इस्तान्बुल में शिप पर चुदाई-2
प्रेषक : विक्की कुमार
अभी तो क्रूज़ पर डांस व डिनर खत्म होने में करीब दो घंटे बाकी थे, और हमारा स्टीमर तो किनारे से बहुत दूर निकल आया था। यहाँ तो यह हालत थी कि हम दोनों ही बेकाबू होने लग गये। अब लगा कि क्रूज़ पर डिनर के लिये आने का निर्णय बहुत ही गलत था, इससे तो अच्छा होता कि वहीं होटल में रुक कर चुदाई का आनंद लेते, लेकिन अब पछताने से क्या होता।
वैसे भी आज क्रिस्टीना गजब ढा रही थी। उसने काले रंग की जीन्स और टी-शर्ट पहनी थी, उस पर भी मैच करता हुआ एक काले रंग की स्कीवी, और गले में काले रंग का स्कार्फ। उसके गौरे जिस्म पर काला रंग तो बेहद जंच रहा था। वैसे भी इन गौरी चमड़ी वाली इन यूरोपियन बालाओं का पसन्दीदा रंग काला ही होता है।
जिन पाठकों ने इस कथा का पिछला भाग नहीं पढ़ा हो तो उन लोगों के लिये मैं क्रिस्टिना के शरीर का वर्णन दुबारा कर दूं। वह इतनी खूबसूरत थी जैसे कोई माडल हो, उम्र लगभग तीस वर्ष, एकदम संगमरमरी गौरी चमड़ी, जैसे नाखून गड़ा दो तो खून टपक जायेगा, ब्लांड (सर पर सुनहरे, लम्बे बाल), अप्सराओं जैसा अत्यन्त खूबसूरत चेहरा, बड़ी बड़ी नीली आँखें, इनमे डूबने को दिल चाहे, तीखी नाक, धनुषाकार सुर्ख गुलाबी रंगत लिये हुए औंठ, अत्यन्त मनमोहक मुस्कान जो सामने वाले को गुलाम बना दे, लम्बाई लगभग पांच फीट छह इंच, टाईट जींस को पीछे से उसकी गांड देखने पर, उसकी चूत छोड़कर गांड मारने की इच्छा जागृत हो जाये।
ओह क्षमा करें, मैं खास बात तो बताना ही भूल गया कि उसके उन्नत स्तन 34, कमर 26 और गांड 36 ईंची थे। इन सब बातों का सारांश यह निकलता था कि उसे पहली बार देखने पर किसी भी साधु सन्यासी का लण्ड भी दनदनाता हुआ खड़ा होकर फुंफकारें मारने लगे। सोने पर सुहागा यह कि वह एक शानदार जिस्म की मालिक होने के साथ साथ इटेलिजेंट भी थी।
अब मेरे लगातार हाथ फेरने से क्रिस्टीना गर्म होने लग गई, फिर उसने धीरे से मेरे कान में कहा- सुबह तो एयरोप्लेन में जमीन से 35,000 फुट की ऊंचाई पर जन्नत के मजे दिला दिये, अब तुम यहाँ पानी पर चलते हुए जहाज में कुछ करो तो मैं तुम्हें कुछ जानूँ !
