कल्पना साकार हुई-2

(Kalpna Saakar Hui- Part 2)

तनय धूत 2007-07-31 Comments

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अब बारी तृष्णा की थी, उसने विक्रम का अन्डरवीयर उतारा, अन्डरवीयर के उतरते ही मैं और तृष्णा विक्रम के लंड को देख कर आश्चर्यचकित हो गए, लगभग 8 या 9 इंच का लंड था। इतने बड़े लंड को देख के मेरी बीवी के चहरे पर ख़ुशी छा गई, वो इतने ही लम्बे लंड के साथ सम्भोग करना चाहती थी।

और फिर क्या! तृष्णा भी विक्रम के लंड पर इस प्रकार टूटी जैसे वो जन्मों-जन्मों की प्यासी हो। विक्रम के लंड को हाथों से सहला कर, आगे पीछे करके उसे जी भर कर देखने लगी। एक लम्बे लंड से चुदने की चाह आज उसकी पूरी हो रही थी। तृष्णा ने लंड के सुपारे को चूमा, अब उसने लंड को चूसना प्रारम्भ किया। कभी वो लंड को चूसती, कभी वो अण्डों को चूसती, उसके चूसने के तरीके ने मेरे लंड को भी खड़ा कर दिया।

मैंने भी अपने कपड़े निकाल कर उसके मुँह के सामने अपना लंड खड़ा कर दिया और बोला- लो! अब दो दो लंड को एक साथ चूसो!

दो लंड एक साथ देख कर उसको मजे आ गये और दोनों को एक एक हाथ में पकड़ कर बारी बारी से चूसने लगी। 15-20 मिनट चूसने के बाद विक्रम ने तृष्णा को बिस्तर पर लिटा दिया और उसकी दोनों टाँगों को चौड़ा किया। दोनों टाँगों के चौड़ी होते ही तृष्णा की चिकनी चूत खुल गई और अन्दर का गुलाबी भाग दिखने लगा। अब तक तृष्णा की चूत बहुत सारा पानी छोड़ चुकी थी और अब वो चुदने के लिए तैयार थी।

विक्रम ने एक ऊँगली तृष्णा की चूत में डाली, ऊँगली के अन्दर जाते ही तृष्णा के मुँह से आह निकली। विक्रम अब तक तृष्णा के ऊपर आ चुका था और तृष्णा को अपने आगोश में लेने को तैयार था। उसने अपने लंड का मुँह चूत पर रखा और धीरे से एक धक्का मारा, जिससे विक्रम का आधा लंड तृष्णा की चूत में चला गया। लंड के अन्दर जाते ही तृष्णा ने जोरदार तरीके से सिसकारी भरी।

इस दृश्य को देखने में मुझे बड़ा मजा आया क्यूंकि इसी नज़ारे का मैं कितने दिनों से इन्तजार कर रहा था।
क्या शानदार नजारा था मेरे सामने!

एक लड़का मेरी ही बीवी को चोद रहा था और मैं दर्शक की तरह इस नज़ारे को देखते हुए अपने लंड को सहला रहा था। विक्रम तृष्णा के होठों का रसपान करते हुए चोदने की गति बढ़ा देता तो कभी धीरे धीरे चोदता। उसके स्तनों को चूसते हुए वो काम क्रीड़ा को चरम सीमा पर पहुँचाने में लग गया। मेरी बीवी के मुँह से आज अलग अलग सिसकारियों, आहों की आवाजें निकलने लगी। वो भी कामक्रीड़ा के सागर में गोते लगाने लगी।

15 मिनट के बाद दोनों के मुँह से सिसकारियों की आवाजें तेज होने लगी और दोनों ने एक लम्बी आह्ह्ह्ह हह्ह्ह्ह भरते हुए अपना अपना पानी छोड़ दिया। विक्रम निढाल होकर तृष्णा के नंगे जिस्म पर लेट गया। तृष्णा उसको धीरे धीरे प्यार करने, चूमने लग गई। विक्रम तृष्णा के ऊपर तब तक रहा जब तक उसका लंड नौ इंच से घट कर तीन इंच का नहीं रह गया। तृष्णा अभी भी बिस्तर पर लेटी हुई थी और इस नग्न अवस्था में बहुत कामुक और सुन्दर लग रही थी।

