वफ़ा या हवस-4

(Wafa Ya Hawas-4)

नब्बू खान 2008-05-18 Comments

This story is part of a series:

शैलीन- जल्दी से फ्रेश हो जाओ!
मैं- क्यों भाभी?
शैलीन- फिर भाभी?
मैं- सॉरी शैलीन, लेकिन क्यों?
शैलीन- सरप्राईज़ है तुम्हारे लिए!

मैं नहा धो के शैलीन के दिए हुए कपड़े पहन ही रहा था कि मेरा ध्यान घड़ी की ओर गया, जिसमें साढ़े तीन बज रहे थे! मुझे एक बजे की ट्रेन से निकलना था जो शैलीन को भी पता था, तो फिर शैलीन ने मुझे जगाया क्यों नहीं? अब क्या चाहिए शैलीन को?

खैर मैं जैसे ही हॉल में पहुचा शैलीन काली साड़ी पहने हुए खडी थी, माथे पर काली बिंदिया, आँखों में काजल और अन्दर से उसका गोरा-गोरा जिस्म!

शैलीन बहुत खूबसूरत लग रही थी, जी तो कर रहा था कि बस देखता रहूँ इसे हमेशा!

लेकिन जैसे ही शैलीन ने मुझे देखा, कहने लगी- मैं तुम्हारा कब से इन्तजार कर रही हूँ! क्या कर रहे थे बाथरूम में?

मैं- शैलीन कहीं जा रही हो?
शैलीन- मैं नहीं हम!
मैं- हम मतलब?

शैलीन- मतलब यह कि (मेरे पास आते हुए) आज दोपहर में तुम्हें जाना था ना! लेकिन तुम घोड़े की नींद सो रहे थे, जब मैं तुम्हें जगाने आई तो तुमने मुझे अपनी बाहों में पकड़ लिया था, बड़ी मुश्किल से मैंने अपने आप को तुमसे छुड़ाया! वैसे तुम बहुत गहरी नींद में सो रहे थे, तुम्हें जगाना मुश्किल था।

मैं- लेकिन मैं जाना चाहता हूँ!
शैलीन (उदास होते हुए)- क्या मुझसे कोई गलती हो गई?
मैं- नहीं ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन रुकने का कोई कारण भी तो नहीं है!

शैलीन- कोई बात नहीं! आज हम कुतुबमीनार देखने चलते हैं! (मुझे बाहों में लेते हुए) और खाना भी बाहर ही खायेंगे!
मैं- यह क्या कर रही हो शैलीन?

शैलीन- क्यों कल रात जो हमारे बीच हुआ, उसके आगे यह क्या है?

मैं- ठीक है लेकिन खाना मैं खिलाऊँगा!
शैलीन- ओ. के.

मैंने सोचा कि आज यहीं रुक जाता हूँ, कल चला जाऊँगा और शैलीन की बात भी पूरी हो जाएगी! फिर हम दोनों निकल पड़े और लालकिला और क़ुतुबमिनार देखा!
शैलीन मेरे साथ ऐसे घूम रही थी जैसे कि मैं उसका पति हूँ। बीच-बीच में मेरे हाथों में हाथ डाल कर चल रही थी, मुझे भी उसके साथ घूमने में मजा आ रहा था!

और फिर रात को नौ बजे हमने होटल ताज पैलेस खाना खाया, फिर रात को करीब ग्यारह बजे के आस-पास हम वापस आ गए!

मैं हॉल में बैठ कर टीवी ऑन करके देखने लगा, तब तक शैलीन ने मेरे लिए पानी ले कर आई! मैं अपना बैग खोल कर बैठ गया जिसमें जिन की बोतल थी।

मैंने पानी ले कर मेज़ पर रख दिया! इतने में ही शैलीन ने मेरे हाथों से बैग छीन लिया और बाजू में रख दिया और कहा- नब्बू, आज तुम शराब नहीं पियोगे क्योंकि इसे पीने के बाद तुम जानवर बन जाते हो!

मैं समझ गया कि शैलीन बीती रात की बात कर रही है, मैंने कहा- मैं शराब नहीं पी रहा था, मैं तो लैपटॉप निकाल रहा था!

