प्यार का सफ़र-2

मैंने उससे पूछा- इतनी लड़कियाँ तेरे संपर्क में आई कैसे?

उसने कहा- यूँ तो हर शहर में ही लड़कियाँ ऐसे पेशे में होती हैं, पर वहाँ इन्हें पैसे भी कम मिलते हैं और बदनामी का खतरा सबसे ज्यादा होता है। मैंने शुरू में चार लड़कियाँ महीने की तनख्वाह पर रखी थी, धीरे धीरे वो ही सब से मिलवाती चली गई और आज मैं यहाँ तक पहुँच गया। इन्हें छोटे शहर से बुला कर एक महीने की ट्रेनिंग दी और फिर अपने साथ काम में लगाया। अब ये सब तराशे हुए हीरों की तरह हैं।

थोड़ी देर की ख़ामोशी के बाद राजू ने कहा- यह सब भूल जा ! चल तुझे दिल्ली की पार्टी दिखाता हूँ..

राजू मुझे पार्टी में चलने को तैयार होने कह रहा था पर मेरे पास उस वक़्त उन हाई प्रोफाइल पार्टी में जाने वाले कपड़े थे नहीं तो मैं बार बार उसे मना कर रहा था।

राजू ने ज्यादा जोर दिया तो मैंने अपनी परेशानी उसे बताई। वो हंसने लगा, बोला- तू जैसा है वैसे ही चल।

काले रंग की रेंज रोवर थी। मैं अन्दर बैठ गया रास्ते में वो किसी मॉल में मुझे ले गया और कपड़े दिला दिए। थोड़ी देर में हम गुड़गांव के किसी फार्म हाउस में पहुँचे। राजू फ़ोन लगाने लगा, मैं तो बस इधर उधर देख रहा था।

सचमुच आलिशान जगह थी वो ! पच्चीस एकड़ में फैला हुआ तो होगा ही ! हर चीज़ बड़ी करीने से रखी हुई थी, एक तरफ पंडाल लगा था, सफ़ेद संगमरमर का इस्तेमाल लगभग हर जगह किया गया था, बाहर तो जैसे लाल बत्ती वाली गाड़ियों का मेला सा लगा था।

तभी राजू आ गया बोला- अब चल अन्दर…

मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था कि पता नहीं क्या होगा अन्दर…

बड़ा सा दरवाजा जैसे ही खुला तेज और बेहद तीखा धुँआ बाहर निकला मेरा तो जैसे खांसते खांसते बुरा हाल हो गया… राजू मेरे पास आया और कहने लगा- धीरे धीरे आदत हो जाएगी…

जैसे ही मैं सामान्य हुआ, राजू मेरा हाथ पकड़ते हुए अन्दर ले गया..

आज फिर एक बाज़ार सज़ा था… जिस्म की मंडी लगी थी… और हुस्न की नीलामी हो रही थी… पैसों की चमक से हवस को शांत किया जा रहा था। कभी किसी वेश्या की आँखों में झाँक के देखना दोस्त, वहाँ भी एक उम्मीद दिखेगी की कोई आकर उसकी आबरू बचा ले। अजीब बात है न, जिसका काम अपनी आबरू बेच कर कमाना है वो भी ऐसी उम्मीद सजाती है। क्यों न सजाये उम्मीद, आखिर वो भी तो इंसान है आपकी और हमारी तरह ! अगर हम किसी ऊँची मंजिल पाने का ख्वाब सज़ा सकते है तो क्या वो अपनी दुनिया बसाने का ख्वाब नहीं देख सकती।

अन्दर तो जैसे अजीब माहौल था। हवा में चरस गांजे और सिगरेट की महक थी। मादकता अपने पूरे उफान पर थी। तेज संगीत शायद ब्राजीलियन संगीत था, वो बज रहा था। सामने एक भव्य स्टेज लगा था और फिर तो जैसे मेरी आँखें ही चौंधिया गई। वो स्टेज नहीं बल्कि रैंप था जहाँ लड़कियाँ बारी बारी से आ रही थी और अपना एक वस्त्र उतार कर दर्शकों में लुटा रही थी। और फिर पीछे लाइन में खड़ी हो जाती, उनमें कुछ तो विदेशी भी थी।

मैंने राजू से पूछा तो उसने बताया- ऐसी पार्टी में विदेशी लड़कियों के लिए दूसरे प्रबंधक रहते हैं। देशी लड़कियाँ जितनी भी है वो मेरी ही कर्मचारी हैं।

