थी.. हम दोनों बाइक खींचते-खींचते थक चुके थे। तभी पास में एक कच्चा घर दिखाई दिया, तो उसे देख कर थोड़ी राहत मिली। हम दोनों ने तय किया कि आज रात यहीं रूक जाएंगे।
सो साहब चल दिए उस घर की ओर.. वहाँ जाकर बाईक को साइड में खड़ा किया और देखा तो सामने से एक बुजुर्ग व्यक्ति, जो करीब 55 साल के रहे होंगे, वो हमारे पास आए और बोले- पधारो सा.. खम्मा घणी सा..
हमने भी हाथ जोड़कर ‘खम्मा घणी..’ बोला.. उन्होंने हम से कुछ भी नहीं पूछा और दो खटिया लगा दीं.. उस पर हम दोनों बैठ गए।
फिर उन्होंने हालचाल पूछा और इधर-उधर की बातें की।
कुछ देर बाद खाना खाने के लिए उन्होंने हम दोनों को घर के आंगन में बुलाया।
हम दोनों वहाँ आ गए.. उधर चटाई बिछाई हुई थी.. उस पर जाकर बैठ गए।
गांव था.. तो घर में लाईट तो थी ही नहीं.. बस एक लालटेन जल रही थी।
हम में से कोई भी किसी का चेहरा उस रोशनी में साफ नहीं देख सकता था। वहाँ लालटेन की रोशनी में उस परिवार में कुल पाँच सदस्य दिखाई दे रहे थे। दो वो पति-पत्नी और दो लड़कियां थीं, शायद उनकी बेटियां रही होंगी.. और एक शादीशुदा स्त्री थी जो घूंघट में थी। वो पता नहीं बेटी थी या उनकी बहू थी। क्योंकि हम अन्जान थे उस गांव में तो हमने उनसे उनके परिवार के बारे में ज्यादा सवाल भी नहीं किए।
खैर.. खाना परोसा गया, मैं और विकास एक साथ ही थाली में खाने के लिए बैठे थे।
जल्दी ही हमारा पेट भर गया हम थाली धोने को लेकर उठने ही वाले थे कि अचानक एक लड़की, जिसकी उम्र कमसिन रही होगी.. वो हाथ में तीन चार रोटी लेकर आई और एकदम से हमारी थाली में डालते हुए बोली- जीजा सा, इतनी जल्दी भी क्या है, पेट भर गया क्या? दोनों साथ में बैठे हो.. आराम से पेट भर के खाइए.. आप शादी के बाद पहली बार सासरे आए हैं।
हम दोनों तो ये सुन कर भौंचक्के से रह गए.. क्योंकि हम तो कभी इस गांव की तरफ आए तक नहीं थे और ये हमें इस तरह से बुला रही है।
खैर.. हमने बिना कोई जवाब दिए खाना खाया और खटिया पर आकर सो गए।
थकान के कारण विकास तो जल्द ही नींद के खर्राटे लेने लगा.. पर मेरे दिमाग में तो बस एक ही सवाल था कि मैं इनका जीजा कैसे हुआ।
थोड़ी देर सोचने के बाद मेरी भी आंख लगने ही वाली थी कि कोई मेरे पैरों की उंगली खींचने लगा, मैंने चौंककर अंधेरे में फोन का उजाला करके देखा तो वही लड़की थी.. जिसने रोटी थाली में डाली थी।
मैं कुछ बोलता उससे पहले ही वो दबी आवाज में बोल पड़ी- जीजा सा, मैं अपना परिचय करवाती हूँ आपसे.. मैं आपकी सबसे छोटी साली मीना हूँ, मेरे से बड़ी रेखा और सबसे बड़ी दीदी का नाम तो याद ही होगा न आपको.. या अपनी घरवाली का नाम भी मैं ही बताऊं.. चलो बता ही देती हूँ.. शायद आप भूल गए होंगे, तो दीदी का नाम कमला है।
इतना कहकर वो दबी आवाज में हंसने लगी।
उसकी बात सुनकर मैं भी मुस्कुरा पड़ा।
