विदुषी की विनिमय-लीला-3
लेखक : लीलाधर
मिलने के प्रश्न पर मैं चाहती थी पहले दोनों दंपति किसी सार्वजनिक जगह में मिलकर फ्री हो लें। अनय को कोई एतराज नहीं था पर उन्होंने जोड़ा,” पब्लिक प्लेस में क्यों, हमारे घर ही आ जाइये। यहीं हम ‘सिर्फ दोस्त के रूप में’ मिल लेंगे।”
‘सिर्फ दोस्त के रूप में’ को वह थोड़ा अलग से हँसकर बोला। मुझे स्वयं अपना विश्वास डोलता हुआ लगा– क्या वास्तव में मिलना केवल फ्रेंडली तक रहेगा? उससे आगे की संभावनाएँ डराने लगीं…
उसके ढूंढते होंठ… मेरे शरीर को घेरती उसकी बाँहें… स्तनों पर से ब्रा को खींचतीं परायी उंगलियां, नंगी होती हुई मैं उसकी नजरों से बचने के लिए उसके ही बदन में छिपती… दावा जताता, मेरे पैरों को विवश करता मुझमें उसका प्रवेश… आश्चर्य हुआ, क्या सचमुच ऐसा हो सकता है? संभावना से ही मेरे रोएँ खड़े हो गए।
आगामी शनिवार की शाम उनके घर पर, हमने कह दिया था कि हम सिर्फ मिलने आ रहे हैं, इसमें सेक्स का कोई वादा नहीं है, अगर इच्छा हुई तो करेंगे नहीं तो सिर्फ दोस्ताना मुलाकात !
ऊपर से संयत, अंदर से शंकित, उत्तेजित, मैं उस दिन के लिए मैं तैयार होने लगी। संदीप आफिस चले जाते तो मैं ब्यूटी पार्लर जाती – भौहों की थ्रेडिंग, चेहरे का फेशियल, हाथों-पांवों का मैनीक्योर, पैडीक्योर, हाथ-पांवों के रोओं की वैक्सिंग, बालों की पर्मिंग…।
गृहिणी होने के बावजूद मैं किसी वर्किंग लेडी से कम आधुनिक या स्मार्ट नहीं दिखना चाहती थी। मैं संदीप से कुछ छिपाती नहीं थी पर उनके सामने यह कराने में शर्म महसूस होती। बगलों के बाल पूरी तरह साफ करा लेने के बाद योनिप्रदेश के उभार पर बाल रखूँ या नहीं इस पर कुछ दुविधा में रही।
संदीप पूरी तरह रोमरहित साफ सुथरा योनिप्रदेश चाहते थे, जबकि मेरी पसंद हल्की-सी फुलझड़ी शैली की थी जो होंठों के चीरे के ठीक ऊपर से निकलती हो।
मैंने अपनी सुनी।
मैंने संदीप की भी जिद करके फेशियल कराई। उनके असमय पकने लगे बालों में खुद हिना लगाई। मेरा पति किसी से कम नहीं दिखना चाहिए। संदीप कुछ छरहरे हैं। उनकी पाँच फीट दस इंच की लम्बाई में छरहरापन ही निखरता है। मैं पाँच फीट चार इंच लम्बी, न ज्यादा मोटी, न पतली, बिल्कुल सही जगहों पर सही अनुपात में भरी : 36-26-37, स्त्रीत्व को बहुत मोहक अंदाज से उभारने वाली मांसलता के साथ सुंदर शरीर।
पर जैसे-जैसे समय नजदीक आता जा रहा था अब तक गौण रहा मेरे अंदर का वह भय सबसे प्रबल होता जा रहा था- वह आदमी मुझको बिना कपड़ों के, नंगी देखेगा, सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते थे, लेकिन साथ ही मैं उत्तेजित भी थी।
शनिवार मिलने के दिन के ठीक पहले की रात को बहुत मन होने के बावजूद संदीप को चुम्बनों, चाटों, मसलनों से आगे नहीं बढ़ने दिया, ताकि अगर कल हम सेक्स में उतरे, जिसकी संभावना बिल्कुल थी, तो आनंददायी मुख मैथुन के लिए योनि गीली पिच पिच नहीं रहे।
शनिवार… आज शाम…
संदीप बेहद उत्साहित थे, मैं भयभीत, पर उत्तेजित !
