ऑपरेशन टेबल पर चुदाई-3

प्रेषक : अजय शास्त्री

मेरा 8 इंच का लौड़ा उसकी पैन्टी से रगड़ खा रहा था। मेरे लंड ने महसूस किया कि उसकी पैन्टी एकदम गीली हो चुकी थी।

“डाल दो ना !” उसने मेरे कानों में फुसफुसाते हुए कहा।

मैं उसे छोड़ कर सीधा उसकी दोनों टाँगों को हल्का फैलाते हुए उनके बीच बैठ गया और मैंने एक नज़र किरण के जिस्म पर डाली।

उसके बाल बिखरे हुए थे और उसके चेहरे को हल्का ढक रहे थे, पर उसकी पेशानी पर पसीने की हल्की बूँदें चमक रही थी, उसकी आँखें ऐसे लग रही थीं, जैसे उसने दो-चार पैग लगा रखे हों।

उसके गाल साँवले होते हुए भी लाल हो गए थे, उसके होंठ सूख रहे थे, उसकी चूचियाँ लाल लाल हो गई थीं और घुँडियाँ कड़ी हो चुकी थीं, पसीने की बूँदें चूचियों के नीचे से उसके पेट से होती हुईं उसकी नाभि तक आ रही थीं।

कमर पर भी काफ़ी पसीना जमा हो गया था। मैंने नज़र थोड़ी और नीचे की तो देखा कमर के नीचे का हाल तो और भी बुरा था। कमर से चिपकी उसकी काली फ़्रेंची पैन्टी जिस पर पीले और हरे पत्तों वाले छोटे-छोटे फूल बने हुए थे, बिल्कुल ऐसी भीग गई थी जैसे कि वो बिस्तर पर नहीं बल्कि शावर के नीचे हो।

ऊपर से उसके अंगों को पसीने ने उसे भिगोया था तो नीचे से चूत से रिसते पानी ने। मैं थोड़ा झुका और मैंने अपने हाथ उसकी कमर के दोनों तरफ टिका दिए और उसकी चड्डी के एलास्टिक को धीरे-धीरे नीचे की तरफ खींचने लगा।

उसकी चड्डी धीरे-धीरे नीचे सरकना चालू हुई और मुझे उसकी चिकनी चूत के दर्शन मिलने लगे। मैंने उसकी चड्डी खोल कर ज़मीन पर फेंक दी और मैंने देखा कि उसके प्राइवेट एरिया में झाँट का नामोनिशान तक ना था।

साँवले शरीर पर चिकनी गुलाबी बुर बहुत हसीन लग रही थी। मैंने उसे चूम लिया, उसकी चूत से ऐसी मादक गंध उठ रही थी कि मैं मदहोश हो गया और उसे चूसने लगा। उसकी चूत से रिसता पानी भी मेरे मुँह में आ गया और मैं उसे पी गया।

किरण अब पागलों की तरह अपने पैर बिस्तर पर रगड़ने लगी। मैंने सर उठा कर उसकी ओर देखा, वो अपनी आँखें बंद किए हुए अपने ही हाथों से अपनी चूचियाँ मसले जा रही थी और तकिये पर अपना सर भी रगड़े जा रही थी।

“जल्दी डालो ना, कोई आ जाएगा !” उसने तकिये पर अपना सर वैसे ही रगड़ते हुए कहा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

अब मेरा दिमाग़ खराब हो गया, मैंने दायें हाथ के अंगूठे से उसकी चूत की टीट को रगड़ना चालू किया और बायें हाथ से अपने लौड़े को हिलाने लगा। मैंने अपनी टाँगों को ठीक से धक्के मारने की पोज़िशन में लाकर किरण पर झुकते हुए, अपने लौड़े का सुपाड़ा उसकी दरार पर सटा दिया।

किरण ने मेरे लौड़े का स्वागत अपनी कमर को थोड़ा उचका कर किया और मैंने उसका निमंत्रण स्वीकार करते हुए एक ज़ोर का धक्का मारा और मेरा लौड़ा आधा से ज़्यादा उसकी बुर में घुस गया।

“ऊओ… ऊओह… ओह… आआ… ऊओ… मा…” वो चीख पड़ी।

मुझे लगा जैसे बिल्कुल मखमल और रूई की गद्देदार गीली नली में मेरा लौड़ा घुस गया हो। बड़ा अच्छा लगा।

मैंने उसकी चीख की बिल्कुल भी परवाह ना करते हुए, मजबूती से अपने हाथ उसकी कमर पर टिका दिए और अपने चूतड़ को हवा में उछाल कर, अपने लंड को हल्का खींचते हुए एक और बम-पिलाट शॉट मारा। मेरा समूचा लंड गरजता हुआ उसकी चूत में पेवस्त हो गया।

