कामदेव के तीर-4
(Kaamdev Ke Teer- Part 4)
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घर में किसी के आने का कोई अंदेशा नहीं था, बड़ी निश्चिन्तता से सारा काम चल रहा था। मुझे नींद ने आ घेरा, कब सो गया पता ही नहीं चला!
अचानक ही मुझे अपने लंड पर कुछ अहसास हुआ, जब मेरी नींद खुली तो देखा कि फरहा मेरे लंड को सहला रही है और बार बार होंठों से स्पर्श करते हुए लंड के गुलाबी टोपे को चूम रही है।
उस वक्त रात के दस बजने को थे। फरहा बोली- रोनी जी, गुस्ताखी के लिए मुआफी चाहूँगी, रजिया और शबा खाना खाकर सोने चली गई हैं, अब आप नीचे चलो तो हम साथ में खाना खा लेंगे!
खाने की मेज पर ही फरहा ने विलायती शराब की बोतल भी रख दी जो दुबई से उसके शौहर लाये थे। हम दोनों ने सिर्फ एक एक लार्ज पेग लगाया और रजिया द्वारा बनाये लजीज खाने का लुत्फ़ लेकर फिर ऊपर की मंजिल पर आ गए!
फरहा ने अपने कपड़े उतार फेंके और मुझे भी नंगा कर दिया। वो तो मस्त सुरूर में थी, उसे तो मेरी गोद में मुझसे खड़े खड़े चुदाई करानी थी।
हम दोनों कमरे में नंग धड़ंग खड़े हुए थे, फरहा मेरी टांगों के सामने बैठकर मेरे लंड को सहलाते चूसते हुए खड़ा करने लगी।
जैसे ही लंड खड़ा हुआ, उसे अपनी बुर के मुहाने में घुसा दिया फिर मेरे कंधे पर से हाथ रखते हुए मेरी गर्दन पर लपेट लिए और अपनी टांगों को धीरे धीरे उठाकर मेरी कमर पर घेरा बनाकर लपेट लिया।
यह काम फरहा ने बड़ी सावधानी से किया ताकि लंड बुर से बाहर न निकल पाए, फिर अपनी टांगों को मेरी कमर पर कसते हुए पूरा लौड़ा अपनी बुर में लील गई!
फिर अपने जिस्म को उछालते हुए मेरे लंड को अपनी चूत में अन्दर बाहर करने लगी।
मैंने अपने दोनों हाथों से उसके पुष्ट नितम्बों को थाम लिया और मसलते हुए फरहा को उछल लेने में सहयोग करने लगा।
मेरी आँखों के ठीक सामने फरहा के गुदाज स्तन उछल रहे थे जिन्हें कभी मैं अपने मुँह में ले लेता, कभी उनके चुचूक को अपने दांतों से दबा देता तो फरहा उई… माँ.. कहकर चिहुंक उठती!
बड़ा मजेदार लग रहा था यह सब!
‘रोनी, मैं अपने शौहर के साथ भी खुलकर चुदाई करती हूँ और मजा भी बहुत आता है पर आज की चुदाई ने मुझे मेरी सुहागरात याद दिला दी! जब पहली बार सेक्स किया था तो उसके पहले कितनी उत्तेजना हुई थी, कितना रोमांच पैदा हुआ था कि आज मेरी बुर में एक लौड़ा घुसने वाला है, दो दिन पहले से चूत से लगातार पानी का रिसाव होता रहना! वैसे ही आज मुझे लग रहा है क्योंकि पति के साथ मजा लेते हुए एक अरसा हो गया है, उनसे संतुष्ट तो पूरी तरह हो जाती हूँ पर आज की उत्तेजना मेरी जिन्दगी में फिर से दूसरा नया लौड़ा मिलने के कारण हो रही है, कितनी जल्दी मेरी चूत से पानी छुट जाता है और स्खलित हो जाती हूँ! ऐसा लग रहा है कि तुम कभी मुझे छोड़कर न जाओ! अह… स्स्स… ओह…
फरहा की सांसों की गति तेज और तेज होती जा रही थी, उसके मुँह से सीत्कारें भी तेजी से निकल रही थी- रोनी, मुझमें और अन्दर समां जाओ आह्ह…स्स्स्स…
फिर वो दौर आया जब फरहा ने मुझे अपने जिस्म के साथ कस कर ऐसे जकड़ किया जैसे मुझे नागपाश में बांध दिया हो और अपना रस योनि से छोड़ दिया जो मुझे अपने जननांगों से होकर जांघों पर बहता महसूस हो रहा था। वो मुझे लगातार चूम रही थी, कभी मेरे होंठों पर अपने दांत गड़ा देती!
