पुसी की किस्सी-2
प्रेषक : जवाहर जैन
अन्तर्वासना के सभी पाठक जिन्होंने मेरी कहानी पढ़ी और अपनी टिप्पणी लिखकर कहानी के बारे में अपनी राय बताई, उन्हें बहुत धन्यवाद के साथ यह बताना चाहूँगा कि इस कहानी में मैंने किसी भी अतिश्योक्ति को लिखने से परहेज किया है और आप सबके प्यार व विश्वास ने ही मुझे “पुसी की किस्सी” से आगे का हाल जल्दी ही लिखने को प्रेरित किया हैं।
एक बात और कि मुझे बहुत से पाठकों से ऐसा आदेश मिला है कि इस कहानी को वहीं से शुरू करूँ जहाँ से पुसी की किस्सी के पहले भाग को छोड़ा था।
लीजिए प्रस्तुत है उसके आगे की बात:
अब तक मैं व स्नेहा एकदम नंगे एक दूसरे से चिपक कर पड़े हुए थे। मैंने सोचा कि यार इस कीमती वक्त को गवां दिया तो पता नहीं ये माल फिर कब मिलेगी। तो मैंने फिर से उसके होठों पर अपने होंठ चिपका दिए और उसकी जोरदार पप्पी लेने के बाद उसके शरीर से थोड़ा नीचे हुआ व उसके निप्पल को चूसने लगा।
दोनों निप्पलों को जी भर के चूसने के बाद थोड़ा और नीचे हुआ व अब उसकी नाभि में जीभ की नोक से पूरी गहराई तक डाल ही रहा था कि तभी हमारे कानों में बैलों के रंभाने और उनके गले में बंधी घंटी के बजने की आवाज सुनाई दी।
यह सुनते ही स्नेहा ने मुझे अपने से अलग हटाया और पलंग से नीचे उतरते हुए बोली- सुबह हो गई है, कपड़े पहनो, जल्दी !मैंने पलंग से करीब ही रखी घड़ी पर नजर डाला तो सुबह के साढ़े चार बज रहे थे। मैंने स्नेहा से कहा- थोड़ी देर और बस जल्दी ही करते हैं।
अब तक स्नेहा अपनी ब्रा पहन चुकी थी और गाउन को पहनने की तैयारी कर रही थी, उसने कहा- नहीं, अब नहीं ! मम्मी-पापा उठ गए होंगे। मुझे तुरंत नीचे जाना होगा। आप भी जल्दी चलिए, नहीं तो दीदी आपको सवाल पूछकर परेशान कर देगी।
अब मैं भी अपने कपड़े समेटने लगा।
गाउन के बाद स्नेहा ने अपनी पैन्टी पहनी, और तेजी से दरवाजे की ओर बढ़ी। दरवाजे को खोलकर बाहर निकल कर झांका और आगे बढ़ गई। अब मुझे उसके सीढ़ियों से नीचे उतरने का आभास हो रहा था। मैंने भी अपने कपड़े करीब-करीब पहन ही लिए थे, तभी मुझे चादर पर खून का धब्बा लगा दिखा। मैंने पढ़ा और सुना था कि पहली बार की चुदाई से लड़की की चूत में बनी झिल्ली फट जाती है जिसके कारण खून निकलता है।
मैंने जल्दी से चादर हटाया और उसे यूं ही मोड़कर गद्दे के ही नीचे डाल दिया। तब मुझे दिखा कि स्नेहा का खून तो ऊपर की चादर से रिसकर नीचे गद्दे तक आ गया हैं। अब मेरे हाथ पैर फूल गए, यदि भाभी ने यह देख लिया तो बहुत गलत हो जाएगा।
यह सोचकर पूरे कमरे में नजर दौड़ाई, तभी मुझे वहाँ एक रस्सी पर लटके बहुत से कपड़े दिखाई दिए। उन सारे कपड़ों को समेटकर मैंने पलंग पर ही गद्दे के उपर लाकर रख दिया। अब मैंने पूरे कमरे में नजर दौड़ाई ताकि हम लोगों के यहाँ मस्ती करने का भान किसी को न हो। यहाँ सब कुछ ठीक पाकर मैं भी नीचे अपने कमरे में जाने बढ़ चला।
सीढ़ी से उतरते ही नीचे का बाथरूम है। मैं जल्दी से बाथरुम में घुसा और बाद में यहाँ से आराम से टहलते हुए अपने बिस्तर तक पहुँच गया।
बिस्तर में लेटते ही मैंने स्नेहा की जोरदार चुदाई को बिना किसी को खबर हुए शांतिपूर्वक ढंग से निपटने पर ईश्वर का शुक्रिया अदा किया।कुछ ही देर में मुझे नींद आ गई। सुबह भाभी के जगाने से मेरी नींद खुली।
उन्होंने कहा- क्या बात हैं जस्सूजी? इतनी तगड़ी नींद तो आपको अपने घर में भी नहीं आती? क्या बात है, कहाँ की नींद का कोटा पूरा कर रहे हैं?