“ऊ…ऊऊ…ऊईईई आह… मर गई, हायई… मार डाला…” वो चिल्ला पड़ी।

पर मैं अब रुकने वाला कहाँ था, मैं शॉट पर शॉट, धक्के पर धक्का लगाता ही रहा और वो चीखती रही। चोदते-चोदते मैंने अपने हाथ अब उसकी कमर से हटाए और उसके पेट से होते हुए उसकी उभरी हुई चूचियों पर टिका दिए और उन्हें मींजेने लगा और साथ ही साथ धक्के पर धक्का देता ही जा रहा था।

मेरा हर धक्का पिछले वाले धक्के से ज़्यादा भारी था। यह तो किरण की चुद चुकी चूत थी जो उन धक्कों को झेल रही थी (वो भी आसानी से नहीं), अगर कोई कुँवारी चूत होती तो खून की उल्टी किए बिना ना रह पाती।

किरण ने अब चीखना बंद कर सिसकारियाँ लेना चालू कर दिया था। उसे अब पूरा मज़ा आ रहा था क्यूंकि उसने अपनी दोनों नंगी टाँगें मेरे कमर से लपेट दी थीं और खुद भी अपने चूतड़ों को नीचे से उछाल कर चुद रही थी।

मेरे हाथों का दबाव उसकी चूचियों पर बढ़ता ही जा रहा था। मैं झुका और झुक कर उसकी दोनों चूचियों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर चूसने लगा और साथ ही साथ धक्के और तेज़ हो गये मेरे।

मैंने महसूस किया कि मेरा लंड बिल्कुल कड़ा हो चला था उसकी चूत में और उसकी चूत से गरम-गरम द्रव निकल कर मेरे लौड़े पर लग रहा था।

“किरण, तुम्हारे अंदर से कुछ निकल रहा है !” मैंने उसके कान में कहा।

“मारो ना और तेज़ मारो धक्के, वो मेरा पानी निकलना चालू हुआ है, जल्दी-जल्दी मारो ना, मुझे खल्लास करो ना जल्दी, प्लीज़ !” उसने कहा और मेरे गालों को चूमने लगी।

बस फिर क्या था मैंने अपने हाथ उसकी चूचियों से हटाए और उन्हें उसकी पीठ के नीचे से ले जाकर उसे अपनी बाहों में भींच लिया और ताबड़तोड़ शॉट्स लगाने चालू किए।

उसने जोश में आकर मेरे सर के बालों को ज़ोर से पकड़ लिया और अपने होंठों को मेरे होंठों से सटा कर पागलों की तरह चूसने लगी, मेरा जोश दुगुना हो गया और मैं इतनी ज़ोर से चोदने लगा कि लोहे का वो पलंग बुरी तरह हिलने लगा और उससे ‘ची-चां’ की आवाज़ें निकलने लगीं।

किरण ने अपने हाथ मेरे सर से हटा लिए और मेरी पीठ को अपने दोनों हाथों से ज़कड़ लिया। अब हम दोनों एक-दूसरे में एकदम गुत्थम-गुत्था थे। मैंने उसकी चिकनी चूत की चटनी बना डाली थी। मैं अपने चूतड़ हिला-हिला कर उसे चोद रहा था और वो चूत उठा-उठा कर चुद रही थी।

“आह और मारो ना बाबू ! और ज़ोर ज़ोर से अब बस निकलने ही वाला है मेरा रज !” उसने जैसे भीख माँगते हुए कहा।

“थोड़ा सा रुक जा मेरी जान मेरा भी निकलने ही वाला है।” मैंने अपनी साँसें संभालते हुए कहा।

उसने अपने हाथ मेरी पीठ से हटा दिए और उस पलंग की सिरहाने में लगी सलाखों में से दो को मजबूती से पकड़ लिया। अब मेरा लौड़ा भी फनफना रहा था और लावा उगलने को तैयार था।

मैं एक्सप्रेस ट्रेन की स्पीड से चोदने लगा अब। कमरा ‘फच फच’ और ‘घच घच’ की आवाज़ से गूँज रहा था।

अचानक ही किरण ने अपनी चूत को पूरी ताक़त से हवा में उछाल दी और मेरे लौड़े से ज़ोर से रगड़ने लगी, मेरा क्लाइमैक्स भी हो ही रहा था, मैं भी एकदम से उसकी कमर को अपने हाथों से ऊपर उठा कर अपने घुटनों पर बैठ गया और उसकी दोनों टाँगों को बिल्कुल चीर डाला। उसकी चूत का मुँह पूरा खुल गया, मैंने उसको अपनी फैली हुई जाँघों के बीच खींच लिया और पूरी ताक़त से अपना लंड उसकी बुर की जड़ तक चांप दिया और तेज़ साँसों को अपने सीने में भर कर कचकचा कर चोदने लगा।

