ससुराल गेंदा फ़ूल-2

(Sasural Genda Phool- Part 2)

नेहा वर्मा 2005-08-13 Comments

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सवेरे मैं सुस्ती में उठी… अलसाई सी बाहर बरामदे में आ गई और कसमसाते हुए दोनों हाथों को ऊपर उठाते हुए अपने बोबे को पूरा बाहर उभारते हुए अंगड़ाई ली… कि पीछे से एक सिसकारी सुनाई दी- आरती जी… ऐसी अंगड़ाई से तो मेरे दिल के टांके टूट जायेंगे…! गुड मॉर्निंग…!’ साहिल मुसकराता हुआ बोला.

‘हाय रे… आप यहाँ…?’ मैं शरमा गई… दोनों हाथों से अपनी चूचियों को छिपाने लगी… पर रात की बातें मुझे याद आ रही थी। अब मैं भी कुछ करना चाहती थी… साहिल का सामना करना चाहती थी… शायद आज वो मेरे साथ जोर जबरदस्ती करे… पर इसके विपरीत मैं उसे रिझाना चाहती थी… पर मुझमें इतना साहस नहीं था… पर साहिल बेशरम था… एक के बाद एक मुझ पर तीर मारता गया… मुझे काम भी बनता नजर आने लगा… मैं मन मजबूत करके वहीं खड़ी रही.

‘ज़रा हाथ नीचे करो ना… आपके वक्ष बहुत सुन्दर हैं… और सुन्दरता दिखाई जाती है… छुपाई नहीं जाती…!’ मेरी चूचियों को निहारते हुए उसने कहा।
‘हाय साहिल जी… ऐसे ना कहो… मुझे शरम लगती है…’ मैंने अपने सीने से हाथ हटा कर चेहरा छुपा लिया।

वो मेरे पास आ गया और मेरे चेहरे को ऊपर उठा दिया…
‘इस खूबसूरत चेहरे पर पर्दा न करो… ये बड़ी बड़ी आंखें… गोरा रंग… गुलाबी गाल… ये इकहरा बलखाता बदन… गजब की सुन्दरता… खुदा ने सारी खूबियाँ आप में डाल दी हैं…’
‘हाय मैं मर जाऊँगी…’ मैं सिमटती हुई बोली। उसकी बातें मुझे शहद से ज्यादा मीठी और सुहानी लग रही थी। मैं इस बात से बेखबर थी कि कमला अपने कमरे के बाहर खड़ी सुन कर मुस्करा रही थी.

‘हाय… कश्मीर की वादियाँ भी इतनी सुन्दर नहीं होंगी जितनी सुडौल ये पहाड़ियाँ है… ये तराशा हुआ बदन… ये कमर… कही कोई अप्सरा उतर आई हो जैसे…’ मैंने अपनी आखें बन्द किये ही अपने हाथ नीचे कर लिये… मेरे उभार अब उसके सामने थे। साहिल मेरे बहुत नज़दीक आ गया था… अब मुझसे सहन नहीं हो रहा था… मैं घबरा उठी।

‘हाय राम जी…!’ मैं कहती हुई मुड़ी और भागने के ज्यों ही कदम बढ़ाया मैं कमला से टकरा गई।
‘हाय राम… मां जी… आप…?’
‘जरा सम्हल कर आरती… गिर जायेगी…! सुन मैं ज़रा काम से बाज़ार जा रही हूँ… साहिल को चाय नाश्ता और खाना खिला देना… देखना कुछ कमी न हो… एक बजे तक आ जाऊँगी…’ मुस्कुराती हुई आगे बढ़ गई।

साहिल ने फिर एक तीर छोड़ा- भरी जवानी… जवान जिस्म… तड़पती अदायें… किसके लिये हैं…’
मैंने देखा कमला जा चुकी थी। अब हम दोनों घर में अकेले थे… और कमला ने जब साहिल को छूट दे दी थी तो मुझे भी उसका फ़ायदा उठा लेना था।

‘कहाँ से सीखा… ये सब…’
‘जब से आप जैसी सुन्दरी देखी… दिल की बात जबान पर आ गई…’ मैं अब चलती हुई अपने कमरे में आ गई… साहिल भी अन्दर आ गया… मैंने चुन्नी उठाई और सीने पर डालने ही वाली थी कि उसने चुन्नी खींच ली… इसे अभी दूर ही रहने दो… और दो कदम आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया…
‘ये क्या कर रहे है आप… छोड़ दीजिये ना…’ मैं सिमटने लगी… हाथ छुड़ाने की असफ़ल कोशिश करने लगी।

‘आरती… प्लीज… आप बहुत अच्छी हैं… बस एक बार मुझे किस करने दो… फिर चला जाऊँगा…’ उसने अब मेरी कमर में हाथ डाल दिया। नीचे से उसका पजामा तम्बू बन चुका था… मेरी चूत भी गीली होने लगी थी। मैं बल खा गई और कसमसाने लगी… शर्म से मैं लाल हो उठी थी। मेरा बदन भी आग हो रहा था।

