जमशेदपुर की गर्मी-3

प्रेमशीर्ष द्वारा लिखित एवम् प्रेम गुरु द्वारा संशोधित और संपादित

उससे भी अब नहीं रहा जा रहा था। उसने अपनी शर्म त्याग कर एक झटके में मेरी चड्डी को नीचे कर दिया और मेरे 7″ लंबे और बहुत ही मोटे लंड को आज़ाद कर दिया। उसे देख कर वो चकित रह गई। मेरा लंड शायद उसकी उम्मीद से कहीं ज्यादा विकराल था।

वो बोली,”बाप रे ! यह तो बहुत मोटा और बड़ा है शायद मेरी कलाई से भी ज्यादा मोटा है। मेरी चूत जिसमें एक उंगली नहीं जा सकती ये कैसे जायेगा?”

उसकी मासूमियत पर मुझे हंसी आई और बहुत प्यार भी आया, मैंने कहा,”धीरे-धीरे सब सीख जाओगी मेरी जान !”

उसके हाथ अब मेरे लोहे जैसे लंड पर थे और वो उसे सहला रही थी। उसने मेरे सुपारे पर चूमा और फिर उसे मुँह में लेकर चूसने लगी। मुझे बहुत मजा आ रहा था। इतनी उत्तेजना को रोक पाना अब संभव नहीं था। मैं झड़ने वाला था।

तीन मिनट बाद मैं उसके मुँह में ही झड़ गया। उसे शायद इसकी उम्मीद नहीं थी पर फिर भी बेहिचक वो सारा वीर्य पी गई।

मैंने उसे उठाया और गले से लगा लिया। उसकी साँसें अब भी बहुत तेज चल रही थीं। मैं उसे लिटाकर उसके ऊपर आ गया और उसे चूमने लगा। फिर उसके मम्मे चूसने लगा।

फिर धीरे धीरे नीचे की ओर बढ़ते हुए नाभि से होता हुआ चूत तक पहुँच गया।

क्या गरम चूत थी। रस से भरी।

थोड़ी देर चूत का स्वाद चखने के बाद मैंने धीरे अपनी एक उंगली अंदर डाल दी।

उसकी चूत बहुत तंग थी। उसे दर्द हुआ। उसने अपनी जांघें भींच लीं।

ताज़ी चूत को देखकर मेरा लंड फिर से उफान मारने लगा। वो भी चुदने के लिए तड़प रही थी और अब मैं भी उसकी खूबसूरत चूत का उदघाटन करना चाहता था।

पर बिना क्रीम के इतने मोटे लंड का अंदर जाना नामुमकिन था। सो मैंने उसे मेरे लंड को थूक से पूरी तरह गीला करने को कहा।

वो मेरा लंड चूसने लगी और उसने उसे अच्छी तरह गीला कर दिया। अब मैंने भी उसकी चूत चाटी और थूक से उसे गीला कर दिया।

मैंने उसकी दोनों टाँगे फैलाई और उसके बीच में आ गया और उसके चूत के होठों को खोल कर अपने लंड का सुपारा लगा दिया और दबाने लगा।

अंदर जाने में परेशानी हो रही थी। पर जोश अपने चरम पर था। जी तो कर रहा था कि जोर का झटका मारूं और सारा लंड गहरे तक धंसा दूं, पर सिर्फ अपने मजे के लिया अपनी जान को कैसे दुखी कर सकता था।

खैर इस बार मैंने थोड़ा ज्यादा जोर लगाया तो घप्प से सुपारा अंदर चला गया।

उसे तेज दर्द हुआ और वो तड़पने लगी।

उसने मुझे निकालने को कहा पर मैं ऐसा नहीं कर सकता था। मैंने महसूस किया कि मेरे लंड से उसकी झिल्ली कुछ हद तक या तो फट गई थी या तन कर फटने के कगार पर थी।

मैं उसके ऊपर लेट गया और उसे चूमने लगा। एक हाथ से उसकी कमर को पकड़े रखा और दूसरे से उसकी चुच्ची मसलने लगा। उसे थोड़ी राहत मिली। अब वो मजे लेने लगी। मैंने मौका देख कर जोर लगाया और मेरा लंड आधे से ज्यादा अंदर चला गया।

