वो कौन थी

(Vo Kaun Thi)

लेखक : मुन्ना (मुन्नेराजा)

दोस्तो,

एक लम्बे अंतराल के बाद आपसे फिर मुखातिब हूँ, एक अचरज-कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ !

पता नहीं किसी से मेरे बारे में सुनकर मेरे पास एक महिला का फोन आया और उन्होंने मुझसे बोला कि वो किसी जरूरी कार्य से मुझसे मिलना चाहती हैं।

मेरे पूछने पर बोलीं कि फोन पर बताना तो संभव नहीं है, आप यदि मुझे समय दे सकें और अपना पता बता दें तो आपकी मेहरबानी होगी, मैं काफ़ी परेशान हूँ और इसलिये आपसे मिलकर बात करना चाहती हूँ।

फिर मेरे और पूछने पर बताया- मुझे मेरे ही किसी मिलने वाले ने आपसे मिलने को कहा है, जो आपको बहुत अच्छे से जानते हैं …

मैंने बहुत पूछा कि कौन हैं आपके मिलने वाले?

तो जवाब मिला कि गोपनीयता के कारण वो नाम नहीं बताना चाहती …

यह सारा घटना-क्रम दिसम्बर और जनवरी महीने का है।

एक स्त्री के मुँह से मेहरबानी और परेशानी में सहायता की बात से मुझे तकलीफ हुई और मैंने उनको अपने कार्यस्थल का पता देते हुए मिलने का समय बता दिया।

सटीक नियत समय पर एक आकर्षक महिला का मेरे ऑफिस में पदार्पण हुआ, उन्होंने मुझसे पूछा- मुन्ना जी !! ??

मैंने हाँ में गर्दन हिलाई और उनको मेरी मेज़ के विपरीत कुर्सी पर बैठने का संकेत किया।

वो कुर्सी पर विराजमान हुईं और मेरे ऑफिस का मुआयना करती हुई बोलीं कि समस्या मेरी व्यक्तिगत है और मेरे पति से सम्बंधित है।

मैंने मेरी काउंसलर को मेरी कुर्सी पर आने को कहा और चाय वाले को चाय बोलने को कहकर, उनको लेकर ऑफिस के अन्दर के हिस्से में चला गया।

महिला और मैं आमने सामने कुर्सी पर बैठ गए, वो कुछ देर तक मुझे हौले हौले ताकती रहीं जैसे कि तौल रही हों कि कुछ बताएं या नहीं।

फिर बोली- मेरा नाम रेखा है और मैं जयपुर के ही बाहरी इलाके जगतपुरा में रहती हूँ। मेरी शादी आज से दो साल पहले हुई थी। मेरी ननद की शादी हो चुकी है और अब मेरे परिवार में मेरे सास-ससुर हैं और हम हैं, अच्छा घर बार है, पति देखने में अच्छे हैं और परिवार के सभी सदस्य मिल जुल कर रह्ते हैं !

इतना कहकर वो चुप हो गई … तो मैंने बात को आगे चलाने के मकसद से बातचीत शुरु की।

मैंने कहा कि यह सब तो बहुत अच्छी बात है फ़िर आपको दिक्कत कहाँ है ?

इस सबके बाद भी वो मुझे टुकुर टुकुर ताकती रही, उनके मुँह से आगे के बोल नहीं निकल रहे थे …

इस पर मैंने उनको समझाया कि यदि आप कुछ बोलेंगी नहीं तो आपके आने का मकसद भी पूरा नहीं होगा और मैं भी आपकी कोई मदद नहीं कर पाउंगा।

इस पर उनकी नजर नीचे हो गई और एक लम्बी सांस छोड़ते हुए बहुत हलके शब्दों में बोलीं – दिक्कत मुझे मेरी विवाहित जिन्दगी से है …

मेरे मुँह से सिर्फ़ इतना निकला- ओह …

कुछ समय हम दोनों ही चुपचाप बैठे रहे और गनीमत हुई कि उस वक्त चायवाला चाय दे गया तो उन्होंने मुझसे चाय लेने को कहा तो मैंने उनको बताया कि मैं चाय नहीं पीता हूँ, प्लीज आप चाय लीजिये …

चाय पीने के दौरान वो बहुत हद तक सामान्य हो गई थीं और हम दोनों में छोटी मोटी घर बार की इधर उधर की बातें होती रहीं …

चाय खत्म करने के दौरान हम दोनों में उनकी परेशानी वाले विषय पर और कोई बात नहीं हुई।

चाय खत्म करने के बाद एक बार फ़िर वो मेरा मुँह देखने लगी तो मैंने कहा कि आप अपने वैवाहिक जीवन में किसी समस्या के बारे में मुझसे कोई बात करने वाली हैं और यह मानिये रेखा जी कि यदि आप चुप बैठ जायेंगी तो मैं अन्तर्मन की बातें जानने वाला नहीं हूँ कि उसके बाद मैं आपसे सीधे ही आपकी समस्या पर आपसे बात करने लग जाउंगा या कोई समाधान बताने लग जाउंगा … इसलिये प्लीज आप बेहिचक अपनी बात शुरु कीजिये … वैसे तो कहीं ज्यादा अच्छा होता कि आप अपने पति के साथ आतीं तो बात करने में हिचक वाली कोई बात नहीं होती और जहाँ तक मैं समझ पा रहा हूँ आप जिस प्रकार से हिचक रही हैं उससे आपकी समस्या सेक्स से सम्बन्धित कोई परेशानी होनी चहिये, लेकिन असली बात तो आप ही मुझे बतायेंगी …