इतने में ही शैलीन मेरे गोद में बैठ गई और एक हाथ मेरी गर्दन डाला और दूसरे हाथ की ऊँगली से मेरे गाल और होटों को बड़े प्यार से सहलाने लगी और कहने लगी- मुझे पता है कि तुम मौके की तलाश में रहते हो! अच्छा यह बताओ कि तुमने आज तक कितनी लरकियों के साथ सेक्स किया है?

मैं हैरान था कि साले अर्जुन ने मेरे बारे में इतना सब कुछ बता दिया और यह भी कि काला मेरा पसंदीदा रंग है!

‘बोलो ना’ शैलीन की आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ।

मैंने कहा- नहीं, ऐसा कुछ नहीं है, मेरे सारे दोस्तों ने ऐसी ही अफवाह फैलाई थी।

इतने में शैलीन अपनी ऊँगली से मेरे होंठों को सहलाने लगी! वो मुझे गर्म कर रही थी क्योंकि उसे मौक़ा मिल गया था, मेरा लण्ड भी अपने पूरे आकार में आ चुका था। मानो कि लण्ड की चमड़ी फट रही हो।

इतने में ही शैलीन अपने गालों से मेरे गालों को सहलाने लगी, मैं आह-आह करते हुए मजा लेने लगा और शैलीन को दोनों हाथों से पकड़ लिया।

अचानक शैलीन ने अपने दांतों से, होंटों से मेरे कान पकड़ लिए। मैंने एक हाथ से उसके स्तन पकड़ लिए और जोर-जोर से दबाने लगा।

शैलीन सिसकारियाँ ले रही थी! मैंने सीधा एक हाथ से शैलीन के बालों को पकड़ा और उसके होंठों को चूमने लगा;

आह… क्या मजा आ रहा था? मैं बता नहीं सकता!

उसके होंटों का वो मीठा-मीठा स्ट्राबेरी फ्लेवर! मैं जैसे हवा में उड़ रहा था! अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था!

मैं सीधा खड़ा हुआ और शैलीन को सोफे पर लिटा दिया और मैंने अपना अंडरवीयर छोड़ कर सारे कपड़े फटाफट उतार दिए और शैलीन के ऊपर आकर पागलों की भान्ति उसे चूमने लगा।

थोड़ी देर के बाद शैलीन ने मुझे अपने ऊपर से उठा दिया और अपनी साड़ी-पेटीकोट-ब्लाउज उतार दिया!

अब वो मेरे सामने काले रंग की पैंटी और ब्रा में खड़ी थी।
कहने लगी- यही तुम्हारा मनपसन्द रंग है ना?

मेरी तो जैसे आँखें फटी की फटी ही रह गई थी! उसके गोरे-गोरे जिस्म पर वो काली पैंटी और ब्रा! मैं तो उसे देखता ही रह गया!

अचानक शैलीन ने कहा- बस हमेशा देखते ही रहना! कभी लड़की नहीं देखी है क्या?

मैंने मुस्कुराते हुए कहा- शैलीन, सच में तुम बहुत खूबसूरत हो! मैंने आज तक तुम्हारे जैसी कभी किसी को नहीं देखा! जी तो चाहता है कि तुम्हें हमेशा के लिए अपना बना लूँ!

तो शैलीन ने मुझे दोनों हाथों से अपने बाहों में भर लिया कहने लगी- अभी तो मैं तुम्हारी ही हूँ ना!

शैलीन ने अपना पूरा जिस्म मेरे हवाले कर दिया था जिसका मैं जो चाहूँ कर सकता था! हम दोनों एक दूसरे की बाहों में थे और चुम्बन कर रहे थे।

मैं तो जरूरत से ज्यादा ही गर्म हो चुका था, अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था, मैंने शैलीन की पैंटी और ब्रा फटाफट उतार दी और अपनी अंडरवीयर भी!

हम दोनों नंगे हो गए। अब मैंने उसे सोफे पर ही लिटा दिया और मैं उसके ऊपर आ गया!

मैं अपने लण्ड से शैलीन की चूत को सहला रहा था और उसके दोनों चूचों के चुचूकों को मुँह में लेकर चूस रहा था! शैलीन भी मजा ले रही थी क्योंकि उसकी हालत भी मेरे जैसी ही हो गई थी!

उसने आखिर कह ही दिया- नब्बू, डालो ना! अब और कितना तरसाओगे?