जब मैं बाथरूम से तौलिये में लिपटी निकली, तभी से संदीप मेरे इर्द गिर्द मंडरा रहे थे- ‘ओह क्या खूशबू है। आज तुम्हारे बदन से कोई अलग ही खुशबू निकल रही है।’
मैं उन्हें रह रहकर ‘ए:’ की प्यार की डाँट लगा रही थी। मैंने कहीं बायलोजी की निचली कक्षा में पढ़ा तो था कि कामोत्सुक स्त्री के शरीर से कोई विशेष उत्तेजक गंध निकलती थी, पर पता नहीं वह सच है या गलत।
क्या पहनूँ? इस बात पर सहमत थी कि मौके के लिए थोड़ा ‘सेक्सी’ ड्रेस पहनना उपयुक्त होगा। संदीप ने अपने लिए मेरी पसंद की इनफार्मल टी शर्ट और जीन्स चुनी थी।
अफसोस, लड़कों के पास कोई सेक्सी ड्रेस नहीं होता !
खैर, वे इसमें स्मार्ट दिखते हैं।
पारदर्शी तो नहीं, पर लेसवाली किंचित जालीदार ब्रा, पीच और सुनहले की बीच के रंग की। पीठ पर उसकी स्ट्रैप लगाते हुए सामने आइने में अपने तने स्तनों और जाली के बीच से आभास देती गोराई को देखकर मैं पुन: सिहर गई। कैसे आ सकूंगी इस रूप में उसके सामने ! बहुत सुंदर, बहुत उत्तेजक लग रही थी मैं। लेकिन इसकी जगह अंतरंगता भरी गोपनीयता में थी। आज उसे सबके सामने कैसे लाऊँगी।पता नहीं कैसे मैंने मन ही मन मान लिया था कि आज ‘काम’ होगा ही।
मन के भय, शर्म और रोमांच को दबाते हुए मैंने चौड़े और गहरे गले की स्लीवलेस ब्लाउज पहनी, कंधे पर बाहर की तरफ पतली पट्टियाँ – ब्लाउज क्या थी, वह ब्रा का ही थोड़ा परिवर्द्धित रूप थी।उसमें स्तनों की गहरी घाटी और कंधे के खुले हिस्सों का उत्तेजक सौंदर्य खुलकर प्रकट हो रहा था। उसका प्रभाव बढ़ाते हुए मैंने गले में बड़े मोतियों का हार पहना, कानों में उनसे मैच करते इयरिंग्स।
मुझे संदीप पर गुस्सा भी आ रहा था कि यह सब किसी और के लिए कर रही हूँ। वे उत्साहित के साथ कुछ डरे से भी थे। मैं उन्हें उलाहनों और चेतावनियों, कि ‘बस, आज ही भर के लिए,’ से डराकर उन्हें अपने वश में रखे थी। एक बार उन्होंने सहमे हुए शिकायत भी कि इतना क्यों सुना रही हो।
फिर भी वे माहौल हल्का रखने की कोशिश में थे। मेरी ब्रा की सेट लगी मैचिंग जालीदार पैंटी उठाकर उन्होंने पूछा,” इसको पहनने की जरूरत है क्या?”
मैंने सुनाया,”तुम्हारा बस चले तो मुझे नंगी ही ले जाओ।”
पीच कलर का ही साया, और उसके ऊपर शिफ़ॉन की अर्द्धपारदर्शी साड़ी– जिसे मैंने नाभि से कुछ ज्यादा ही नीचे बांधी थी, कलाइयों में सुनहरी चूड़ियाँ, एड़ियों में पायल और थोड़ी हाई हील की डिजाइनदार सैंडल।
मैं किसी ऋषि का तपभंग करने आई गरिमापूर्ण उत्तेजक अप्सरा सी लग रही थी।
हम ड्राइव करके अनय और शीला के घर पहुँच गए।
घर सुंदर था, आसपास शांति थी। न्यू टाउन अभी नयी बन रही पॉश कॉलोनी थी। घनी आबादी से थोड़ा हट कर, खुला-खुला शांत इलाका।
दोनों दरवाजे पर ही मिले। ‘हाइ’ के बाद दोनों मर्दों ने अपनी स्त्रियों का परिचय कराया और हमने बढ़कर मुस्कुराते हुए एक-दूसरे से हाथ मिलाए। मुझे याद है कैसे शीला से हाथ मिलाते वक्त संदीप के चहरे पर चौड़ी मुस्कान फैल गई थी। वे हमें अपने लिविंग रूम में ले गए। घर अंदर से सुरुचिपूर्ण तरीके से सज्जित था।
“कैसे हैं आप लोग ! “,”कोई दिक्कत तो नहीं हुई आने में”
कुछ हिचक के बाद बातचीत का सिलसिला बनने लगा।
बातें घर के बारे में, काम के बारे में, ताजा समाचारों के बारे में… अनय ही बात करने में लीड ले रहे थे। बीच में जरूर व्यक्तिगत बातों की ओर उतर जाते। एक सावधान खेल, स्वाभाविकता का रूप लिए हुए…
“बहुत दिन से बात हो रही थी, आज हम लोग मिल ही लिए !”
