प्रशंसिका ने दिल खोल कर चूत चुदवाई-5
(Prashansika Ne Dil Khol Kar Chut Chudwayi- Part 5)
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थोड़ी देर बाद रचना ही बोली- डियर, जब तुम्हारा स्पर्म निकलता है…
तभी मैंने उसे टोकते हुए बोला- स्पर्म नहीं वीर्य बोलो, चुदम-चुदाई के खेल में हिन्दी शब्द बोलने में ज्यादा मजा आता है।
‘अच्छा बाबा वो ही वीर्य… अब यह बताओ कि जब तुम किसी की चूत चोदते हो, तो अपना वीर्य उसी की चूत में डाल देते हो?’
‘नहीं…’ मैंने कहा- अक्सर मैं पार्टनर के मुँह में डालता हूँ, जिसे वो पूरा चाट जाती है, नहीं तो उसके जिस्म में डाल देता हूँ।
‘तो फिर तुमने मेरे मुँह या जिस्म में क्यों नहीं डाला?’
‘तुम्ही ने तो कहा था कि उल्टी होती है!’ मैं उसकी गांड में उँगली करते हुए बोला।
‘कोई बात नहीं अब डाल देना, मुझे उल्टी नहीं होगी। कहकर वो मेरे होंठों को चूमने लगी और फिर अपने होंठ मेरे निप्पल में लगा दिए और वो मेरे निप्पल को गीला करती या फिर दाँतों से बीच-बीच में काट लेती थी।
उसका एक हाथ मेरे लंड को मींज रहा था।
रचना ने मुझे ऐसे जकड़ा था कि मेरा हाथ उसके चूतड़ों पर ही था। उसके इस तरह मेरे जिस्म को सहलाने से मेरे रोम-रोम में मस्ती छा गई।
जब से मेरा हाथ उसकी गांड को सहला रहा था, मेरी इच्छा उसकी गांड में लंड डालने की हो रही थी। मैंने उसकी गांड को सहलाते हुए पूछा- डियर, यह बताओ कि तुमने मेरी कितनी कहानियाँ पढ़ी हैं?
‘सब…’ बस इतना ही कहा।
‘कैसी लगी?’ ‘यह सोचो कि उस कहानी को पढ़ने के बाद में तुम्हारे साथ हूँ और तुमसे चुद रही हूँ। अंदाजा लगा लो कि मुझे तुम्हारी कहानी कैसी लगी।’ कहकर चुप हो गई।
‘तो कहानियों में तुमने यह भी पढ़ा होगा कि मुझे लड़कियो कीं चूत के साथ-साथ उनकी गांड भी बहुत मजा देती है।’
‘मालूम है।’
‘तो आज उदघाटन हो जाये?’
‘मुझे कोई ऐतराज नहीं है लेकिन आज केवल मेरी चूत को चोदो।’
‘गांड में लंड तो लोगी ना?’
‘बिल्कुल लूँगी… पर आज चूत का ही मजा दो।’ कहकर वो थोड़ा मेरी तरफ ऊपर को आई और अपनी चूची को मेरे मुँह में भर दिया और मेरे माथे को चूमा।
उसके ऊपर आने से उसकी गांड मेरे रेंज में आ गई और अब मेरी उँगली उसकी गांड की छेद को कुरेद रहा था और छेद के अन्दर जाने की कोशिश कर रहा था।
रचना ने अपनी टांग को थोड़ा ऊपर करके कमर पर रख दी इससे उसकी गांड और चूत दोनों का ही छेद मेरी उँगली के निशाने पर थे। अब मैं उसकी चूची चूस रहा था, दूसरी चूची को दबा पा रहा था और दूसरे हाथ की उँगली को रचना की गांड और चूत के छेदों का समर्थन मिल रहा था।
थोड़ी देर बाद रचना मेरे अंग को चाटते हुए नीचे मेरी जांघ की तरफ आ गई और मेरे जांघों को चाटने लगी।
रचना की पोजिशन बदल चुकी थी, उसके चेहरे का हिस्सा मेरी टांग की तरफ था और उसके कमर का हिस्सा मेरे चेहरे के समीप था।
मैंने उसकी टांग को पकड़ कर अपने क्रास किया, अब उसकी चूत मेरे मुंह पर सेट हो गई, मैंने अपनी जीभ को उसकी पनियाई चूत पर रख दिया और अब उसके चूत की चूसाई और चटाई शुरू हो चुकी थी।