उसकी झिल्ली फट चुकी थी।

वो चिल्लाई और मुझसे बाहर निकालने की मिन्नतें करने लगी। पर ऐसे में लंड को बाहर निकालने का मतलब था सारे किये कराये पर पानी फेरना। उसकी चूत घायल रह जाती और अगले कई दिनों तक उसमे वो उंगली भी घुसाने नहीं देती।

मैंने उसे प्यार से समझाया,”जान, थोड़ा सा बर्दाश्त करो। यकीन करो मेरा, बस थोड़ी देर में बहुत मजा आने लगेगा।”

वो चुप तो हो गई पर उसके आँखों के आंसू उसका दर्द बयान कर रहे थे। मैंने अपना ध्यान उसके मम्मों पर लगाया और उन्हें जोर जोर से चूसने लगा। दूसरे हाथ से उसके दूसरे मम्मे को मसलने लगा। मैंने उसके चुचूक को दांतों से काटा तो वो मचल उठी और सी सी की आवाज़ निकालने लगी। अब उसे मजा आने लगा था। उसने अपनी गाण्ड उठा कर चुदाई शुरू करने का आगाज़ किया और मैं धीरे धीरे अपना लंड अंदर-बाहर करने लगा।

उसे अब बहुत मजा आ रहा था। अपनी गांड उचका उचका कर वो मेरा साथ देने लगी। एक बार उसने नीचे से जोर लगाया और मैंने ऊपर से। और लंड पूरा का पूरा उसकी चूत में समा गया।

क्या गजब का एहसास था। उस अनुभूति के सामने सारे सुख बेकार लगे। इससे बेहतर जन्नत क्या हो सकती है भला। दोनों की मस्ती चरम पर थी और अब मैंने उसे पीठ के नीचे से जकड़ लिया और अपने सीने से चिपका लिया।

उसने भी मुझे ऊपर से पकड़ लिया और जोश में एक हाथ से मेरे बाल खींचने लगी। मैंने गति बढ़ा दी और जोर जोर से धक्के देने लगा। वो भी सी सी की आवाज़ निकालने लगी और मेरा साथ देने लगी। हम अब मस्ती में एक दूसरे से बातें करने लगे।

“मेरी जान आज तुम्हे अपना बना कर जन्नत पा ली।”

“जानू मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि चुदाई में इतना मजा आता है।”

उसके मुँह से निकले चुदाई शब्द ने मेरी जुबान का ताला खोल दिया। मैं शुरू हो गया।

“अरे मेरी रानी। मेरी जान। अभी तुमने देखा ही क्या है। चुदाई की कला तो ऐसी है कि जितने प्रयोग करो और जितनी बार करो, एक नया ही आनंद मिलता है।”

“वाह क्या चूत है तेरी मेरी रानी। आज तो मैं तुम्हारी चूत का भोंसड़ा बना दूंगा !”

“जानू, जम कर चोद मुझे। बना दे भोसड़ा मेरी कुंवारी चूत का। जोर से चोद मुझे। और जोर से…. और जोर से चोद….. जी कर रहा है खा जाऊं तेरे लौड़े को !”

“अरे जानेमन लंड खा जायेगी तो फिर चुदेगी कैसे ? अभी तो तुझे बहुत चोदना है मुझे। अभी तेरी गांड भी फाड़नी है। तेरे चूत का भूत उतारना है। कहाँ छुपी थी रे जानेमन अब तक। ऐसी दहकती जवानी को क्यूँ छुपा रखा था। अब देख तुझे चोद चोद कर तेरे रूप को और कैसे निखारता है मेरा मोटा लंड !”

“ओह लगता है बड़ा घमंड है लंड पे तुझे। चोद मुझे ! कितनी देर तक चोदता है !”

“अरे जान हर आदमी को अपने लंड पर घमंड होता है। फिर मेरा लंड तुझे भी तो इतना भा रहा है ?”

