एक सच्चा हादसा: वो कौन थी-1
तीन चार किलोमीटर चलने के बाद मैंने देखा कि सड़क से कुछ दूर पर कोई खड़े होकर शायद आवाज़ दे रहा है।
मैं रुक कर देखने लगा तो पता चला कि 18-20 साल की एक लड़की जो सफ़ेद रंग का सूट पहने थी, मुझे रोक रही थी। बहुत आश्चर्य के साथ मैं रुक गया क्योंकि उस इलाके में शाम 5 बजे के बाद कोई लड़की शायद ही बाहर निकलने की हिम्मत करती थी क्योंकि डकैतों और भूतों के किस्से आम थे। फिर भी मैं रुक गया, दो ही पल में वो मेरे पास आ गई। मैंने गौर किया कि वो औसत से कुछ जल्दी ही मेरे पास आ गई थी जितना मैं एक इंसान से उम्मीद करता था। मुझे एक पल को लगा कि कैसे कोई इतनी जल्दी इतनी दूर से पास आ सकता है।
खैर मैंने उससे पूछा- कौन हो और इतनी रात में यहाँ क्या कर रही हो?
तो उसने धीरे से जवाब दिया कि मैं एक बारात में आई थी, बस रुकी तो मैं अपनी सहेलियों के साथ उतर कर एक नंबर करने आई थी। लड़कियाँ काफी थी, मुझे लगा देर लगेगी तो मैं थोड़ा घने पेड़ों की तरफ चली आई। थोड़ी देर में मैंने देखा कि बस जा रही है। मैं भागी और आवाज़ भी दी पर किसी ने सुना ही नहीं।
मैंने पूछा- बारात कहाँ गई है?
तो उसने उस जगह से 4 किलोमीटर और आगे पड़ने वाले एक गाँव का नाम बताया ‘छोटा पुरवा’ जो मुख्य सड़क से थोड़ा हट कर था। इस से पहले कि मैं कुछ और कहता, उसने कहा- आप अगर मुझे वहाँ तक छोड़ दें तो मेहरबानी होगी।
मैंने कहा- ठीक है, मैं तुम्हें छोड़ते हुए चला जाऊँगा।
वो मेरे आगे साइकिल के डंडे पर बैठ गई और हैंडल पकड़ लिया। जब मैंने साइकिल चलाना शुरू किया तो मेरा ध्यान गया कि इसका फिगर तो वैसा है जैसा शायद ही किसी लड़की का होता है यहाँ तक कि हीरोइनों का भी नहीं देखा। बहुत ही पतली कमर, अच्छा भरा सीना और तीखे नैन नक्श, जैसा अप्सराओं को दिखाते हैं कैलेंडर में।
इसी बीच मुझे महसूस हुआ कि उसके सीने का बायां हिस्सा मेरी बाजू से छू रहा है, मेरे रोयें खड़े होने लगे! न जाने क्यों लग रहा था जैसे उसे भी ये पता है और वो मुस्कुरा रही है।
दो मिनट तक हम चुपचाप चलते रहे, फिर उसने कहा- कोई छोटा रास्ता नहीं है क्या?
मुझे अचानक याद आया कि बगीचे से होकर एक रास्ता उस गाँव की तरफ जाता है पर इस समय तो वो बिल्कुल सुनसान ही होगा, मैंने बिना कोई जवाब दिए साइकिल घुमा दी और एक मिनट बाद उसे कहा- तुम शायद पहले भी आ चुकी हो?
