मैडम एक्स और मैं-1
(Madam X Aur Mai- Part 1)
मेरी पिछली कहानियों को सराहने के लिये आप सभी का धन्यवाद।
पर जैसा कि मैंने पहले कहा था कि अन्तर्वासना एक ऐसा मंच है जो आपको कई मौके देता है, जैसे मुझे असलम भाई मिल गये और करीब दो महीने भरपूर अय्याशी में गुज़रे लेकिन अति किसी भी चीज की बुरी होती है और नितिन के साथ मैंने निदा को चोदने की अति कर दी थी तो एक दिन को ज़रीना को पता चलना ही था और पता चलते ही ऐसी आगबबूला हुई कि मुझे घर से निकाल के ही दम लिया।
यार कुछ भी हो और मुझे भले किसी भी मक़सद के लिये बुलाया हो, लेकिन थे वे तो ख़ानदानी लोग ही और मुझे पहले ही चेतावनी मिल चुकी थी कि बात मुझसे बाहर गई तो मैं भी बाहर हो जाऊँगा और मैं वाकयी बाहर हो गया।
पर इस बीच लखनऊ में मेरा मन ऐसा लग चुका था कि अब जल्दी जाने क इरादा नहीं था और दाने का क्या है, एक खेत उजड़ा तो चिड़िया को चुगने के लिये दूसरा खेत मिल ही जाता है, जैसे मुझे एक हफ़्ते बाद ही मिल गया था।
मेरी कहानियों के पोस्ट होने के बाद से ही मुझे खूब फैन मेल आती हैं जिनमें कुछ खास महिलाओं की भी होती हैं।
और ऐसी ही एक फैन थीं कोई मैडम एक्स करके जो लगभग रोज़ ही मुझसे बात करती थीं।
निदा का घर छूटने के बाद मैंने कपूरथला में एक कमरा किराये पर ले लिया थ और वहाँ शिफ़्ट हो गया था।
एक दिन मैडम एक्स ने मुझसे फोन पर बात करने की इच्छा व्यक्त की तो मैंने नंबर दे दिया और उनका फोन आया।
आवाज़ खूबसूरत थी पर उससे मैं उम्र का कोई अंदाज़ा न लगा पाया। बस इधर उधर की बातें हुईं, उन्होंने अपने बारे में कुछ नहीं बताया।
फिर पिछले शुक्रवार को उनका फोन आया कि वह मुझसे मिलना चाहती हैं। उन्होंने आगे खुद बतया कि वह भी लखनऊ की ही हैं और वो सात बजे वेव, गोमतीनगर के सामने मेरा इन्तज़ार करेंगी।
मैं नियत समय पर गोमतीनगर वेव के सामने पहुँच गया तो उनका फोन आया कि वो कोक कलर की हांडा सिटी में हैं जो अब मेरे सामने रुक रही है। फिर फोन काटते ही वाकयी एक कोक कलर हांडा सिटी मेरे सामने आ कर रुकी और उसका दरवजा खुला।
मैं अन्दर बैठा और कार चल पड़ी।
धुंधलका फैल रहा था पर मैं फिर भी देख सकता था कि वो 40 के पार की औरत थी जो बेहद गोरी और चिकनी थी, कार वाली थी तो ज़ाहिर है कि बड़े घर की होगी जहाँ की औरतें 30 के बाद बेतरतीब ढंग से फैलने लगती हैं लेकिन वो खुद को ऐसे मेंटेन किये थी कि मैं देख कर दंग रह गया। शरीर पर कहीं भी एक्सट्रा चर्बी का नामोनिशान नहीं।
“कभी मैं मिस देहरादून रही हूँ, मोटापे की लानत मुझपे कभी नहीं आई। वैसे 45 की हूँ पर शायद लगती नहीं।” उन्होंने जैसे मेरी उलझन भांप ली और खुद ही मेरे सवालों के जवाब दे दिये।
मुझे दांत निकाल कर मुस्कराना पड़ा।
आगे अम्बेडकर पार्क होते हुए हज़रतगंज और फिर वापस होते हुए गोमतीनगर और पॉलीटैक्निक से फैज़ाबाद रोड पार करके मुझे कपूरथला ड्राप कर दिया और इस बीच ही सारी बात हो गई।