“आ… आ… ऊऊ…” करती हुई किरण खल्लास हो गई, उसका पूरा रज उसकी चूत से फूट पड़ा।

ठीक तभी मेरे लंड से भी वीर्य का एक तेज़ फ़व्वारा फूट पड़ा और मैंने किरण की चूत को अपने वीर्य से भर दिया। मैं निढाल होकर किरण पर गिर पड़ा ठीक उसकी चूचियों पर और वो मेरे पूरे बदन को प्यार से सहलाने लगी।

वो मेरे बालों में उंगलियाँ फिराने लगी। मैं एक छोटे बच्चे की तरह उसकी बाहों में लेटा था और पसीने में डूबे उसके बदन की महक मुझे बड़ी प्यारी लग रही थी।

पाँच मिनट तक हम वैसे ही एक दूसरे में समाए रहे और हमारी आँख उस वॉर्ड के दरवाज़े पर पड़ी एक दस्तक से खुली।

“मैडम जी, हो गया क्या? बेहोशी वाले डॉक्टर आ गये हैं।”

यह उसी वॉर्ड-बॉय की आवाज़ थी।

किरण ने मुझसे कहा- तुम फ़ौरन बाथरूम में जाओ, और खुद को अच्छे से साफ कर लो। तब तक मैं दरवाज़ा खोलती हूँ।

“हाँ, बस हो ही गया, 2 मिनट रूको !” किरण ने ज़ोर से कहा।

मैं उठा और बाथरूम में चला गया।

जब मैं बाथरूम से निकला तो मैंने देखा कि किरण, एनेस्थिसियन (बेहोशी वाले डॉक्टर) और वो वॉर्ड-बॉय तीनों खड़े थे।

“ठीक है मैडम, अब आप जा सकती हैं।” डॉक्टर ने किरण से कहा।

“विश यू ऑल द बेस्ट, नथिंग टू वरी, इट्स ए वेरी माइनर सर्जरी !” किरण ने जाते हुए सिर्फ़ मुझे देख कर मुस्कुराते हुए कहा और वो चली गई।

“राजू, मरीज को स्ट्रेचर पर बैठाओ, इनकी रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में इंजेक्शन लगाना होगा।” डॉक्टर ने वॉर्ड-बॉय से कहा।

मैं स्ट्रेचर पर बैठ गया और डॉक्टर ने मेरी रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में बेहोशी का इंजेक्शन लगा डाला।

“अपना दाँया पैर उठाइए !” डॉक्टर ने कहा।

मैंने कोशिश की पर अपना दाया पैर ना उठा सका।

मैंने महसूस किया कि मेरा कमर से नीचे का हिस्सा सुन्न हो गया था।

“डॉक्टर साब, मुझे लगता है कि मेरी कमर के नीचे का हिस्सा सुन्न पड़ गया है।” मैंने फिर घबराते हुए कहा।

“गुड, इनको ओ.टी. में ले जाइए !” और डॉक्टर साब उसी वॉर्ड की बाल्कनी में चले गये। मैं और घबरा गया।

वॉर्ड बॉय राजू ने मुझे उस वॉर्ड से निकाला और ओ. टी. की ओर बढ़ चला। मेरा दिल ज़ोरों से एक बार फिर धड़कने लगा ठीक वैसे जैसे अपने प्राइवेट वॉर्ड में मौत के ख्याल से धड़का करता था, इस गॅलरी में तो मेरी वॉर्ड की तरह कोई अपना भी नहीं था। पर एक बार फिर मैं ग़लत साबित हुआ।

मैंने देखा कि किरण ठीक ओ.टी. के दरवाज़े के सामने एक फाइल लिए खड़ी थी।

जब मैं ओ.टी. के गेट पर पहुँचा, तो किरण ने राजू के हाथ में वो फाइल देते हुए कहा- यह वॉर्ड न. 34 की मिसेज वाडिया की है, फ़ौरन जाओ और डॉक्टर गोयनका को दे आओ।

राजू फ़ौरन उस फाइल को ले कर चला गया। अब गॅलरी में मेरे और किरण के सिवा दूसरा कोई नहीं था।

वो मेरी तरफ मुस्कुराती हुई आई और एक बार में ही मेरे होंठों को चूम लिया, बोली- फिकर की कोई बात नहीं है शास्त्री जी, मामूली सा ऑपरेशन है, ज़्यादा बड़ा चीरा भी नहीं लगेगा, 4 से 5 रोज़ में आप बिल्कुल भले-चंगे हो जाएँगे। डरना नहीं, अभी हमें साथ-साथ बहुत ऐश करनी है, है ना?” और मेरे बालों को प्यार से सहला दिया।

मुझसे एक पल को लिपटी और मैंने भी उसके गालों को चूम लिया। फिर वो अचानक ही मुड़ी और तेज़ कदमों से वहाँ से चली गई।

1 मिनट बाद राजू भी आ गया और मैं ओ.टी. में पहुँचा दिया गया और अब मैंने महसूस किया कि मेरे मन से ऑपरेशन का डर खत्म हो गया था।

दोस्तों आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी मुझे ज़रूर बताइए इस ई-मेल आइडी पर !

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