पंखी पता नहीं बताते-1
प्रेषक : शकील फ़िरोज़
दोस्तो, मेरा नाम शकील है। मैं एक बार ट्रेन में मुंबई का सफ़र कर रहा था, वैसे भीड़ तो न थी और ट्रेन खाली थी। ट्रेन रुकते ही एक आदमी गुजरात के आनंद से चढ़ा, आकर मेरी बगल में जगह थी तो बैठ गया। थोड़ी देर बाद उसने मेरे बारे में पूछा। मैंने उसे अपना नाम बताया। उसने अपना नाम राकेश बताया। वो कह रहा था मुझे वापी एक कंपनी में काम से जाना है, कल के मिलने का समय तय है, आज दमन जाऊंगा और एकाध बोतल विहस्की पिऊँगा।
उसकी बातें चल रही थी और ट्रेन बहुत धीमी चल रही थी कि अचानक बीच में रूक गई। आधा घंटा हो गया मगर ट्रेन चलने का नाम नहीं ले रही थी। राकेश ने मुझसे बातों का दौर चालू रखा, उसने अपने सफ़र की कहानियाँ सुनानी शुरू की। वो बातें कर रहा था, उतने में गार्ड ने आकर कहा- ट्रेन का इंजन फेल हो गया है, देर लगेगी।
राकेश तो बेफिक्र होकर बातों में लग गया। उसने कहा- यार शकील, अपनी एक सच्ची कहानी सुनाता हूँ।
हम पटरी के किनारे पेड़ की छाँव में बैठ गए।
उसने बताया- शकील सुनो, मैं एक काम से शोलापुर जा रहा था। ट्रेन न मिलने के कारण मुझे बस में सफ़र करना पड़ा, मैंने मुंबई से बस पकड़ ली, सोचा यही सही।
बस में बहुत कम लोग थे। कोई सीज़न नहीं था। बस नवी मुंबई में आ गई। जैसे रुकी तो दो बुर्के वाली औरतें बस में चढ़ गई। यहाँ-वहाँ देखने के बाद एक औरत मेरे बाजू में बैठ गई।
मैंने सोचा- बस खाली है तो दोनों साथ ही क्यों नहीं बैठी।
मुझे कोई ऐतराज नहीं था।
बस ने मुंबई छोड़ने के बाद स्पीड पकड़ ली। मुझे हल्की सी नींद आ रही थी। मैं अदब से हाथ बांधकर सो रहा था और मुझे ख्याल ही नहीं रहा कि मेरा हाथ उस बुरके वाली को लग रहा था। जैसे मुझे इस बात का पता चला, मैंने उसे कहा- मैडम मैं उठता हूँ और आप अपने साथ वाली औरत के साथ बैठो ! मैं कहीं और बैठता हूँ।
तो उसने मुझे मना किया और वहीं बैठने के लिए मजबूर किया।
थोड़ी देर बाद हाइवे पर एक ढाबे के पास बस रुकी वो और उसकी सहेली उतर रही थी और अचानक उसने मुझसे कहा- चलो चल कर थोड़ा टांगें खोल लो।
मैं भी उतर गया। उसके साथ वाली महिला खाने की चीजें लेने आगे चली गई। उसने मुझे एक कोने में बुलाया और पूछा- कहाँ जा रहे हो?
मैंने कहा- मैं शोलापुर जा रहा हूँ, और तुम?
उसने कहा- मैं शोलापुर के पहले उतरूंगी।
उसकी सहेली कुछ बिस्कुट और वेफर और थम्स-अप ले आई। मैंने सोचा कि अब दोनों मिलकर खाएँगी। मगर दोनों ने मुझे भी खाने में साथ देने कहा। मैंने थोड़ा सा बिस्कुट लिया और कहा- बस आप खा लो, मैंने टिफिन मुंबई से बंधवा लिया है।
बस के ड्राइवर ने हॉर्न बजाया, हम बस में बैठ गए। वो मेरे और करीब आई और रात का अँधेरा होने लगा। बस की बत्तियाँ बुझा दी गई ताकि ड्राइवर को चलाने में तकलीफ न हो।
यह देखकर उसने अपना बुरका हटा दिया पर अँधेरे के कारण मैं कुछ देख नहीं पा रहा था। अचानक उसने मेरी जांघ पर हाथ रख दिया और कान में बोली- क्या नाम है?