रह रह कर मैं उसकी गांड को भी चाटता।
सिसयाने की आवाज उसके मुँह से आने लगी थी।
जब उसे अहसास हुआ कि मैं उसकी गांड भी चाट रहा हूँ तो उसने मेरे पैर को भी मोड़ दिया, जिस कारण मेरे गांड का छेद उसके मुँह के पोजिशन में आ गया।
अब वो भी उसी तरह कर रही थी, कभी वो लंड को चूसती तो कभी मेरी गांड को चाटती।
मुझे रचना पूरा सहयोग कर रही थी।
कुछ देर बाद रचना मेरे ऊपर से उतर कर मेरी तरफ घूमते हुए बोली- जानू, अब चूत में लंड डाल दो।
‘जानू, अब तुम मेरे लंड को चोदो, मेरे लंड पर अपना चूत रखो और मुझे चोदो।’
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रचना मुस्कुराई और मेरे लंड को पकड़ कर चूत का सेन्टर मिलाते हुए मेरे लंड को धीरे-धीरे अपनी चूत में समा लिया और धीरे-धीरे उछलने लगी।
कुछ समय में ही उसकी स्पीड तेज होती गई, जैसे-जैसे वो उछलती, उसकी चूचियाँ भी उछलती।
जब वो उछलते-उछलते थक जाती तो मुझसे चिपक कर अपनी कमर को उछालती और मेरे लंड को चोदती।
अब वो भी वक्त आ गया था कि जब मेरा माल निकलने वाला था, मैंने उससे बोला- मेरा निकलने वाला है, तुम्हारी क्या हालत है?
बोली- मैं तो झड़ चुकी हूँ।
मैं बोला- मेरा निकलने वाला है, अन्दर ही निकाल दूँ या मुँह में लेना है?
वो तुरन्त ही मेरे ऊपर से उठी और मेरे लंड को मुँह में लेकर चूसने लगी।
दो-तीन सेकण्ड बाद ही मेरा माल उसके मुँह में गिरने लगा, जिसे रचना ने पूरा पी लिया और मेरे वीर्य की एक-एक बूँद को चाट कर साफ कर दिया।
उसके बाद वो मुझसे चिपक कर लेट गई, थोड़ी देर तक हम लोग बातें करते रहे।
बातें करते करते हम लोगों को कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।
करीब 4 बजे के आस-पास रचना कुछ कुनमुनाने सी लगी, शायद उसकी गर्मी अभी भी शांत नहीं हुई थी, तभी तो न जाने कितनी देर से मेरे जिस्म से खेल रही थी।
उसकी इस हरकत से मेरी भी नींद टूट गई, वो मुझसे कस कर चिपकी हुई थी और नाखून से मेरे लंड के अग्र भाग को कुरेद रही थी, मानो कुछ जमा हो उसे निकालने की कोशिश कर रही थी और अपनी जीभ से मेरे निप्पल को चाट रही थी।
मैंने उसको झट से अपने नीचे लिया और लंड को उसकी चूत में डाल कर चुदाई करने लगा।
कमरे में उसकी आ ऊ आ ऊ की आवाज और बेड के चरररर्रर की आवाज केवल सुनाई पड़ रही थी।
थोड़ी देर बाद वो ढीली पड़ गई और मैंने भी अपना माल उसकी चूत के ऊपर डाल कर उसके ऊपर गिर गया।
थोड़ी देर बाद उससे अलग हुआ तो वो मेरी तरफ घूमी और सॉरी बोलने लगी, बोली- मेरी वजह से नींद खराब हो गई। पर मैं क्या करूँ, तुमसे चिपक कर मैं सो गई थी। आज से पहले मैं इस तरह से किसी से चिपक कर और न ही नंगी सोई तो जब तक नींद गहरी थी तब तक कोई बात नहीं, लेकिन अचानक जैसे ही मेरी नींद खुली और तुम्हारे जिस्म की गर्मी मुझे लगी तो मुझसे रह न गया।
मैं उसके होंठों को चूमते हुए बोला- कोई बात नहीं!
और फिर उसको कस कर अपने से चिपका कर मैं सो गया।
कहानी जारी रहेगी।
आपका अपना शरद
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