“इसका श्रेय इनको अधिक जाता है।” संदीप ने मेरी ओर इशारा किया।
“हमें खुशी है ये आईं !” मैं बात को अपने पर केन्द्रित होते शर्माने लगी।
अनय ने ठहाका लगाया,”आप आए बहार आई !”
शीला जूस, नाश्ता कुछ ला रही थी। मैंने उसे टोका,” तकल्लुफ मत कीजिए !”
बातें स्वाभाविक और अनौपचारिक हो रही थीं। अनय की बातों में आकर्षक आत्मविश्वास था। बल्कि पुरुष होने के गर्व की हल्की सी छाया, जो शिष्टाचार के पर्दे में छुपी बुरी नहीं लग रही थी। वह मेरी स्त्री की अनिश्चित मनःस्थिति को थोड़ा इत्मिनान ही दे रही थी।उसके साथ अकेले होना पड़ा तो मैं अपने को उस पर छोड़ सकूँगी।
अनय ने हमें अपना घर दिखाया। उसने इसे खुद ही डिजाइन किया था। घुमाते हुए वह मेरे साथ हो गया था। शीला संदीप के साथ थी। मैं देख रही थी वह भी मेरी तरह शरमा-घबरा रही है, इस बात से मुझे राहत मिली।
बेडरूम की सजावट में सुरुचि सुंदर के साथ उत्तेजकता का मिश्रण था। दीवारों में कुछ नग्न अर्द्धनग्न स्त्रियों के कलात्मक पेंटिंग। बड़ा सा पलंग।
अनय ने मेरा ध्यान उसकी बगल की दीवार में लगे एक बड़े आइने की ओर खींचा,” यहाँ पर एक यही चीज सिर्फ मेरी च्वाइस है। शीला तो अभी भी ऐतराज करती है।”
“धत्त..” कहती हुई शीला लजाई।
“और यह नहीं?” शीला ने लकड़ी के एक छोटे से कैबिनेट की ओर इशारा किया।
“इसमें क्या है?” मैं उत्सुक हो उठी।
“सीक्रेट चीज ! वैसे आपके काम की भी हो सकती है, अगर…”
मैंने दिखाने की जिद की।
“देखेंगी तो लेना पड़ेगा, सोच लीजिए।”
मैं समझ गई,” रहने दीजिए !”
हमने उन्हें बता दिया था कि हम ड्रिंक नहीं करते।
लौटे तो अनय इस बार सोफे पर मेरे साथ ही बैठे, उसने चर्चा छेड़ दी कि इस ‘साथियों के विनिमय’ के बारे में मैं क्या सोचती हूँ।
मैं तब तक इतनी सहज हो चुकी थी कि कह सकूँ कि मैं तैयार हूँ पर थोड़ा डर है मन में।
यह कहना अच्छा नहीं लगा कि मैं यह संदीप की इच्छा से कर रही हूँ, लगा जैसे यह अपने को बरी करने की कोशिश होगी।
“यह स्वाभाविक है !” अनय ने कहा,” पहले पहल ऐसा लगता है।”
मैंने देखा सामने सोफे पर संदीप और शीला मद्धिम स्वर में बात कर रहे थे। उनके सिर नजदीक थे। मैंने स्वीकार किया कि संदीप तो तैयार दिखते हैं पर मुझे पता नहीं उन्हें शीला के साथ करते देख कैसा लगेगा।
उन्होंने पूछा कि क्या कभी मैंने दूसरे पुरुष से सेक्स किया है, शादी से पहले या बाद?