वो एक ज़मींदार घराने से ताल्लुक रखती थीं और वर्तमान में एक प्रशासनिक अधिकारी की चहेती पत्नी थीं जो कि इस वक़्त नोएडा में तैनात थे।
25 साल पहले दोनों की लव मैरिज हुई थी। दोनों ही उत्तराखंड के थे मगर अब लखनऊ में बस गये थे। वो भी अलीगंज में ही रहती थीं।
उनके दो बच्चे हैं, एक बेटा और एक बेटी जो क्रमशः 22 और 20 वर्ष के हैं और दोनों ही देहरादून अपने ननिहाल में रह कर पढ़ाई कर रहे थे और जब तब घर आते रहते हैं।
उनकी जिन्दगी में सब ठीक ही चल रहा था लेकिन करीब सात साल पहले घटी एक घटना ने उनके जीवन को अधूरा कर दिया था।
एक दुर्घटना में ठाकुर साहब (उनके पति) रीढ़ की निचली हड्डी में ऐसी चोट खाये थे कि सैक्स के लिये पूरी तरह अयोग्य हो गये थे, उन्हें तो अब सीधे खड़े होने य बैठने के लिये भी स्टील के खांचे की ज़रूरत पड़ती थी।
यानी सात साल से वो, चूंकि मैं उनका रियल नाम तो नहीं लिख सकता इसलिए सुविधा के लिये मैं उन्हें प्रमिला लिखूँगा जो उनके नाम से मिलता जुलता ही है… तो सात साल से प्रमिला यों ही प्यासी हैं।
पति ने उनकी अन्तर्वासना की पूर्ति के लिये कई उपाय किये जो मुझे तब नहीं पता थे लेकिन वो संतुष्ट नहीं हैं।
और अब मेरे रूप में कुछ रोमांच चाहती हैं… रोमांच के लिए ही वो पोर्न साइट्स देखतीं हैं, अन्तर्वासना की कहानियाँ पढ़तीं हैं जहाँ से उन्हें मेरा मेल अड्रेस मिला था।
पर इसके लिए बकौल उनके मुझे एक कीमत लेनी होगी, चूँकि वह राजा लोग थे, मुफ़्त में कुछ हासिल करना उनकी शान के खिलाफ़ था और दूसरे मुझे इस सिलसिले में अपना मुँह कतई बन्द रखना होगा क्योंकि सवाल उनके पति की इज़्ज़त का था जो ऐसी सूरत में मेरी जान भी ले सकते थे।
मैंने उन्हें विश्वास दिलाया कि मैं यहाँ बाहरी हूँ, मेर कोई सर्कल नहीं और न मैं उनके लोगों को ही जानता हूँ तो कहूँगा किससे।
हाँ, अन्तर्वासना पर कहानी लिखने की इजाज़त मैंने ज़रूर माँगी जो इस शर्त के साथ मिली कि उनकी पहचान नहीं प्रदर्शित होनी चाहिए।
ये तो ज़रूरी था, मैंने भरोसा दिलाया और सब कुछ तय हो गया।
अगले दिन शनिवार था, मैंने छुट्टी ले ली। परसों तो रविवार की छुट्टी थी ही और दो दिन के लिये मैं गुलाम बनने मैडम प्रमिला के घर पहुँच गया।
उनके घर के मरदाने कामों के लिए एक नौकर था जो स्थायी रूप से वहीं निवास करता था और एक मेड थी, वह भी वहीं रहती थी लेकिन अपने कार्यक्रम के हिसाब से दोनों को दो दिन की छुट्टी दे दी गई थी और अब वह सोमवार को ही आने वाले थे।
उन्हें तीन स्टेप्स वाले सीधे सेक्स में रुचि नहीं थी- ओरल सेक्स, योनि मर्दन और गुदा मैथुन। वे कुछ रोमांच चाहती थीं, तो मैंने यही राय दी कि चलिए कहीं घूमते-टहलते हैं।
वह राज़ी हो गईं और मेरे सुझाव के मद्देनज़र एक फुल कवर्ड लेडी के वेश में, जिसकी सिर्फ़ आँखें देखी ज सकती हों, वो मेरे साथ लखनऊ के सैर सपाटे पर निकल पड़ीं।
हम पूरा दिन घूमे टहले, छोटा-बड़ा इमामबाड़ा, नींबू पार्क, बुद्धा पार्क, शहीद स्मारक, रेजीडेन्सी, लोहिया पार्क, अम्बेडकर पार्क और शाम को सहारा गंज, जहाँ से खा पीकर हम वापस घर लौटे और इस पूरे दिन मैं उनके साथ मज़ाक मस्ती और छेड़छाड़ करते उन्हें यह एहसास कराता रहा कि वे कोई नौजवान लड़की ही हैं न कि 40 पार की कोई महिला।
