एक व्याख्या प्रेम की…-2
लेखक : निशांत कुमार
मैं अपने स्वप्न से जागा और जाकर अपने कपड़े बदल लिए। तभी एक कॉल आया, मैंने बात की तो सामने आकाश था। वो अपने घर का पता बताने लगा। मेरी हवस की भूख अभी शांत हो चुकी थी तो मैं उसे मना करने लगा।
वो बहुत जोर देने लगा, कहने लगा कि लास्ट टाइम की टिप्स शायद एग्जाम निकलवा दें।
मैं यह कह कर टालने लगा- तुम्हारे घर में सब क्या सोचेंगे ! और यहाँ भी मैं अपने अंकल की इजाजत के बिना रात भर तेरे घर में नहीं रूक सकता हूँ !
फिर उसने मेरे घर का पता लिया और घर आ गया। अंकल घर में ही थे। जैसे तैसे उसने उन्हें मना ही लिया और मुझे अपनी बाइक पर बिठा कर अपने घर ले गया।
घर खूबसूरत था। उसने बताया कि यह घर उसके दादा ने बनवाया था वो सेल टैक्स में कमिश्नर थे। बाहर एक गार्डन गार्डन में झूला वगैरा सारी सुख सुविधाएँ थी वहाँ।
तभी मेरी नजर खिड़की पर गई, पुष्प वहीं थी और मुझे घूरती जा रही थी। मकान दो मंजिल का था पर ऊपर अभी कोई किरायेदार नहीं था।
पहुँचते हुए साढ़े आठ बज गए थे। सो सीधे उसकी मम्मी ने हमें खाना ऑफर कर दिया।
खाना खाकर आकाश मुझे अपने कमरे में ले गया। कमरे में लगभग सब कुछ था। वो अपनी किताबें ले आया और फिर हम पढ़ने लगे। तकरीबन एक घंटा हुआ होगा, सभी लोग खाना खाकर सो चुके थे।
तभी हल्की सी आवाज़ आई-
चौदहवीं की रात थी
शब भर रहा चर्चा तेरा,
सबने कहा चाँद है
मैंने कहा चेहरा तेरा…
मेरा फ़ोन बज रहा था। देखा तो नंबर था किसी का नाम नहीं था। फिर आकाश ने कहा- यह पुष्प का नंबर है..।
वो उठ कर उसके कमरे की ओर गया, थोड़ी देर में वापिस आया तो कहने लगा- वो तुम्हारा फ़ोन मांग रही है। ग़ज़ल अपने कंप्यूटर में डालेगी।
मुझे तो आभास हो रहा था उसे अपने किस सिस्टम में डलवाने का मन हो रहा है। मैंने अपना फ़ोन उसे दे दिया। फिर हम पढ़ने लगे। एक घंटे के बाद लगभग हमारी पढ़ाई हो गई थी, मैंने आकाश से कहा- वाइन है क्या? एग्जाम से पहले रिफ्रेश होना जरूरी है।
वो मुस्कुराने लगा और बोतल ले आया। हम छत पर गए, जाते जाते मैंने गौर किया कि एक कमरे की लाइट जली हुई थी तो मैंने आकाश से पूछ लिया कि वो कौन है।
उसने कहा- वो पुष्प है, अभी तक जाग रही है।
थोड़ी देर में दोनों को पूरी तरह से चढ़ चुकी थी। लड़खड़ाते हुए हम नीचे उतरने लगे। मेरा कमरा ऊपर गेस्ट रूम था। सो मुझे मेरा कमरा दिखा के वो अपने कमरे में चला गया।
वासना ने फिर से मुझे घेरना शुरू किया। मैं उठ के नीचे दबे पांव जाने लगा। अब उस कमरे में धीमी रोशनी थी। मैं उसके कमरे की ओर बढ़ने लगा। दरवाजा खुला था। मैंने झांक कर अन्दर देखा, अन्दर कंप्यूटर अब तक ऑन था। वो कान में हेड फ़ोन लगा कर गाने सुन रही थी, उसने लाल रंग की टाइट नाईटी पहनी थी।
मैंने धीरे से उसके पास पहुँच उसके कंधे पे अपना हाथ रख दिया। वो डर कर दूर हट गई।
फिर उसने कहा- आप? आप कब आये?