वो फ़िर नीचे जमीन की तरफ़ देखने लगी और बोलीं कि आप कहते तो सही हैं कि यह बात करनी तो मेरे पति को ही चाहिये थी लेकिन क्या करूं वो तो कहीं आने जाने को तैयार ही नहीं हैं … , शादी के बाद जो लड़की के अरमान होते हैं वो उनमें काफ़ी हद तक तो अच्छा घर बार और परिवार ही होते हैं लेकिन … … फ़िर वो लम्बी सांस छोड़ते हुए चुप हो गई।

इस पर मैंने कहा- आप सही कह रही हैं शादी तो शादी, बिना शादी के भी सेक्स बहुत हद तक सभी जीवों के जीवन में बेहद महत्व रखता है।

तो वो बोलीं कि एकदम ठीक बात कह रहें हैं आप, मेरे पति अच्छे बदन के मालिक हैं लेकिन सेक्स करते समय मुझसे पहले वो … बल्कि यों कहें कि जल्दी ही … …

मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया – ओ ओ ओह ह ह्ह …

लेकिन यह बात तो नितान्त ही आपके पति से सम्बन्धित हैं तो मैं आपकी सहायता किस प्रकार से कर सकता हूँ ??

तो वो एक बार फ़िर से मेरे मुँह को ताकते हुए बोलीं- मैं इसी सम्बन्ध में तो आपसे सलाह और सहायता लेने आई हूँ, वैसे तो मैंने मेरे पति को सलाह दी कि वो क्यों नहीं किसी डाक्टर से सलाह लेते हैं तो वो बहुत हिचक के बाद तो माने और बड़े अस्पताल के जाने-माने डाक्टर के पास गये,

उनसे उनकी बहुत विस्तार से बात हुई और मेरे पति ने डाक्टर की सलाह के अनुसार भी दवा लीं और कन्ट्रोल करने की कोशिश की लेकिन इन सबके बाद भी वो एकदम से बेहद उत्तेजित हो जाते हैं और एकदम से खारिज हो जाते हैं, महीने पन्द्रह दिन में एकाध बार को छोड़ दें तो मैं यूं ही रह जाती हूँ … यानि ये मान लें कि दो साल में कोई चालीस पचास बार बस … जबकि मेरी दो सहेलियां हैं उनको तो अकसर होता है कभी कभी को छोड़ कर … , मैंने मेरे पति को निराश नहीं होने को कहा और मेरे कहने से उन्होंने और दो तीन डाक्टर को और दिखाया लेकिन उनकी निराशा बढ़ती ही गई और अब तो हालत और भी खराब हैं … अब तो वो खुद के सेक्स के लिये भी पहल नहीं करते और मैं करती हूँ तो मेरी तरफ़ देखकर कहते हैं कि रानी तुम भी कहाँ मुझ जैसे नामर्द के साथ फ़ंस गई हो … काश मैं तुमको सन्तुष्ट कर पाता … ! वो अब ज्यादा और ज्यादा डिप्रेशन में रहने लगे हैं … जब सहन नहीं होता तो डिप्रेशन की गोली ख़ा लेते हैं … वो मुझसे बहुत प्यार करते हैं …

मैं बोला- एक बार मैं उनसे मिलना चाहूँगा, हो सकता है कि कोई सही रास्ता निकल आये !

तो रेखा जी ने कहा- मेरे खयाल से वो आज के हालात को देखते हुये मुश्किल से ही तैयार हों, लेकिन मैं कोशिश ही कर सकती हूँ।

मैंने जवाब दिया कि बिना किसी प्रयास के हताश होने से कभी भी मन्जिल नहीं मिलती है, हमें हिम्मत नहीं हारनी चाहिये।

रेखा जी- तो मैं आपके पास अब कब आऊं?

मैं- कल आ जाइये !

रेखा जी- ठीक है, मैं कल घर से निकलते समय आपको काल कर दूंगी।

अगले दिन रेखा जी अपने पति के साथ नियत समय पर हाजिर हुईं । मैंने मन ही मन सोचा कि ये बन्दी हैं तो समय की एकदम से पक्की।

फ़िर मैंने अपनी काउंसलर को चाय वाले को आवाज देने को कह कर आफ़िस के अन्दर के हिस्से में रेखा जी और उनके पति को लेकर आ गया।

रेखा जी ने अपने पति से मेरा परिचय करवाया, हमने एक दूसरे का अभिवादन किया और बिना समय व्यर्थ किये चर्चा चालू की और जैसा कि रेखा जी ने अपने पति के लिये कहा था, मेरे हर सम्भव समझाने पर भी वो बन्दा कुछ भी मानने के लिये तैयार नहीं हुआ एक दम से हताश और इतना निराश व्यक्ति मैं पहली बार देख रहा था।

उस बन्दे ने साफ़ साफ़ कहा- रेखा चाहे मुझे सेक्स करने दे या नहीं … बस ये मेरे साथ रहे इतना ही बहुत है ! मैं इसके बिना जी नहीं सकता और ये अपनी यौन-संतुष्टि के लिये जिसे भी चुन ले मुझे कोई एतराज नहीं होगा, बस ये खुश रहे, मुझ में जो कुछ कमी है उसके लिये मैं हर सम्भव कोशिश कर चुका मुन्ना जी, अब तो जब कुछ प्रयास करने की सोचता हूँ तो जैसे मैं अपने पर अत्याचार कर रहा हूँ। हर सम्भव प्रयास के बाद भी असफ़लता से मैं … खुद और ज्यादा खराब हो जाता हूँ … मुझे जिस भी किसी ने आपके बारे में बताया था, आपके लिये कहा था कि आप से मैं बेखौफ़ बात कर सकता हूँ … । इसलिये आया आपके पास … मैं जानता हूँ कि मैं … मुझ में क्या कमी है … , और मैं ये भी जानता हूँ कि सेक्स का जीवन में क्या महत्व है। इसलिये मुझे कतई एतराज नहीं है यदि रेखा किसी को अपना सेक्स साथी चुन ले … , लेकिन मैं हर किसी के साथ तो बरदाश्त नहीं करूंगा … , मैं नहीं चाहता कि ये एक सेक्स की भूखी लड़की के रूप में कुख्यात हो जाये … , ये सोच समझ कर फ़ैसला करे …