उसने लेटे लेटे ही एक नेपकिन से विक्रम के वीर्य को साफ़ किया और मुझे अपनी बाँहों में भरने के लिए इशारा करने लगी। मैं तृष्णा के पास पेट के बल लेट गया और उसके स्तन चूसने लगा।
मैं धीरे धीरे उसके जिस्म को चूमने लगा जिससे वो फिर गर्म हो गई और एक झटके से उसने मुझे बिस्तर पर गिराया और मेरे ऊपर आ गई।
मेरे लंड को अपने हाथ से पकड़ कर अपनी चूत के मुँह पर रखा और एक हल्के धक्के से मेरे लंड को अपनी चूत में समाने लगी। पूरा लंड अन्दर जाने के बाद वो मुझसे चिपक गई। अब वो धीरे धीरे अपनी कमर चलाने लगी। कमर को चलाते हुए वो मेरे होठों को चूसती रही।

मैंने तृष्णा से धीरे से पूछा- मजा आया या नहीं एक पराये लंड की सवारी करके?

वो बोली- एकदम मजा आ गया! उसका लंड आपसे भी लंबा था। मेरी चूत को फाड़ते हुए वो चूत की अंतिम दीवार तक को ठोक रहा था।

वो बोली- विक्रम का लंड लम्बा है और आप का लंड मोटा है, दो अलग अलग लंड से चुदने में मजा आ गया।

बातें करते हुए वो गर्म होने लगी और अपनी कमर को तेज चलाने लगी। वो अब मेरे ऊपर बैठ कर आगे पीछे होने लगी जैसे घुड़सवारी कर रही हो।

मैं भी नीचे से हल्के हल्के धक्के मारने लगा। मैं उसके स्तनों को मसलने लगा। वो धीरे धीरे अपनी चरमसीमा पर पहुँचने लगी और एक जोरदार धक्के के साथ उसने अपना पानी छोड़ दिया। अब बारी मेरी थी, मैं उसे बिस्तर पर लिटा कर जोरदार पेलमपेल करने लगा और अंत में मैंने अपना सारा वीर्य उसकी चूत में डाल दिया।

दो बार झाड़ने के बाद वो भी निढाल होकर लेट गई। विक्रम ने हमें खाने को चिप्स और ज्यूस दिया। बीस मिनट के ब्रेक में हमने थोड़ी बातचीत की। विक्रम बातें करते हुए तृष्णा के वक्ष पर हाथ फेरता, कभी तृष्णा की गांड पर हाथ फेरता।

अब विक्रम का लंड तृष्णा के स्पर्श से फिर खड़ा हो गया और एक बार फिर तृष्णा की चूत में हंगामा मचाने लगा। तृष्णा दो बार चुद कर थोड़ी थक गई थी, फिर भी नए और लम्बे लंड का मजा लेने लगी।

इस बार चुदाई थोड़ी लम्बी चली। विक्रम ने अलग अलग काम आसनों के जरिये चुदाई की। लगभग आधा घंटे की पेलमपेल करने के बाद दोनों फिर झड़ गए। अब हम तीनों बेड पर पूर्ण-नग्न ही लेटे रहे।

आधा घंटा सुस्ताने के बाद हम उठे। तृष्णा ने विक्रम के लंड पर एक चुम्बन लिया और कहा- तुमको मैं कभी भूल नहीं सकूंगी।

हम तीनों ने अपने अपने कपड़े पहने। जाते हुए तृष्णा ने विक्रम को गले लगा कर चूम लिया और आगे भविष्य की अनिश्चिताओं को छोड़ते हुए मैंने और तृष्णा ने विक्रम को अलविदा कहा।

घर लौटते हुए मैं और तृष्णा मंद मंद मुस्कुरा रहे थे। आज हमने उस काम को अंजाम दिया जिसकी हम कल्पना करते थे। आज मुझे विचार आ रहा था कि अन्तर्वासना पर बहुत सी कहानियाँ सच भी हैं क्यूंकि अब एक कहानी मेरे पास भी थी।

दोस्तो, मेरी सच्ची घटना पर आधारित यह हिन्दी सेक्स स्टोरी आपको कैसी लगी, मुझे जरूर जरूर बतायें।
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