यह सुनकर मैं चिहुंका और मेरे दिमाग की घण्टियाँ बज गई, मैंने उससे कहा- मैं देखकर आता हूँ कि इन परिस्थितियों में मैं क्या कुछ कर सकता हूँ।
मैं अपनी सीट से उठा और सबसे पहले टायलेट की ओर भागा कि कहीं शायद दुबारा टायलेट पोलो खेलने का एक मौका मिल जाये। लेकिन जहाज बहुत बड़ा नहीं था अतः उसमें मात्र दो ही टायलेट थे। यात्री भी 75 से अधिक ही थे, अतः कोई ना कोई वहाँ आ जा रहा था। फिर खाने खाने व शराब पीने के बाद लगभग सभी को पेशाब के लिये, कम से कम एक बार तो आना ही था, अतः टायलेट पोलो खेलने का चांस मिलने की संभावना बिल्कुल भी नहीं थी। मैंने पूरे डेक पर घूम-फिर कर देखा कि कहीं कोई कमरा हो, पर कहीं कुछ नहीं था। अब मैं निराश हो ही चला था।
तभी मेरी निगाह उपर की तरफ जहाज के केप्टन की ओर गई, देखा कि वह सफेद झक से कपड़े पहने व्हील हाथ में लिये अपने कांच के केबिन में खड़ा है। मैंने आशा भर नजरों से उसकी ओर देखा और फिर उपर जाने के लिये सीढ़ी पर चढ़ा।
पास पहुँचने पर उसने पूछा- मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?
तो मैंने उसे बताया- मेरी दोस्त की तबीयत अचानक खराब हो गई है और उसे चक्कर आ रहे हैं। वह थोड़ी देर लेटना चाहती है, क्या आपके पास कोई कमरा है जहाँ वह थोड़ी देर आराम कर सके।
कुछ क्षण सोचकर उसने कहा- हमें किनारे पर पहुँचने में अभी करीब दो घंटे लगेंगे, तब तक आप चाहें तो लोअर डेक पर बने एक कमरे में जा सकते हैं वहाँ एक छोटा सा पलंग और एक मेज-कुर्सी लगी है उसमें रात को जहाज का चौकीदार रहता है, लेकिन वह भी हमारे के किनारे पर पहुँचने पर आयेगा, तब तक वह कमरा खाली ही है। आप चाहें तो उसकी चाभी ले जा सकते हैं।
अंधे को क्या चाहिये- दो आँखें।
मैंने उसे धन्यवाद बोला और चाभी लेकर तत्काल क्रिस्टीना के पास आया।उसका हाथ पकड़कर आहिस्ता से उसे नीचे की तरफ बने बने कमरे में ले गया। कमरा हालांकि छोटा, मगर साफ सुथरा था। उस पर लगा पलंग भी बड़ा नहीं था, मगर चुदाई के लिये पर्याप्त था। कमरे में घुसते ही सबसे पहले मैंने दरवाजा बंदकर खिड़की के पर्दे लगा दिये। यह हालांकि यह कमरा बहुत एक तरफ था, और उस ओर किसी के भी आने की सम्भावना नहीं थी।
क्रिस्टीना अभी भी दरवाजे के पास खड़ी मुस्करा रही थी, उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं उसकी इच्छा पूरी करने में सफल हो रहा हूँ। अब मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और पलंग पर बैठ गया, वह मेरी गोद में ही लेटी हुई थी। मैंने उसका लम्बा सा चुम्मा लिया, उसकी सांसों में एक मादकता की महक थी, उसके रसीले होठों में एक इस दुनिया-जहां को भुलाने वाला जादू था। जब वह मुझसे चिपक रही थी तो मेरे सीने में दो दहकते हुए अंगारे से चुभने लगे। ऐसा लग रहा था कि उसके दोनों वक्ष, दो गर्म भट्टियों में तब्दील हो चुके है, और यह गर्माहट मुझे जलाकर भस्म कर देगी।
हम दोनों अपने बस में नहीं थे। दोनों एक दूसरे के शरीर को टटोलने लगे। कामुकता अपनी सीमा को लांघ चुकी थी।