मैं उठा और पूछा- कितने बज गए हैं?
भाभी बोली- 10 बज रहे हैं।
मैं हड़बड़ाते हुए बोला- अरे वाह, भाभी यहाँ तो समय का पता ही नहीं चलता।
भाभी हंसते हुए बोली- हाँ, यह भी सही है। चलिए आप जल्दी तैयार हो जाइए, आज से शादी के कार्यक्रम होंगे ना।
भाभी चली गई, अब मैं भी कमरे से बाहर आया और टायलेट में गया। करीब आधे घंटे में मैं तैयार हुआ व अपने कमरे में ही नाश्ते की इंतजार करने के बदले स्नेहा को देखने की ललक से रसोई की ओर ही बढ़ लिया।
वहाँ मुझे पता चला कि मोन्टू की शादी के कारण आज से घर में नाश्ता व खाना बनाने के लिए रसोइए लगाए गए हैं।मुझे यहाँ स्नेहा नजर नहीं आई। रसोई के बाहर आंगन में ही भैया व भाभी के पिता भी बैठे हुए थे।
भैया बोले- तू तो बहुत देर तक सोया?
मैं बोला- हाँ ! भाभी मुझे उठाती नहीं, तो पता ही नहीं लगता कि इतना ज्यादा टाईम हो गया है।
तब तक भाभी भी आ गई, उन्होंने कहा- मोन्टू तो जा नहीं पाएगा, उसे यहाँ मंडप में रहना होगा, आप ही चले जाइए ना।
भैया बोले- ठीक है, या जस्सू भी जा सकता है। अभी कल ही तो इसने गांव घूमा है।
मैं बोला- कहाँ जाना है?
भाभी भैया से बोली- हाँ आप बैठे रहिए, जस्सूजी ही ले जाएंगे।
फिर मेरी ओर आते हुए बोली- जस्सूजी कल आप मौसीजी के यहाँ गए थे ना। उस ओर ही पर उससे बहुत पहले मुड़ना है, वहाँ एक डाक्टर बैठता है, उसके पास ही जाना है।
मैं बोला- ठीक है, चलिए।
भाभी बोली- अरे मुझे नहीं, स्नेहा को ले जाना है।
अब चकराने की बारी मेरी थी, मैं बोला- उसे क्या हुआ? कल तक तो अच्छी थी, ये आज अचानक डाक्टर का चक्कर क्यूं?
मेरे मन में उसके संबंध में कई तरह के विचार आ रहे थे, भाभी हंसते हुए बोली- कल आप उसे घुमाने ले गए थे ना, जाने क्या-क्या किया कि उसकी तबियत ही बिगड़ गई है।
मैं बोला- अरे मैंने क्या किया? चाहो तो स्नेहा से पूछ लीजिए।
भाभी मेरी हालत देखकर जोर से हंसने लगी।
मैं बोला- शादी का घर है भाभी आप तो मेरे बारे में ऐसी बातें उड़ा दोगी तो फिर कोई शादी ही नहीं करेगा मुझसे, पड़ा रहूंगा कुवांरा ही। भाभी बोली- जस्सूजी, आप चिंता मत कीजिए आपकी शादी कराने की जिम्मेदारी मेरी हैं। अभी फटाफट स्नेहा को लेकर डाक्टर के पास जाइए।स्नेहा को ले जाने के लिए मुझे बाइक दी गई। मैं बाइक लेकर मेन गेट के सामने ही खड़ा हो गया। तभी भाभी स्नेहा को लेकर आई। स्नेहा लड़खड़ाते हुए चल रही थी। चेहरा फ्रेश था,पर बहुत थकी हुई लग रही थी।
भाभी बोली- आप इसे लेकर चलिए, मैं भी पैदल आ रही हूँ।
मैं बोला- क्या भाभी, आप भी कर दी ना परायों जैसी बात ! डाक्टर से क्या बोलना है, मुझे बता दीजिए, मैं इनका डाक्टर से पूरा चेकअप करा के लाता हूँ।
अब स्नेहा भी बोली- आप घर के काम देखो दीदी, मैं डाक्टर से बता दूंगी।
भाभी बोली- ठीक है, जाओ फिर।
मैं गाड़ी को आगे बढ़ाते साथ ही स्नेहा से पूछा- क्या हो गया, कैसा महसूस कर रही हो?