राकेश ! और तुम्हारा?
वो बोली- मेरा नाम शबाना और उसका नाम है रुखसाना। मगर मुझे शब्बो अच्छा लगता है।
उसकी हिम्मत बढ़ गई। मेरे छाती पर हाथ फेरने लगी। मैं कुछ न बोला पर थोड़ा सहम गया। उसने मेरा हाथ पकड़ कर बुर्के के अन्दर अपनी छाती पर रख दिया।
आआआह क्या सकून मिला।
मैं समझ गया कि शोलापुर तो बाद में आएगा, पर अब सेक्स का शोलापुर आने वाला है।
उसने धीरे से मेरे लौड़े को पकड़ लिया। बस फिर क्या था लौड़ा टनाटन हो गया। मैं अपने को रोक नहीं पा रहा था। मैंने भी उसके नीचे हाथ फिराना शुरू किया। खेल जम ही रहा था कि इंजन के पास बस में आवाज आने लगी।
ड्राईवर ने कहा- बस बिगड़ गई है, जैसे-कैसे डिपो ले चलता हूँ। मरम्मत होने में कितना वक्त लगेगा, मालूम नहीं।
मैं तो चकरा गया। अरे समय पर पहुँचूंगा या नहीं?
कैसे-कैसे बस डिपो पहुँची। थोड़ी देर बाद मिस्त्री ने आकर कहा- बस ठीक होने में दो-तीन घंटे लगेंगे और इस डिपो पर दूसरी बस भी नहीं है।
सारे लोग उतर गए। कुछ लोगों को नजदीक ही जाना था उन्होंने अलग इन्तज़ाम किया और चले गए। हम तीनों भी उतर गए, सोचा कि कहीं साधारण सा होटल मिले तो मैं आराम कर लूँ।
वो दोनों शब्बो और रुखसाना भी मेरे साथ चल पड़ी।
शब्बो ने कहा- क्यों ? हमें ऐसे अकेले छोड़ कर जाओगे?
मैं- चलो, तुम भी दूसरा कमरा ले लो !
शब्बो- नहीं हम तुम्हारे साथ रहेंगे।
रुखसाना- हाँ !
मैं- पर यह कैसे हो सकता है? और मैं तो…. !
शब्बो- कुछ मत बोलो, चलो, कमरे ले लेते हैं।
हमने एक साधारण सा कमरा ले लिया, उसमें एक पलंग और मेज और पंखा और लाईट थी।
कमरे में जाते ही……..
मैं- तुम दोनों ऊपर सो जाओ, मैं नीचे किसी तरह आराम कर लूँगा।
तब शब्बो ने अपना असली रंग दिखाया।
शब्बो- अरे चिकने ! आराम की बात छोड़ो। अब तुम दो शेरनियों का शिकार हो। रुक्कू ! तू कह रही थी न कि तुझे चुदवाना सिखना है ! ये देख ! है न मस्त मर्द?
ऐसा कहकर शब्बो ने बुरका उतार दिया।
बाप रे ! क्या हीरा छिपा था। उसने सिर्फ सफ़ेद कसी हाफ पैंट और लाल टी-शर्ट पहनी थी।
उसकी सहेली रुखसाना- एरी, क्या लग रही है साली ? तूने ये कपड़े पहने और मुझे बताया भी नहीं?
शब्बो- रुक्कू ! तू बोल रही थी कि किसी अनजाने से चुदवाना है ताकि काम भी हो और बदनाम भी न हो ! तो यह मौका मिल ही गया। अब तू एक तरफ़ हो जा। राकेश, पलंग पर बैठ।
मेरे बैठते ही वो मेरे गोद में बैठ गई और मेरे छाती के बालो में हाथ फिराने लगी। उसके नर्म और बड़े बड़े कूल्हे ललचा रहे थे।
शब्बो- हे सेक्सी, आज एक औरत तुझे चोदने के लिए मजबूर कर रही है, कभी ऐसा मौका मिला है?