‘साहिल… देख… ना कर… मैं मर जाऊँगी…’ मैंने नखरे दिखाते हुए, बल खा कर उसके बदन से अपना बदन सहलाने लगी… और उसे धकेलने लगी
‘आरती… देख तेरे सूखे हुए होंठ… तड़पता हुआ बदन… आजा मेरे पास आजा… तेरे जिस्म में तरावट आ जायेगी…’
‘साहिल… मैं पराई हूँ… मैं शादीशुदा हूँ… ये पाप है…’ उसे नखरे दिखाते हुए मैं शरम से दोहरी होने लगी…

‘आरती तेरे सारे पाप मेरे ऊपर… तुझे पराई से अपना ही तो बना रहा हूँ…’ उसने अपना लण्ड मेरे चूतड़ो पर गड़ा दिया…
‘साहिल सम्हालो अपने आप को… दूर रखो अपने को…’ अब तो वस्तव में मुझे पसीना लगा था। मेरा बदन सिहर उठा था। कमला की रात वाली चुदाई मेरी आंखो के सामने घूमने लगती थी। मुझे लगा कि ये अपना लण्ड मेरी चूत में अब तो घुसेड़ ही देगा। मेरी चूतड़ो की दरार में उसका लण्ड फ़ंसता सा लगा। लण्ड का साईज़ तक मुझे महसूस होने लगी थी। मैंने घूम कर साहिल के चेहरे की तरफ़ देखा। उसके चेहरे पर मधुरता थी… मिठास थी… मुस्कुराहट थी… लगता था कि वो मुझ पर किस कदर मर चुका था।

मैं शरम के मारे मरी जा रही थी। मुझे उसने प्यार से चूम लिया। मैंने उसकी बाहों में अपने आप को ढीला छोड़ दिया… चूतड़ो को भी ढीला कर दिया। उसने मेरे पेटीकोट का नाड़ा खींच लिया… मेरे साथ उसका पजामा भी नीचे आ गिरा… उसने मेरा ब्लाऊज धीरे से खोल कर उतार दिया… मेरी छोटी छोटी पर कड़ी चूंचिया कठोर हो गई… उसने मेरे दोनों कबूतर पकड़ लिये… हम दोनों अब पूरे नंगे थे।

मैं उसकी बाहों में कसमसा उठी। मैं सामने बिस्तर पर हाथ रख कर दोहरी होती गई और सिमटती गई… पर झुकने से मेरी गांड खुल गई और उसका लण्ड मेरी दरारो में समाता चला गया… यहाँ तक कि अन्दर के फूल को भी गुदगुदा दिया।

मुझे एकाएक फूल पर ठंडा सा लगा… साहिल ने अपने थूक को मेरे गाण्ड के फ़ूल पर भर दिया था। लगा कि चिकना सुपाड़ा फ़ूल के अन्दर घुस चुका था। मेरे मुख से आह निकल गई… मेरी दुबली पतली काया… गोरी गोरी सुन्दर सी गोल गोल गाण्ड… मेरी प्यासी जवानी अब चुदने वाली थी।

‘हाय रे आरती… कितनी चिकनी है रे… ये गया…’ लण्ड मेरी गाण्ड के अन्दर सरकता चला गया… मेरे दिल में चैन आ गया… चुदाई के साथ सथ ही मेरे शरीर में चुदाई की झुरझुरी भी आने लगी थी कि आखिर चुदाई शुरू हो ही गई।

उसके हाथ मेरी पीठ को सहलाते हुये बोबे तक पहुंच गये थे… और अब… हाय रे… उसने मेरी छाती मसल डाली… मैं शरम से सिकुड़ सी गई… मैं धीरे धीरे बिस्तर पर पसर गई… मैंने अब हिम्मत करके शरम छोड़ दी।

अब मैंने मेरी दोनों टांगे खोल दी… पूरी चौड़ा दी… उसे मेरी गाण्ड मारने में पूरी सहूलियत दे दी… अब मेरे चूतड़ो को मसलता… थपथपाता… नोचता… खींचता हुआ गाण्ड चोद रहा था… मुझे मस्ती चढती जा रही थी। अपनी मुठ्ठियो में तकिये को भींच रही थी। दांतो से अपने होंठो को काट रही थी… और पलंग़ धक्को के साथ हिल रहा था।

अब वो मेरे पर लेट गया था… उसका पूरा भार मेरी पीठ पर था… और कमर हिला हिला कर धक्के मार रहा था। मेरी गाण्ड चुदी जा रही थी। मेरे मुख से बार बार आहें निकल पड़ती थी।

‘मेरी जानू… अब बस… अब तेरी चूत की बारी है…’ और अपना लण्ड गाण्ड से धीरे से निकाला और चूत का निशाना साध लिया। मुझे एकाएक अपनी चूत पर चिकने सुपाड़े की गुदगुदी हुई और मेरी चूत ने लण्ड के स्वागत में अपने दोनों पट खोल दिये… और लण्ड अकड़ता हुआ तीर की तरह अन्दर बढ चला।