बस फ़िर क्या? मैंने शैलीन के कूल्हों के नीचे सोफे का तकिया लगाया जिससे शैलीन की चूत उभर कर ऊपर आ गई।

मैंने अपना लण्ड उसकी चूत पर रखा और धीरे-धीरे अन्दर डालने लगा क्योंकि शैलीन को अभी भी पिछली रात की चुदाई का दर्द था। मेरे लण्ड का ऊपर का हिस्सा (सुपाडा) ही अन्दर गया था कि शैलीन ने मेरे चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ लिया और चूमने लगी।

इतने में ही मैंने दनदनाता हुआ शॉट मारा, मेरा आधा लण्ड अन्दर चला गया!

दर्द की वजह से शैलीन कराहने लगी लेकिन मैंने अपना कार्यक्रम जारी रखा और धीरे-धीरे शैलीन की कराहटें सिसकारियों में बदल गई। थोड़ी देर के बाद शैलीन ने अपनी टांग मोड़ ली और नीचे से अपनी गाण्ड उछालने लगी!

यह मेरे लिए हरी बत्ती थी। बस फिर क्या था मैंने अपनी गति और तेज कर दी! शैलीन ने मुझे कस के पकड़ा था और आहह्.. आह… कर रही थी। मैंने भी अपना पूरा जोर लगा दिया। हमारी चुदाई से फच-फच की आवाज आ रही थी।

फ़िर मैंने शैलीन घोड़ी बना दिया और उसके पीछे आकर जैसे ही अपना लण्ड डाला, शैलीन झट से पलट कर मेरे सामने खड़ी हो गई और कहने लगी- इस तरह से मत करो! मुझे बहुत दर्द होता है!

मैंने कहा- कोई बात नहीं!

फिर मैंने उसे सोफे पर बैठा दिया और मैं उसके सामने आया और शैलीन की दोनों टाँगे उठा कर अपने कंधों पर रखी और उसकी चूत में लण्ड डाला और शुरू हो गया फचा-फच का संगीत!

शैलीन मेरा चेहरा अपने हाथों में थाम चूमने लगी! शैलीन ने अपनी पूरी जिबान मेरे मुँह में डाल दी, मैं भी उसकी जबान को चूस रहा था, उसका भी एक अलग मजा आ रहा था! कभी मैं शैलीन के मुँह में जबान डालता तो कभी शैलीन मेरे मुंह में!

जैसे ही शैलीन ने मुझे कस के पकड़ा मैं समझ गया कि वो झड़ने वाली है!

मैं अपना लण्ड शैलीन की चूत से निकाल कर सोफे पर बैठ गया और शैलीन को अपनी तरफ खींचा और उसकी दोनों टांगों को मोड़ कर अपनी जांघ बैठा लिया और उसके दोनों हाथ मेरे कंधों पर रख लिए। इस तरह से मेरा लण्ड शैलीन की चूत टकरा रहा था और मेरे होठ शैलीन के स्तनों से!

फिर मैंने शैलीन की गाण्ड को दोनों हाथों से पकड़ कर हल्के से उठाया और उसकी चूत पर नीचे से अपना लण्ड जैसे ही लगाया, शैलीन समझ गई कि उसे क्या करना है।

शैलीन मस्त हो कर ऊपर-नीचे होने लगी, जिससे शैलीन के चूचे झूलने लगे! मैंने शैलीन की कमर को पकड़ लिया और उसके चुचूक चूसने लगा।

शैलीन को और भी ज्यादा मजा आने लगा, वो सी-सी करते हुए बोली- नब्बू, यह सब कहाँ से सीखा? सच में तुम तो कमाल के मर्द हो!

मैंने कहा- शैलीन डार्लिंग! अभी तो बहुत कुछ बाकी है! जो तुम्हें अर्जुन ने भी नहीं बताया होगा!

फिर शैलीन मेरे दोनों गालों को अपनी हथेलियों के बीच पकड़कर मुझे चूमने लगी और इसी बीच शैलीन ने अपना पानी छोड़ दिया।

फिर मैं दोनों हाथों से शैलीन को पकड़कर वैसे ही खड़ा हो गया! मेरा लण्ड अभी भी शैलीन की चूत में ही था!