अब मैं एक बेहद ही समझ्दार और खुले दिल वाले आदमी के सामने अपने आप को पा रहा था।

चाय पी कर रुख्सत होने के बाद मैंने अपना दिमाग घूमते हुए पाया … , मैं अपना सिर पकड़ कर बैठ गया और सोचने लगा कि रेखा जी किस परिस्थिति से निकल रही हैं और वो बेचारा उनका पति … उफ़्फ़् … हे भगवान् … …

करीब एक घन्टे बाद रेखा जी का फ़ोन आया और उन्होंने मुझसे माफ़ी मांगते हुए एक बार फ़िर से अकेले मिलना चाहा, अब मैं अवाक रह गया कि रेखा जी अब मुझसे क्यों मिलना चाह्ती हैं … अब बाकी क्या है … ?

लेकिन उत्सुकता के मारे अब मैंने उनको तुरन्त मिलने का समय दे दिया …

और फ़िर एक बार वही सही समय पर वो हाजिर थीं।

अब बातचीत में कोई लाग लपेट की गुंजाईश नहीं थी। सीधे बात चीत शुरू हुई और मैंने लगभग हथियार डाल दिये और कहा कि आपके पति मुझे बहुत समझदार तो लगे लेकिन वो बहुत डिप्रेशन में हैं और वो खुद जब किसी इलाज के लिये राजी नहीं हैं तो अब क्या किया जा सकता है …

रेखा जी बोलीं- किया तो अब भी बहुत कुछ जा सकता है मुन्ना जी …

मैं हैरान होकर उनके मुँह की तरफ़ ताकने लगा, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि रेखा जी की बात का क्या मतलब है?

रेखा जी बोलीं- प्लीज मुन्ना ज़ी आप मुझे एक तो रेखा जी कहने के स्थान पर रेखा ही बोल देंगे तो मुझे अच्छा लगेगा, … … फ़िर वो एकदम से चुप होकर नीचे देखने लगी

तो मैंने कहा – हाँ और दूसरी बात ?

फ़िर वो उसी तरह से बैठी रही तो मैंनें कहा कि रेखा जी … मेरा मतलब रेखा … यों अगर चुप रहोगी तो इस समस्या का कोई हल नहीं निकलने वाला … और आपको अब तक तो मुझसे हिचक निकल जानी चाहिये … आपको यदि अब तक भी मुझ पर विश्वास नहीं आया हो तो मेरी ही कमजोरी माननी होगी।

अब रेखा जी ने अपना सिर ऊपर उठाया तो उसमें उलाहने का भाव था और आंखों की कोर कुछ गीली …

मेरा मन कुछ गीला हो गया।

रेखा जी ने कहा कि यदि आप पर विश्वास नहीं होता तो मैं यहाँ यों आपके साथ इस विषय पर जो नितांत गोपनीय और व्यक्तिगत माना जाता है, आपसे बात कर रही होती क्या?

तो मैंने कहा- रेखा जी ओह रेखा प्लीज … सोरी यार … ओह सोरी सोरी … … आई मीन

तो रेखा जी के होटों पर एक जुम्बिश आई और बोली- सोरी की कोई बात नहीं … , आपने मुझे दोस्ती के काबिल समझा ये बहुत बड़ी बात है और आप यदि इसी तरह से मुझसे बात करेंगे तो मैं अपनी बात ठीक से कह पाऊंगी।

मैं बोला- ठीक है रेखा … तुम्हारे सारे खून माफ़ … मतलब अपनी इस समस्या के लिये मुझसे खुल कर बात करो … और यह मत सोचना कि मैं कुछ बुरा मानूंगा …

अब रेखा ने मुझे देखा और बोली- मुन्ना जी आपका धन्यवाद, अब आप मुझे मेरी इस अगली लाइन के लिये माफ़ करना … … आपका मेरे बारे में क्या खयाल है … फ़िर हाथ उठाकर मुझे बोलने से रोकते हुए कहा कि मेरा मतलब है कि क्या मैं आपको मेरे व्यव्हार से, मेरे चालढाल से, मेरी बातचीत करने के तरीके से कोई चालू या बाजारू टाइप की या टुच्ची लगती हूँ …?

मेरी गरदन ना में हिली … उसकी आंखों से दो बूंद छलक ही पड़ी जो शायद बहुत समय से बाहर आने को बेचैन थी …

आप भी क्या सोचते होंगे कि एक स्त्री इस प्रकार से सेक्स के बारे में आपसे अकेले में बात कर रही है …

तो मैंने कहा- रेखा, यदि एक चालू औरत आई होती तो यहाँ औफ़िस के अन्दर के हिस्से में आना तो दूर मैं बात तक करना गवारा नहीं करता यार …

रेखा बोली- थैंक्स मुन्ना जी …

मैं बोला- अब आगे भी बोलो क्या चाह्ती हो …

रेखा- मुझे गलत तो नहीं समझोगे ना … …

मैं- अब लिख के दूं क्या … और ये कहते हुए मैं ने अपनी जेब से पेन निकालने का उपक्रम किया …

रेखा- नहीं रहने दीजिये … !