मैंने कहा- मैं तो सालों पहले आ गया था, तुमसे आज मिला हूँ…
शराब से आत्मविश्वास बहुत आ जाता है। इस बात का पता मुझे उसी दिन लगा।
उसने कहा- सो फनी, वैसे आप नशे में हो क्या? मुझे स्मेल आ रही है?
मैंने कहा- नहीं तो, वैसे अब धीरे धीरे नशा चढ़ रहा है। आखिर इतनी नशीली चीज जो सामने है। मैं ठीक हूँ, बस तेरे कंप्यूटर में गानों का कलेक्शन देखना है मुझे !
उसने कहा- तो मैं अब चीज दिख रही हूँ। सिर्फ गानों वाले फाइल ही देखना।
कह कर वो कुर्सी से हट गई और बेड पर बैठ गई। मेरी नज़र बस उसके उभारों पर ही थी। इस बार फिर वो मेरी नज़र भांप गई।
उसने कहा- कभी कोई लड़की नहीं देखी है क्या?
मैंने कहा- मैं लड़की को कहाँ देख रहा हूँ, मैं तो सिर्फ एक हिस्सा देख रहा हूँ। और यह हिस्सा तो मैंने आज तक नहीं देखा है।
फिर मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ कि मैंने कुछ गलत कह दिया है तो फिर तुरंत उससे सॉरी कहा।
वो बोली- ठीक है, कोई बात नहीं। वैसे मैंने भी आज तक सिर्फ कंप्यूटर पे ही देखा है।
मैंने कहा- झूठी कहीं की ! रोज़ तो नहाते वक़्त अपना नहीं देखती हो क्या?
वो हंसने लगी और इशारे से बोली- मैं इसकी नहीं ‘उसकी’ बात कर रही हूँ।
अचानक जैसे करंट सा लगा। सारा नशा उतर गया मेरा ! मैंने कहा- तो आज देख लो।
और उसके करीब आ गया।
वो मेरे होंठों पे हाथ रखते हुए बोली- नहीं, मैंने आज तक ये सब नहीं किया है। प्लीज मत करो।
मैंने कहा- अगर यह तुम्हारा पहला अनुभव है तो मुझ पर भरोसा रखो, इसे तुम पूरी जिंदगी याद रखोगी। और जब वृद्ध अवस्था में भी होगी तो भी इसे तुम देख पाओगी।
उसने आश्चर्य से मेरे तरफ देख कर पूछा- वो कैसे..?
मैंने कहा- अभी मैं तुम्हारा और मेरा विडियो बनाऊंगा और मेरी पर्सनल वेबसाइट है। जो पूरी तरह से सिक्योर्ड है। वहाँ उन सभी लडकियों के डिटेल्स और विडियो हैं जिन्होंने मेरे साथ बिताए पल को यादगार बनाने की सोची। और सिर्फ मैं और तुम ही उसे देख सकेंगे कोई और नहीं।
वो कहने लगी- ऐसा हो सकता है क्या?
मैं मन ही मन सोच रहा था कहीं वेबसाइट दिखाने को न बोल दे। वैसे ये भी अच्छा तरीका है अपनी यादों को संजोने का। इसमें हम दोनों जब चाहे इसे देख अपनी यादें ताज़ा कर सकते हैं। मैं तो मन ही मन यह सोच रहा था कि अगर आज यह सच होता है तो मैं इसके भरोसे को नहीं तोड़ूंगा, वेबसाइट तो मैं जरूर बनाऊंगा।
वो अपनी अलमारी खोल के अपने विडियो कैमरे को निकाल कर बोली- इससे काम हो जाएगा क्या?अगर मेरी जगह कोई और होता तो पता नहीं उसके भोलेपन का कितना फायदा उठाता। मैं उसके भोलेपन पे निसार हो गया था शायद मुझे उससे प्यार हो गया था।
मैंने उससे पूछा- तुम्हारे पास लाल साड़ी है क्या?
उसने कहा- नहीं ! पर मम्मी के पास है।
मैंने कहा- अगर ला सकती हो तो पहन लो, आज तुम्हारी सुहागरात है।
वो चुपचाप जाकर लाल साड़ी ले आई और पहन के अपने बाथरूम से बाहर आई।
सच में आज तो स्वयं कामदेव भी उस पर मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकता था। मैं तो अपना सब कुछ उस पर न्यौछावर करने को तैयार था।
मैंने प्यार से उसका हाथ थाम लिया और घुटनों के बल बैठ गया। उसके हाथों को चूमते हुए मैं बेहद बुरी आवाज़ में गाने लगा-
पलकें उठा के देखिये,
यूँ मुस्कुराईये..
