कामना की साधना-4
(Kaamna Ki Sadhna-4)
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मैं मौके का फायदा उठाते हुए एकदम उसके पीछे आ गया, और पीछे से उसकी कमर में हाथ डालकर उसके पेट पर उंगलियाँ फिराने लगा।
उसने खुद को कसकर दबा लिया। अब उसकी आँखें बंद, बाजू तनी हुई, होंठ फड़फड़ाते हुए, ऊ… ऊ… आहह.. ई… आह… सी… आहह.. सीईईई… की हल्की हल्की आवाज लगातार उसके मुँह से निकल रही थी।
मैं लगातार कोई 10 मिनट तक उसके वस्त्ररहित अंगों पर अपनी उंगलियाँ फिराता रहा और कामना ऐसे ही ‘आहहह… ई… आह… सीईईई…’ की आवाज के साथ कसमसा रही थी।
मैंने धीरे धीरे अपनी उंगलियों का जादू कामना के पेट के ऊपरी हिस्से पर चलाना शुरू किया। ‘हम्म…सीईईई…’ की लयबद्ध आवाज के साथ उसके अंगों की थिरकन मैं महसूस कर रहा था। मेरी ऊपर की ओर बढ़ती उंगलियों का रास्ता उसके ब्लाउज के निचले किनारे ने रोक लिया। अभी मैंने जल्दबाजी ना करते हुए उससे ऊपर न जाने का फैसला किया और कामना की आनन्दमयी सीत्कार का आनन्द लेते हुए उसके वस्त्रविहीन अंगों से ही क्रीड़ा करने लगा।
उसके पेट पर उंगलियों की थिरकन मुझे मलाई का अहसास करा रही थी। इतनी कोमल त्वचा पर उंगलियाँ फेरने से मेरी उंगलियाँ खुद-ब-खुद हर इधर-उधर फिसल जाती। जिसका अहसास मुझे कामना के मुँह से निकलने वाली सीत्कार तुरन्त करा रही थी।
मैंने एक कदम और बढ़ाते हुए पीछे से पकड़े पकड़े ही कामना को अपनी ओर खींच लिया। वो भी बिल्कुल किसी शिकार की तरह अपने शिकारी की ओर आ गई। अब कामना के सुन्दर शरीर का पिछला हिस्सा मेरे अगले हिस्से से टकरा रहा था। पर शायद बीच में कुछ हवा का आवागमन हो रहा था। अचानक कामना थोड़ा और पीछे हटी और खुद ही पीछे से मुझसे चिपक गई। हम दोनों के बीच की दूरी अब हवा भी नहीं नाप पा रही थी।
मेरा पुरुषत्व अपना पूर्ण आकार लेने लगा, जो शायद कामना को भी उसके नितम्बों के बीच अपनी उपस्थिति का आभास करा रहा था। कामना के नितम्बों की थरथराहट उनकी स्थिति की भनक मुझे देने लगी…, मेरा मुँह उसके कंधे पर ब्लाउज और गर्दन के बीच की गोरे अंग पर टकराने लगा।
मैंने मुँह को उसके कान के नजदीक ले जाकर हल्के से बताया- तुम सच में बहुत सुन्दर हो, कामना।’
‘जी…जू…, आपने बस सामने से साड़ी… में… देखने को बोला था…, प्लीज… अब मुझे जाने दीजिए..’ हल्की सी मिमियाती आवाज में बोलकर वो पीछे से मुझमें समाने का प्रयास करने लगी। मैं कामना की मनोदशा, हया को समझ रहा था। पर बिना उसकी इच्छा के मैं कुछ भी नहीं करना चाहता था। या यूं कहूँ कि मैं चाहता था कि कामना इस खेल को खुलकर खेले।
‘मैं तो तुम्हारे पीछे खड़ा हूँ। आगे की तरफ रास्ता खुला है…, चाहो तो जा सकती हो…, मैं रोकूंगा नहीं…’ मैंने उसके कान में फुसफुसाकर कहा।
‘छोड़ो…अब…मुझे…’ बोलती वो मुझसे बेल की तरह लिपटने सी लगी…, उसकी लज्जा और शर्म मैं समझ रहा था।
अचानक मैंने अपने होंठ उसके कान के नीचे के हिस्से पर रख दिये…- आहहहह…’ की आवाज की साथ वो दोहरी होती जा रही थी। अब मेरी उंगलियों के साथ मेरे होंठ भी कामना के सुन्दर बदन में संवेदनशील अंगों को तलाश और उत्तेजित करने का काम करने लगी। मेरे होंठ लगातार उसके कान के नीचे के हिस्से पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। कामना गर्दन इधर उधर घुमाकर होने वाली आनन्दानुभुति का आभास कराने लगी।
