तन का सुख-1
लेखक : राज कार्तिक
यह कहानी मैं आप सब दोस्तों की मांग पर लिख रहा हूँ। यह खूबसूरत हादसा मेरे एक मित्र के साथ हुआ था। उसने अपनी कहानी मुझे बताई और अन्तर्वासना पर भेजने के लिए कहा। पर वो अपना नाम नहीं डालना चाहता था तो मैंने यह कहानी अपने नाम से ही लिखी है।
पढ़िए और मज़ा कीजिए।
हुआ कुछ यूँ था…
बात ज्यादा पुरानी नहीं है अभी यही कोई दो महीने पहले की है। होली पर यह खूबसूरत हादसा हुआ।
मेरे ताऊ जी की बड़ी बेटी की नई नई शादी हुई थी तब। वो मिलने के लिए हमारे घर आई हुई थी। होली से दो-तीन दिन पहले जीजा जी का दीदी को बुलाने के लिए फोन आ गया। ताऊ जी का बेटा अजय बाहर गया हुआ था तो ताऊ जी ने मुझे कहा- जा अपनी बहन को उसकी ससुराल छोड़ आ !
मुझे भी बाहर कहीं गए बहुत दिन हो गए थे तो सोचा कि इस बहाने घूमना हो जाएगा। मैं दीदी को लेकर उसके ससुराल के लिए चल दिया। मैं पहली बार उसकी ससुराल जा रहा था। करीब दो घण्टे के सफर के बाद हम दोनों वहाँ पहुँच गए। दीदी का देवर गाड़ी लेकर बस स्टैंड पर आया था हमें लेने।
हम गाड़ी में बैठ कर दीदी की ससुराल पहुँच गए। गाड़ी की आवाज सुनते ही एक खूबसूरत सी लड़की भाग कर गाड़ी के पास आई। जब वो भाग कर गाड़ी की तरफ आ रही थी तो मेरी नजर उस बला की चूचियों पर अटक गई, दोनों की दोनों मस्त उछल रही थी। उस जालिम ने दुपट्टा भी नहीं लिया था।
आप समझ सकते है कि क्या नजारा होगा। खरबूजे के आकार के दोनों चूचे कमीज से बाहर आने को बेताब लग रहे थे।
उसकी इस अदा ने मेरा दिल लूट लिया था। वो गाड़ी के पास आकर दीदी से लिपट गई। तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी। उसने सवालिया अंदाज़ में दीदी की तरफ देखा तो दीदी ने उसका-मेरा परिचय करवाया।
उसका नाम सुधा था और वो मेरी दीदी की ननद थी। दीदी ने मेरे बारे में भी उसको बताया तो मैंने हँसते हुए अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया जो उसने थाम लिया। उसका मुलायम और नाजुक नाजुक उँगलियों वाला हाथ अपने हाथ में आते ही मुझे लगा जैसे पूरी जन्नत मेरे हाथ में समा गई हो। बहुत कोमल हाथ था सुधा का।
मैं तो जैसे खो सा गया था। वो एकदम से अपना हाथ मुझ से छुड़वा कर हँसते हुए अंदर भाग गई। मैंने देखा दीदी पहले ही अंदर जा चुकी थी और मैं अकेला गाड़ी के पास खड़ा था। एक बार तो लगा कि कहीं मैं सपना तो नहीं देख रहा था। पर नहीं यह सब सच ही था क्यूंकि उसके कोमल हाथों का एहसास अब भी मेरे हाथ में था।
तभी दीदी की आवाज आई- अरे राज ! तुम बाहर क्यों खड़े हो? अंदर आ जाओ !