मैं- तो बोलो अब …

रेखा- अब मुझे बताओ कि मुझे इस स्थिति में क्या करना चाहिये, या तो मुझे कोई दवा बताओ ताकि सेक्स मुझे परेशान ना करे और या फ़िर इसका कोई समाधान …

मैं- दवा की बात तो बेकार है, पैंतीस तक जाते जाते बूढ़ी हो जाओगी और चालीस तक भद्दी भी, हाँ इसके दूसरे इलाज यह हैं कि इसके लिये खिलौने मिल जाते हैं और या फ़िर आप अपने रिश्ते या दोस्ती में किसी को अपना साथी बना लो … , जैसा कि आपके पति ने कहा भी कि यदि साथी बार बार नहीं बदलोगी तो उनको कोई दिक्कत नहीं है …

रेखा- खिलौने तो बेकार हैं … मुझे नहीं पसन्द, अब रही किसी मेरे साथी की बात … तो बताओ कि मैं किसको अपना साथी बनाऊं … , मेरे कोई सगा देवर नहीं है … , और हो या नहीं … हो, ये क्या विश्वास करूं कि मेरा कोई साथी मुझसे गलत फ़ायदा नहीं उठायेगा, यदि वो मेरी बात को अपने दोस्तों में उछालता है या मुझे अपने किसी और मिलने वाले से जबरदस्ती सेक्स करने के लिये कहता है तो मैं तो मैं, मेरे पति और परिवार की इज्जत का क्या होगा, कैसे विश्वास करूं किसी पर …

मैं- कहती तो सही हो लेकिन इसका और कोई क्या इलाज बताऊं, फ़िर कुछ नहीं हो सकता …

रेखा- हो सकता है … बिलकुल हो सकता है … आप मेरे साथी बन जाओ …

जैसे अचानक कोई बम का धमाका मेरे कानों में हुआ हो …

मेरी आंखें फ़टी रह गई … और मैं अवाक रेखा को देखने लगा … … …

रेखा- सोरी मुन्ना जी …

अब मैं सम्हल चुका था, बोला- नहीं रेखा सोरी की कोई बात नहीं … , वैसे भी मैंने ही तुमको अपनी बात कहने को कहा है … तो तुम बिलकुल बेहिचक कह सकती हो … …

फ़िर कुछ पल ठहर कर मैं बोला- तुम मुझ पर कैसे विश्वास कर सकती हो? अभी दो दिन से ही तो जानती हो … , फ़िर ये तुम किस प्रकार से कह सकती हो कि मैं तुम्हारी सन्तुष्टि में कामयाब हो जाउंगा और तुमको एक और बार जिल्लत नहीं उठानी पड़ेगी वो भी अपने सतीत्व की बलि देकर … … फ़िर ये बताओ कि मैं … मेरे पास तो यदि कोई भी इस प्रकार की समस्या लेकर आये तो क्या मुझे सभी से सम्बन्ध स्थापित कर लेने चाहियें? और रेखा अब मेरी बात का बुरा मत मानना … मैं भी तो तुमको अभी दो ही दिनों से जानता हूँ, पहले देखा तक नहीं … मैं कैसे तुम पर विश्वास करूं … तुम बताओ कि तुम किस के रेफ़रेन्स से मेरे पास आई हो …

रेखा- हाय मर जावां, क्या पोइन्ट्स निकाले हैं … अब सुनो … मेरे विश्वास की बात ये है कि जिस भी किसी ने आपके बारे में बताया है मुझे उसकी बातों पर पूरी तरह से विश्वास है कि आप गलत आदमी नहीं हो … मैं उन पर अविश्वास कर ही नहीं सकती, और ये आपकी अभी अभी कही आपकी बातें ही साबित करती हैं वरना कोई और होता तो अब तक तो फ़ेवीकोल लगा कर मुझसे चिपक गया होता … और मुन्ना जी ये भी मेरा विश्वास ही है कि अब के सेक्स में सफ़लता ही होगी और मुन्ना जी प्लीज मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ मुझसे रेफ़रेन्स का नाम मत पूछिये … आप भी गोपनीयता का मतलब जानते हैं … हाँ जान पहचान नई है तो आप मेरे घर आईये हम फ़िर एक दूसरे से कुछ बार मिलते हैं … …

मैंने वातावरण को थोड़ा हलका करने की कोशिश की- इतना मिलने जुलने से तो मेरे चाय, ठन्डे वाले का खर्चा बहुत बढ़ जायेगा …

फ़िर टालने के लिहाज से बोला- रेखा देखते हैं … सोचेंगे … लेकिन अपने पति से उनकी इच्छा के अनुसार और अपनी तरफ़ से रुचि दिखा कर सेक्स करती रहो प्लीज…

और इस प्रकार से रेखा को उस समय तो टाला और उसके जाने के बाद मैं औफ़िस के अन्दर के हिस्से में ही अपना सिर दबा कर बहुत देर तक बैठा रहा।

लगभग एक महीना निकल गया … रेखा के फ़ोन हर पांच सात दिनों में आते रहे और एक बार उसने बहुत जिद करके मुझे अपने घर बुलाया।

मैं उसके घर गया … , क्या शानदार घर है … कार है … किसी भी लड़की का सपना …

रेखा और उसके पति ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया अपने मां-पापा से मिलवाया मुझे अपना दोस्त बता कर … मैंने उनका अभिवादन किया … ।