‘मां रीऽऽऽऽ आऽऽऽह… चल… घुस जा… राम जी रे…’ मेरा मन और आत्मा तक को शांति मिलने लगी… लण्ड चूत की गहराई तक घुसता चला गया… और जड़ तक को छू लिया। दर्द उठने लगा… पर मजा बहुत आ रहा था। चूत को फ़ाड़ता हुआ दूसरे धक्के ने मेरे मुख से जबरदस्त चीख निकाल दी… मेरी चूत से खून बह निकला…

‘हाय… साहिल देख बहुत दर्द हो रहा है… धीरे कर ना…’
‘हाय रे मेरी बच्ची को मार देगा क्या…’ कमला की पीछे से आवाज आई… मैं घबरा उठी… ये कहाँ से आ गई…
‘नहीं वो धक्का जोर से लग गया गया था… बस…’

‘आरती… मेरी बच्ची… मैं हूँ यहाँ… आराम से चुदवा ले…’ कमला ने हम दोनों को ठीक से लेटाया और तौलिए से खून साफ़ किया और मेरी चूत पर क्रीम लगाई…

‘अरे… गाण्ड भी मार दी क्या…’ मेरे पांव उपर करके गान्ड में भी चिकनाई लगा दी।
‘अब ठीक है… चलो शुरु हो जाओ…’ अब साहिल मेरे दोनों पांवो के बीच में आ गया और लण्ड को चूत में उतार दिया… चिकनी चूत में लण्ड मानो फ़िसलता हुआ… आराम से पूरा बैठ गया। मुझे बड़ा सुकून मिला। अब चुदाई बहुत प्यारी लग रही थी।

कमला भी अब मेरे बोबे सहला रही थी। रह रह कर वो साहिल की गाण्ड भी सहला देती थी थी और अपना थूक लगा कर अंगुलि को उसकी गाण्ड में डाल देती थी। इस प्रक्रिया से साहिल बहुत उत्तेजित हो जाता था।

अब कमला ने साहिल की गाण्ड को अंगुली से चोदना चालू कर दिया था। उसके धक्के भी बढ़ गये थे… मेरी चुदाई मन माफ़िक हो रही थी मेरा जिस्म बिजली से भर उठा था… बदन कसावट में आ चुका था, सारी दुनिया मुझे चूत में सिमटती नजर आ रही थी। लगा कि सारी तेजी… सारी बिजलियाँ… सारा खून मेरी चूत के रास्ते बाहर आ जायेगा… और… और…
‘मां री ऽऽऽऽऽ… हाऽऽऽऽय रे… मर गई…’

‘बस… बस… बेटी… हो गया… निकाल दे… झड़ जा…’ कमला प्यार से मेरे उरोजो को सहलाते हुए झड़ने में मदद करने लगी…
‘मम्मी… मैं गई… ईईऽऽऽऽऽऽऽ… आईईईइऽऽऽऽ… मेरे राम जी…’ और मैं जोर से झड़ गई…

‘अरे धीरे चोद ना… देख वो झड़ रही है…’ उसकी चुदाई धीमी हो गई… ऐसे में झड़ना बहुत सुहाना लग रहा था… पर साहिल जोर लगाने की कोशिश कर रहा था।

कमला ने उसकी कमर थाम रखी थी कही वो झटका ना मार दे। मैंने साहिल का लण्ड बाहर निकाल दिया और करवट ले कर लेट गई। कमला ने उसका लण्ड हाथ में भरा और जोर से रगड़ कर मुठ मारा और ‘ओ मां की चुदी… मैं मर गया… हाय निकाल दिया रे भोसड़ी की…’ और पिचकारी छोड़ दी…

‘देख इस मां के लौड़े को… पिचकारी देख…’ मैंने अपना मुख दोनों हाथो से छुपा लिया। वो झड़ता रहा… और एक तरफ़ बैठ गया।
मैंने जल्दी से पेटीकोट उठाया… पर कमला ने छीन लिया…

‘अभी और चुद ले… अपने पिया तो परदेस में है… सैंया से ठुकवा ले… अभी उनके आने में बहुत महीने हैं…’
‘मांऽऽऽ… तुम बहुत… बहुत… बहुत अच्छी हो’… प्यार से मैं मां के गले लग गई।

मन में आया कि पिया भले ही परदेस में हो… हम माँ बेटी तो साहिल के जिस्म से अपनी चूत की आग तो शांत ही कर सकती है ना…
साहिल एक बार और मेरे पर चढ़ गया… मैंने भी अपने पांव चौड़ा दिये… उसका कठोर लण्ड एक बार फिर से मेरी नरम नरम चूत को चोदने लग गया, लगा मेरी महीनों की प्यास बुझा देगा।

‘बेटी मैं तो जवानी से ही ऐसे काम चला रही हूँ… खाड़ी के देश गये हैं… इस खड्डे को तो फिर पड़ोसी ही चोदेंगे ना…’
‘मां अब चुप हो जा… चुदने दे ना…’ मुझे उनका बोलना अच्छा नहीं लग रहा था… रफ़्तार तेज हो उठी थी… सिसकियों से कमरा गूंज उठा…

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