हमारी अधूरी कहानी-1
(Hamari Adhoori Kahani-1)
अन्तर्वासना के सभी पाठकों को मेरा शत-शत नमन…..
मेरा नाम आशु है। आपने मेरी कहानी स्वतन्त्रता दिवस तो ज़रूर पढ़ी होगी। उस वक़्त सोनिया के साथ जो हुआ वो तो हुआ ही लेकिन जैसे-जैसे बंगलौर में दिन बीत रहे थे, मेरी जवानी के नए-नए नखरे भी देखने को मिल रहे थे। मुझे खुद पर ही भरोसा नहीं हो रहा था कि मैं क्या था और क्या हो गया।
खैर, वो तो अब भूली-बिसरी बातें हैं, गड़े मुर्दे उखाड़ने का क्या फायदा? है या नहीं??
तो बात करते हैं सोनिया के बाद मेरी ज़िन्दगी में आए उस तूफ़ान की जिसने मुझे बीच में ही लाकर खड़ा कर दिया- ना मैं इधर का रहा और ना उधर का !
सोनिया वाली घटना हुए दो महीने ही बीते थे कि एक दिन मेरे पास एक लड़की फ़ोन कॉल आया, वो लड़की मेरे ऑफिस के ही कैब से आती थी, लेकिन शरीफ बच्चा होने की वजह से उस पर कभी ध्यान नहीं दिया। उसे मेरा नंबर कहाँ से मिला यह तो पता नहीं लेकिन इतना ज़रूर बता सकता हूँ कि मेरे व्यवहार से लड़की बहुत खुश लगती थी।
खैर, मुझे कॉल आया- नाम पूछने पर पता चला कि उसका नाम वीणा है और संयोग की बात यह है कि बिना पूछे ही बहुत कुछ पता चल गया। वो मेरे घर के पास में ही रहती थी। देखा तो उसे था ही मैंने लेकिन अब मुझे क्या मालूम कि कौन मेरे बारे में क्या सोच रहा है ! देखने में अच्छी थी और मेरे नज़दीक सिर्फ एक ही बार बैठी थी।
कहानी को थोड़ा पीछे ले जाता हूँ जहाँ मैंने उसको पहली बार देखा था। उसके बाद फोन कॉल की बात से शुरू करूँगा।
हमारे ऑफिस में शनिवार को कैजुअल वीयर पहनते हैं। उस दिन शनिवार होने की वजह से उसने बदन से चिपकी हुई टी-शर्ट पहनी थी। हम ऑफ़िस कैब में थे। उसके बड़े-बड़े स्तन अपना सर उठाये ताज़ी हवा का आनंद लेकर मस्ती में झूल रहे थे। मेरे बगल में बैठे होने के कारण मेरा भी मन जल बिन मछली की माफिक मचल रहा था। चूंकि मैं लड़कियों से ज्यादा बात नहीं करता, अपना सर दूसरी तरफ घुमाये गाने-वाने गा रहा था।
एक नए सहकर्मी को उसके घर से लेना था, उसका घर भी पता नहीं था तो उसके क्षेत्र में जाकर गाड़ी रुक गई। वीणा मेरी तरफ मुड़कर पीछे देखने लगी जिससे उसके स्तन मेरे हाथ से सटने लगे। मैं फड़फ़ड़ाने लगा। कुछ देर के बाद जब उसका ऐसा करना कम नहीं हुआ तो मैं भी अपना हाथ धीरे-धीरे उससे सटाने लगा जिससे मुझे अच्छा लग रहा था। जैसे तैसे ऑफिस पहुँच गए। उस दिन उसको ऑफिस-ट्रिप पर ऊटी जाना था। वहां से लौटने के वक़्त ही उसने मुझे कॉल किया था।
तो चूँकि अब फ्लैशबैक ख़त्म हो गया, मैं वर्तमान की बात बताता हूँ।
उसने कॉल किया।
वीणा- हेलो !
मैं- हेलो, कौन?
वीणा- मेरा नाम वीणा है।
मैं- कौन वीणा?
वीणा- कल ही तो मिले थे।
मैं- कल तो मिले थे लेकिन कहाँ और किससे?
वीणा- अच्छा मज़ाक है !(हँसते हुए)
मैं- थैंक्स फॉर द कोम्प्लिमेंट
वीणा- वो सब छोड़ो, पहचाना मुझे?
मैं- हाँ पहचान लिया।
वीणा- तो बताओ मैं कौन हूँ?
मैं- तुम वही हो जिससे मैं कल मिला था।
वीणा- फिर वही मज़ाक….
मैं- चलो जब मज़ाक पसंद नहीं तो तुम कुछ सीरियस हो जाओ और बता दो कि तुम कौन हो?