उन्होंने पूरा दिन मस्ती की और रात थके हारे घर पहुँचे तो थोड़े आराम के बाद उन्होंने थकान की शिक़ायत की।
मैंने मालिश का सुझाव दिया और उन्होंने हामी भरने में देर नहीं लगाई।
मसाज आयल उनके पास मौजूद था और उन्होंने एक तौलिया लपेट लिया और बेह्तरीन साज सज्जा वाले अपने बेडरूम के नर्म गदीले बिस्तर पर औंधी होकर लेट गईं।
कमरे में दूधिया प्रकाश भरा हुआ था जो प्रमिला की कंचन सी कमनीय काया की चमक को और बढ़ा रहा था।
तौलिया जांघों के ऊपर से लेकर वक्ष तक के हिस्से को ढके हुए था। ऊपर की पीठ, मांसल कंधे और गोल पुष्ट चिकनी टांगें अनावृत थीं।
मैंने अंडरवियर को छोड़ अपने बाकी कपड़े उतार दिए और बिस्तर पर उनके पास आ गया।
उंगलियाँ तेल से भिगो कर मैंने आहिस्ता आहिस्ता उनके भरे भरे कन्धों पर चलानी शुरू कीं, उन्होंने आँखें बन्द कर के अपने शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दिया।
“एक बात बताइये… अगर कैसे भी ठाकुर साहब को इस बारे में मालूम पड़ जाये तो?” मैंने तौलिये के आसपास उँगलियाँ चलाईं।
“तो कुछ नहीं, उनकी इजाजत के बगैर मैं कुछ नहीं करती, मैंने पहले ही पूछ लिया था पर तुम अपना मुँह बन्द रखना, वरना मर्द के आत्मसम्मान को चोट बड़ी जल्दी लगती है।” उन्होंने आँखें बन्द किये किये जवाब दिया।
“मेरा मुँह तो बन्द ही रहने वाला है, फ़िक्र मत कीजिये।”
कुछ देर ख़ामोशी से मैं उनके कंधों और गर्दन को मसाज करता रहा और वे सुकून से आँखें बन्द किये मेरी गर्म उन्गलियों की हरारत को अपने जिस्म में जज़्ब होते महसूस करती रहीं।
ऊपर की मालिश हो चुकी तो मैं नीचे आ गया।
मैंने उनकी दोनों टांगों को एक दूसरी के समानांतर करीब दो फ़ुट फैला दिया और तौलिये तक एक-एक टांग की बारी बारी मालिश करने लगा।
जब हाथ ऊपर जाता तो तौलिया थोड़ा और ऊपर खिसक जाता और पीछे की रोश्नी में मुझे उनकी दोनों टांगों का जोड़ कुछ हद तक तो अवश्य दिखता, जो मेरे पप्पू को गनगना देता।
बहरहाल जब अच्छे से ऊपर नीचे की मालिश हो गई तो मैंने उनसे कहा, “अब यह तौलिया हटना पड़ेगा।”
उन्होंने ख़ामोशी से तौलिया खींच कर फेंक दिया।
अब सामने मस्त नजारा था… मैडम का पूरा नंगा पिछवाड़ा मेरे सामने था। कमर मेरे अंदाज़े के मुताबिक ही बिल्कुल डम्बल के आकार में सीने और कूल्हों के बीच तराशी हुई थी, दोनों चूतड़ एक नरम मुलायम स्पर्श वाला उठान लिये थे और बीच में एक गहरी दरार, जिसके बीच में जैसे एक शरमाया सा चुन्नटों भरा छेद छिपने की कोशिश कर रहा था पर स्पंजी चूतड़ ज़रा स दबाव पड़ने पर खिंच जाते और वो बेचारा अनावृत हो जाता।
उसके ठीक नीचे एक गहरी दरार खत्म हो रही थी।
कहानी जारी रहेगी।
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कहानी का अगला भाग: मैडम एक्स और मैं-2
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