राधा, मैं तुझ बिन आधा

jogiya2012 2014-03-21 Comments

लेखक : जोगी यारा

मैंने पहली बार अन्तर्वासना डॉट कॉम साईट को चार साल पहले देखा था। पहली बार लिखने को मन किया क्योंकि अब मुझे हिंदी लिखना आ गया है और जिसके बारे में कहानी है वो अब इसे नहीं पढ़ सकती है।

मेरा नाम रवि है, पंजाब के एक दूर दराज के गांव का रहने वाला हूँ, यह कहानी राधा की है, वो भोली-भाली कतई नहीं थी बल्कि यूँ कहिये कि मैं चूतिया था. मैं जब छठी में था वो सातवीं में थी पर गाँव के बच्चों की उम्र का अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल है।

मुझे बोलती थी- रवि, तुम इतने गोरे कैसे हो?

और मैं कहता था- क्योंकि मेरी मन गोरा है।

“अच्छा, तुम्हें अच्छा कौन लगता है?”

“उम्म… सबसे छोटे वाली भाभी !”

“अरे, वो क्यों?”

“क्योंकि वो जब मुझे ‘आप’ बुलाती है और मुझसे गाँव की लड़कियों की बातें करती है तो मुझे पेट में गुदगुदी होती है।”

“ओहो, किस तरह की बातें करती है?”

..वगैरह..वगैरह.. हम ढेर सारी बातें करते थे पर फिर किस्मत खराब हो गई, हम बड़े हो गए !

एक दिन वो बोली- रवि, मुझे खेत जाना है और घास का गठर उठाने वाला कोई नहीं है, क्या तुम चलोगे?

मैंने मना कर दिया पर उसकी रोनी सी सूरत देख कर फिर ना जाने क्यूँ हाँ भर दी।

खेत में जाने के बाद हमने वो पाप जैसा लगने वाला काम कर डाला, उसकी ही जबरदस्ती थी कि मुझे पजामे का नाड़ा खोल कर अपनी लोली दिखाने के लिए बोलने लगी।

जब मैंने दिखा दी तो बोली- तेरी तो छोटी है, मेरे भैया की मैंने नहाते समय देखी थी एक हाथ जितनी !”

मैंने कहा- एक हाथ जितनी तो नहीं पर सुबह-सुबह एक गिठ की तो मेरी भी हो जाती है। पेशाब करने में बड़ी समस्या होती है, मम्मी के सामने शर्म आती सो अलग !

जब उसने नर्म-नर्म हाथ से उसे छू लिया तो मैं पागल सा हो गया। मुझे लगा आज कुछ ऐसा काम होकर रहेगा जो मुझे पिटवाएगा। फिर वो मेरे पपलू को हाथ में लिए बैठी रही, पर तब तक वो इतना लम्बा हो गया कि मैंने उसे इतना लम्बा कभी नहीं देखा था।

उसकी सुथन का नाड़ा कब से खुला था मुझे पता नहीं। मुझे लगा कि वो चाहती है, मैं उसे खोल दूँ।

भूरी सी फुद्दी पर रोयें खड़े हो रहे थे। बहुत गर्म लगी थी।

अन्तर्वासना डॉट कॉम साईट पर सब लिखते हैं ‘मैंने एक हल्का धक्का मारा, लिंग का सुपाडा अंदर चला गया, फिर थोड़ी देर में एक और जोर से धक्का मारा तो लिंग आधा अंदर घुस गया !’ आदि आदि !

मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ। वो जब रेत के टीले पर बनी झोंपड़ी में मुझे लेटा कर मेरे ऊपर बैठ गई थी तो मुझे लगा कि मैं खुद ही सारा का सारा राधा में समा गया हूँ।

कैसे ऊपर वाले ने उसे बिन-ब्याही माँ बनने से बचाया, पता नहीं ! क्योंकि जब वो मेरे ऊपर से खड़ी-सी हुई तो मैंने देखा मेरा सफ़ेद गाढ़ा गोंद-सा रस थोड़ा गुलाबी बन कर उसकी फुद्दी में से झर रहा था।

मजे के बाद जब आँखें खुली तो ग्लानि छा गई। बाद में जब इस चोदा-चोदी का मतलब समझ में आया तब तक उसकी और मेरी भी शादी हो चुकी थी, अब वो इस दुनिया में नहीं है।

पर उसका उत्तेजना से लाल चेहरा, जब वो मुझे चोद रही थी, अब तक मुझे याद है। उसकी आँखें मुझे हर लड़की, हर खेत, हर टीले, हर झोंपड़ी और हर चुदाई में दिखती है। हे गुरु, मुझे यह सब झेलने की ताकत दे !

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