शैलीन ने भी अपनी दोनों टांगों से मेरी कमर को पकड़ लिया और दोनों हाथों से मेरी गर्दन को इस तरह से शैलीन का सारा वजन मेरे पैर पर ही था!
फिर मैंने अपने दोनों हाथ से शैलीन की गाण्ड को नीचे पकड़कर ऊपर-नीचे करना शुरू कर दिया। इस आसन में तो मुझे अलग ही मजा आता है दोस्तो!

थोड़ी देर बाद मेरा भी पानी निकलने ही वाला था कि मैंने अपना लण्ड निकाल लिया, शैलीन को सोफे पर बैठा दिया और कहा- मैं अपना पानी कहाँ गिराऊँ?

तो शैलीन ने कहा- जो तुमको पसंद है वही करो! बाकी मैं देख लूँगी!

शैलीन तो सोफे पर ही बैठी थी मैंने उसकी दोनों टांगों को थोड़ा सा खींचा और टांगों उठा कर शैलीन को हाथों में पकड़ा दिया जिससे शैलीन की चूत की लाली साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी।

मैंने अपना लण्ड उसकी चूत में डाला और अपनी पूरी ताकत से धक्के लगाने लगा। पांच-सात मिनट के बाद मैंने शैलीन की चूत में ही सारा पानी गिरा दिया।

करीब दो घंटे की इस चुदाई में हम दोनों बहुत ज्यादा ही थक गए थे, शैलीन कहने लगी- नब्बू, प्लीज मुझे बेडरूम तक पहुँचा दो न?

मैंने कहा- क्यों नहीं!

मैंने शैलीन को दोनों हाथों से उठाया और उसे बेडरूम में बिस्तर पर लिटा दिया और मैं उसके बाजू में ही लेट गया। आधे घंटे के बाद हमने फिर सेक्स किया और उसके बाद हम सो गए।

इस तरह मैं पाँच दिन तक शैलीन के घर (दिल्ली में कनॉट प्लेस) पर ही रहा। रोज रात में हम चुदाई करते थे और दिन में इन्डिया गेट, क़ुतुब मीनार, रेड फोर्ट, लाल किला और चांदनी चौक आदि खूब घूमा करते थे।
इन पांच दिनों में मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरी नई-नई शादी हुई हो और मैं अपनी बीवी (शैलीन) के साथ हनीमून पर आया हूं!

सच मानो तो मेरी वहाँ से जाने की मेरी इच्छा ही नहीं हो रही थी लेकिन वो मेरा घर भी तो नहीं था! मेरे नागपुर आने के बाद भी वो मेरे दिलो-दिमाग में उसकी (शैलीन) की यादें और बातें घूम रही थी।

दो दिन पहले ही शैलीन का फोन आया, कहने लगी- तुम बाप बनने वाले हो, मुबारक हो!

यह सुन कर मैं खुश था और हैरान भी!

मैंने तभी ही शैलीन के सामने शादी का प्रस्ताव रखा लेकिन शैलीन ने इन्कार कर दिया, कहा- तुम मुझसे शादी करके सिर्फ मेरा जिस्म ही पा सकते हो, आत्मा और बाकी रिश्ता तो मेरा अर्जुन के साथ ही मरते दम तक जुड़ा है और जुडा ही रहेगा! रही बात तुम्हारे बच्चे की, जो मेरी कोख में है, तो दुनिया वालो के लिए मैं इसे अर्जुन का नाम दूंगी!

मैं- शैलीन तुम यह अच्छी तरह से जानती हो कि मैंने आज तक किसी से प्यार नहीं किया है, लेकिन अब मैं तुम्हें प्यार करता हूँ! मेरा दिल मत तोड़ो!

शैलीन रोते हुए कहने लगी- मैं कुछ नहीं जानती, यह सिर्फ तुम्हारी जानकारी के लिए है, मैंने तुम्हें सिर्फ़ इसलिए बताया कि तुम अर्जुन के सबसे अच्छे दोस्त हो और मैं तुम में अर्जुन की छवि देखती हूँ। लेकिन तुम अर्जुन नहीं हो! मुझे गलत मत समझना! खुदा तुम्हें सलामत रखे!

शैलीन ने बाय कहकर फोन काट दिया!

शैलीन की सिर्फ इस बात ने मेरे जीवन में औरत शब्द की परिभाषा ही बदल दी!

क्या यह शैलीन का मेरे प्रति प्यार था या हवस?
आप लोग ही बेहतर बता सकते है!
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