वीणा- मैं तुम्हारे कैब से आती हूँ और तुम्हें मालूम नहीं?
मैं- तुम मेरे कैब से आती हो ये तो पता चल गया लेकिन तुम्हारा नाम क्या है?
वीणा- मुझे वीणा कहते हैं।
मैं- कौन कहता है? (छेड़ते हुए)
वीणा- मेरा नाम वीणा है बाबा…
मैं- काफी अच्छा नाम है।
वीणा- तुम अच्छे दीखते हो।
मैं- मतलब?
वीणा- मतलब बहुत डिसेंट !
मैं- थैंक्स लेकिन यह सब बोलने का मतलब क्या है?
वीणा- मैं बहुत दिन से तुम्हें नोटिस कर रही हूँ।
मैं- क्यूँ? मुझमें ऐसी नोटिस करने वाली क्या बात दिखी तुम्हें?
वीणा- बस ऐसे ही ! तुम अच्छे दीखते हो इसलिए !
मैं- मेरा नंबर कहाँ से मिला?
वीणा- मेरे फ्रेंड से मिला।
मैं- बहुत चालू चीज़ लगती हो।
वीणा- क्या हम मिल सकते हैं कभी?
मैं- क्यूँ?
वीणा- मुझे कुछ बात करनी है तुमसे।
मैं- तो बताओ क्या बात है?
वीणा- नहीं ! पहले मिलो तो बताउंगी !
मैं- ओके ! कब मिलना है?
वीणा- कल मिल सकते हैं क्या?
मैं- कहाँ पर?
वीणा- मैं तुम्हारे घर पे आ सकती हूँ क्या?
मेरा तो दिमाग ही घूम गया कि इसे मेरा घर भी पता है। बात को टालते हुए पूछा- कहाँ रहती हो तुम?
उसने अपना पता बताया तो मालूम चला कि मेरे घर से 5 मिनट की दूरी पर रहती है और सब बात साफ़ हो गई।
मैं- एक काम करते हैं ! मेरे घर पर तो अभी बहुत लोग हैं, अगर तुम कहो तो क्या हम मेरे दोस्त के यहाँ मिल सकते हैं?
वीणा- ठीक है।
मैं- तो एक काम करो, मैंने तो तुम्हें देखा होगा लेकिन कभी ध्यान नहीं दिया। तुम्हें पहचानूँगा कैसे?
वीणा- तुम मंदिर के पास आना, मैं कॉल करके बता दूंगी कि मैं कौन हूँ ! (मेरे घर के पास एक मंदिर है)
मैं- ठीक है।
समय निश्चित हुआ। यह बात मैंने अपने दोस्त को बता दी थी।
उसने कहा कि मेरे ऑफिस आकर घर की चाभी ले लेना। मैं दूसरे दिन वहाँ उसकी प्रतीक्षा करने लगा। वो बिलकुल समय पर आ गई और मुझे कॉल किया। मेरे पास ही खड़ी होकर मुझे कॉल कर रही थी। फिर मेरे तो होश ही उड़ गए, एक बला की खूबसूरत लड़की मुझे कॉल करके मुझसे मिलने के लिए मेरे दोस्त के घर चलने तक को तैयार है।
हम दोनों ऑटो में बैठे और दोस्त से चाभी लेकर उसके घर चल दिए। मैंने महसूस किया कि वो कभी कभी मुझे छूने की कोशिश कर रही है। मैं चुप-चाप बैठा हुआ था। कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था न इसलिए !
उसने बात करनी शुरू की।
वीणा- मैं तुम्हें देखकर समझ गई थी कि तुम एक अच्छे लड़के हो इसलिए मिलना चाह रही थी।
मैं- अगर मैं अच्छा लड़का हूँ तो इसमें मिलने की क्या बात है?