मैं पहली बार आया था तो थोड़ी झिझक सी थी। मैं शर्माता हुआ अंदर दाखिल हुआ तो सब लोग बैठे थे, दीदी के ससुर, सास, जीजा जी और वो देवर जिसके साथ हम अभी आये थे। पर वो क़यामत नजर नहीं आ रही थी। मेरी नजर उसी को ढूँढ रही थी। सब लोगों ने हाल-चाल पूछा और मुझसे बातें करने लगे।
तभी दीदी कमरे में आई और साथ में सुधा भी थी। वो चाय की ट्रे लेकर आ रही थी कि मेरी नजर एकदम से उससे टकराई।
मुझे लगा कि वो भी मेरी तरफ ही देख रही थी। नजरें मिलते ही वो थोड़ा मुस्कुराई। वो और दीदी सब को चाय देने लगी। तभी वो चाय लेकर मेरे सामने आई और थोड़ा झुक कर मुझे चाय देने लगी। मेरा तो दिल उछल कर बाहर आ गिरा।
कमीज के गले में से उसके दो शानदार खरबूजे और उनके बीच की दरार देख कर तो मेरा लण्ड सलामी देने लगा था। दिल तो किया कि अभी पकड़ कर मसल डालूँ पर चाय अभी ज्यादा गर्म थी मुँह जल सकता था।
सयाने लोग कह गए है कि ठंडा करके खाने से खाने का स्वाद ज्यादा आता है।
दोपहर का खाना खाने के बाद मैं, दीदी और जीजा जी बैठ कर कमरे में बातें करने लगे सुधा भी कुछ देर बाद आ गई।
मैंने थोड़ा उबासी लेटे हुए दीदी को कहा- दीदी, सफर से थोड़ी थकावट हो रही है। आराम करने की जगह बताओ मैं कुछ देर सोना चाहता हूँ।
दीदी ने सुधा को बोला- राज को ऊपर वाले कमरे में छोड़ आओ।
सुधा ने मुझे चलने को कहा तो मैं उसके साथ हो लिया। सीढ़ियाँ चढ़ते हुए सुधा बोली- तुम भी निरे बुद्धू लगते हो मुझे !
“क्यों? मैंने ऐसा क्या किया?”
“अरे बुद्धू… भाभी आज पन्द्रह दिन के बाद आई है तो भैया भाभी को अकेले छोड़ना था ना… ! तुम हो कि उनसे चिपक कर बैठे थे तब से !”
“ओह्ह… !” मैंने उसकी बात को समझते हुए कहा।
वैसे बात उसकी भी सही थी। पर मैं भी तो अकेला बोर हो रहा था।
हम दोनों ऊपर वाले कमरे में पहुँच गए। वो मुझे वहाँ छोड़ कर जाने लगी तो मैंने उसको बैठने के लिए कहा, मैंने उसको बोला कि मैं अकेला बोर हो जाऊँगा तो वो थोड़ी देर रुक जाए।
वो मान गई और वहीं मेरे पास बिस्तर पर बैठ गई।
“वहाँ नीचे तो उबासियाँ ले रहे थे और अब तुम्हें बातें करनी हैं? तुम भी कमाल हो।” वो हँस कर बोली।
“अब तुम जो मेरे पास हो… तो भला आराम कौन बेवकूफ करेगा !” जवाब में मैं भी हँस पड़ा।
“मुझ पर लाइन मार रहे हो?” वो मेरी बात का मतलब समझते हुए बोली।”
“तुम हो ही इतनी खूबसूरत कि लाइन क्या तुम पर पूरा का पूरा मर मिटे कोई भी !” मैंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा।
वो थोड़ा शरमाई और उठ कर जाने लगी। मैंने सोचा कि अब नहीं तो कभी नहीं और मैंने आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लिया।
वो कुछ नहीं बोली बस उसने हल्का सा प्रयास किया अपना हाथ छुड़वाने का।
मैंने उसको अपनी तरफ खींचा और उसके कान में बोला- सुधा… मुझे तुमसे प्यार हो गया है।
उसने मेरी तरफ देखा और फिर हँस कर बोली- बुद्धू !
मैं हैरान हुआ पर तभी दिमाग की घंटी बजी कि मैं तो सच में ही बुद्धू हूँ क्यूंकि मामला तो सारा सेट हो चुका था।
अब वो मुझसे बिल्कुल चिपक कर खड़ी थी। मैंने उसके गाल पर हल्के से चूमा तो वो शरमा गई। फिर मैंने उसको अपनी तरफ करके उसके होंठों पर चुम्बन करना चाहा तो उसने मेरे होंठों पर हाथ रख दिया और बोली- जनाब… इतना तेज मत भागो… थोड़ा समय का इन्तजार करो !