फ़िर हम लोग उनके ड्राइन्ग रुम में आ गये …

पति बीच बीच में हम दोनों को अकेला छोड़ कर भी चले जाते थे … जाने क्या सोचकर … इस बीच रेखा ने मुझे खुद का अपने उसी ब्लड बैंक के द्वारा ब्लड डोनेशन का सर्टिफ़िकेट दिखाया जिसमे मैं भी डोनेट करता हूँ … छः बड़ी बीमारियों की मुफ़्त जांच के विवरण भी थे जिनमें एच आई वी और हेपेटाइटिस भी शामिल थे … सब के सब सामान्य … मैंने मन ही मन सोचा कि जो भी कोई इनके मिलने वाले हैं वो मुझे भी बहुत अच्छे से जानता है, इसमें कोई दो राय नहीं अन्यथा मैं भी ब्ल्ड डोनर हूँ, इसका पता किसी सामान्य को तो नहीं ही होगा … कौन हो सकता है वो?

इसी दौरान मेरे एक अच्छे व्यवसायिक दोस्त के घर किसी फ़न्क्शन का बुलावा आया, वो अजमेर का रहने वाला है और मेरे अच्छे मिलने वालों में से है। बन्दे ने बहुत प्यार से और मनुहार से पांच दिन बाद फ़ंक्शन में आने का न्योता दिया … टालने का सवाल ही पैदा नहीं होता था, मैंने बन्दे को कहा कि मैं फ़न्क्शन में जरूर आऊंगा लेकिन हो सकता है कि अजमेर तक पहुंचने में रात के नौ बज जायें तो बन्दे ने कहा कि यार एक दिन तो थोड़ा जल्दी ओफ़िस छोड़ भी दोगे तो क्या हो जायेगा … कोशिश करके आठ बजे तक आ जाओ … ।

तो मैंने कहा कि भाई कोशिश तो मेरी ये ही रहेगी लेकिन बाई चान्स थोड़ा समय इधर उधर हो जाये तो प्लीज … ।

मैं नियत दिन अजमेर पहुंचा,(अजमेर जयपुर से 130 कि मी है) गीत संगीत का कर्यक्रम चल रहा था, मुझे भी खींच कर स्टेज पर ले गया, थोड़ा डांस वगैरह हुआ फ़िर खाना आदि चला … खाना समाप्त करते करते रात के बारह बज गये। मैं इन्तजाम देखता रहा …

बन्दे ने मुझे कहा कि मुझे तो घर तक पहुंचने में और थोड़ा सा समय लगेगा, यदि आप चाहो तो घर तक पहुंचवा देता हूँ तो मैंने मना कर दिया और कहा कि साथ ही चलेंगे, हिसाब किताब कर के घर तक जाते जाते लगभग एक बज रहा था। बन्दे ने मुझे कहा कि देखो थोड़ा सा कंजेशन है यार, यदि एड्जस्ट कर सकते हो तो ठीक है नहीं तो किसी होटल में व्यवस्था कर देता हूँ।

तो मैंने कहा कि कैसी बात करते हो यार … चार पांच घन्टे की बात ही तो है, मैं एड्जस्ट कर लूंगा … प्लीज … ।

यह कह कर मैं कमरों में देखने लगा तो एक कमरे में सो रहे जन के बाद कमरे की दीवार के बिलकुल साथ एक के सोने लायक खाली जगह दिखी तो मैं रजाई लेकर वहीं घुस कर सो गया। सभी फ़र्श पर दरी, गद्दे लगाकर सोये हुये थे कोई रजाई में या कम्बल में … जरा सी देर में ही बत्तियां बंद हो गईं और बाहर बरामदे में एक नाइट लैम्प जलता रहा।

थके होने से जल्दी ही मैं निद्रा देवी की गोद में चला गया । अचानक से मुझे नींद की तन्द्रा में लगा कि मेरे दाहिनी तरफ़ किसी नरम हाथों ने मेरे हाथों को हौले से सहलाया तो मुझे रोमांच हो आया … क्या प्यारा सपना है … फ़िर मेरे हाथ को उन हाथों ने उठाकर अपने बोबों से छुआया … तो मेरे लंड में अन्गडाई होने लगी ।

यह सब मैं पहले भी झेल चुका था … सपने में किसी स्त्री का साथ और स्खलन … यानि कि सीधे सीधे कहें तो स्वप्न दोष और मुझे इस में कभी कोई परेशानी नहीं हुई थी … सेक्स के हर रूप का अपना मजा है, इसका भी है … इसलिये मैंने सपने की दुनिया से बाहर आने में कोई रुचि नहीं दिखाई, होने दो … एक शानदार रोमान्च होगा …

फ़िर वो महिला धीरे से मेरी रजाई में सरक आई और मुझसे चिपक गई और अपना सिर उठा कर अपने होंट मेरे होंटों पर रख दिये तब जाकर मेरी तन्द्रा भंग हुई और मैंने अपने बीच में फ़ंसे हाथ से उसको दूर धकेलने का प्रयास किया … तो उस ने मेरे कान में धीरे से फ़ुसफ़ुसाया कि प्लीज यदि आपने अभी कोई और हरकत की या जोर से आवाज निकाली तो मैं मुसीबत में फ़ंस जाऊंगी, कोई जाग गया तो मेरी इज्जत उतर जायेगी … प्लीज प्लीज शांत रहिये और मेरी सहायता कीजिये …

अजीब स्थिति थी … कुछ बोल नहीं सकता था, उसकी इज्जत का सवाल था … और साथ में मेरे दोस्त की भी …

मैंने उसकी तरफ़ करवट ली और उसके कान में फ़ुसफ़ुसाया कि और यह जो तुम कर रही हो उस से तुम्हारी इज्जत में बढ़ोतरी होगी क्या?