धड़कन को भी खबर न हो
यूँ दिल में आईये..
वो मेरे और करीब आ गई फिर मेरी बांहों में आकर वो कहने लगी- दिल में तो समा गई मैं अब…
मैंने उसके होंठों पर अपनी उंगली रखते हुए उसके माथे को चूम लिया- अब तो हमारे मिलन की रात है।
मैंने उसे बांहों में भर कर अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए। हल्के हल्के मैं उसके अधरों के रस का पान करने लगा। उसके निचले अधर से निरंतर कामरस रिस रहा था मानो !
मैंने अपनी जिह्वा हो उसके मुख के हवाले कर दिया। अब उसने मेरे होंठों के निचले भाग पर अपने दांत गड़ाने शुरू कर दिए। मैं चूमते हुए थोड़ा नीचे झुका और उसे अपनी गोद में उठा कर बिस्तर पर लिटा दिया।
पता नहीं क्यों पर मेरा लिंग नियंत्रण में था.. शायद इसीलिए कहते हैं कि अगर प्रेम हो तो वासना पर नियंत्रण हो ही जाता है। और अगर वासना हावी हो तो प्रेम का दूर दूर तक नामो निशान नहीं रहता है।
जब भी कोई लड़की पहली बार किसी पर भरोसा कर अपना सब कुछ उसे सौंपती है तो लड़के को कभी भी वासना खुद पे हावी नहीं होने देना चाहिए।
मैं उसे सर से पाँव तक चूमता चला गया। उसके जिस्म के एक एक अंग पर मैं अपने प्यार का एहसास सजाना चाह रहा था। मैं अपनी उंगलियों को उसके गर्दन तो कभी पीठ पे फिरा रहा था। एक बार फिर मैंने अपने होंठ उसके होंठों से टिका दिए और अपनी उँगलियों से उसके कंधे सहलाने लगा। मैं बिना उसके कहे आगे नहीं बढ़ना चाहता था।
तभी वो मेरे दाहिने हाथ को पकड़ अपने पेट पे गई और ऐसा लगा जैसे वो मुझसे अपने ऊपरी वस्त्र उतारने को कह रही हो।
मैं उसके वस्त्र उसके शरीर से अलग करने लगा। ब्लाऊज़ अलग होते ही वो अपनी साड़ी के आँचल से अपने स्तनों को ढकने लगी। मैं ऊपर से उसके हाथों को ही चूमने लगा।
जो स्थान मुझे बिना वस्त्रों के दिखा उसपे अपनी होंठों के निशान छोड़ता गया। हर चुम्बन के साथ उसके हाथ ढीले पड़ते जा रहे थे। अब मैं उसके हाथों को हटा सकता था। धीरे धीरे उसके हाथ रूपी कवच को उसके स्तनों से दूर किया तो उसकी आँखें बंद हो गई। उन स्तनों की व्याख्या करने बैंठू तो स्तन-ग्रंथ बन जाए।
मैंने अपनी जिह्वा से उसके स्तनों के अग्र भाग के साथ खेलना शुरू कर दिया। मेरी जिह्वा एक प्रशिक्षित तलवारबाज़ की भांति उसके अग्रभाग पर वार कर रही थी। वार करता हुआ जैसे जैसे मैं अपने मुख को थोड़ा ऊपर करता वो भी अपने स्तनों को ऊपर उठाने लगती। तभी पूरी ताक़त से मैंने उसके स्तनों पे हमला बोल दिया। वो भी मेरे बालों को पकड़ अपना पूरा स्तन मेरे मुख में डालने का प्रयास करने लगी। आज मैं बस पूरी तरह उसे अपना बना लेना चाहता था, उन स्तनों को मुट्ठियों में भींच कर अपने होंठ मैंने उसकी नाभि पर कर दिए।
थोड़ी देर वहाँ गुज़ारने के बाद मैं फिर से उसके होंठों का पान करने लगा इस बार चुम्बन कुछ ज्यादा ही सख्त थे। फिर मैंने उसे पलट दिया। उसके लम्बे गेसुओं को अपने हाथ में लेकर मैं उसकी पीठ पे फिराने लगा साथ ही साथ पूरी पीठ पर अपने चुम्बनों की बरसात सी कर दी। वो बस सिसकारियाँ ले रही थी।