जब वो शांत हो गई तो मैंने उसे अपने से नीचे उतारकर पलंग पर लिटा दिया।
उसकी चूत बिल्कुल लाल हो रही थी, अभी भी उसमें से रस बह रहा था, मैं उसके ऊपर चढ़ गया और उसके स्तनों से खेलने लगा और उसके अधरों का रसपान करते हुए उसके सांचे में ढले हुए दिलकश बदन को सहलाने लगा।
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वो मेरे खड़े लौड़े को हाथ में थामे हुए उसे सहला रही थी, मैंने उसकी टांगों को अपने कंधे तक उठाया और अपना लंड उसकी चूत में लगाता, उससे पहले ही फरहा बोली- चलो टैरेस पर चलते हैं।
हम दोनों आधी रात के वक्त नंगे ही कमरे से लगे टैरेस पर आ गए जहाँ एक झूला और कुर्सियाँ रखी हुई थी। मैंने वहाँ का मुआयना करना चाहा तो फरहा बोली- चिंता मत करो, यहाँ कोई देखने वाला नहीं है!
झूला देख मुझे लगा कि आज झूले का मजा लेना चाहिए, मैंने फरहा को झूले पर डॉगी स्टाइल में इस प्रकार कर दिया कि मेरा लंड और उसकी चूत एक सीध में आ गए, उसके हाथों को झूले की पुश्त पर टिका दिया फिर अपने लंड को पीछे से फरहा की चूत में घुसा दिया, गीली और चिकनी होने के कारण बड़े आराम से चूत में लंड चला गया।
फिर मैंने फरहा को बोला- झूले को अच्छी तरह से पकड़ना!
और झूले को सामने की तरफ ठेल दिया तो मेरा लंड पुच्च की आवाज के साथ बाहर निकल आया जैसे ही झूला वापस मेरी और आया मैंने लंड को फरहा की चूत की सीध में कर दिया फक्क की आवाज के साथ मेरा लंड चूत में समां गया पर फरहा की घुटी हुई चीख निकल गई।
झूला मेरी जांघों से टकराकर रुक गया।
मैंने फिर से झूला आगे की ओर ठेल दिया तो लंड बहर निकल आया।
जैसे ही झूला वापस आया तो मेरा लंड फरहा की चूत में प्रविष्ट हो गया।
ऐसा कई बार किया, बड़ा अभूतपूर्व आनन्द आ रहा था पर थोड़ा कष्टप्रद भी था क्योंकि दोनों के जननांगों पर चोट के साथ घर्षण लग रहा था और हम दोनों की चीख निकल जाती थी।
अबकी बार जैसे ही मेरा लंड उसकी चूत में घुसा तो मैंने झूले को थाम लिया और कुछ अन्तराल के बाद झूले को धीरे धीरे हिलाकर घोड़ी चोद शुरू कर दिया।
घायल लंड और चूत में कुछ सूजन सी आ जाने से कसावट सी लगने लगी थी, फरहा भी मादकता से भरकर सिसकार रही थी, मेरे लंड ने ठुनकते हुए तेज प्रहार लगाने शुरू कर दिए और अंत में फ़रहा एक बार फिर स्खलित होने लगी और साथ में मेरा भी वीर्य उसकी चूत में निकलता चला गया।
फिर मैं और फरहा वही टैरेस पर झूले में कुछ देर लेटे बातें करते रहे। हम दोनों को हल्का हल्का दर्द हो रहा था। उसके बाद हम कमरे में आकर सो गए।
सुबह सात बजे नींद खुली, तब फरहा बाथरूम से नहा कर निकल रही थी, उसके बदन पर सिर्फ एक तौलिया था, मैंने उसे पकड़ना चाहा तो बोली- जरा सब्र करो! मुझे शबा को स्कूल छोड़ने जाना है, तब तक आप नहा-धो लेना! आकर मिलती हूँ।
मेरे ही सामने उसने सारे अन्दर के कपड़े पहने, फिर साड़ी पहन ली और हुस्न की मालिका नीचे चली गई!
मैं पलंग से उठा ही था तभी रजिया मेरे लिए चाय लेकर आ गई और मेज पर रख दी, मैंने पीछे से रजिया को दबोच लिया!
कहानी चलती रहेगी, आपके विचारों का स्वागत है!
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