मैं अभी कुछ बोलता कि फिर वो बोल पड़ी- जीजा सा, मैं जिस काम के लिए यहाँ आई थी.. वो तो बातों-बातों में कहना भूल ही गई। हाँ तो.. आपका बिस्तर इधर नहीं, घर के पीछे लगाया है.. वहाँ जाकर लेटो। चलो अंधेरे में आपको रास्ता नहीं मिलेगा, मैं आपको आपकी खटिया तक छोड़ देती हूँ।
इतना कहकर मीना ने मेरा हाथ खींचकर मुझे उठाया और बोली- चलो भी, इतना क्यों शर्माते हो।
अब उसने मुझे झोपड़े के पीछे खटिया पर लगाये गए बिस्तर पर ले जाकर बिठा दिया।
मीना बोली- अब मैं तो चलती हूँ जीजा जी अपना ख्याल रखना.. थोड़ी देर बाद कोई आएगा तो अंधेरे में आप उनसे डरना मत।
अब मेरे समझ में आने लगा कि ये लोग मुझे अपना दामाद मान रहे हैं और दामाद जब पहली बार सासरे जाता है तो वो एक साथी के साथ शाम को दिन ढलने के बाद ही वहाँ पहुँचता है। यहाँ लगता है वो शादीशुदा लड़की कमला ही है.. उसके पति गौना करने आए नहीं है.. शायद शादी नई-नई हुई है। अभी मैं इन्हीं विचारों में था कि मुझे किसी के आने की आहट महसूस हुई।
थोड़ी देर बाद मेरी खटिया के पास आकर एक औरत खड़ी हो गई। लहंगा-चोली में चुन्नड़ ओढ़े हुए करीब साढ़े पांच फिट लंबी थी.. पतली कमर थी, पास में खड़ी बड़ी मस्त लग रही थी।
वो धीमी आवाज में बोली- लो जी, पानी पी लो।
और उसने गिलास मेरे हाथ में थमा दिया
रात अंधेरी थी.. हम एक-दूसरे का चेहरा भी नहीं देख सकते थे। मैंने पानी पिया और बोला- आप बैठ जाओ।
वो मेरे पास खटिया पर बैठ गई और बोली- हमारी शादी के बाद आपने ना तो मुझे फोन किया और न ही मुझे अपना नम्बर दिया और आने तक की खबर भी नहीं दी.. शादी में एक रात ही तो साथ में रहे थे.. वो भी मेहमानों के बीच.. ना तो मैंने आपका चेहरा देखा और ना ही आपने मेरा चेहरा देखा।
दोस्तो, एक बात बताना चाहूंगा कि हमारे गाँवों के रीति रिवाज अनुसार शादी होने तक लड़का लड़की एक-दूसरे से नहीं मिल सकते हैं और शादी होने के बाद लड़की ससुराल जाती है तो एक या दो दिन ही ससुराल रहती है।
अब उन दो दिनों में कई जोड़ों की तो सुहागरात भी नहीं हो पाती है, ऐसा ही कमला के साथ भी हुआ था।
मैं तो दुविधा में पड़ गया कि यार कहाँ आ फंसे.. मैं सोचने लगा कि अब क्या करूँ, फिर सोचा कमला को एक बार ठीक से देख तो लूँ।
मैंने मोबाईल निकाला और उसके उजाले को पास बैठी कमला के चेहरे के सामने ले गया।
वाह.. चेहरे में क्या देसी खूबसूरती थी, जैसे कीचड़ में गुलाब का खिलना.. उसी प्रकार रेगिस्तानी झोपड़ी में भी इतनी सुन्दर सी परी.. कमला का चेहरा एकदम गोरा.. रस भरे लाल होंठ उजाले के सामने थरथरा रहे थे। उसके माथे पर चुँदड़ी बड़ी प्यारी लग रही थी।
मैंने मोबाईल को चेहरे से थोड़ा नीचे सरकाया तो क्या कयामत लग रही थी। उसकी छाती बैचेनी से ऊपर-नीचे हो रही थी.. उस पर उसके दो मस्त कड़क और एकदम कसे हुए चूचे भी ऊपर-नीचे हो रहे थे… एक मासूम सी बला थी कमला।