लगातार चुम्बन करते करते मैंने उसके कंधे पर पड़े साड़ी के पल्लू को दांत से पकड़कर नीचे गिरा दिया… जिसका शायद उसे आभास नहीं हुआ, वैसे भी अब वो जिस दुनिया में पहुँच चुकी थी वहाँ शायद वस्त्रविहीन होना ही अधिक सुखकारी होता है। मेरा एक हाथ अब उसके नाभि वाले भाग को सहला रहा था। जबकि दूसरा हाथ वहाँ से हटकर गर्दन के नीचे ब्लाउज के गले के खुले हिस्से में सहलाने का काम करने लगा। मुँह से लगातार कामना के गर्दन एवं कान के निचले हिस्से पर चुम्बन जारी थे।
उसका विरोध- जी…जू… बस अब और… नहीं…’ की हल्की होती कामुक आवाज के साथ घटता जा रहा था।
मैंने उसको प्यार से पकड़ कर आगे की तरफ घुमाया। देखा उसकी बंद आँखें, गुलाब की पंखुड़ी जैसे नाजुक गुलाबी फड़फड़ाते होंठ, मेरी छाती पर सीधी पड़ने वाली गर्म गर्म सांसें… कामना के कामान्दित होने का एहसास कराने लगी। अब मेरे हाथ उसकी पीठ और गर्दन के पीछे की तरफ सहला रहे थे।
मैंने अपने होठों को बहुत प्यार से उसके गुलाबी होठों पर रखा, कामना शायद इस चुम्बन के लिये तैयार हो चुकी थी उसके होंठ मेरे होठों के साथ अठखेलियाँ करने लगे। मैंने महसूस किया कि कामना के हाथ भी मेरी कमर पर आ गये। हम लोग लगातार कुछ मिनटों तक आलिंगनबद्ध रहे।
मैंने ही अलग होने की पहल की। क्योंकि मुझे अभी आगे बहुत लम्बा रास्ता तय करना था। मैंने देखा कामना की आंखें अब खुल चुकी थी। हम दोनों की नजरें मिली…, हया की गुड़िया बनी कामना नजरें झुकाकर मेरे सीने में छिपने का असफल प्रयास करने लगी।
मैंने उसी अवस्था में कामना के कान के नीचे फिर से चूमना शुरू कर दिया। कामना वहीं जड़ अवस्था में खड़ी थी। मैंने धीरे धीरे नीचे से उसकी साड़ी को पेटीकोट से बाहर निकाला और अलग कर दिया। इसके बाद कामना के मोहक चेहरे को दोनों हाथ से पकड़ कर ऊपर किया। हम दोनों की दूसरे की नजरों में डूबने का प्रयास कर रहे थे।
तभी कामना ने कहा ‘जी…जू…’
‘हम्म..’
‘मुझे बहुत जोर से लगी है…’
‘क्या…?’
‘मुझे टायलेट जाना है…’
मैंने ड्राइंग रूम के साथ अटैच टायलेट की ओर इशारा करते हुए कहा- चली जाओ, और फ्रैश होने के बाद वहीं रखा शशि का नाईट गाउन पहन लेना।
कामना मुझसे अलग होकर टायलेट में चली गई। मैं भी उसके टायलेट जाते ही अपने बैडरूम में गया और शशि को निहारा। मैं शशि से बहुत प्यार करता था और किसी भी सूरत में उसको धोखा नहीं देना चाहता था पर इस बार शायद में अपने आपे में नहीं था। मैं शशि को देखकर असमंजस की स्थिति में बाहर आया। मैं खुद पर से अपना नियंत्रण खो चुका था। शशि को निहारने के बाद मैं वापस ड्राइंग रूम में वापस आया और टीवी बंद करने के साथ ही लाइट बंद करके गुलाबी रंग का जीरो वाट का बल्ब जलाकर ड्राइंग रूम का बिस्तर ठीक करने लगा…
अब उस गुलाबी प्रकाश में मैं कामना का इंतजार करने लगा। तभी टायलेट का दरवाजा खुला ‘काम की देवी’ कामना मेरे सामने नहाई हुई नाइट गाउन में थी…,
‘अरे वाह, नहा ली?’ मैं बोला।
‘हां, वो सारी टांगें गीली गीली चिपचिपी हो गई थी…’ उसने कहा।
‘तुम्हारे अपने ही रस से।’ कहकर मैं हंसने लगा।
वो नजरें नीचे करके मुस्कुरा रही थी। मैं उसके नजदीक गया… और उसको बताया इस खेल में अगर साथ दोगी तो ज्यादा आनन्द आयेगा, अगर ऐसे शर्माती रहोगी तो मुझे तो आनन्द आयेगा पर तुम अधूरी रह जाओगी।