स्नेहा बोली- अरे, मुझे कुछ नहीं हुआ। कल पूरी रात जागी, सुबह 6 बजे ही दीदी जगाने आ गई, मुझे जोर से नींद आ रही थी इसलिए उन्हें बोल दिया कि तबियत ठीक नहीं लग रही है। इस कारण ही अभी तक आराम करने मिल गया।
मैं बोला- वो तो ठीक है पर डाक्टर को क्या बताएंगे?
वो बोली- थोड़ा चक्कर आ रहा है और कमजोरी लग रही है, इसकी दवाई ही ले लेंगे।
मैंने स्नेहा से कहा- दिन में तुम आराम कर लो, पर आज रात को मेरे लिए भी थोड़ा वक्त निकाल लेना।
उसे मैंने ऊपर कमरे की चादर व गद्दे में खून के दाग लगने की जानकारी देकर उसे भी ठीक करने कहा। कुछ ही देर में हम लोग डाक्टर के पास पहुँच गए।
यहाँ स्नेहा ने दवाई ली और हम लोग वापस घर पहुंच गए।
घर में मैंने भाभी से कहा- डाक्टर ने कहा कि काम ज्यादा करने की वजह से कमजोरी के कारण इसकी तबियत बिगड़ी है, इसलिए इसे आराम करने दीजिए।
भाभी स्नेहा को अंदर लेकर गई व खाना देकर सोने कह दिया। इधर घर में दिन भर शादी के कार्यक्रम चलते रहे। रात में खाने के समय मुझे स्नेहा दिखी। उसे देखते ही मैंने उसे किनारे मिलने का इशारा किया।
स्नेहा मिली तो मैंने कहा- चलें ऊपर !
उसने कहा- नहीं, आज ऊपर कमरे में वो नहीं हो पाएगा, सब मेहमान लोग घर में रहेंगे ना, पर आप चिंता मत करो ! मैं आपके कमरे में आ जाऊंगी।
सही में आज घर में मेहमान बहुत आ गए थे। खैर रात को सोने के लिए मैं अपने नीचे के कमरे में गया।मैं आँख बंदकर पड़ा था कि तभी स्नेहा और भाभी की आवाज सुनाई दी।
भाभी बोल रही थी- हाँ, यहीं दरवाजे के पास तू सो जाना। जस्सूजी उधर सोए हैं। यहाँ कोई तुझे उठाने भी नहीं आएगा, तेरी नींद भी पूरी हो जाएगी।
यूं मेरे कमरे के बाहर ही स्नेहा का बिस्तर डल गया था। यहाँ भाभी भी स्नेहा को सुलाकर चली गई। अब मैं अपने बिस्तर से उठा और स्नेहा के पास जाकर उसके स्तन को दबाया और उसके बिस्तर पर ही उसके बाजू में घुसा।
अब स्नेहा भी तैयार थी, उसने मेरे होंठ पर लंबा चुम्बन लिया, अब उसकी जीभ मेरी जीभ से खेल रही थी।
मैंने उसके निप्पल को सहलाया तो महसूस हुआ कि उसके निप्पल एकदम कड़े हो गए हैं। अब उसके हाथ मेरे पजामे और अंडरवियर को नीचे सरकाते हुए मेरे लंड को बाहर निकाला। अब उसने मेरे मुंह से अपना मुंह हटाया और नीचे सरककर लंड को अपने मुंह में ले ली।
मैंने उसे पलटाया और उसकी सलवार उतारकर चूत चाटने लगा। अब वो पूरी गरम और चुदने को तैयार थी। खुद वह ही सीधी हुई और मेरे ऊपर चढ़ कर लंड से चूत लगा दी। मेरे होंठ चूसते हुए धीरे-धीरे मेरे लंड को अपनी चूत के अंदर करने लगी। थोड़ी ही देर में लंड पूरा अंदर हो गया, तब वह आगे पीछे करके मुझे चोदने लगी।
कुछ ही देर में हम दोनों तकरीबन एक साथ ही झड़े। मैं स्नेहा को अपनी बाहों में समेटकर फिर से मूड बनने का इंतजार कर रहा था कि स्नेहा ने खुद को मुझसे अलग किया और अपना सलवार ठीक करने लगी।
मैंने उसे अपनी ओर खींचते हुए कहा- अभी तो पूरी रात बाकी है जानू, अभी से कपड़े क्यूं पहन रही हो?
