कामदेव के तीर-5
(Kaamdev Ke Teer- Part 5)
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मैं पलंग से उठा ही था तभी रजिया मेरे लिए चाय लेकर आ गई और मेज पर रख दी। मैंने पीछे से रजिया को दबोच लिया
‘ओ..माँ… थोड़ा सबर करो! फरहा दीदी को शबा के स्कूल के लिए निकल जाने दो, फिर मुलाकात कर लेना!’ कहकर वो चली गई!
मैंने चाय पी और फ्रेश होने बाथरूम में चला गया, नहाकर तौलिया लपेट कर जैसे ही बाथरूम से निकला रजिया कमरे में आ चुकी थी और दर्पण में अपने यौवन को निहार रही थी!
मैंने उसके पास जाकर अपना तौलिया खोल दिया तो रजिया मेरे नग्न शरीर को देख शरमा गई और अपना चेहरा हाथों से ढक लिया।
उसे बाहों में भरकर मैंने उसे चूमते हुए सारे अंगों को मसल डाला, फिर निर्वस्त्र किया और पलंग पर बिठा कर उसके मुख के आगे अपने लौड़े को हिलाने लगा, जिसे उसने थाम लिया और अपने मुँह के हवाले कर उसकी चुसाई करने लगी।
मैंने उसके स्तनों का मर्दन करना शुरू किया और एक अंगुली उसकी भट्टी जैसी गर्म चूत में डाल दी। पहले से ही गर्म वासना से भरी रजिया को पलंग पर लिटाकर अपना लौड़ा उसकी चूत में पेल दिया और उसे भोसड़ा बनाने में जुट गया!
आह्ह… औउह… ओह्हह… की आवाज आनि शुरू हो गई, फिर उसने जो हाय तौबा मचाई तो मेरी भी उत्तेजना चरम पर आ गई, पर न कोई देखने वाला था, न ही सुनने वाला! दोनों एक दूसरे को संतुष्ट करते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़े चले जा रहे थे।
फिर वो समय आया जब दोनों का रस सैलाब बन कर फ़ूट पड़ा और पसीने से सराबोर होकर हाँफ़ते हुए एक दूसरे को थाम कर निढाल हो गए!
रजिया ने फिर एक बार फिर तेल लगाकर मेरी काया की मालिश कर डाली, बड़ी तन्मयता से वो मेरे यौन अंगों को पुनजागृत करने की लालसा से सहलाते-मसलते मालिश कर रही थी कि तभी फरहा आ गई, रजिया तो कपड़े पहन चुकी थी पर मैं नंगा ही बिस्तर पर लेटा था!
सिल्की साड़ी में से झलकते यौवन को देख मेरे मन में हलचल सी होने लगी।
नाभिदर्शना साड़ी से कमर की खूबसूरती देखते बन रही थी उस पर खुली जुल्फें और बड़े गले का ब्लाउज़, फिर फरहा की कातिल अदाएँ! अब मेरे को समझ आ रहा था कि जलती शमा पर परवाने क्यों न्यौछावर हो जाते हैं!
शायद यह चीज ही ऐसी है।
फरहा को शायद हमारे हो चुके मिलन का अनुमान नहीं हो पाया था, बोली- वाह रजिया, तुमने तो मेरा काम आसान कर दिया! अब जाकर साहब का नाश्ता तैयार कर लो!
कहकर अपना बैग एक ओर पटक दिया और पलंग पर आकर बैठ गई। मैंने अपना सर उसकी गोद में रख लिया और नाभि को चूमते हुए उसके स्तनों पर अपनी गर्म सांसें छोड़ते हुए उन्हें उद्वेलित करने लगा!
रजिया बाहर चली गई तो फरहा को अपने ऊपर खींच लिया और एक एक कपड़े को निकालकर उसके जिस्म से अलग कर उसे बेपर्दा कर दिया। उसका बदन खजुराहो की मूर्तियों से भी ज्यादा खूबसूरत था।
दोनों नंगे जिस्म एक दूसरे में गुंथ गए, दोनों 69 को अवस्था में आ गए। मैंने अपनी अंगुली फरहा की चूत में घुसा दी और उसका अंगुल-चोदन करने लगा, वो मेरे लौड़े को सहलाते हुए चूसने लगी। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!
मैंने कहा- फरहा, तुम्हारी बुर तो बड़ी सुन्दर और मस्त है! इसे जरा और टाईट करो न!
फरहा– वो कैसे?
मैं– जब तुम पेशाब करती हो और अचानक तुम्हें पेशाब रोकना पड़े तो क्या करती हो? पेशाब रोकने के लिए जिस तरह से अपनी चूत को संकुचित करके पेशाब रोकती हो वैसे ही संकुचन अपनी चूत में करो तो चूत में बहुत कुछ कसावट आ जाती है और निरंतर अभ्यास से चूत पहले जैसी कस जाती है! पर आवश्यकता से अधिक करना घातक भी हो सकता है!