जोरदार चुदाई जारी थी। उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया था पर अब भी वो मेरा साथ पूरे जोश के साथ दे रही थी। फच्च फच्च के साथ पूरा वातावरण गर्म था।

“हाँ जानू बड़ी ज़ालिम लंड है तेरा। मेरे चूत का कीमा बना दिया रे। जी करता है यूँ ही चुदती रहूँ तुझसे जिंदगी भर। पहले क्यूँ नहीं चोदा यार और जोर से धक्का मार !”

“ये ले !” कह कर मैंने भी धक्का मारा।

“चोद जान…. जोर से चोद !”

अब मैं अवस्था बदलना चाहता था। वो शायद इसे भांप गई।

मैं जैसे ही उतर कर नीचे लेटा वो मेरे ऊपर आ कर बैठ गई और मेरा लंड पकड़ कर अपने चूत के द्वार पर लगा लिया। दोनों ने धक्के लगाये और लंड चूत में धंस गया।

वो उछल-उछल कर मजे लेने लगी और मुझे भी स्वर्ग का सुख देने लगी। मैंने दोनों हाथ से उसकी चुच्चियाँ पकड़ लीं और उन्हें मसलने लगा।

लगभग 15 मिनट ऐसे ही चुदाई चली फिर मैंने उसे खींच कर अपने ऊपर लिटा लिया औए नीचे से धक्के देने लगा और उसके होंठो को चूसने लगा। 5 मिनट ऐसे ही बीते।

चूँकि मैं पहले ही एक बार झड़ चुका था इसलिए ये दौर तो लंबा चलना ही था। मेरा रिकॉर्ड रहा है कि दूसरी पारी मैंने हमेशा कम से कम 25-30 मिनट की तो खेली ही है।

खैर अपनी पहली चुदाई इतनी लंबी होने पर कोमल बहुत संतुष्ट दिख रही थी।

पर अब चुदाई महायज्ञ में पूर्णाहुति देने का समय था। मैंने उसे घोड़ी बन जाने को कहा और मैंने उसकी चूत में पीछे से लंड का प्रवेश करा दिया। मैंने उसकी कमर पकड़ी और जोर जोर से धक्के देने लगा। वो मस्ती में बड़बड़ाने लगी। मैंने भी जोश में अपनी गति बढ़ा दी। हम दोनों का रोम रोम काम की ज्वाला से धधकने लगा।

“ले गया लंड तेरी चूत के अंदर तक ! ले अब इसे संभाल मेरी जान। अब ये ले ! और तेज ले ! ये ले !”

“चोद रे मेरे राजा ! और जोर से धक्के मार ! फाड़ के रख दे अपनी जान की चूत को ! आह….. कितना मजा आ रहा है ! गिरा दे अपना सारा माल चूत में !”

मेरी स्पीड से उसे अंदाज़ा हो गया था कि अब मैं झड़ने वाला हूँ। वो दो बार पहले ही झड़ चुकी थी। और फिर मेरा लंड चूत की गहराइयों में जा गड़ा और वीर्य की आहूति पूर्ण हो गई।

मैं उसके ऊपर निढाल हो गया।

कुछ देर हम ऐसे ही पड़े रहे। फिर मैं उठा और कोमल को अपनी बाँहों में भर लिया और उसको धन्यवाद कहा। उसने भी मुझसे धन्यवाद कहा।

दोस्तों ! उस रात हमने दो बार और चुदाई का खेल खेला। अगले दिन उसकी परीक्षा थी। रात भर चुदने का उस पर उल्टा असर हुआ। उसकी परीक्षा बहुत अच्छी हुई। वो बहुत खुश थी। उस दिन रात में हमने एक अनूठा अनुभव लिया। मानसून की पहली बारिश में भीगते हुए चुदाई का मजा लिया जिसे अपनी अगली कहानी में लिखूंगा। पर तभी जब आप लोगों का मेल मुझे मिलेगा।

What did you think of this story??

Click the links to read more stories from the category कोई मिल गया or similar stories about

You may also like these sex stories

Download a PDF Copy of this Story

जमशेदपुर की गर्मी-3

Comments

Scroll To Top