स्नेहा ने कहा- मैं इसी कमरे में हूँ, कपड़े ठीक कर ले रही हूँ, ताकि कोई आए तो हम चुदाई कर चुके हैं ये पता मत चले। हम वैसे ही चिपके रहे, थोड़ी देर में मेरा लंड उछलने लगा, तो हम लोगों ने फिर चुदाई की।
इसके बाद मैं अपने बिस्तर पर आ गया। रात को स्नेहा को नींद नहीं आ रही थी, सो वह मेरे बिस्तर पर आकर मेरे साथ लेटी। यहाँ बात करते हुए उसने मेरे नूनू को प्यार करना शुरू कर दिया। बस फिर क्या था। नूनू लंड बन कर फिर तैयार हो गया, लिहाजा इस बार उसे नीचे करके मैंने चुदाई की, पर इस बार झड़ते ही स्नेहा उठकर अपने बिस्तर पर चली गई और दोनों कल फिर मौका निकालकर चुदाई करने की बात कर सो गए।
पर यह भाभी यानि स्नेहा के घर में मेरे इस प्रवास की हमारी आखिरी चुदाई ही साबित हुई क्योंकि घर में मेहमानों की संख्या भी बढ़ गई थी इस कारण हमें चोदने के लिए जगह नहीं मिली और शादी के दूसरे दिन ही हमें घर लौटना पड़ा।
आते समय स्नेहा को मैंने किस किया और उसके स्तन दबाते हुए कहा- अब कब मिलोगी?
तब उसने मेरे लंड को पैन्ट के ऊपर से ही सहलाते हुए कहा- बहुत जल्द ही मैं तुम्हारे घर आकर इस नूनू को अपने गोदाम में बंद कर लूंगी।
उस समय तो मैं इसे स्नेहा का बढ़िया डायलाग मानकर बात को भुला दिया पर उसके इस डायलाग के करीब एक माह बाद ही मुझे उसकी बात सच होती नजर आई।
रात को खाने की मेज पर हम सभी बैठे हुए थे, तभी मेरी मां ने कहा- जस्सू, तेरी भाभी की बहन स्नेहा हम सभी को तेरे लिए पसंद है। वो तुझे कैसी लगती है?
मैंने कहा- वो जब आप सबको पसंद है तो फिर मुझे भी पसंद है।
माँ बोली- फिर ठीक है, कल उसके पापा तुम्हारे रिश्ते की बात करने आ रहे हैं।
दूसरे दिन भाभी के पिता मतलब स्नेहा के पापा और उसके भाई व भाभी आए। उसके भाई भाभी को शादी के बाद मेरे घर खाना खाने बुलाया गया था, साथ में उनके पापा स्नेहा की शादी मेरे साथ तय करने आए थे। घर में सभी ने इस शादी को मंजूरी दी। इसी दिन शादी की तारीख भी तय की गई।
समय पंख लगाकर उड़ा, और हम दोनों निश्चत तिथि पर परिणय बंधन में आबद्ध हो गए।
अब आई वो रात जिसकी याद हर कोई अपनी पूरी जिंदगी में करता है, जी हाँ- सुहागरात।
सुहागरात की बात बहुत जल्द। कहानी आपको कैसी लगी, कृपया बताएँ !
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