फरहा ने अपनी चूत में संकुचन किया तो मेरी अंगुली जो उसकी चूत में घुसी थी, उस पर दबाव बढ़ गया, मैंने कहा- बिल्कुल सही कर रही हो! इस तरह का अभ्यास रोज 4 से 6 बार किया करो! इस अभ्यास को सेक्स करते समय, सोते समय या पेशाब करते समय कर सकती हो! फिर चुदाई के वक्त इसे करके देखना, तुम्हारे शौहर तुम्हारे इस गुण के तो कायल ही हो जायेंगे!
वो सफलतापूर्वक अभी इसी अभ्यास को कर रही थी, मैं उसकी चूत में अंगुली करते हुए उसके सौन्दर्य को सहला कर स्तन रूपी अमृतकलश का रसपान कर रहा था।
फरहा यौन आनन्दित होकर मादक स्वर उत्पन्न कर रही थी, उसकी चूत बिल्कुल गीली हो चली थी, मैं उसके ऊपर आ गया और अपने लंड को चूत के ऊपर रख कर अन्दर पेल दिया।
शायद फरहा पहले से इसके लिए तैयार थी, उसने चूत को कस लिया था, तभी तो दो तीन धक्का लगाने के बाद पूरा लंड उसकी चूत घुस पाया!
‘वाह री फरहा! बड़ी जल्दी सीख गई तुम तो!’
उसकी तारीफ करते हुए मैंने उसके अधरों को चूम लिया और अपनी जीभ उसके मुख में डालकर उसके मुँह का जिह्वा-चोदन करने लगा।
मुँह और चूत की चुदाई से उत्तेजित फरहा अपना अभ्यास छोड़कर मेरी पेलमपेल से ताल मिलकर नीचे से अपने चूतड़ उचकाने लगी, मेरे हाथ फरहा के बड़े स्तनों को रगड़ रगड़ कर लाल कर रहे थे। हम दोनों का मद्धिम शोर पूरे कमरे में फ़ैल रहा था, बीच बीच में फरहा अपनी चूत को कस भी लेती थी।
पंद्रह बीस मिनट में फरहा और मेरा माल अपने अपने जननांगों से वेगपूर्ण गति से निकलने लगा और एक दूसरे में समाये हुए धराशायी हो गए!
फिर फरहा के आगोश में लेटे हुए हम काफी देर तक बातें करते रहे! मैंने फरहा के बालों को सहलाते हुए कहा- दस बज चुके हैं और साढ़े ग्यारह की ट्रेन से मुझे जाना है!
तो बोली- रोनी, आज शाम तक रुक जाओ!
मैंने कहा- मैं रुक नहीं सकता! मुझे मेरी साईट पर शाम तक पहुँचना जरूरी है! इस ट्रेन से जाने पर मेरा आज के दिन का काम ख़राब होने से बच जायेगा!
वो बेमन से उठी और अपने कपड़े लेकर बाथरूम में चली गई, फिर बाहर आकर बोली- आप तैयार हो जाओ! रजिया भी नाश्ता लेकर आने वाली है!
और फरहा नीचे चली गई!
मैं बाथरूम में नहाने के लिए घुस गया, नहाकर बाहर निकला तो दरवाजे पर रजिया खड़ी थी शायद वो झिरी में से मुझे नहाते हुए देख रही थी!
वो मुझसे लिपट गई और बोली- फरहा दीदी कह रही थी कि आप जा रहे हो? रोनी जी आपने मुझे वो बड़ा सुख दिया है जिससे मैं कई महीनों से महरूम थी, शाम तक और रुक जाओ, आपकी बहुत याद आएगी अब आप कब मिलोगे?
मैंने कहा- हाँ, जाना तो पड़ेगा! अपनी मुलाकात को एक सुहाना ख्वाब समझ कर भूल जाना रजिया, इसी में हम सभी की भलाई होगी!
उसके बाद उदास फरहा ने मुझे स्टेशन छोड़ दिया, मैं वापस आ गया!
उसके बाद फरहा से फोन से बात भी हुई, उसने बताया कि दुबई से आने के बाद मेरे शौहर ने जब मेरे साथ सम्भोग किया तो मैंने अपनी चूत को कसने वाली युक्ति प्रयोग की तो वो कह रहे थे- फरहा बेगम, तुम्हारी चूत तो ऐसे कसी हो गई है, जैसे कई महीनों से तुम्हारी चुदाई ही न हुई हो! मैंने उन्हें इस अभ्यास के बारे में कुछ नहीं बताया परन्तु चूत को कसने का अभ्यास निरंतर करती रहती हूँ!
पात्र और स्थान के नाम काल्पनिक है!
कहानी कैसी लगी आपको? आपके विचार जानने को उत्सुक रोनी सलूजा आपके मेल का इंतजार करेगा!
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