“नहीं, कभी नहीं… यह पहली ही बार है।” बोलते ही मैं पछताई, अनायास ही मेरे मुख से आज ही सेक्स की बात निकल गई।
पर अनय ने उसका कोई लाभ नहीं उठाया।
“मुझे उम्मीद है आपको अच्छा लगेगा।” फिर थोड़ा ठहरकर,” बहुत से लोग इसमें हैं। आज नेट और मोबाइल के युग में संपर्क करना आसान हो गया है। सभी उम्र के सभी तरह के लोग इसको कर रहे हैं।”
उन्होंने ‘स्विंगिंग पार्टियों’ के बारे में बताया जहाँ सामूहिक रूप से लोग साथी बदल-बदल करते हैं।
मैंने पूछना चाहा ‘आप गए हैं उसमें’ लेकिन दबा गई।
अनय ने औरत औरत के सेक्स की बात उठाई, पूछा- मुझे कैसा लगता है?
“शुरू में जब मैंने इसे ब्लू फिल्मों में देखा था। उस समय आश्चर्य हुआ था।”
“अब?”
“अम्म्म्, पता नहीं, कभी ऐसी बात नहीं हुई, पता नहीं कैसा लगेगा।”
मैं धीरे धीरे खुल रही थी। उनकी बातें आश्वस्त कर रही थीं। शीला ने बताया कि कई लोग पहली बार करने वालों से ‘स्वैप’ नहीं करना चाहते, डरते हैं कि खराब अनुभव न हो। पर हम उन्हें अच्छे लग रहे थे।
अजीब लग रहा था कि मैं अपने पति नहीं किसी दूसरे पुरुष के साथ बैठी सेक्स की व्यक्तिगत बातें कर रही थी। मेरे सामने मेरा पति एक दूसरी औरत के साथ बैठा था।
मैं अपने अंदर टटोल रही थी मुझे कोई र्इर्ष्या महसूस हो रही है कि नहीं। शायद थोड़ी सी, पर दुखद नहीं, अजीब सी…
शीला उठी, कुछ नाश्ता ले आई। प्लेट में चिप्स, चीज रोल… ठंडा पेय… मुझे लगा वाइन साथ में न होने का अनय-शीला को जरूर अफसोस हो रहा होगा।
शाम सुखद गुजर रही थी। अनय-शीला बड़े अच्छे से मेहमाननवाजी कर रहे थे। न इतना अधिक कि संकोच में पड़ जाऊँ, न ही इतना कम कि अपर्याप्त लगे।
आरंभिक संकोच और हिचक के बाद अब बातचीत की लय कायम हो गई थी। अनय मेरे करीब बैठे थे। बात करने में उनके साँसों की गंध भी मिल रही थी। एक बार शायद गलती से या जानबूझकर उसने मेरे ही ग्लास से कोल्ड ड्रिंक पी लिया। तुरंत ही ‘सॉरी’ कहा। मुझे उसी के जूठे ग्लास से पीने में अजीब कामुक सी अनुभूति हुई।
काफी देर हो चुकी थी-
“अब चलना चाहिए।”
अनय ताज्जुब से बोले,”क्या कह रही हो? अभी तो हमने शाम एंजाय करना शुरू ही किया है। आज रात ठहर जाओ, सुबह चले जाना।” शीला ने भी जोर दिया,”हाँ हाँ, आज नहीं जाना है। सुबह जाइयेगा।”
मैंने संदीप की ओर देखा।
उनकी जाने की कोई इच्छा नहीं थी। शीला ने उनको एक हाथ से घेर लिया।
“मैं… हम कपड़े नहीं लाए हैं।” मुझे अपना बहाना खुद कमजोर लगा।
“कपड़े? आज उसकी जरूरत है क्या?” अनय ने चुटकी ली, फिर बोले,”ठीक है, तुम शीला की नाइटी पहन लेना, संदीप मेरा पैंट ले लेंगे … अगर ऐतराज न हो…”
“नहीं, ऐतराज की क्या बात है, लेकिन…”
“ओह, कम ऑन…”
अब मैं क्या कह सकती थी।
पढ़ते रहिएगा !
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