तो वो फ़ुसफ़ुसाई कि यह बात तो हम फ़िर और बाद में कर लेंगे और आप जो भी कुछ कहोगे वो मैं पूरी तरह सुनूंगी … मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ, आपके पैर पकड़ती हूँ … ये कह कर अपना धड़ मोड़ कर हाथ मेरे पैरों की तरफ़ ले जाने लगी तो मैंने उसको अपने हाथों से ऊपर की तरफ़ खींच कर उसको रोका और कहा कि इस सब की कोई जरूरत नहीं है लेकिन …

तब तक तो उसने खुद के होटों से मेरा मुँह बन्द कर दिया था … उसकी जीभ मेरे मुँह में घूमने लगी … सांसों में गरमी बढ़ने लगी …

लेकिन मेरा मजा बेमजा हो रहा था … जान पहचान और दोस्ती के बिना सेक्स ना करने का दम्भ भरने वाला मैं आज मेरे सेक्स साथी की शक्ल तक नहीं जानता था … और उस एकदम मद्धिम सी रोशनी में कुछ देख पाना वैसे भी सम्भव नहीं था … सिर्फ़ परछाई सी ही नजर आती थी …

मेरे किसी भी एक्शन में गरमी नहीं देखकर अपने होंट मेरे मुँह से हटा कर वो मेरे कान में फ़ुसफ़ुसाई – प्लीज राजा साथ दो ना … ऐसे क्या करते हो, यदि साथ नहीं दोगे तो भी सेक्स तो होगा लेकिन बेमजा सेक्स का क्या फ़ायदा … , मुझे पूरा मजा दो और खुद भी लो … और ये पक्का है कि ये सब मैं करके ही रहूँगी … …

मैंने सोचा कि कहती तो एकदम से ठीक है … लेकिन यों किसी से इस तरह से सेक्स करना और उसको इस तरह से सेक्स के लिये तैयार करना इसको क्या कहेंगे … ? लेकिन यहाँ प्रतिवाद का कोई फ़ायदा नहीं था, वो मेरे पैर पकड़ने तक को तैयार थी … मेरे मना करने पर फ़िर से …

फ़िर जरा सी गलती से इस की और मेरे दोस्त दोनों की इज्जत का फ़लूदा बन जाने वाला था, मैंने सब तरफ़ से सोच कर मानस बनाया कि इसको तो मैं सेक्स के बाद भी समझ लूंगा अभी तो पूरी तरह साथ देना चाहिये … यही ठीक रहेगा …

तो मैंने उसकी गुद्दी पर एक हाथ रखकर उसके मुँह को अपनी ओर खींचा और उसके होंटों से होंट चिपका दिये … हमारी जीभें एक दूसरे के मुँह के अन्दर का मुआयना करने लगीं … अब तो वो मेरे ऊपर पर आ गई … मेरा दूसरा हाथ उसके बदन पर फ़िरने लगा और जैसे ही उसकी कमर तक आया तो जाना कि उसने टू पीस नाइट गाउन पहन रखा है … तो मैंने उसकी चोली के अन्दर हाथ डालकर उसकी चोली को ऊपर की तरफ़ खींच दिया अब दूसरा हाथ उसकी गुद्दी से हटा लिया क्योंकि उसके चेहरे का दबाव मेरे मुँह पर इतना था कि उसका चेहरा मेरे मुँह से हटने वाला था ही नहीं … उसके बाल खुलकर नीचे की तरफ़ फ़ैल कर हम दोनों के चेहरों को ढक चुके थे … मेरा धड़ उसकी दोनों टांगों के बीच हो गया …

दूसरे हाथ को हम दोनों के बीच में डाल कर उसके बोबे छुये तो पता चला कि उसने ब्रा नहीं पहन रखी है … मैं एक हाथ से उसके बोबे दबाने लगा और दूसरे हाथ से उसका बदन सहलाने लगा, क्या शानदार बदन की मल्लिका है … एकदम से चिकना मुलायम मखमल जैसा … सांचे में ढला हुआ !

फ़िर हाथ को और ज्यादा नीचे करके उसके कूल्हे सहलाने लगा, उसका बदन मचलने लगा, मेरा लन्ड फ़नफ़नाने लग चुका था और उसकी चूत के नीचे दबा हुआ टन्कारें मार रहा था …

मैं उसके कूल्हों के ऊपर से उसके गाउन के नीचे वाले हिस्से को खींचने लगा और पूरे का पूरा गाउन उसकी कमर पर ले आया, पता चला कि उसने अन्डरवियर भी नहीं पहन रखी है … फ़िर मैंने हम दोनों के पेट के बीच में हाथ डाल कर उसके पेट को जरा सा ऊपर की तरफ़ किया तो उसने अपना पेट थोड़ा सा ऊपर कर लिया, इससे मेरे पायजामे का इलास्टिक मेरे हाथ में आ गया और मैंने भी अपने कूल्हे जरा से ऊपर किये और पायजामा अपने अन्डरवियर सहित कूल्हों से नीचे सरका दिया। अब मेरा लन्ड एकदम से खुला था, मैंने अपना हाथ बीच में से निकाल लिया तो एक बार फ़िर से उसकी चूत मेरे लन्ड पर आ गई लेकिन इस बार बिना कपडों के !