आज सुबह हवाई जहाज में चुदाई करते समय हम दोनों ने कोई भी आवाज नहीं निकालकर, जो चुदाई की थी, उस संयम का बांध अब टूट चुका था। हम दोनों नीडर होकर आवाजें निकाल रहे थी, क्योंकि हम डेक से काफी दूर थे जहाँ पार्टी चल रही थी। इसके अलावा जहाज के इन्जिन के शोर के साथ-साथ पानी के कटने की आवाज में हमारी मदभरी आवाजें तो उस कमरे से बाहर जा नहीं सकती थी। अब मैं जैसे ही क्रिस्टीना की गर्दन पर अपनी जीभ फिराने लगा तो, वह तड़पने लगी। उसके बाद जैसे ही मैंने उसके कान की लोम अपने मुँह में ली, वह अपने काबू में नहीं रही। उसने मेरी जींस को खोलकर उसमें से मेरे लिंग महाराज को आजाद कर दिया और उसे सहलाने लगी।
मैंने भी उसका स्कीवी, टी-शर्ट और फिर जींस भी निकाल दी, अब वह मेरे सामने काली ब्रा और पेंटी में जन्नत की हूर लग रही थी। लेटेस्ट स्टाइल की ब्रा में उसके झांकते हुए 34 इन्ची वक्ष का ऊपरी भाग, जो किसी पहाड़ की चोटियों जैसा लग रहा था। यह नजारा तो किसी भी साधु सन्यासी की नियत खराब करने के लिये काफी थे, तो फिर मुझ जैसे इंसान की क्या बिसात थी।
इधर क्रिस्टीना ने भी आवेश में आकर मुझे भी बिलकुल नंगा कर दिया। अब हम पागलों की तरह एक दूसरे के शरीर के अंग-प्रत्यंग को मसलने में लगे थे। देखने में ऐसा लग रहा था कि हम दोनों कुश्ती लड़ रहे हों। बिल्कुल सही, वह बेड-रेसलिंग ही तो थी। दुनिया का एक मात्र गेम, जिसमें दोनों खिलाड़ी ही जीतते हैं।यदि कोई हार-जीत होती भी है तो हारने वाला हारकर भी बहुत खुश होता है।
फिर मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसकी प्यारी सी रेशमी ब्रा के हुक खोल दिये, तो वह झटके से बहुत दूर जाकर गिरी। उसके दूधिया रंगत लिये हुए बेहद टाईट वक्ष ऐसे लग रहे थे जैसे कोई दो हिमाच्छादित पर्वत-शिखर हों। जैसे ही मैंने अपनी जीभ उसके एक वक्ष के दूध की टोंटी पर फिराई तो वह तो जोर जोर से सीत्कार कर कामोत्तेजक आवाजें निकालने लगी। उसने मेरा लण्ड पकड़ लिया, और उस पर हाथ फिराने लगी।
मैं पागलों की तरह कभी बायां स्तन तो कभी दायां स्तन अपने मुंह में लेने लगा। मेरे ख्याल से जवान औरत का स्तन दुनिया का सबसे मीठा फल होता है। सारी दुनिया भले ही आम को फलों का राजा मानती है, लेकिन मेरी राय से तो आप सब भी सहमत होंगे एक उन्नत स्तन के मुकाबले में बेचारे उस हापुस आम की क्या बिसात। अब मैं इसके वक्ष रूपी फल का रसास्वादन करने लगा। मुझे लग रहा था कि, दुनिया मेरे मुंह में समा गई है।
अब क्रिस्टीना भी कुछ अपने मुँह में लेना चाहती थी। वह थोड़ी देर बाद वह नीचे खिसक गई और मेरा लण्ड मुंह में लेकर चूसने लगी। फिर कुछ देर बाद मैंने भी पलटी खाते हुए 69 की पोजीशन बनाते हुए, उसकी पेंटी निकाल दी और उसकी रसीली मुलायम झांटदार चूत का रसास्वादन करने लगा। मैं अपनी जबान उसकी नर्म और गर्म चूत मे अंदर बाहर कर, उसे चुदाई का अहसास देने लगा। कुछ देर तक अनवरत जिह्वा-चोदन करने के बाद मुझे अपने मुंह में कुछ गर्म द्रव का अहसास हुआ और फिर क्रिस्टीना कांपती हुई ठंडी पड़ गई। मैं समझ गया कि वह झड़ गई है।
शेष कहानी तीसरे और अन्तिम भाग में !
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