अब उसके हिलते हुए मम्मों को देखकर मेरे अन्दर भी वासना जगने लगी। मेरी पैन्ट में तंबू खड़ा होने लगा। मैंने धीरे-धीरे कमला के पूरे शरीर को फोन के उजाले में निहार लिया.. वो एकदम गोरी थी।
फिर मेरे मन में ख्याल आया कि ‘नहीं सूरज, तुम इन भोले भाले लोगों के साथ धोखा नहीं कर सकते.. इन्होंने तुझे मेहमान बनाकर भगवान की पूजा की तरह सेवा की है और तू इन्हें ही धोखा देना चाहता है, नहीं.. नहीं…’
मैं इस सोच में डूबा ही था कि कमला ने अपना हाथ मेरे चेहरे पर फेरते हुए पूछा- क्या हुआ.. कहाँ खो गए.. आप कुछ बोलते भी नहीं.. हमसे नाराज हो क्या?
मैंने चुप्पी साध रखी थी।
फिर वो बोली- इसमें मेरी क्या गलती कि हमारी सुहागरात ना हो पाई थी.. आज बिन्दास होकर सुहागरात मना लो।
इतना कहकर कमला अपने मुँह को मेरे मुँह के करीब लाई और अपने होंठों को मेरे होंठों से चिपका लिया। अब मैं भी सब कुछ सोचना छोड़ कर कि जो होगा सुबह देखा जाएगा, उसके अपने होंठों से उसके होंठों का रसपान करने लगा।
क्या रसीले होंठ थे.. चूसने में बड़ा मजा आ रहा था। मैंने अपनी जीभ को कमला के मुँह में अन्दर तक डाल-डाल कर उसकी जीभ चूसी और उसके मुँह को करीब दस मिनट तक चूसता रहा।
हम दोनों ने एक-दूसरे के होंठों को भी खूब चूमा.. जब साँस लेना कठिन हो गया तब जाकर हम दोनों अलग हुए।
मेरे लंड का बुरा हाल हो गया था.. लंड पैन्ट में फड़फड़ा रहा था। मेरा लंड करीब सात इंच लंबा और ढाई इंच मोटा है।
अब मैंने कमला को खटिया पर सीधा लिटा दिया और मैं उसके बगल में एक साइड कोहनी के बल लेट गया और अपना मुँह उसके मुँह के ऊपर ले गया। कमला लंबी साँसें लिए जा रही थी, उसकी गर्म साँसें मुझे मदहोश कर रही थीं।
मैंने अपना एक हाथ कमला के कड़क तने हुए मम्मों पर रखकर धीरे से उसे मसला कि कमला के मुँह से सिसकारी निकलने लगी।
फिर मैंने उसके ब्लाऊज के बटनों को खोल दिया।
मैंने कमला के ब्लाउज के बटन खोल दिए, रात काफी हो चुकी थी, आसमान में चाँद निकल हुआ था। कमला ने काली ब्रा पहनी हुई थी, जो चाँद की रोशनी में उसके गोरे बदन पर बड़ी मस्त लग रही थी।
मैंने धीरे से उसके शरीर से उसकी ब्रा को भी अलग कर दिया।
क्या मम्मे थे यार… बड़े ही मस्त कड़क तने हुए थे। मैंने दोनों हाथों से दोनों मम्मों को पकड़ कर धीरे-धीरे मसलना शुरू किया.. कमला अपने मुँह से दबी आवाज में बड़ी ही मादक आवाज निकाल रही थी।
मैंने एक हाथ से उसके बोबे का मसलना चालू रखा और दूसरे हाथ को धीरे से नीचे खिसकाते हुए उसके पेट और नाभि पर हल्का-हल्का फिराने लगा। कमला पैरों की दोनों एड़ियों को आपस में रगड़ते हुए पैर पटक रही थी.. अब वो पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी। मैंने अपना मुँह उसकी नाभि पर टिका दिया और अपनी जीभ को उसकी नाभि के अन्दर फिराने लगा। मेरे इस चुम्बन से कमला की हालत बुरी हो रही थी।
