नवाजिश-ए-हुस्न-3

लेखक : अलवी साहब

पूरी बस खाली थी, हम दोनों अन्दर अकेले थे, वो बैग ढूंढ़ रही थी और मैं उसके करीब ही था बिल्कुल, मैंने उसकी कलाई पकड़ी और सीट पर बिठा दिया, खुद भी बैठ गया, और बहुत ही संजीदगी के साथ उसे कहा- शहनाज़, खुदा जाने क्या बात है, आज जब से आप को देखा है, दिल मुसलसल ये निदा दे रहा है कि आप खुदा की जानिब से नाजिल की गई अमानत हो मेरे दिल पर, दिल में आपके लिए इस कदर इज्ज़त और अहेतराम और प्यार उभर रहा है कि मैं खुद बर्दाश्त नहीं कर पा रहा।

शहनाज ने मेरे सामने देखा और फ़िर खामोशी से सर झुका लिया, उसकी आँखे नम हो गयीं और देखते देखते आँसू टपक पड़ा, और मेरी तरफ देख कर बोली- धोखा तो नहीं देंगे न?

मैंने दोनों हाथों से बसद-अहेतेराम उसका सर पकड़ा और उसकी पेशानी चूमते हुए कहा- क़सम खुदा की ! मेरी माँ ने मुझे दूध ही वफादारी के किस्से सुना सुना कर पिलाया है।

बड़ी नजाकत से उंगलियों से उसकी पलकों से आँसू साफ़ किए, उसके सर पर हाथ फेरा और कहा- जितना भरोसा तुम्हें खुद पे है, उतना ही मुझ पे कर सकती हो, क्योंकि मैं भी उसी खुदा का डर रखता हूँ जिस खुदा का डर तुम रखती हो।

और यह कहते हुए उसके बाज़ुओं को थाम कर उसे खड़ा किया, अपनी ताकतवर बाहों में उसे शिकस्त दे दी और कहा- शहनाज़ हम आप से पाकीज़ा मोहब्बत का पूरी हक्कानियत (सच्चाई) से वादा करते हैं, क्या आपको पूरा यकीन है हमारे इस वादे पे?

तो मेरे सीने से लगी हुई उसने सर को हाँ में हिलाया, तो मैंने और जोर से दबोच लिया बाहों में और कहा- आई लव यू सो मच मेरे दिल की मालिका, अब मेरे दिल की हर कराहट पे तेरे इश्क की खुशबू का बसेरा रहेगा, रहती ज़िन्दगी ही नहीं बल्के क़यामत तक तेरे इश्क का नाज़ मेरा दिल उठाएगा।

और मैंने उसके गाल को चूम लिया, कोई आ जाएगा ! इस डर से बाहों से उसे आज़ाद कर दिया।

और वो शरमाते हुए मुस्कुरा रही थी, नज़रें मिला न रही थी, बैग ले ली उसने और अभी हम बस के अन्दर ही थे कि उसने मेरे गाल पे किस कर ली।

मैं ख़ुशी के मारे पागल होने लगा, मैंने उसके बाल को जकड़ कर उसके लबों पे अपने लब रख दिए और शिद्दत-ए-प्यास-ए-इश्क की इन्तेहाई तशनगी से उसके लबों से शराब-ए-इश्क पीने लगा और बेहद पागलपन से उसकी ज़बान को चूसने लगा, उसने बैग छोड़ के दोनों हाथ मेरी लम्बी जुल्फों में पिरो दिए और मेरा सर सख्ती से पकड़ के वो भी मेरे लबों से पीने लगी।

दोनों हालत-ए-बेखुदी और मदहोशी में मस्त थे, दोनों को होश न था कुछ भी, और काफी देर यूँ ही एक दूसरे के लबों से शराब-ए-इश्क पीते रहे, और नशा-ए-इश्क में तर हो गए, अब किसे होश था, मेरा एक हाथ बेसाख्ता उसके नाज़ुक तरीन सीने पे चला गया,

जो कमीज़ और ब्रा की बंदिश में असीर (कैदी) था, और बड़ी नजाकत से उसके सीने पे हाथ रख कर हल्का हल्का उसे सहलाया तो उसने हाथ हटा दिया मेरा, मैंने फ़िर लगा दिया तो उसने होंठो से होंठ अलग करके हाँफते हुए कहा- फ़िरोज़ नहीं प्लीज़ !

