माँ-बेटियों ने एक दूसरे के सामने मुझसे चुदवाया-2

(Maa Betiyon Ne Ek Dusri Ke Samne Mujhse Chudvaya-2)

गबरू 2014-03-31 Comments

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अगले दिन खाना खाने के बाद करीब 12 बजे रागिनी और उसकी मौसेरी बहनें मुझे आस-पास की पहाड़ी पर घुमाने ले गईं। हिमालय अपने सुन्दर लहजे में अपना सारा सौन्दर्य बिखेरे था। एकांत देख कर रागिनी ने मुझे बता दिया कि आज रात में बिन्दा मेरे साथ सोएगी, मुझे उसको चोद कर सब सैट कर लेना है, वैसे वो सब पहले से सैट कर चुकी थी।

करीब 5 बजे हम घर लौटे, तो उसकी मौसी बिन्दा हम सब के लिए खाना बना चुकी थी। खाना-वाना खाने के बाद हम सब पास में बैठ कर इधर-उधर की गप्पें करने लगे। पहाड़ी गाँव में लोग जल्दी सो जाते थे, सो करीब आठ बजे तक पूरा सन्नाटा हो गया।

रागिनी बोली, “मौसी, अंकल थक गए होंगे सो तुम उनके पैरों में थोड़ा तेल मालिश कर देना, मैं रीना के साथ उसके बिस्तर पर सो जाऊँगी।” इशारा साफ़ था कि आज मुझे बिन्दा को चोदना था।

बिन्दा मुझे देख कर मुस्कुराई और तेल की शीशी ले कर मुझे कमरे में चलने का इशारा किया। पाँच चूत-वालियों से घिरा मैं अपनी किस्मत को सराहता हुआ बिन्दा के पीछे चल दिया और फ़िर कमरे के किवाड़ को खुला ही रहने दिया तथा सिर्फ उसके परदे फैला दिए। उस कमरे के बरामदे पर ही चारपाई पर उसकी सभी बेटियाँ और रागिनी लेटी हुई थीं।

बिन्दा तब तक अपने बदन से साड़ी उतार चुकी थी और भूरे रंग के साया और सफ़ेद ब्लाऊज में मेरा इंतजार कर रही थी। मैं उसे देख कर मुस्कुराया और अपने कपड़े खोलने लगा। वो मुझे देख रही थी और मैं अपने सब कपड़े उतार कर पूरा नंगा हो गया। मेरा लन्ड अभी ढीला था पर अभी भी उसका आकार करीब 6″ था। बिन्दा की नजर मेरे लटके हुए लन्ड पर अटकी हुई थी।

मैंने उसके चेहरे को देखते हुए, अपने हाथ से अपना लन्ड हिलाते हुए जोर से कहा- फ़िक्र मत करो, अभी तैयार हो जाएगा… आओ चूसो इसको।

मेरे हिलाने से मेरे लन्ड में तनाव आना शुरू हो गया था और मेरा सुपाड़ा अब अपनी झलक दिखाने लगा था। बिन्दा ने आगे बढ़ कर बिना किसी हिचक या शर्मिंदगी के मेरे लन्ड को अपने हाथों में पकड़ा और सहलाया। मादा के हाथ में जादू होता है, सो मेरा लन्ड बिन्दा के हाथ के स्पर्श से ही अपना आकार ले लिया। बिन्दा ने मुझे बिस्तर पर लिटा कर लन्ड अपने मुँह में भर लिया।

पांच-दस बार अंदर-बाहर करके बिन्दा बोली- आप सीधा आराम से लेटिए, मैं तेल लगा देती हूँ।

मैंने उसे बांहों में भर कर अपने ऊपर खींच लिया और बोला, “कोई परेशानी की बात नहीं है। मेरी सब थकान खत्म हो जाएगी जब तुम्हारी जैसे मस्त माल की चूत मेरे लन्ड की मालिश करेगी।”
मुझे पता था कि हम दोनों के एक-एक शब्द खुले किवाड़ के द्वारा उन बेटियों के काम में स्पष्ट सुनाई पड़ रहे होंगे।

मैंने बिन्दा के होंठों से अपने होंठ सटा दिए और वो भी चूमने में मुझे सहयोग करने लगी। मैंने उसके ब्लाऊज और पेटीकोट खोल दिए तो उसने खुद से अपने को उन कपड़ों से आजाद कर लिया।

मैंने बिन्दा को अपने से थोड़ा अलग करते हुए कहा- देखूँ तो कैसी दिखती है मेरी जान…!

बिन्दा मेरे इस अंदाज पर फ़िदा हो गई, उसके गाल लाल हो गए। बिन्दा दुबली होने की वजह से अपनी उम्र से करीब 5 साल छोटी दिख रही थी। वैसे भी उसकी उम्र 35 के करीब थी। रंग साफ़ था, चूचियाँ थोड़ी लटकी थीं, पर साईज में छोटी होने की वजह से मस्त दिख रही थीं। सपाट पेट, गहरी नाभि और उसके नीचे कालें घने झाँटों से घिरी चूत की गुलाबी फ़ाँक, काँख में भी उसको खूब सारे बाल थे।

मैंने धीरे-धीरे उसके पूरे बदन पर हाथ घुमाना शुरु किया और उसमें भी गर्मी आने लगी। जल्द ही उसका बदन चुदास से भर गया और तब मैंने अपने हाथों और मुँह से उसकी चूचियों और चूत पर हमला बोल दिया। उसकी सिसकारी पूरे कमरे में गूँजने लगी।

करीब आधा घन्टा में वो बेदम हो गई तो मैंने उसको सीधा लिटा कर उसके पैरों को फ़ैला कर ऊपर उठा दिया और बिना कोई भूमिका बाँधे, एक ही धक्के में अपने लन्ड को पूरा उसकी चूत में घुसा दिया।

मुझे पता था कि मेरा लन्ड उसकी झाँटों को भी भीतर दबा रहा है। मैं चाहता भी यही था, सो मैंने लन्ड को कुछ इस तरह से आगे-पीछे करके घुसाया कि ज्यादा से ज्यादा झाँट मेरे लण्ड से दबे और वो झाँटों के खींचने से दर्द महसूस करे।

वही हुआ भी… बिन्दा तो चीख हीं उठी थी- ओह्ह… मेरे बाल खिंच रहे हैं साहब जी !