अब मैं पूरे जोश से एक हाथ से उसका बदन सहलाने लगा और दूसरे हाथ से उसके बोबे मसलने लगा, जीभ पूरे जोश से मुँह के अन्दर का मुआयना करने लगी। धीरे धीरे मेरा लन्ड उसकी चूत से निकले गुनगुने चिकने पानी से भीगने लगा और मैंने अपने मुँह को उसके मुँह से हटा कर उसकी गरदन से सटा दिया और चूसने लगा तो उसके मुँह से सिसकारी फ़ूट निकली तो मैंने अपने हाथ को जल्दी से उसके मुँह पर भींचा और उसके कान में फ़ुसफ़ुसाया कि ऐसा करोगी तो मरवा दोगी !

तो वो फ़ुसफ़ुसाई कि अब सब कुछ बर्दाश्त से बाहर है।

तो मैंने अपने हाथों को उसके कूल्हों के बीच से हाथ डालकर अपने लन्ड को उसकी चूत के छेद पर सेट किया और अपनी दोनों हाथों की तर्जनी से उसकी चूत के फ़लक खोल दिये तो वो अपने कूल्हों का दबाव डाल कर लन्ड अपनी चूत में लेने लगी तो मैंने अपने हाथ हटा कर फ़िर से बोबे और शरीर पर लगा दिये और अब उसकी गर्दन पर अपना मुँह जमा दिया और चूसने लगा।

वो तड़पने लगी और अपने कूल्हे चला कर चूत को रगड़ने लगी … … आह … ये मेरी सबसे पसन्दीदा पोजीशन है इससे चूत के अन्दर का हिस्सा लगातार कसता और नरम पड़ता है, इससे लन्ड को बेहद सुखद अनुभूति होती है …

इतने में उसने अपने हाथों पर अपने धड़ को ऊपर कर लिया तो मैंने गरदन चूसनी बंद कर दी और उसके बोबे चूसने लगा और दोनों हाथों से मसलने लगा … तो उसको बेहद उत्तेजना हुई और वो अपने कूल्हे जोर लगा कर अपनी चूत मेरे लन्ड पर मसलने लगी और एकाएक निढाल मेरे ऊपर पसर गई … ।

दो मिनट हम दोनों बिना हरकत किये पड़े रहे। फ़िर मैं अपने हाथ उसके बदन पर फ़िराने और बोबे दबाने लग गया और अपने मुँह को उसके मुँह से सटा दिया तो उसमें फ़िर से हरकत होने लगी और वो फ़िर से होटों को मेरे होटों से सटा कर चूसने लगी और फ़िर से एक बार कूल्हे चलाने लगी।

इस बार तो उसने बहुत तेज चक्की चलाई, मुझे भी मजा आने लगा था … उसकी चूत उसके कूल्हे की हर हरकत पर कसती और ढीली होती थी तो मुझे मेरे लन्ड पर बहुत तेज करेन्ट महसूस होता था … मैं अपने हाथ उसके कूल्हों पर बहुत हल्के से फ़िराने लगा तो वो फ़िर एक बार तड़पने लगी और अचानक ही उसने अपने होटों से मेरे होटों को जोर से काट लिया … मुझे लगा कि मेरा होंट सूज गया है … उसका बदन अकड़ गया और फ़िर एकदम से निढाल हो कर मेरे ऊपर पसर ग़ई … मैंने मेरे हाथ उसकी पीठ पर बान्ध लिये और हाथ के पन्जे से उसके बाल हौले हौले सहलाने लगा …

पांच मिनट बाद उसमें धीरे धीरे फ़िर से चेतना आने लगी और वो मेरे कान में फ़ुसफ़ुसाई- अब आप ऊपर आ जाओ और अपना काम भी कर लो …

और यह कह कर हौले से मेरे ऊपर से सरककर उतरती हुई मेरे पहलू में आ गई। अब मैं धीरे धीरे उसके ऊपर आ गया तो उसने अपने एक हाथ से मेरी गुद्दी पकड़ कर मेरा मुँह अपने मुँह से चिपका लिया और अपनी जीभ मेरे मुँह में देकर मेरी जीभ टटोलने लगी …

मैंने अपना लन्ड उसकी चूत पर सेट करके अन्दर डाल दिया तो एकाएक उसके होंट मेरे होटों पर कस गये और मुझे पहले के काटे हुये हिस्से पर दर्द महसूस हुआ … लेकिन इस समय कौन ऐसे दर्दों की परवाह करता है … मैंने मेरी कोहनी और घुटनों पर अपना वजन रखते हुये मेरे हाथ उसके दोनों बोबों पर कस दिये और मैं उस पर धक्के लगाने लगा … लम्बे धक्के लगा नहीं सकता था क्योंकि इस से कमरे के किसी भी जन के जाग जाने का डर था … उसने भी नीचे से अपने कूल्हों को हरकत देना शुरू किया … मुझे बिना लम्बे धक्कों के मजा नहीं आ रहा था तो मैंने अपने हाथ उसकी गरदन के नीचे लेकर उसको जोर से अपने से भींच लिया, अब अचानक से उसने अपना मुँह मेरे मुँह से हटा कर मेरी गरदन पर लगा कर चूसने लगी … अब मुझे करेन्ट आने लगा … मैं फ़िर धक्के लगाने लगा … हम दोनों में रगड़म-रगड़ाई चल रही थी … अचानक उसके मुँह से आंऽऽ आं की आवाज निकलने लगी तो मुझे अपने होटों से उसका मुँह बंद करना पड़ा … कुछ देर में मुझे मेरी मंजिल नजदीक आती लगी … और आह … … मैं उस पर पसरता चला गया …