कामना बोली- जीजू, 10 बज गये हैं, अब सो जाना चाहिए, आप सो जाओ मैं आपके लिये दूध बना कर लाती हूँ।’
मैंने अपनी बाहें उसकी तरफ बढ़ा दी और वो किसी चुम्बक की तरह आकर मुझसे लिपट गई।
मैंने कहा- दूध तो मैं जरूर पियूंगा, पर आज ताजा दूध पीयूंगा।
मैंने उसको बाहों में भरा और बिस्तर पर ले गया। मैंने महसूस किया कि उसकी सांसें धौंकनी की तरह बहुत तेज चल रही थी। कामना के नथूनों से निकलने वाली गरम गरम हवा मुझे भी मदहोश करने लगी। बिस्तर पर लिटाकर मैंने बहुत प्यार से उसके दोनों उरोजों को सहलाया।
‘जी…जू… अब बरदाश्त नहीं हो रहा है प्लीज अब मुझे जाने दो…’ कहते कहते कामना से मेरा सिर पकड़कर अपनी दोनों पहाडि़यों के बीच की खाई में रख दिया…
मैंने महसूस किया उसने अभी ब्रा पहनी हुई थी। नाईट गाऊन के आगे के दो हुक खोलने पर उसकी गोरी पहाडियों के अन्दर का भूगोल दिखाई देने लगा। मैंने उसके होठों को पुन: भावावेश में चूमना शुरू कर दिया। कामना मेरे होठों को अपने होठों में दबा दबाकर चूस रही थी।
मैंने कामना को बिल्कुल सीधा करके बिस्तर पर लिटाया, और लगातार उसको चूमता रहा। पहले होंठ, फिर गाल, आंखें कान, गले और जहाँ जहाँ मेरे होंठ बिना रुकावट के कामना के बदन को छू सकते थे लगातार छू रहे थे। कामना के बदन की गरमाहट मैं महसूस कर रहा था।
उसने दोनों हाथों को मेरी कमर के दोनों ओर से लपेट कर मुझे पकड़ लिया। मेरे होंठ लगातार कामना के बदन के ऊपरी नग्न क्षेत्र का रस चख रहे थे। मैंने एक हाथ से नीचे से नाईट गाऊन धीरे धीरे ऊपर खिसकाना शुरू किया। गाऊन उसकी पिंडलियों से ऊपर करने के बाद मैंने धीरे धीरे कामना की गोरी पिंडलियों को जैसे ही छुआ… मुझे लगा जैसे किसी रेशमी कपड़े के थान पर हाथ रख दिया हो। मेरे हाथ खुद-ब-खुद पिंडलियों पर फिसलने लगे।
कामना को भी शायद इसका आभास हो गया था। उसकी सिसकारियाँ इस बात की गवाही देने लगीं।
आहह… जी…जू… आहहह… अब…बस…करो… की बहुत हल्की सी परन्तु मादक आवाज मेरे कानों में पड़ने लगी। हम दोनों की बीच होने वाली चुम्बन क्रिया कामना को लगातार मदहोश कर रही थी। मेरा एक हाथ कामना की पिंडलियों से खेलता खेलता ऊपर की ओर आ रहा था, साथ में गाऊन भी धीरे धीरे ऊपर सरक रहा था।
हम्म… सीईअईई… आहहह… की आवाज के साथ कामना की कामुक सिसकारियाँ भी लगातार तेज होती जा रही थी। कामना की दोनों टांगें अपने आप हौले हौले खुलने लगी। अचानक मेरा हाथ किसी गीली चीज से टकराया मैंने नीचे देखा… मेरा हाथ कामना की पैंटी के ऊपर फिसल रहा था। गुलाबी रंग की नीले फूलों वाली पैंटी कामना के यौवन रस से भीगी हुई महसूस हुई।
मैंने एक तरफ से कामना का नाइट गाऊन उसके नीचे से निकालने के लिये जैसे ही खींचा कामना से अपने नितम्ब ऊपर करके तुरन्त नाइट गाऊन ऊपर करने में मेरी मदद की। मैंने कामना के ऊपरी हिस्से को बिस्तर से उठाकर नाइट गाऊन को उसके बदन से अलग कर दिया… और वो काम सुन्दरी मेरे सामने सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी वैसे तो उस समय वो गुलाबी रंग की ब्रा उस पर गजब ढा रही थी पर फिर भी वो मुझे कामना और मेरे मिलने में बाधक दिखाई दी।
मैंने हौले से कामना के कान में कहा- दूध नहीं पिलाओगी क्या?’
कहानी जारी रहेगी।
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