वीणा- नहीं, बात कुछ और है।
वो कुछ कसमसा रही थी, मैं उसकी हालत को भाँप रहा था, उसकी सांस तेज़ हो रही थी।
मैं- क्या बात है खुल के बताओ। अगर कुछ ऐसी बात है जो मुझसे कहने में दिक्कत हो रही है तो मैं चेहरा घुमा लेता हूँ। तुमको नहीं देखूंगा, तुम बोल देना।
वीणा- ऐसी बात नहीं है आशु, बताना तो बहुत कुछ चाहती हूँ लेकिन एकदम अकेले में।
मुझे कुछ अजीब सा लगा। एक तो कोई लड़की मुझे कॉल करती है, ऊपर से मिलने को बोलती है और यह कम पड़ गया तो कुछ बात भी करना चाहती है वो भी अकेले में। मैं भी तैयार था।
थोड़ी देर हम दोनों खामोश रहे और गाड़ी में इतनी तेज़ी थी कि सनसनाती हवाओं ने उसकी जुल्फें मेरे चेहरे पे बिखरा दी। उसकी महक ने जैसे मुझ पर जादू सा कर दिया। जिसका असर यह हुआ कि मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया जिसकी भनक न तो उसे हुई और न ही मुझे। यह तो बस खुद से हो गया। जब गाड़ी वाले ने ब्रेक लगाया तो मुझे एहसास हुआ कि वो मेरे कंधे पे सर रख कर आराम फरमा रही है। यह देखकर मुझे तो एक बार हंसी भी आई लेकिन किस्मत का दिया हुआ उपहार समझकर मैंने अपने मन में फूटते हुए लावा पे जैसे गंगाजल डाल दिया।
बस यही सिलसिला चलता रहा और हम दोनों मेरे दोस्त के यहाँ पहुँच गए।
मैंने उसे धीरे से कहा- हम पहुँच गए !
और यह जानकर उसके चेहरे पे एक नायाब सी ख़ुशी फ़ैल गई। मैंने कुछ सिगरेट और एक पेप्सी की बोतल ली। हम ऊपर तीसरी मंजिल पर चले गए जहाँ सिर्फ एक ही कमरा था। वहां कोई नहीं था और संयोग से उस पूरे घर में सिर्फ हम दोनों ही थे। मैंने उससे आराम से बैठने को कहा और टीवी चला दिया। कुछ देर सुस्ता के हम दोनों ने बात करनी शुरू की।
हाँ मैं बताना भूल गया कि उस घर में कोई बेड नहीं था इसलिए हम दोनों नीचे लगे गद्दे पे अगल-बगल बैठे हुए थे।
वीणा- आशु, मुझे बहुत दिन से तुम्हारे बारे में कुछ ख्याल आते हैं।
मैं- कैसे ख्याल?
वीणा- बस यही कि अगर हम दोनों दोस्त बन जाएँ तो कैसा रहेगा?
मैंने सर पीट लिया कि यह लड़की सिर्फ इतना कहने के लिए इतने नखरे कर रही थी।
मैं- क्या तुमने इतना बोलने के लिए यह सब किया?
वीणा- नहीं आशु, मुझे गलत मत समझना प्लीज़, लेकिन तुम मुझे अच्छे लगते हो।
मैं- तो क्या इसका मतलब यह है कि तुम मुझसे प्यार करती हो?
वीणा- शायद हाँ (हिचकिचाते हुए)
मैं- लेकिन कब से? और कैसे हुआ ये सब? मैंने तो तुमसे कभी बात तक नहीं की है।
वीणा- मैं तुम्हें कैब में देखती हूँ, जिस तरह से तुम बिलकुल शांत बैठे रहते हो, गाने गाते रहते हो, मुझे अच्छा लगता है।
मैं- हाँ मैं ज्यादा बात नहीं करता किसी से।
वीणा- पता है, मेरी दोस्त भी बोल रही थी।
मैंने उसको थोड़ा समय दिया ताकि वो नोर्मल हो जाए।
बातों ही बातों में कुछ आधा घंटा बीत गया। फिर धीरे से मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपनी तरफ खींचा। वो बिल्कुल मेरे पास आ गई जिससे उसके सांस की गर्मी मेरे चेहरे को सहलाने लगी। उसने अपना दूसरा हाथ मेरे बालों में डाल दिया। मैं उसकी आँखों में देखने की कोशिश करने लगा। मैं जानना चाहता था कि यह सही है या सिर्फ जिस्म की आग।
उसने अचानक से मासूमियत के साथ मुझे देखा जिससे मुझे अपने आप पर कुछ शर्म जैसी आने लगी। मैंने उसे छोड़ दिया। मैं उसे फिर देखा, वो चेहरा झुकाए दबी सी मुस्कान बिखेर रही थी। मैं खुश हुआ कि उसे कुछ बुरा नहीं लगा। मैं उसे देखता ही रहा। कुछ देर बाद उसने पहल की और मेरे बालों में हाथ फिराकर मुझे चूम लिया, बिल्कुल बच्चों जैसे !
मैं जैसे कुछ बोल ही नहीं पा रहा था, उस लड़की की भावनाओं को समझने की कोशिश में लगा हुआ था। सेक्स तो सबसे अंतिम चरण होता है, मैं उसके साथ कुछ बुरा नहीं करना चाहता था। फिर मैंने उसको एक लम्बा चुम्बन दिया जिससे उसका चेहरा लाल हो गया।
मैंने पूछा,”कैसा लगा?”