यह कह कर वो मुझसे छुड़वा कर नीचे भाग गई और मैं अपने धड़कते दिल को लिए उसको जाते हुए देखता रहा। मैंने अपने दिल पर हाथ रख कर देखा तो वो बहुत जोर जोर से धड़क रहा था। नीचे देखा तो लण्ड महाराज भी पैंट को फाड़ने को बेताब नजर आ रहे थे।
उसके जाने के बाद मैं बिस्तर पर लेटा हुआ उसके बारे में ही सोचता रहा और कब नींद आ गई पता नहीं चला।
करीब चार बजे वो चाय लेकर कमरे में आई।
“अच्छा तो जनाब हमारी नींद उड़ा कर खुद आराम से सो रहे हैं !” उसने मुझे उठाते हुए कहा।
मैं कुछ नहीं बोला बस उसको बिस्तर पर अपने ऊपर खींच लिया। वो भी कटे पेड़ की तरह मुझ पर गिर पड़ी। उसके मस्त चूचे मेरी छाती पर दब गए।
“छोड़ो ना… ! क्या करते हो…?”
“एक बार अपने मुँह से बोलो ना कि तुम मुझ से प्यार करती हो !”
“तुम न ! निरे बुद्धू हो… ! अब भी कहने की कसर बाकी है क्या?” और यह कह कर उसने मेरे गाल पर पप्पी ले ली।
मैंने भी उसको अपने नीचे दबाते हुए उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। क्या रसीले होंठ थे यार। सुधा के होंठों का रस पीते ही बदन में तरावट सी आ गई। मेरे होंठ सुधा के होंठों का रसपान कर रहे थे कि तभी मेरे हाथ भी सुधा की चूचियों की गोलाईयाँ मापने लगे। मस्त मुलायम चूचियाँ हाथ में आते ही लण्ड देवता पूरे शबाब पर आ गए। मेरा लण्ड उसकी जांघ पर लग रहा था, उसने हाथ लगा कर पूछा– “यह क्या है?”
फिर जैसे ही उसकी समझ में आया कि वो क्या चीज है तो शरमा गई। उसका लण्ड पर हाथ लगाना मेरे अंदर एक आग सी लगा गया। मैंने उसका हाथ पकड़ कर दुबारा से लण्ड पर रख दिया। उसने हाथ फिर से हटाया तो मैंने फिर से पकड़ कर लण्ड पर रख दिया।
इस बार उसने अपना हाथ नहीं हटाया और धीरे धीरे लण्ड को सहलाने लगी। मैं तो आनन्द के सागर में गोते लगा रहा था। आज से पहले लण्ड सिर्फ अपने हाथ से सहलाया था। पहली बार लड़की का हाथ लण्ड पर पाकर लग रहा था कि अभी सब कुछ बाहर उगल देगा। पर अब परवाह किस को थी।
मैंने सुधा की कमीज ऊपर करनी शुरू की और धीरे धीरे उसकी दोनों चूचियाँ नंगी कर दी। वो अब गर्म हो चुकी थी और आँखें बंद किये मेरा लण्ड पैंट के ऊपर से ही सहला रही थी। मैंने उसकी गोरी गोरी चूचियों को सहलाया और फिर धीरे से दाईं चूची का चुचूक अपने होंठों में दबा लिया और धीरे धीरे जीभ फेरते हुए चूसने लगा।
सुधा के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी थी, मस्ती के मारे वो अपनी टाँगें भींच रही थी, मेरा सर अपनी चूचियों पर दबा रही थी और कोशिश कर रही थी कि मैं पूरी चूची अपने मुँह में भर लूँ।
मैंने भी उसको निराश नहीं किया और पूरी चूची मुँह में भर भर कर चूसने लगा। कभी दाएँ तो कभी बाएँ, बारी बारी से दोनों चूचियों को चूस रहा था।
वो मस्ती के मारे आह.. ओह्ह… उम्म्म.. उफ्फ्फ्फ़ आह्ह्ह कर रही थी। तभी नीचे से उसकी मम्मी की आवाज आई तो हम दोनों का स्वप्न टूटा।
वो और मैं पसीने से लथपथ हो गए थे, मम्मी की आवाज सुनते ही वो मुझसे अलग हुई और रात को आने का कह कर नीचे भाग गई।