मैंने अब अपने आपको ज्यादा देर ना करना उचित समझते हुए उसके लहंगे का नाड़ा खोल दिया और पैर से लहंगा नीचे खींच लिया। कमला की चिकनी गोरी जांघें चांद की रोशनी में बड़ी मस्त लग रही थीं।
उसने अन्दर नीले रंग की चड्डी पहनी हुई थी। मैंने धीरे से उसे भी निकाल दिया। अब कमला खटिया पर एकदम नंगी पड़ी हुई थी।
मैंने तो आज तक ऐसा नजारा कभी ख्वाब में भी नहीं देखा था, जिस तरह से अभी कमला को देख रहा था।
मेरा लंड फुंफार मार रहा था, वो तो टूट कर कमला की चुत में घुसने को बेताब था। अब मैंने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए और अपने लंड को कमला के हाथ में थमा दिया। लंड पकड़ते समय कमला शर्मा रही थी। कमला को मैंने बोला- इसे धीरे-धीरे हाथ से हिलाओ।
वो ऐसा ही करने लगी।
मैंने अब अपने हाथ को कमला की चुत पर रखा और एक उंगली को उसकी चुत के अन्दर डालने लगा। जैसे ही आधी उंगली उसकी चुत में गई होगी कि कमला उछल पड़ी और बोली- दर्द हो रहा है।
मैंने धीरे से एक-दो बार कोशिश की तो पूरी उंगली अन्दर तक चली गई। अब मैं उंगली को चुत में अन्दर-बाहर करने लगा। इससे कमला के पूरे शरीर को कसावट भरने लगी और वो जोर की सांसें लेने लगी।
अब उसने मेरे लंड को हिलाना छोड़ दिया मैंने भी अपनी उंगली को बाहर निकाला और एक बार फिर कमला के होंठों पर चुम्बन किया।
कमला बोली- अब देर ना करो, मुझसे और इन्तजार सहा नहीं जा रहा।
मैंने कमला को खटिया के एक कोने पर लिटाया और उसके दोनों पैरों को जमीन से टच करा दिया। मैं दोनों घुटनों के बल जमीन पर कमला के पैरों के बीच खड़ा हो गया, जिससे अब मेरा लंड कमला की चुत के बिल्कुल सामने आ गया था।
मैंने अब धीरे से कमला के पैरों के बीच आगे खींचते हुए अपने लंड को उसकी चुत पर टिका दिया और हल्के से लंड को उसकी चुत और जांघों पर रगड़ने लगा।
मेरी इस हरकत से कमला पागल हुई जा रही थी। वो बोली- प्लीज और ना तड़पाओ.. वरना मैं मर जाऊंगी.. जल्दी से डाल दो अपना लंड मेरी फुद्दी में.. और बुझा दो इसकी आग को।
मैंने भी देर ना करते हुए लंड के सुपारे को चुत पर टिका कर हल्का सा धक्का लगाया.. पर लंड फिसल के नीचे हो गया।
मैंने फिर टिका के धीरे-धीरे लंड पर दबाव डाला.. जिससे लंड का सुपारा चुत में घुस गया। उधर कमला को बड़ा दर्द होने लगा.. वो मुझे अपने हाथों से पीछे धकेलने लगी, पर मैं उसी पोजिशन में खड़ा रहा। थोड़ी देर जब कमला थोड़ी शान्त हुई तो फिर से धीरे से धक्का लगा दिया। अब मेरा लंड करीब चार इंच अन्दर घुस गया था.. कमला दर्द के मारे रोने लगी।
मैंने अब थोड़ा इन्तजार करने के बाद लंड को अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे चुत में चिकनापन आने लगा और लंड को अन्दर-बाहर होने में आसानी होने लगी। मैंने एक अब बार अपना पूरा लंड बाहर निकाल के फिर से जोर का धक्का मारा.. इस बार लंड पूरा का पूरा अन्दर घुस गया।
कमला चीख पड़ी- ऊहहहई माँह.. उहह मर गईईई..