वो मेरे से लिपट गई।
वीणा- थैंक्स आशु !
मैं- इट्स ओ के !
वीणा- मैं सिर्फ यही कहना चाहती थी कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, तुम मेरे साथ कुछ भी कर सकते हो।
मैं- कुछ भी मतलब क्या?
वीणा- मतलब कुछ भी।
मैं- अगर तुम मुझसे प्यार करती हो तो अपने इस कुछ भी को थोड़ा समय दो और मुझे भी। मैं तुम्हारा साथ देने को तैयार हूँ लेकिन यह सब एकदम अचानक से हो गया जो मैंने सोचा भी नहीं था।
वीणा- मुझे माफ़ कर दो आशु, लेकिन संभालना मुश्किल हो गया था।
मैं- कोई बात नहीं, ऐसा होता है।
फिर हमने कुछ बातें की और उसने मेरी गोद में अपना सर रख दिया। मैं भी इसका अभिवादन किया। उसने कहा, “मुझे आज बहुत अच्छा लग रहा है आशु ! ऐसा लगता है वक़्त यहीं रुक जाये जिसमें सिर्फ हम दोनों हों !”
वीणा- क्या मैं तुम्हें फिर से किस कर सकती हूँ?
मैं- बिलकुल नहीं। (थोड़ी देर बाद) क्यूंकि इस बार मैं तुम्हें किस करूँगा और बाद में तुम संभाल लेना।
उसके बाद तो जैसे मैंने न आव देखा न ताव, टूट पड़ा उस पर !
मैं उसके ऊपर था और उसके शरीर को दबाये हुए उसे चूम रहा था, वो साथ अच्छा दे रही थी।
धीरे-धीरे उसने मुझे अपने ऊपर दबाना शुरू किया जिससे मुझे लगा कि यह सेक्स ही चाहती है।
मैंने भी उसके स्तन पकड़ लिए और दबाना शुरू किया। उसने मेरे जींस के अंदर हाथ डाला और शिकार उसके हाथ में आ गया। मैंने उसकी टॉप धीरे से उठाई और उसके पेट पर हाथ फिराने लगा जिससे उसके बदन से गर्मी और मुँह से आवाज़ निकलने लगी। फिर उसकी नाभि में उंगली घुमाते हुए उसकी ब्रा खोल दी। उसके नग्न स्तन मेरे हाथ में आ गए और मेरा लंड उसके हाथ में ! दोनों एक दूसरे को ऐसे मसल रहे थे जैसे एक शैतान मच्छर को उसका सताया हुआ इन्सान मसलता है।
धीरे-धीरे मैंने उसकी पीठ को सहलाया और उसके चुचूक चूसने लगा। थोड़ी देर बाद वक्ष से होते हुए उसकी नाभि, उसका पेट, उसकी कमर पर भी चूमा चाटी कर ली। फिर ऊपर गया और उसके गले और कान को निशाना बनाया।
इसी दौरान उसकी चूत ने अपना काम कर दिया और उसकी पैंटी गीली हो गई। मैंने उसकी पैंट की ज़िप खोल कर पैंटी के अंदर उंगली डाली और उसकी चूत छूने लगा। वहीं वो मेरे लंड को मसल मसल के उसका भरता बना रही थी। कुछ देर बाद मैंने उसकी पैंट खोली और अपने जींस भी। उसने मेरा लंड अपने मुँह में लिया। इससे पता चला कि उसे बहुत कुछ पता था सेक्स के बारे में। यह सिलसिला थोड़ी देर चला और उसने अपना पानी दूसरी बार छोड़ दिया।
अब मेरा मन उसे चोदने को कर रहा था। मैंने उसको बोला- अब मैं तुम्हें चोदना चाहता हूँ।
तो उसने मुझे चूम लिया और बोली- ठीक है ! और लेट गई।
दिल जीत लिया था उसने मेरा ! मैं भी उसे मायूस नहीं करना चाहता था।
लेकिन दोस्तो, जब साला एक कुत्ता किस्मत पे टांग उठाता है तो भेजे की माँ चुद जाती है।
मेरी भी यही हालत हुई। मैं उसे लगाने वाला ही था कि उसके सेल पे उसके घर से कॉल आ गया कि दस मिनट में घर पहुँच जाओ, कुछ मेहमान आने वाले हैं।
वो भी मना नहीं कर सकती थी और न ही मैं !
हम दोनों ने होश से काम लिया और सेक्स की अपनी चाहत को अगली बार के लिए संजो के रख लिया।
अब इसके बाद क्या हुआ वो मैं आपको अगली कहानी में बताऊंगा।
आपको यह कहानी कैसी लगी, ज़रूर बताइयेगा।
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