मेरे लण्ड में दर्द होने लगा था तो मैं बाथरूम में गया और हाथ से हिला कर उसको शांत किया पर लण्ड पर भी जैसे मस्ती चढ़ी थी तभी तो झड़ने के बाद भी बैठने का नाम नहीं ले रहा था।
रात का इन्तजार मेरे लिए भारी होने लगा था। शाम को दीदी का देवर आ गया और मूवी देखने चलने की जिद करने लगा। दीदी और जीजा ने भी कहा तो मैं भारी मन से उसके साथ चला गया। जब मैं जा रहा था तो सुधा का मुँह उतर गया था। उसकी आँखों में नाराजगी साफ़ नजर आ रही थी।
इसे मेरी किस्मत ही कहूँ तो ठीक है कि जब हम सिनेमा पहुँचे तो टिकट-खिड़की बंद हो चुकी थी। मूवी हाउसफुल चल रही थी। बस फिर हम दोनों खा पी कर ऐसे ही वापिस आ गए।
जब हम वापिस पहुँचे तो सभी डिनर की तैयारी कर रहे थे। हमें देखते ही सबसे ज्यादा जिसको खुशी हुई उसका नाम लिखने की तो जरुरत ही नहीं है।
सुधा जो कुछ देर पहले मुरझाये फूल सी हो रही थी अब महकते गुलाब सी खिल उठी थी। बाकी सब डिनर कर चुके थे। सिर्फ मैं, दीदी का देवर कमल और सुधा ही बाकी थे। कमल ने खाना कमरे में लगाने को बोला और मुझे लेकर अपने कमरे में चला गया।
कुछ देर बाद सुधा सब के लिए खाना लगा कर कमल के कमरे में आ गई। बिस्तर पर बैठ कर हम तीनों खाना खाने लगे। सुधा एकदम मेरे नजदीक बैठी थी और कभी उसका हाथ कभी पाँव मुझे छू रहा था।
तभी एकदम से बिजली चली गई और कमरे में कुछ क्षण के लिए अँधेरा छा गया। तभी सुधा ने शरारत करते हुए मेरा लण्ड दबा दिया और मेरे गाल पर चूम लिया। मुझे ऐसा अंदाजा नहीं था कि सुधा कमल की उपस्थिति में ऐसा कुछ कर सकती है तो मैं एकदम से सकपका गया। उसकी हरकत का जवाब देने के लिए जैसे ही मैं उसकी तरफ गया तो एकदम से बिजली आ गई।
सुधा के चेहरे पर शर्म की लाली थी और वो अंदर ही अंदर मंद मंद मुस्कुरा रही थी।
खाना खाने के बाद सुधा बर्तन रख कर आई और हम तीनों वही बिस्तर पर बैठ कर बातें करने लगे। सुधा बीच बीच में मुझे कुछ इशारा कर रही थी पर मैं लल्लू राम समझ नहीं पा रहा था।
तभी कमल ने सुधा को जाने को कहा और मुझे बोला- यहीं सो जाओ !
तो मुझसे पहले ही सुधा बोल पड़ी- इनके सोने का इंतजाम ऊपर वाले कमरे में किया हुआ है पहले से ही।
कमल के कमरे में डबलबेड था तो मैंने कहा- यहीं सो जाता हूँ !
तो सुधा ने ऐसे आँखें तरेरी की बस !
सुधा उठ कर बाहर चली गई। मैं भी कमल को नींद का बहाना बना कर ऊपर कमरे की तरफ चल दिया। तब रात के करीब बारह बजने को थे।
जब मैं सीढ़ियाँ चढ़ने लगा तो सुधा की कोमल सी आवाज आई- अब क्यूँ आये हो… सो जाओ उस कमल के पास.. !
मैंने इधर उधर देखा और उसके पास जाकर उसको मनाते हुए सॉरी बोला।
पर वो थी कि मानने का नाम ही नहीं ले रही थी। मेरा भी मूड खराब हो गया, मैं अपने आप को कोसने लगा कि मैंने कमल के कमरे में रुकने का कहा ही क्यों।
मैं बुझे मन से ऊपर कमरे में चला गया।
कहानी अगले भाग में समाप्त होगी।
आपकी मेल का इन्तजार रहेगा।
आपका अपना राज
What did you think of this story??
Comments