तभी वहाँ उपस्थित सभी लोग जोर जोर से चिल्लाने लगे। राजू मेरे पास से हट कर स्टेज पर चला गया। मैं भी कौतुहलवश उधर देखने लगा। एक एक कर अब सभी लड़कियाँ पूरी नंगी हो चुकी थी। उनमें से एक आगे राजू के पास आई और सामने पोल पकड़ कर बड़ी ही अदा से खड़ी हो गई। नीचे खड़े लोग बोलियाँ लगाने लगे। मेरे लिए तो जैसे आश्चर्य की ही बात थी। जैसे ही एक की बोली समाप्त होती दूसरी सामने आ जाती।

धीरे धीरे सभी की बोलियाँ लग गई। सभी अपनी खरीदी हुई लड़कियों को ले के अपने कमरों में चले गए। अब मैदान पूरा खली था। राजू मेरे पास हाथ में विदेशी शराब की बोतल लेते हुए आया। थोड़ी देर में हम दोनों ही नशे में थे।

उसने मुझसे कहा- यार, प्लीज यह बात हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए, मैं मजबूरी में इस दलदल में फंस गया हूँ और यहाँ से वापिस जाने का भी कोई रास्ता नहीं है।

मैंने कहा- रास्ता तो हर वक़्त सामने ही होता है, बस इंसान का खुद पर नियंत्रण होना चाहिए, फिर भी मैं यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच ही रखूँगा…

हम अक्सर यह सोचते हैं कि गलत रास्तों से लौटने का कोई रास्ता नहीं होता पर असल में हमें उसकी आदत हो चुकी होती है। गलत रास्ते से मिलने वाली दौलत और शौहरत हमारी आँखों को अंधा कर चुकी होती है। हमें लगता है अब कुछ नहीं हो सकता। पर असल में अन्दर ही अन्दर हमें यह पता होता है हम इस नशे से दूर नहीं जा सकते, गए तो जी नहीं पायेंगे।

हम दोनों अभी बात ही कर रहे थे कि एक खूबसूरत सी लड़की आकर हमारे सामने खड़ी हो गई। ऐसा लगा मानो उस रात चाँद की चांदनी स्त्री रूप धारण कर मेरे सामने आ गई हो।

राजू ने मुझे उससे मिलवाया, कहा- ये ऐश्ले संधू है…

मुझे कुछ समझ में ना आया।

तब राजू ने कहा- तुम इसे ऐश बुला सकते हो। यह पंजाब के एक गाँव की रहने वाली है।मुझे तो देखने से एन आर आई लग रही थी। राजू ने कहा इसकी एक हफ्ते की ट्रेनिंग बाकी है, तुम्हीं दे दो… आज अपार्टमेंट में तो छा गए थे तुम। तेरे संपर्क में रहेगी तो सब सीख जायेगी।

मैं सोच रहा था कि पैसा भी क्या चीज़ है शीशे को भी छू जाए तो वो बहुमूल्य रत्न बन जाए।

राजू उसे मेरे पास छोड़ अन्दर कहीं चला गया..

ऐश मेरे पास आई और अपनी बांहें मेरे गले में डाल चिपक कर बैठ गई। मैं थोड़ा हटने को हुआ तो उसने मेरे गालों को चूम लिया और कहने लगी… “ओये सोहण्यो, हुण मैं त्वान्नू इस हफ़्ते ताईं नई छड्डांग़ी। मैन्नू सव कुज सखाओ !”

मैंने उससे कहा- मुझे पंजाबी ज्यादा नहीं आती, मेरे साथ हिन्दी या अंग्रेजी में बात करो !

तो ऐश बोली- जान, अब एक हफ्ते तक मैं तुम्हें छोड़ने वाली नहीं हूँ, मुझे सब कुछ सीखना है तुमसे !

मैंने कहा- मैं तो सिर्फ चुदना सिखा सकता हूँ।

वो मेरी गोद में बैठ गई और कहने लगी- तो चोद न मुझे !”

पर पता नहीं क्यों इतनी देर से इतनी लड़कियों को नंगा देख रहा था कि अब ये कामवाण भी मेरे लिंग को उफान पर लाने में असमर्थ हो रहे थे।

मैंने उससे कहा- कहीं बाहर खुले में चलो, यहाँ अजीब सी घुटन हो रही है…

उसने कहा- मैं तो अब उतरूंगी नहीं, तुम्हारी गोद में ही रहूंगी, तुम्हें जहाँ ले चलना है ले चलो।

मैंने उसे अपने हाथों में उठाया और लेकर बाहर आ गया..