फ़िर कोशिश करके उसकी बगल में आकर उसको बाहों में लेकर पड़ा रहा … अब वो बहुत प्यारी महसूस हो रही थी … और इशारे भी कितनी आसानी से समझ लेती है … कोई पन्द्रह मिनट बीते होंगे कि अचानक से जैसे वो जागी हो और अपने होटों को मेरे होटों से छुआ कर एक चुम्बन लिया और कान में फ़ुसफ़ुसाई- दवा के इस शानदार डोज के लिये शुक्रिया … और उठ कर कमरे से बाहर हो गई …

उस हल्के झीने से प्रकाश में परछाई सी जाती लगी

इस अचानक हरकत पर मैं अचम्भित रह गया और जो कुछ मैं उसको कहने वाला था वो सब मेरे मन में रह गया … मैंने अपने कपड़े ठीक किये …

सोचने लगा … जाने कौन थी … उसका मेरे दोस्त से जाने क्या रिश्ता है … … मैंने कुछ गलत तो नहीं किया? … यदि किसी तरह से मेरे दोस्त को पता चला तो वो क्या सोचेगा … मैं कमरे में आंखे गड़ा कर घूरने लगा कि कोई जाग तो नहीं रहा ना …

अब सब कुछ सपने सा लग रहा था कि अचानक ही यह सब हुआ और फ़िर जैसे कोई था ही नहीं, इस प्रकार से उठ कर वो चली गई … …

मुझे नींद नहीं आ रही थी … ना जान ना पहचान … जाने कौन थी … मुझे बेचैनी हो रही थी … लेकिन कर क्या सकता था … उठ कर देख भी तो नहीं सकता था कि वो गई कहाँ … कोई मुझे यों कमरों में झांकते देखता तो मैं क्या जवाब देता … खैर … जैसे तैसे सुबह हुई।

छह बज चुके थे … लोगों में जाग होने लगी थी … मेरा दोस्त भी जाग गया था … मैं शौच जाकर उसके पास आया और जाने की इजाजत मांगने लगा।

तो उसने कहा- यार रुक जाते तो मजा आ जाता ! लेकिन काम काज का नुकसान नहीं होना चाहिये इसलिये …

फ़िर इतना कहकर मिठाई का एक डिब्बा लाकर मेरे हाथों में दिया … गर्मजोशी से हाथ मिलाया और गले लगा … मैं जयपुर आ गया … लेकिन उसे नहीं भूल पा रहा था … कौन थी वो …

एक महीना निकल चुका था … रेखा का फ़ोन नहीं आया तो मैंने चैन की सांस ली … चलो एक बला तो टली …

मैं अपने औफ़िस में शाम को छह बजे काम कर रहा था कि मेरे मोबाइल ने आवाज मारी … उठा कर देखा तो रेखा … हे भगवान, कल ही तो मैं शुक्र मना रहा था … और आज …

मैंने मोबाइल कान पर लगाया- हैलो …

रेखा- मुन्ना जी, मैं रेखा …

मैं- हाँ रेखा, जानता हूँ … तुम्ही हो …

रेखा- आपने तो फ़ोन ही नहीं किया …

मैं- हां, थोड़ा व्यस्त रहा इन दिनों …

रेखा- व्यस्त रहे या … टाल रहे थे …

मैं- नहीं ऐसा कुछ नहीं रेखा …

रेखा- तो फ़िर क्या सोचा, कब आ रहे हो …

मैं- नहीं … अभी तो नहीं रेखा, मैं थोड़ा व्यस्त हूँ … फ़िर देखते हैं …

रेखा- अच्छा … ? क्यों तड़पाते हो एक दुख़ियारी को … प्लीज…

फ़िर चार पांच सेकन्ड चुप्पी रही फ़िर एकाएक रेखा की आवाज आई- उस प्यारी दवा का दूसरा डोज और दे जाते तो बहुत मेहरबानी होती आपकी …

मेरे कान के पास जैसे बम फ़टा हो …

मेरे मुँह से लगभग चीखती सी आवाज निकली- साली … … रेखा … तो वो तुम थीं … मेरी तो जान ही निकली पडी है उस दिन की सोच सोच कर … देख लूंगा तुमको तो … समझ लूंगा … साली … तुम्हारा कचूमर नहीं निकाल दिया तो देखना …

रेखा की खनकती हंसी सुनाई दी- हाय मर जावां … क्या प्यारा रिश्ता बनाया है … कसम से … साली … यानी आधी घरवाली … मेरे जीजू … बिना पंगे का मन की पतंग डोर वाला रिश्ता …

वाह … आनन्द ही आनन्द भये …

फ़िर सन्जीदा आवाज सुनाई दी- मेरे मुन्ना … मेरे राजा … मेरे प्यारे जीजू … उस घटना के लिये सौरी … दिल की गहराइयों से सौरी … कान पकड़ कर सौरी … दण्ड्वत करके सौरी …

आओगे तो पैर पकड़ के और सौरी कहूँगी …

और फ़िर से खनकती हुई हंसी सुनाई दी और बोली- देखना हो, समझना हो तो आज ही आ जाओ जान … सब के सब शादी में गये हैं, रात को दस बजे बाद तक ही आयेंगे … खूब अच्छी तरह से मुझे देखना … समझना … और मेरा कचूमर भी निकाल देना … जल्दी आओ … … मैं इन्तजार कर रही हूँ … बाय …

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वो कौन थी

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