उसने एक-एक करके मेरे सारे कपड़े उतार दिए। मैं अब पूरी तरह नंगा था। उसने झपटकर मेरे लौड़े को मुँह में ले लिया। मेरे मुँह से सिर्फ आआआह के सिवा कुछ नहीं निकल रहा था। उतने में रुकसाना ने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए। वो भी काफी सेक्सी थी।
शब्बो- साली रांड ! रुक मैं अभी तक इसे चख रही हूँ, उसके पहले ही तू तैयार हो गई? ऐसे ठीक नहीं ! देख मैं पहले चुदवाऊँगी और मुझे देखकर तू चुदवा लेना !
रुकसाना ने मुझे इशारा किया कि मैं शब्बो को नंगा करूँ।
इधर शब्बो मस्त हो गई थी।
शब्बो- रुक्कू (रुकसाना को) मैंने इस भड़वे को बस में ही देख लिया और जानबूझ कर इसके पास बैठ गई। सोचा इससे हम शोलापुर जाकर चुदएंगे और वहाँ से वापस गुलबर्गा की दूसरी बस पकड़ेंगे। मगर इन्तजार नहीं करना पड़ा। मौका अपने आप चला आया।
मैंने अब शब्बो को कस कर बाहों में ले लिया। उसके चूचे एकदम कड़क थे।
मैं- शब्बो, तेरे गेंद तो जबरदस्त हैं।
रुक्कू- राकेश, यह दो बच्चों की माँ है। फिर भी कैसे टनाटन है। हमारे मोहल्ले में इसकी एक झलक के लिए लोग तरसते हैं।
शब्बो- यह भड़वा तो नसीब वाला है कि इसे ऐसे गेंद खेलने के लिए मिले, वरना यह शब्बो किसी आंडू-पांडू को घास नहीं डालती।
मैंने उसकी गांड पर हाथ फेरना चालू किया। क्या मुलायम गांड थी। मैंने उसकी गांड को चूम लिया।
शब्बो- राकेश, उ उ उ उ ह ! बहुत अच्छा लगता है। भड़वे, मेरी टी-शर्ट खोल, पैंट खोल ! मुझे पूरी नंगी कर अपने हाथों से।
मैंने धीरे धीरे करके टीशर्ट और हाफपैंट खोल दिए। वो साली काली ब्रेज़ियर और काली पैंटी पहने थी। गोरा बदन और ये काले कपड़े ! साली मस्त लग रही थी।
मौका पाकर रुक्कू ने उसके गेंदों की बाजी उसके हाथ में ले ली। मैंने शब्बो को पलंग पर लिटा दिया और उसकी दुकान को चाटना शुरू किया।
शब्बो- रुक्कू, अब अपनी चूत मेरे मुँह में दे। आ स्साली ! तुझे भी सिखा दूं कि चुदवाते कैसे हैं !
अब उलटा होकर राकेश का लौड़ा चूसना शुरू कर ! और मैं तेरे कुंवारी चूत को रस से तैयार कर दूँ।
रुक्कू ने तो कमाल किया, झट से शब्बो के ऊपर आई और मेरा लौड़ा चूसने लगी।
और शब्बो ने उसकी चूत में आहिस्ता से दो उंगलियाँ घुसा दी। रुक्कू की एक सिसकी आई और फिर शब्बो ने उसके चूत का रसपान शुरू किया।
थोड़ी देर बाद शब्बो पलटी और रुक्कू को लिटा कर अब अपनी दुकान चटवाने लगी।
मैं- तुम्हारी तो चूत नही है ! भोसड़ा बन गया होगा।
शब्बो- हाँ रे राज्जा। मुझे नए और अनजान लौड़े बहुत पसंद हैं। पाकिस्तान से मेरी फूफी आई थी, साली क्या गजब की थी। उसने मुझे चुदवाना सिखाया और मैं रुक्कू को सिखा रही हूँ। ला अपना लौड़ा मुझे पूरी तरह चूसने दे।
दूसरे भाग में समाप्त !
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