तो उसने मुस्कुरा कर मेरी ओर देखा और कहा- हाँ मेरा ननिहाल है इस गाँव में तो हर साल आती हूँ।
एक छोटे से ढलान के ऊपर से नीचे आना था, अभी हमारी साइकिल को और दूर बगीचे की परछाइयाँ दिखने लगी थी। ढलान से उतरने के पहले ही उसने कहा कि उसे बैठने में तकलीफ हो रही है, वो पीछे कैरियर पर बैठना चाहती है।
मैंने साइकिल रोक कर उसे पीछे बिठा लिया। जैसे ही मैंने फिर साइकिल आगे बढ़ाई, ढलान शुरू हो गया। झटके की वजह से उसने पीछे से मुझे जोर से पकड़ लिया तो उसका सीना मेरी पीठ से बिल्कुल चिपक गया। मेरे चौंकने की वजह से साइकिल फिसल गई और हम दोनों ढलान खत्म होते होते गिर पड़े। मैंने जल्दी से खड़े होकर उसे उठाने की कोशिश की। अँधेरे में अंदाजा नहीं मिला तो मेरा हाथ उसकी बाजू के बजाये उसके सीने पर पड़ गया और उसी कोशिश में उसकी बायीं चूची मेरे हाथ से दब गई। मैंने फ़ौरन अपना हाथ अलग किया।उसने न तो कुछ कहा न ही कुछ प्रतिक्रिया दी। ढलान के नीचे से ही बगीचे के झुरमुट थे, हम एक झुरमुट के पास ही थे। अचानक उसे न जाने क्या हुआ उसने आगे बढ़ कर मुझे जोर से गले लगा लिया।
मैं घबरा कर उससे खुद को छुड़ाने वाला ही था कि वो बोल पड़ी- बस दो मिनट रुको!
मैं रुक गया। थोड़ी देर वो ऐसे ही चिपकी रही फिर मेरा संयम टूटने लगा। अगले ही पल मेरे हाथ उसकी पीठ पर धीरे धीरे पहुँच गए। अचानक ऐसा लगा कि कोई गाड़ी इस ओर आ रही है, यह देख कर मैंने उसे कहा- यह सही नहीं है!
उसने रास्ते के दूसरी तरफ के झुरमुट को देख कर कहा- चलो, वहाँ चलते हैं।
मैं जैसे सम्मोहित हो गया था, मैंने साइकिल उठा ली और चल पड़ा। वो मेरे बगल में ही चल रही थी और मेरी शर्ट का हिस्सा थामे हुए थी। घने झुरमुट में बीच एक बड़ा सा सपाट पत्थर पड़ा था, यह देख कर मुझे हैरानी हुई क्योंकि वहाँ इतना बड़ा पत्थर कैसे आया, यह मुझे समझ नहीं आया। खैर मैंने हाथ लगा कर देखा तो पत्थर पर धूल जैसा भी कुछ नहीं था। वो मुझसे पहले पत्थर पर बैठ गई। पत्थर लगभग कुर्सी की ऊँचाई का ही था, मैं उसके बगल में खड़ा हो गया तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर बिठा लिया और तभी गाड़ी की तेज रोशनी हमारे सर के ऊपर से गुज़र गई।
उसने कहा- बच गए!
मैं मुस्कुरा दिया। हल्की चांदनी में उसका गेहूँआ रंग सांवला लग रहा था। मैंने कुछ कहना चाहा तो उसने मेरे होंटों पर हाथ रख दिया और बोली- शादी 11 बजे तक शुरू होगी, अभी वक्त है।
मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था क्योंकि जो कुछ भी हो रहा था, वो समझ से परे था। मैं फिर से खड़ा हो गया और वो भी मेरे साथ खड़ी हो गई। इस बार मुझे लगा जैसे उसकी लम्बाई कुछ ज्यादा है। मैंने ध्यान नहीं दिया और उसे देखता रहा।
रोशनी बहुत कम थी फिर भी सब कुछ थोड़ा थोड़ा दिख रहा था। वो मेरे और पास आ गई, मेरी शर्ट के ऊपर के दो बटन खोल कर उसने अपने होंठ मेरे सीने पर रख दिए। मेरे होश उड़ गए, उसके होठों की नरमी मैं कई मिनट तक अपने सीने पर बर्दाश्त करने की कोशिश करता रहा।