मैंने अपना एक हाथ उसके मुँह पर रख दिया ताकि उसकी चीख से कोई जग ना जाए।
थोड़ी देर ऐसे ही रहने के बाद जब कमला का दर्द कम हुआ तो उसने गांड हिलाना शुरू कर दिया। मैं समझ गया की अब माल चुदने को तैयार है, तो मैंने अब धक्के लगाना चालू कर दिए।
करीब दस मिनट तक धक्के मारने के बाद मैंने उसे घोड़ी की स्टाइल में खड़ा होने को कहा।
कमला अब घुटनों के बल जमी पर खड़ी हो गई। उसका पेट से ऊपर का हिस्सा खटिया पर ही था। मैं अब कमला की गांड के पीछे खड़ा हो गया और पीछे से लंड को उसकी चुत में घुसा दिया। अब मैं जोर-जोर से धक्के मारने लगा। कमला को भी बड़ा मजा आ रहा था और वो भी गांड हिला-हिला के लंड को चुत में ले रही थी।
करीब दस मिनट बाद कमला अकड़ने लगी और अपनी चुत को सिकोड़ने लगी। मैंने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी। कमला ने जोर की चीख के साथ चुत से गर्म-गर्म लावा छोड़ दिया.. वो झड़ चुकी थी।
मैं भी चरमचीमा पर पहुँचने वाला था इसलिए लंड को जोरों से अन्दर-बाहर कर रहा था। करीब दो मिनट के बाद मैं जोर से हाँफने के साथ चीख के साथ लंड को चुत से बाहर निकाल लिया और तभी मेरे लंड से पिचकारी फूट पड़ी। लंड का सारा माल मैंने कमला की पीठ पर बिखेर दिया। हम दोनों पसीने से तरबतर हो चुके थे.. थक गए थे। दोनों खटिया पर चित्त होके सो गए।
दस मिनट बाद जब चैन की सांस आई तो मैंने फोन निकाल कर टाइम देखा तो सुबह के पौने पांच बज चुके थे।
मैंने कमला को किस किया और बोला- सुबह हो गई है, अब हमें अपने पहले वाले बिस्तर पर चलना चाहिए।
कमला बोली- ठीक है.. फिर कब आओगे?
मैंने बोला- जब ऊपर वाला मिलाएगा तब..
और मैं हंस पड़ा.. कमला भी मुस्कुरा दी।
मैंने कमला से पूछा- आपके घर में हवा भरने का पंप है?
कमला बोली- हाँ है।
तो मैंने कहा- आप वो मेरी बाइक के पास रख आना.. मेरी बाईक में रात को पंचर हो गया था।
कमला बोली- ठीक है।
अब मैं और कमला चल दिए।
झोपड़े के पीछे से आकर उसने लाकर पंप बाइक के पास रख दिया।
मैंने अब विकास को उठाया और टायर में हवा भरने का बोला। उसने उठ कर हवा भर दी।
साढ़े पांच हो चुके थे.. मैंने सोचा यहाँ से निकल जाना चाहिए वरना सुबह सब उठ गए और चेहरा पहचान लिया तो मारे जाएंगे।
फिर हम दोनों दोस्त वहाँ से रवाना हो गए।
इसके बाद फिर कभी उस गांव की ओर नहीं गए।
मैंने जो मेरे साथ रात में घटना हुई इसे आज तक किसी को नहीं बताया है.. विकास भी इस बात से अन्जान है।
लेकिन यह घटना अपने मन में छुपा न सका, इसलिए आप सब दोस्तों के साथ शेयर कर दी। उम्मीद करता हूँ आप सबको मेरी कहानी पसन्द आएगी।
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