मगर मैंने देखा वो इस कदर हांफ रही थी मानो कड़ी धूप में वो बहुत दौड़ी हो, मैंने फ़िर उसका सर जकड़ा और उसके लबों को फ़िर अपने लबों में ले लिया और पीने लगा उसकी जवानी को, उसके लबों से जो कुछ पी रहा था वो शहद जैसा लज़ीज़-ओ-शीरीं था।

एक एक कतरा मेरे हलक से नीचे उतर कर मेरे बदन में आग लगाए जा रहा था, इस बार वो बर्दाश्त ना कर पाई, इतना बेरहम होकर

उसके लबों को चूस रहा था तो वो बेकाबू होके मेरे शर्ट में हाथ डाल मेरे सीने पे हाथ फेरने लगी। मैंने उसका सीना इस बार बेरहमी से

दबा लिया और बहुत सख्ती से मसलने लगा और अचानक उसने मेरे सीने से हाथ हटा लिया और मेरा हाथ हटाते हुए बेइन्तेहा

हांफते हुए बोली- नहीं फ़िरोज, अब नहीं प्लीज़ अब सहा नहीं जा रहा, खुदा के लिए अब और न तड़पाओ, जाने दो मुझे।

और मैंने रास्ता दिया वो बैग लेकर बाहर आ गई, मैंने बाईक स्टार्ट की, वो बैग लिए बैठ गई पीछे, पीछे बैठे हुए अपना रुखसार (गाल) मेरे चेहरे से सटा के प्यार जताते हुए कहने लगी- फ़िरोज़ आपको कैसे बताऊँ, आज दिल कितना खुश है मेरा।

मैंने कहा- जान मैं भी आजिज हूँ अपनी ख़ुशी को ज़ाहिर करने के लिए, बस इतना समझ लो कि मैं भी ख़ुशी से पागल हूँ आपके प्यार को हासिल करके, अब चाहे कुछ भी हो जाए, आपके इश्क में ज़र्रा बराबर कमी न आने दूंगा, आपके इस कदर नाज़ उठाऊंगा के बस खुदाई राज़ी हो जाए मुझसे मेरे इश्क की दीवानगी देख के, मेरी दीवानगी का इज़हार देख के !

वो अपनी ख़ुशी का इज़हार करते हुए पहली मर्तबा बोली- आई लव यू फ़िरोज़ !

मैंने जवाबन कहा- आई लव यू टू जान !

और हम होटल के कमरे पे पहुँचे और शहनाज़ को सलामती से वहाँ छोड़ के जाने लगा, तो शहनाज़ दरवाज़े पे खड़ी हसरत भरी निगाहों से मुझे जाता देखती रही।

दोस्तो, कैसे बताऊँ उस क़यामतनुमा हसीना की खूबसूरती को, न मोटी न पतली, न लम्बी न नाटी, सर से पाँव तक आफत ही आफत थी वो !

इस मौके पे ‘दाग’ दहेलवी का एक शेर याद आ रहा है, जो मैंने उस वक़्त वह तो न बोला था मगर यहाँ आपको सुना रहा हूँ।

आफत की शोखियाँ हैं तुम्हारी निगाह में

क़यामत के फितने खेलते है जलवा-गाह में

मुश्ताक इस अदा के बहुत दर्दमंद थे

ऐ दाग़ तुम तो बैठ गये एक आह में !

सीढ़ियाँ उतरते मुड़ के वापस उसके पास गया और कलाई पकड़ के एक तरफ लिया और पूछा- चेहरा क्यों उतरा हुआ है?

तो इतनी मासूमियत से उसने कहा- आप जा रहे हैं इसलिए !

अल्लाह, क्या खूब अदा दी है तूने इस हंगामा-परस्त खूबसूरती को !

मैंने कहा- दो घंटे बाद हाल में रिसेप्शन और निकाह का प्रोग्राम है, अब हम लोग वहाँ मिलेंगे !

कहानी जारी रहेगी !

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