कुछ देर में उसने अपने दांतों का इस्तेमाल करना भी शुरू किया। मेरे निप्पलों को धीरे धीरे चूसने के साथ अब वो हल्के से काट भी रही थी और एक हाथ से पूरे सीने को सहला रही थी। शायद मेरे सीने पर नए आये हल्के बाल उसे अच्छे लग रहे थे, उसका दूसरा हाथ मेरी पीठ पर था। अचानक उसने अपना सर उठाया मेरे सर के पीछे अपना एक हाथ रख कर मेरे सर को अपने चेहरे पर झुका लिया और मेरे होंठ अपने मुँह में भर लिए, दो मिनट यूँ ही मेरे होंठ चूसती रही और कमर से मुझे जोर से पकड़ लिया।
मेरे हाथ उसकी पूरी पीठ सहला रहे थे, अचानक मुझे उसके पीठ पर उसके कमीज की चेन मिल गई, मैंने चेन नीचे खींच दी। कमर के नीचे तक सूट के दो हिस्से हो गए। पीठ की नरमी हाथों में पाकर मैं धन्य हो गया।
उसने तब तक मेरी शर्ट के सारे बटन खोल डाले थे, गर्मी के दिन शुरू हो चुके थे तो मैंने शर्ट के अंदर कुछ पहना नहीं था। बड़ी ही अदा के साथ उसने अपनी दोनों बाहों से अपना कमीज अलग कर दिया और ऊपर खींच कर उतार लिया।
इससे पहले कि मैं कुछ देख पाता वो सूट उतारते हुए मेरी तरफ पीठ कर के खड़ी हो गई और कमीज पत्थर पर रख दिया जो बिल्कुल बगल में था। मैंने भी अपनी शर्ट साथ ही रख दी। आगे बढ़ कर जैसे ही उसके पीछे से अपने हाथ कमर पर रखे उसने सिसकारी ली। मैंने अपने दोनों हाथ उसके पेट से होते हुए सीने तक पहुँचा दिए। धीरे से उसने मुझे रास्ता दिया और अपने हाथ थोड़े से ऊपर उठा लिए मैंने उसके सीने के दोनों उभारों अपने हाथों में भर लिए और अपने होंठ उसकी गर्दन पर रख लिए।
वो धीरे से बोली- चूमो ना! फिर मेरा नंबर है।
अचानक मुझे याद आया कि चेन खोलने के बाद मैंने पीठ पर ब्रा की स्ट्रिप महसूस की थी पर उसे ब्रा उतारते नहीं देखा बस कमीज उतरा और मेरे हाथ उसकी नंगी गोलाइयों पर हैं। यह बात मुझे समझ नहीं आ रही थी, दूसरी तरफ मैं सोचना भी नहीं चाह रहा था। अपने सीने पर मेरे हाथों के ऊपर हाथ रख उसने पूछा- तुम्हें ये कैसे लगे? अच्छे लगे?
मेरे मुँह से निकल गया- बड़े बड़े और सख्त!
वो बोली- दबा के देखो! यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।
मैंने पहले 2-3 बार लड़कियों के सीने पर अच्छे से हाथ फेरा था पर ऐसा कड़ापन और सुडौल गोलाई पहले महसूस नहीं की थी। अचानक ही वो आगे बढ़ी और पत्थर पर सीधी लेट गई। मैं उसके ऊपर झुक गया, होंटों पे होंठ और सीने पर हाथ रख कर!
वो पत्थर इस ऊँचाई का था कि मुझे सब कुछ बड़ा सहज लगा। उसके दोनों पैर मेरे पैरों के बगल में फैले थे। मेरा हथियार उसकी जांघों के जोड़ के बीच किसी गर्म चीज़ लगा हुआ था जिसकी गर्मी मुझे साफ़ महसूस हुई, वो भी मेरे पैंट के ऊपर से! मैं बेहिसाब उसके होंठ चूस रहा था और उसकी दोनों गोलाइयों को जी भर कर मसल रहा था।
धीरे से उसने अपनी दोनों टाँगें मेरे कमर के इर्द गिर्द लपेट ली और मुझे कस कर जकड़ लिया। एक लड़की में इतनी ताकत की मुझे उम्मीद नहीं थी जितनी जोर से उसने मुझे पकड़ा हुआ था। फिर उसके नाखून मेरे पीठ पर चुभने लगे। उसकी जीभ मेरे होंटों से होती हुई मेरे मुँह में आ गई, मैं उसकी मिठास के मज़े ले रहा था पर नाखून इतना ज्यादा चुभ रहे थे कि मज़ा कम दर्द ज्यादा था।
कहानी जारी रहेगी।
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कहानी का अगला भाग: वो कौन थी-2
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