धीरे धीरे मैं उसके नितम्बों पे अपने हाथ फिराने लगा। उसके कूल्हे पूरी तरह से विकसित थे, मैं तो उसकी पीठ को चूमता हुआ उसके कूल्हे दबाने का आनन्द ले रहा था। तभी हल्का सा कमर उसने ऊपर किया और अपनी साड़ी ढीली कर दी। मुझे तो इसी पल का इंतज़ार था। अपने दोनों हाथों उसके निचले वस्त्र मैंने अलग कर दिए। अभी भी वो पीठ के बल ही लेटी थी। अपने दोनो मुट्ठियों में उसके कूल्हों को कैद कर पैरों और जांघों पे चुम्बनों की झड़ी लगा दी। उसे चूमते हुए मैं मलद्वार के पास पहुँचा।
जैसे ही मैंने उसे अपने होंठ लगाए, वो पलट गई और अपना चेहरा छुपा लिया।
उसकी अदाएँ तो जैसे मेरी जान लेने पे अमादा थी। मैंने अपने आप को थोड़ा नियंत्रित किया और उसके करीब पहुँच उसके हाथों को ही चूम लिया। उसने अपनी बांहें फैला मुझे उसने अपनी बांहों में भर लिया।
अब मैंने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए। जब मैं अपनी पैंट उतार रहा था तो उसने अपने चेहरे को मेरे सीने लगा दिया। उसकी मासूमियत पर मुझे और भी प्यार आ रहा था।
थोड़े से नियंत्रण और प्रेम के असर की वजह से लिंग ने अपना पूर्ण विकसित स्वरूप अभी तक धारण नहीं किया था। मैंने उसके चेहरे को चूमते हुए उसे अपने लिंग के दर्शन कराये। वो बहुत गौर से उसे देखने लगी।
थोड़ी हिम्मत कर उसने मेरे लिंग को अपने हाथ में लिया। उसका स्पर्श तो मरे हुए में भी जान डाल दे, यह तो फिर भी लिंग था। मेरा लिंग अपने पूर्ण विकसित रूप में आने लगा।
वो बोली- ये क्या हो रहा है?
मैंने कहा- तुम्हारे प्यार का जवाब दे रहा है।
फिर उसके होंठों को अपनी होंठ से लगा दिया मैंने। फिर से उसे लिटा के उसके जिस्म को चूमता हुआ नीचे बढ़ने लगा। अब पुष्प के रक्तिम पुष्प मेरे सामने थे। अभी भी उससे ढेर सारा काम रस रिस रहा था। मैंने उसकी भाग्नासा पे अपनी जीभ फिराते हुए उसके काम रस को उसकी पास पड़ी पैंटी से साफ़ किया। अब मैं उसका कौमार्य साफ़ देख सकता था।
पुष्प के पुष्पों पे अपना चुम्बन दे कर मैं ऊपर उसे अपनी बांहों में भर लिया। मैंने उससे पूछा- क्या तुम तैयार हो? मैं कोशिश करूँगा कि तुम्हें इसमें कम से कम पीड़ा हो।
उसने स्वीकृति में अपने होंठ मेरे होंठों से मिला दिए।
अब वो घड़ी आ गई थी। मैंने होंठ उसके होंठों पे सटाए रखा और अपना लिंग उसके योनिद्वार पर सटा कर हल्का सा जोर लगाया। लिंग तीन इंच अन्दर गया था.. मैं उसके दर्द को महसूस कर सकता था इसलिए उसी अवस्था में थोड़ी देर रूका रहा और उसके स्तनों को सहलाता रहा।
जब स्थिति थोड़ी सामान्य हुई तो फिर एक जोर का दबाव और लगभग पूरा लिंग अन्दर था। मैंने अपने हाथ उसके होंठों पे रखे हुए थे,
उसकी आँखें बंद थी, आँखों से आंसू बह रहे थे।
मैंने उसे सहलाते हुए उसकी आँखों को चूम लिया। यह प्रेम ही तो था कि मैं इस अवस्था में भी खुद पे नियंत्रण रख पा रहा था। उसे काफी देर तक मैं चूमता रहा। फिर धीरे धीरे अपने लिंग को मैंने आगे पीछे करना शुरू कर दिया। अब स्थिति सामान्य हो रही थी और अब वासना हम दोनों पे हावी हो रही थी। यह हमा दोनों का प्रथम मिलन था।