मैंने भी कहा- तो मैं क्या करूँ, तुम्हारी झाँट हीं ऐसी शानदार हैं कि पूछो मत !

उसने अब अपने हाथ अपनी चुद रही चूत के आस-पास घुमा कर अपने झाँटों को मेरे लन्ड से थोड़ा दूर की और फ़िर बोली, “हाँ अब चोदिए, खूब चोदिए मुझे… आह आह्ह !”

मैंने अब उसकी जबरदस्त चुदाई शुरु कर दी थी। वो भी गाण्ड उछाल-उछाल कर ताल मिला रही थी और मैं तो उसकी चूचियों को जोर-जोर से मसल-मसल कर चुदाई किए जा रहा था। यह सोच कर कि बाहर उसकी बेटियाँ अपनी माँ की चुदाई की आवाज सुन रही हैं मेरा लन्ड और टनटना गया था और जोरदार धक्के लगा रहा था।

वो झड़ गई थी, थोड़ा शान्त हुई थी, पर मैं कहाँ रुकने वाला था। मैंने उसको पलटा और जब तक वो कुछ समझे मैंने पीछे से उसके चूत में लन्ड पेल दिया। वो थक कर निढाल हो गई थी तो मैं झड़ा उसकी चूत के भीतर, पर मेरा लन्ड कब एक बार झड़ने से शान्त हुआ है जो आज होता !

मैंने बिन्दा से कहा कि वो अब आराम से पोजीशन ले ले, मैं उसकी गाण्ड मारुँगा। वो शायद थकान की वजह से ऐसा चाह नहीं रही थी, पर मैंने उसको तकिया पकड़ा दिया तो वो समझ गई कि मैं नहीं रुकने वाला। सो वो भी तकिये पर सिर टिका कर और अपने घुटने थोड़ा फ़ैला कर, सही से बिस्तर पर पलट गई।

मैं उसके थोड़ा पीछे खड़ा हो गया और फ़िर उसकी गाण्ड पर ढेर सारा थूक लगा कर अपना लन्ड छेद से भिड़ा दिया लेकिन वो जोर से कराह उठी।

बोली- आह… रुकिए साहब जी आपका लंड बहुत मोटा है। मेरी गांड में वैसलिन लगा दीजिये, तब मेरी गांड मारिए।

मैंने कहा- कहाँ है वैसलिन?

उसने आलमारी में से वैसलिन निकाल कर मुझे दी। मैंने ढेर सारी वैसलिन उसकी गांड के छेद में लगाई, फिर अपना लंड उसके गांड में घुसाया। थोड़ी मेहनत करनी पड़ी, पर उसने वो दर्द सह कर अपने गाण्ड में मेरा लन्ड घुसवा लिया। मैं भी मस्त हो कर अब उसकी गाण्ड मारने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

शुरु में दर्द की वजह से वो कराह रही थी, पर जल्द ही उसको भी मजा मिलने लगा और फ़िर आह… अह… आअह… ऊऊह्ह उउम्म्म… जैसे कामुक बोल कमरे में गूँजने लगे।

इस बार थोड़ा थकान मुझे भी लगने लगी थी, शायद दिन भर का घूमना अब हावी हो रहा था, सो मैंने भी तेजी में धक्के पर धक्के लगाए और जल्द ही बिन्दा की गाण्ड अपने लन्ड के रस से भर दिया।

वो तो कब की थक कर निढाल थी। अब हम दोनों में से कोई हिलने की हालत में नहीं था सो हम दोनों ऐसे ही नंगे सो गए। बिन्दा ने तो अपने चूत और गाण्ड को साफ़ करना भी मुनासिब नहीं समझा।

अगली सुबह मैं जरा देर से तब उठा जब बिंदा मुझे चाय देने आई। उस समय तक मैं नंगा ही था। मैंने तौलिये को अपने कमर पर लपेटा। तब तक सब चाय पी चुके थे।

मैं जब बाहर आया तो देखा कि खूब साफ़ और तेज धूप निकली हुई है। पहाड़ों में वैसे भी धूप की चमक कुछ ज्यादा होती है। रागिनी और उसकी मौसी आंगन में बैठ कर सब्जी काट रहे थे, बड़ी रीना सामने चौके में कुछ कर रही थी। रूबी नहा चुकी थी और वो धूले कपड़ों को सूखने के लिए तार पर डाल रही थी।

आंगन के एक कोने में सबसे छोटी बहन रीता नहा रही थी। सब कपड़े उतार कर, उसके बदन पर बस एक जाँघिया था। मुझे समझ में आ गया कि घर में कोई मर्द तो रहता नहीं था, सो इन्हें इस तरह खुली धूप में नहाने की आदत सी थी। मुश्किल यह थी कि मैं जोरों से पेशाब महसूस कर रहा था और इसके लिए मुझे उसी तरह जाना होता, जिधर रीता नहा रही थी। वो एक तरह से बाथरूम में सामने ही बैठी थी। तभी मौसी चौके की तरफ़ गई तो मैंने अपनी परेशानी रागिनी को बताई।

कहानी जारी रहेगी।

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