आज तो स्त्री का एक नया ही रूप मेरे सामने था। वो चाहे कुछ भी कह ले कैसे भी कहे पर उसकी आँखें बहुत कुछ कहे जा रही थी। मैं उसे छू कर भी जैसे छू नहीं पा रहा था। वो मेरे गोद में थी पर अभी भी ऐसा लग रहा था जैसे मैं उससे कोसों दूर हूँ। प्यार और हवस में शायद यही अंतर था। प्यार में तो कोई करीब ना भी हो तो भी उसके छूने का एहसास खुद ही महसूस होता है… और इस वक़्त मेरे इतने करीब होते हुए भी मुझसे बहुत दूर थी।

अब थोड़ी राहत मिल रही थी। यह उस फार्म हाउस का पिछला हिस्सा था। इस हिस्से में पानी का फव्वारा लगा था, उसके चारों तरफ संगमरमर के बेंच लगे थे वो इतने चौड़े तो थे कि हमारा काम हो जाता। पास ही शराब का काउंटर लगा था। मैंने ऐश को बेंच पर लिटाया और बीयर की बोतल लेता आया।

उसकी आँखें बंद थी… क्या लेटने का अंदाज़ था, उसका सफ़ेद बदन संगमरमर को चुनौती दे रहा था। इस मुज़स्स्मे के एक एक अंग को जैसे किसी संगतराश ने पूरी फ़ुर्सत में तराशा हो ! जैसे किसी बेहद माहिर जौहरी ने कोहिनूर से नूर लेकर इसके एक एक अंग में भरा हो !

गुलाबी रंग की फ्रॉक जो मुश्किल से पैंटी को छुपा रही थी, स्तनों के आकार तो नामर्द को भी पागल कर दे। मैं बीयर के ढक्कन हटा उसके पास गया और उसके पैरों पर डालते हुये ऊपर उसके स्तनों तक को नहला दिया। अब पैरों से ही मेरी जिव्हा ने अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया। जहाँ तक बीयर की बूंदें छलकी थी वहाँ तक चूस चूस कर साफ़ करने लग गया।

कपड़ो के ऊपर से ही पूरे जिस्म को चूमने के बाद अब उसके होंठों तक पहुँचा। गुलाबी होंठ जिससे अपने होंठों को अलग करने का जी ही नहीं कर रहा था।

तभी ऐश पलट गई और अपनी फ्रॉक की चेन खोलने की कोशिश करने लगी। मैं उसके हाथों को हटाता हुआ बांये हाथ से चेन खोल रहा था और दांये हाथ से बाकी बची बीयर उसकी पीठ पर डाल रहा था और अपने होंठों से उन बीयर की बूंदों को साफ़ भी करता जा रहा था।

ऐश तो जैसे पागल हुई जा रही थी। वो पल्टी और मुझे उस बेंच पर उसने पटक दिया। खुद नंगी हुई और मुझे भी नंगा कर दिया। मैंने उसे रोकते हुए गले से लगा लिया और धीरे से उसके कान में कहा- जान, ट्रेनिंग मैं दे रहा हूँ।

अब एक और बोतल का ढक्कन खुला और मेरे पूरे शरीर पर उसने उसे उड़ेल दिया। अब बारी बारी सारी बूँदें अपनी जीभ से साफ़ करने लगी। साफ करते हुए मेरे लिंग तक पहुँची और अपनी जिह्वा के वार से उसे घायल करने लगी।

जब मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा था तो उसे उठा कर अपने नीचे कर लिया अब मेरा लिंग उसकी योनि को छू रहे थे… ऐश ने अपने हाथों से मेरे लिंग को दिशा दी और मैंने भी पूरे जोश में एक जोरदार धक्का दे दिया।

ऐश की तो जैसे चीख ही निकल गई। अब मैं खुद को नियंत्रित करने में असमर्थ था। उसकी टांगों को अपने कंधें पे रखा और उसके नितम्ब बेंच के कोने से टिका दिए, खुद नीचे खड़ा हो धक्के लगाने लगा।

करीब दस मिनट बाद मेरा झड़ने को हुआ तो योनि से निकाल अपना लिंग उसके मुख में दे दिया। उसकी प्रशिक्षित जिह्वा और हाथ जल्द ही मुझे निचोड़ गए, सारा रस वो पी गई।

फिर हमने फव्वारे में नहाते हुए एक बार और काम क्रिया का आनन्द लिया।

दिल्ली में बिताये एक हफ्ते बहुत हसीन रहें…

कहानी कैसी लगी मुझे मेल कीजियेगा !

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