मेरे धक्के अब बढ़ने लगे थे और वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी। मैं इस पल को और भी यादगार और लम्बा बनाना चाहता था। सो मैंने अपना लिंग बाहर निकाल लिया, वो तड़प के मुझे देखने लगी।
मैंने उसी की पैंटी से अपने लिंग पे लगा रक्त साफ़ किया। और फिर उसे गोद में उठा कर उसे बाथरूम में ले आया और शावर चला दिया।
वो मुझसे लिपटी हुई थी। उस शावर के नीचे मैंने उसे चूमना शुरू किया। फिर उसे नीचे बीठा के उसके हाथ में साबुन पकड़ा दिया और अपने लिंग को साफ़ करने का इशारा किया। उसका एक एक स्पर्श मुझे आज भी याद है।
फिर उसे लिंग को चूमने का इशारा किया।
वो चूमने लगी, उसकी जीभ मेरे पूरे लिंग पर घूम रही थी।
अब थोड़ी देर में मैं अपने लिंग को उसके मुख में डालने का प्रयत्न करने लगा। वो पहले तो इन्कार करती रही, फिर मेरे जोर देने पे उसने उसे अपने मुख में भर लिया। उसका एक एक अंदाज़ मुझे अपना दीवाना बना रहा था। फिर वो खड़ी हुई और मेरे गले लग गई। मैं उसे बिस्तर पे ले आया। वहाँ उसे पेट के बल लिटा के कमर के नीचे तकिया लगा दिया। अब बाथरूम जाकर थोड़ा सा झाग अपने हाथों में ले आया। वो उसी अवस्था में मेरा इंतज़ार कर रही थी। मैं उस झाग को उसके मलद्वार पे लगाने लगा और धीरे से अपनी कन्नी अंगुली को उसके मलद्वार में धंसा दिया। थोड़ी देर में जब उसे भी अच्छा लगने लगा तो अपनी बीच वाली अंगुली अन्दर करके हिलाने लगा। उसी अवस्था में अपना लिंग उसके योनि पर टिकाया और धीरे से अन्दर प्रवेश करा दिया।
अब उसे असीम आनंद प्राप्त हो रहा था। मेरी उंगली और लिंग दोनों अपना काम बखूबी कर रहे थे। मैं अब अपना आपा खो रहा था। तभी उसकी योनि में जोरदार संकुचन हुआ और वो ढीली पड़ने लगी।
मैं तो उसकी आँखों में देखता हुआ ढलना चाहता था। सो मैंने आसन बदल
उसे अपने सामने किया और होंठ उसके होंठों से टिका दिए। थोड़े झटकों के बाद मैं भी अपने चरम पे था और वो दुबारा अपने चरम पे ! हम दोनों एक साथ एक दूसरे पे ढल गए।
मेरा वीर्य उसके अन्दर समाता जा रहा था और वो मुझमें समाती जा रही थी। आधे घंटे तक हम यूँ ही लेटे रहे। उसे कब नींद आ गई पता ही न चला। मैं धीरे से उठ कर अलग हुआ कमरे की व्यवस्था ठीक कर अपने कपड़े पहन लिए। फिर पास पड़ी उसकी पैंटी से उसकी योनि साफ़ करने लगा। वो जाग गई, उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे गले लग गई।
मैंने उसे चूमा और कहा- मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ, कल मिलेंगे, तुम सो जाओ, रात काफी हो चुकी है।
उसकी आंखे नम थी।
मैंने पूछा- क्या हुआ?
उसने कहा- ये खुशी के आंसू हैं, आज मुझे सारे जहाँ की ख़ुशी मिल गई।
फिर मैं अपने कमरे में आ गया।
आज मुझे एहसास हुआ कि प्रथम एहसास किसी के भी जीवन में क्या मायने रखता है।
आपको मेरी कहानी कैसी लगी, मुझे मेल कीजियेगा।
निशांत कुमार
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